मसीही इतिहास में सुस्वागतम !!!
25th December, 2018जै मसीह की !
सलाम-ए-मसीह ! PRAISE THE LORD !!! मसीही समुदाय ने अपनी ज़िम्मेदारियां निभा कर कभी नहीं लिए मुफ़्त के लाभमसीही समुदाय ने भारत के लिए जब भी जो कुछ भी किया, चाहे स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व की बात हो या उसके पश्चात् की, किसी भी मसीही ने कभी उसका प्रचार करके ऐसी स्थिति से कभी मुफ़्त के लाभ लेने का प्रयत्न नहीं किया। चाहे आप महात्मा गांधी जी के मित्र फ़ादर तीतुस की उदाहरण ले लें, या किसी भी अन्य मसीही स्वतंत्रता सेनानी की। हरेक मसीही ने अपना फ़र्ज़ निभा कर सदा परमेश्वर व अपने ख़ुदावन्द यीशु मसीह का दिल से धन्यवाद किया। मसीही लोगों ने बिना मतलब का आडम्बर या कोई दिखावा इत्यादि नहीं किया - एक सच्चे मसीही की यही पहचान है।
नई पीढ़ी को अवश्य ज्ञात होना चाहिए ‘भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मसीही समुदाय का योगदान’
सन् 52 के बाद से लेकर अब तक जब भी कभी भारत पर संकट आन पड़ा, मसीही समुदाय ने अपना सकारात्मक योगदान डाला है; चाहे वह किसी भी रूप में हो। ऐसा करना सभी का फ़र्ज़ है, अपने-अपने देश के लिए सभी अपनी जान तक कुर्बान कर देते हैं। परन्तु ये बातें केवल इस लिए जनता के समक्ष रखने हेतु विवश होना पड़ता है क्योंकि आज कल राष्ट्रवाद के सर्टीफ़िकेट बांटने वाले तथाकथित बरसाती मेंढकों तथा एक विशेष राजनीतिक पार्टी की सरकार केन्द्र में स्थापित होने पर भारत के गली-मोहल्लों में व सड़कों पर दिखाई पड़ने वाले कुछेक चूहे (जो वह सरकार विशेष की सरकार गिरने के बाद अपने-अपने बिलों में जा छिपते हैं) प्रकार के तथाकथित नेताओं की आँखें खोलने के लिए यह सब दिखावा भी आवश्यक है। नई पीढ़ी को भी तो कुछ मालूम होना चाहिए कि आधुनिक भारत के निर्माण में मसीही समुदाय का आख़िर क्या योगदान है।
मसीही समुदाय सदैव रहा भारतीय इतिहासकारों के पक्षपात का शिकार भारत के इतिहासकार भी कुछ ऐसे मेंढकों व चूहों की तरह ही पक्षपात करते रहे हैं, उन्होंने मसीही समुदाय के योगदान को कभी विश्व के समक्ष रखने का प्रयत्न ही नहीं किया। पहली बात तो यही होती है कि उन्हें वास्तव में कोई ज्ञान ही नहीं होता, दूसरे वे लोग सदा जाति, धर्म व वर्णों की बेड़ियों से बाहर निकल ही नहीं पाते। प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, 1962 में चीन के साथ भारत के युद्ध, फिर 1965 व 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों तथा 1999 में कारगिल युद्ध तथा वैसे भी भारतीय सेनाओं में भी मसीही समुदाय का योगदान सदा महत्त्वपूर्ण रहा है परन्तु उनके बारे में जानबूझ कर कभी बात को उभार कर पेश नहीं किया गया कि कहीं बहुसंख्यकों के तथाकथित उच्च जाति व वर्ण के कुछ नेता बुरा न मान जाएं। ऐसे मसीही योद्धाओं का कभी कोई रेकार्ड भी जानबूझ कर नहीं रखा गया। स्वयं मसीही समुदाय ने भी कभी ऐसा कोई प्रयत्न नहीं किया कि देश के लिए बलिदान देने वाले अपने योद्धाओं को कभी तो स्मरण करें परन्तु हमारे रहनुमाओं को अपनी-अपनी मिशन की अन्दरूनी घटिया राजनीतियों से ही फुर्सत नहीं है। कुछ मसीही नेताओं की ग़लतियां माफ़ न हों सी.एन.आई के लखनऊ डायोसीज़ में 10,000 करोड़ रुपए के कथित भूमि घोटाले की बात सामने आ गई है। इतने बड़े स्तर पर क्लीसिया के धन का दुरुपयोग यदि हुआ है, तो यह बहुत बुरी बात है। अभी तो शायद इस घोटाले की कुछ और पर्तें खुलनी बाकी हैं। इतनी अधिक संख्या में उच्च-स्तरीय पादरी साहिबान का इतने धन के ग़बन में शामिल होना भारत के मसीही समुदाय को कमज़ोर करने की चाल नहीं तो और क्या है। ऐसे लोगों को अदालत यदि दोषी करार दे देती है, तो मसीही कौम को भी उन पर अपनी ओर से ऐसा षड़यंत्र रचने का आरोप अदालत में लगाना चाहिए। इनका आरोप इस लिए भी बड़ा है क्योंकि अब जबकि बरसाती मेंढक व चूहे किस्म के तथा देश को अन्दरखाते कमज़ोर करने में लगे हुए तथाकथित राष्ट्रवादी तत्व सीधे तौर पर मसीही लोगों को अपना निशाना बनाने में जुटे हुए हैं, ऐसे में मसीहियत को अपने रहनुमाओं की बहुत अधिक आवश्यकता है। और जब ये रहनुमा ही मसीहियत की जड़ें काटने के ऐसे षड़यंत्रों में संलग्न हों, तो फिर क्या किया जा सकता है? हमें पहले अपनी ऐसी कमज़ोरियों को दूर करते हुए, सभी मिशनों व समस्त मसीही भाईयों-बहनों को एकजुट करके ऐसे मेंढकों व चूहों का सामना करना होगा। -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]