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पाकिस्तान की स्थापना में मसीही समुदाय की भूमिका



 




 


धर्म-निरपेक्षता के मामले में भारत ने पाकिस्तान को पछाड़ा

मुल्तान स्थित बहाऊद्दीन ज़करियाह यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग में पर्यवेक्षक डॉ0 शाहनाज़ तारिक के नेतृत्त्व में मुनीर-उल-अन्जुम नामक एक शोधार्थी ने अपने एम. फ़िल. के शोध-पत्र के अध्याय में यह मूल्यांकन किया है कि आख़िर पाकिस्तान के स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का कितना योगदान था?

Saint Patrick Church, Karachi चित्र विवरणः सेंट पैट्रिक चर्च, कराची

यह अध्याय इस अत्यंत दिलचस्प नोट से प्रारंभ होता है कि बहुत से मसीही लोगों को यह लगता था कि ‘‘हिन्दु लोगो के अपेक्षाकृत मुस्लिम समाज ईसाईयों के प्रति अधिक धर्म-निरपेक्ष रवैय्या रखेगा और पाकिस्तान नामक नए देश में में वह मुस्लिम लोगों के साथ अधिक ख़ुशहाल रहेंगे। वास्तव में बहुत से उदारवादी मुस्लिम व मसीही दोनों ही यह मानते हैं कि ईसाई व मुस्लिम धर्म दोनों ‘अहल-ए-किताब’ हैं क्योंकि पवित्र बाईबल के पुराने नियम का कुछ भाग पवित्र कुरआन शरीफ़ में भी पाया जाता है। मसीही लोगों को यह लगता था कि हिन्दु समाज में जात-पात का भेदभाव कुछ अधिक किया जाता है।’’ परन्तु वास्तव में हुआ उसके पूर्णतया विपरीत - स्वतंत्र भारत में गांधी, जवाहरलाल नेहरु, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद व डॉ0 भीम राव अम्ेडकर, फ़ादर तीतुस, जे.सी. कुमारअप्पा व अन्य अनगिनत नेताओं ने धर्म-निरपेक्षता की ऐसी सशक्त नींव रखी कि पाकिस्तान जैसे मुल्क को इस मामले में पछाड़ कर रख दिया। वैसे भी अब ‘इस्लामिक स्टेट’ जैसे आतंकवादी संगठनों ने ‘अहल-ए-किताब’ जैसे पवित्र सिद्धांत की धज्जियां उड़ा कर रख दी हैं।


पाकिस्तान में सुरक्षित नहीं मसीही समुदाय

आज भारत का मसीही समुदाय पाकिस्तान के ईसाईयों के अपेक्षाकृत कहीं अधिक ख़ुशहाल व स्वतंत्र है। पाकिस्तान में ईसाईयों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्द्ध हैं तथा उन्हें स्वयं पता नहीं होता कि ‘कब उनका मुस्लिम पड़ोसी उन पर ईश-निंदा (ब्लैसफ़ेमी) का आरोप लगा कर उन्हें पक्के तौर पर फंसा देगा और फिर पाकिस्तानी अदालत भी देश के संविधान अनुसार उसे फांसी की सज़ा सुना देगी। यदि कहीं उसका हाल आसिया बीबी जैसा हो गया, जिसे पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने गत दिवस बरी कर दिया था, तो समस्त पाकिस्तान की ‘‘अनपढ़ व कट्टर किस्म की जनता’’ रोष-प्रदर्शन करने लग जाएगी, राष्ट्रीय संपत्ति को क्षति पहुंचाने लगेगी... इत्यादि, इत्यादि।’


भारत में भी अब बन रहा पाकिस्तान जैसा माहौल

अब भारत में कट्टर प्रकार के कुछ (केवल कुछेक, सभी नहीं) हिन्दुवादी संगठन मसीही समुदाय को निरंतर धमकियां दे रहे हैं। देश के प्रमुख नेता ऐसा दर्शाते हैं कि मसीही समुदाय की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं है और वे उसे जानबूझ कर नज़रअंदाज़ करते हैं, सरकारी नीतियों में उनको जानबूझ कर याद नहीं रखा जाता। परन्तु यह भी सच्चाई है कि देश में ऐसा माहौल केवल तभी बनता है, जब केन्द्र में भाजपा की सरकार होती है। ऐसे कट्टर व बरसाती मेंढक केवल उसी समय टर्र-टर्र करने हेतु बाहर निकलते हैं; बाकी समय में ऐसे तथाकथित नेता कहीं दिखाई भी नहीं देते, किसी चूहे की भांति बिलों में जा छिपते हैं। भाजपा की सरकार बनते ही वे सभी चूहे स्वयं को शेर दर्शा कर आम लोगों को डराते हैं। ऐसे चूहों को हम यहां पर यह सन्देश देना चाहते हैं कि हमें जब तक डॉ0 भीम राव अम्बेडकर द्वारा निर्मित देश के निष्पक्ष संविधान की छत्र-छाया प्राप्त है, तब तक तुम जैसे कायर लोग मसीही समुदाय का कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

पंजाब के बहुत से ईसाईयों ने दिया था पाकिस्तान समर्थित मुस्लिम भाईयों का साथ

पश्चिमी शिक्षा ने भारत के पढ़े-लिखे लोगों में लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता एवं राष्ट्रवाद की भावनाओं को मज़बूत किया था। इससे देश में राजनीतिक जागरुकता उत्पन्न होने लगी और स्वतंत्रता आन्दोलन खड़े करने वाले नेता उभर कर सामने आने लगे। जिस समय भारत में पाकिस्तान के कायद-ए-आज़म (राष्ट्र-पिता) मोहम्मद अली जिन्नाह तथा मुस्लिम लीग का केवल इस लिए विरोध होने लगा था क्योंकि वे एक अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने की बात कर रहे थे, तब तत्कालीन महा-पंजाब के बहुत से मसीही नेताओं ने उन्हें बिना शर्त अपना समर्थन दिया था। ऑल इण्डिया मुस्लिम लीग ने भी तब इसी लिए अल्प-संख्यकों, विशेषतया मसीही समुदाय को विशेषाधिकार देने का वायदा किया था। बाऊण्ड्री कमिशन के समक्ष मसीही मतों ने निर्णायक भूमिका निभाई थी और तभी सही अर्थों में पाकिस्तान की असल नींव भी रखी गई थी। तब पंजाब के ईसाईयों को लगता था कि केवल जिन्नाह की उनके अधिकारों व हितों की सही ढंग से रक्षा कर सकते हैं।

अग्रणी मसीही पत्रकार पोठान जोसेफ़, बी.जी. हारमोनी (जो ‘डेली डॉन’ के सम्पादक भी रहे थे), सर सैमुएल रंगनाधर, राय बहादर स्कोरन, के.एल. कुन्दन लाल (पंजाब के मसीही विधायक, जो ऑल इण्डिया नैश्नल कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे), विधायक व ऑल इण्डिया क्रिस्चियन ऐसोसिएशन के नेता राजा रघबीर सिंह, फ़ोटोग्राफ़र पत्रकार एफ.ई. चौधरी, पंजाबी साहित्यकार जोशुआ फ़ज़ल-उल-दीन, पादरी एम. एण्ड्रयूज़, जॉन ब्राईट, आयरलैण्ड के अल्फ्ऱैड जैसे कुछ मसीही नेता थे, जो स्वतंत्रता संग्राम में किसी न किसी प्रकार से सक्रिय अवश्य रहे।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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