भारत में मसीहियत (भूमिका के स्थान पर) - 1
सदा के लिए छोड़ना होगा गोरे लोगों के तलवे चाटना
हम भारतीय ईसाईयों (मसीही लोगों) की समस्या यह है कि हम में से अधिकतर भारतीय मसीही; गोरे लोगों के तलवे चाटने लग जाते हैं क्योंकि ग़ुलामी अथवा दासता हमारे ख़ून में रच-बस गई है, आख़िर उन्होंने हम पर 200-300 वर्ष राज्य किया है। उनसे मोटे डॉलरों अथवा पाऊण्ड्स की शक्ल में वित्तीय सहायता की आशा करते हैं, जबकि वे अंग्रेज़ लोग अभी तक गोरे व काले के भेदभाव से भी पूर्णतया नहीं निकल पाए हैं। वे हमारी निर्धनता के चित्र या फ़िल्में दिखा-दिखा कर स्वयं तो लाखों डॉलर विभिन्न एजेन्सियों से ऐंठते हैं और हम में से कुछ लालचियों को दान में प्राप्त उन लाखों में से केवल कुछ हज़ार डॉलर का लॉलीपौप पकड़ा कर निकल लेते हैं। और हम मसीही लोग तब भी सदैव उन्हीं के गुण गाते रहते हैं और वे कुछ लालची लोग उन हज़ार में से कुछ सौ ही निर्धन अथवा ज़रूरतमन्द लोगों तक पहुंचाते हैं। मसीही भाईयो-बहनो, अपने स्वयं का अस्तित्व मज़बूत करें, अन्य लोगों के पीछे लग कर कुछ होने वाला नहीं हमें यह भी लगता है कि ख़ुदावन्द यीशु मसीह की कृपा उन पर अधिक है या ख़ुदा उनके साथ है, ऐसा केवल इस लिए लगता है क्योंकि वे धन-संपन्न हैं - और कोई बात नहीं है। परन्तु ऐसा कहां लिखा है कि निर्धन व्यक्ति ख़ुदा/परमेश्वर से दूर है जबकि बाईबल तो हमें यही बताती है कि निर्धन की पुकार परमेश्वर शीघ्रतया सुनता है; बााईबल में दर्ज मत्ती, लूका, याकूब, मरकुस जैसी अनेक पुस्तिकाओं में अत्यंत स्पष्ट रूप से अमीर को नीचा तथा निर्धन को ऊँचा दिखाया गया है तथा ग़रीब व ज़रूरतमन्दों को अधिक से अधिक दान करने की बात भी कही गई है। यदि यीशु मसीह चाहते, तो वह राजा हेरोदेस के यहां भी तो पैदा हो सकते थे, परन्तु परमेश्वर ने उनके लिए एक ग़रीब बढ़ई का चुनाव किया। बचपन में अपने दुनियावी पिता के साथ यीशु ने भी कड़ा परिश्रम किया होगा, अपने पिता के साथ लकड़ियों से बनी वस्तुओं में कीलें ठोकीं होंगी तथा उन्हीं कीलों की सहायता से उन्हें सलीब पर टांग दिया गया। यह परमेश्वर का बहुत बड़ा पूर्व-निर्धारित इन्तज़ाम था, शायद हम में से बहुत कम लोग यह बातें समझ पाते हैं। अगर समझते होते, तो अंग्रेज़ों के तलवे न चाटते। भारत में लोगों ने पश्चिमी देशों से बहुत पहले यीशु मसीह को ग्रहण कर लिया था हम अंग्रेज़ लोगों के कतई विरुद्ध नहीं हैं, अपितु आपके सामने केवल असलियत लाना चाहते हैं। हम भारतीय मसीही उनसे पहले हैं और अधिक मसीही हैं। कैसे? वह ऐसे कि यीशु मसीह के बारह शिष्यों में से एक थोमा (थॉमस) सन 52 ई. (अर्थात अब से लगभग 1966 वर्ष पूर्व) में भारत के केरल राज्य की कोडुंगलूर बन्दरगाह पर पहली बार उतरे थे (जिन्होंने यीशु मसीह के जी उठने के पश्चात् पहले उन पर विश्वास नहीं किया था तथा फिर उनकी दाईं छाती पर भाले/नेज़े से हुए घाव में उंगली डाल कर पूर्णतया तसल्ली की थी) तथा उन्होंने यीशु मसीह संबंधी तथ्यात्मक प्रचार करना प्रारंभ कर दिया था कि उन्होंने कैसे जन्म लिया था और उनकी शिक्षाएं क्या हैं तथा उन्हें कैसे सलीब पर टांगा गया तथा फिर तीसरे दिन वह जी भी उठे। भारत के तत्कालीन छोटे स्थानीय राजाओं व प्रशासकों ने तब ‘सन्त थोमा’ को बहुत प्रसन्नता से यहां रहने व प्रचार करने की आज्ञा दी क्योंकि भारत की संस्कृति सदैव ‘जियो और जीने दो’ ही रही है। केवल उस समय के स्थानीय हिन्दु व बड़े दिल वाले भारतीय राजाओं व शासकों की कृपा से मसीही धर्म भारत में भी पनपने लगा। चाहे कुछ विरोधियों ने 21 दिसम्बर, 1972 को चेन्नई के पास माइलापोर में उनकी हत्या कर दी थी। भारत का सीरियन चर्च अब भी सन्त थॉमस को बहुत मानता है क्योंकि इस चर्च की नींव स्वयं संत थॉमस ने ही रखी थी। हम सन्त थोमा का वर्णन इस लिए बार-बार कर रहे हैं क्योंकि हम भारत में रह कर उन्हीं द्वारा चलाई गई रीतियों व मसीही परंपराओं को आगे बढ़ा रहे हैं। जबकि इसके विपरीत इंग्लैण्ड व यूरोप के अधिकतर देशों ने 500 से 600 ईसवी सन् तक भी ईसाई धर्म को अपनाया नहीं था। परन्तु मसीहियत में वे लोग भारत से आगे इस लिए निकल गए क्योंकि उनके मुख्य राजाओं व शासकों ने इस यीशु मसीह को अपना लिया परन्तु भारत में उससे भी कई हज़ार पूर्व की अमीर परंपरा, धार्मिक सिद्धांत व वेद इत्यादि थे, जहां से स्थानीय निवासियों को आध्यात्मिक शांति मिलती रहती थी। अधिकतर पश्चिमी देशों में तो ऐसा कोई सशक्त धर्म नहीं था. ज़्यादातर लोग अपने पूर्वजों की ही पूजा किया करते थे (विशेषतया इंग्लैण्ड में); उन्हें एक ऐसे संगठनात्मक धर्म की आवश्यकता थी। इसी लिए मसीही धर्म उन देशों में बहुत तीव्रता से फैल गया। यीशु मसीह का कभी प्रचार नहीं करेगा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसी लिए ऊपर यह कहा गया था कि भारत में क्योंकि मसीही धर्म पश्चिमी देशों से पहले प्रसारित हुआ, इसी लिए हम भारतीय मसीही अंग्रेज़ लोगों से पहले व अधिक मसीही हैं। अधिक इस लिए क्योंकि उन्होंने धन-दौलत को धर्म से अधिक प्राथमिकता दे रखी है, धर्म व आध्यात्मिकता को वह प्राथमिकता में नहीं रखते हैं। आज डोनाल्ड ट्रम्प इस लिए राष्ट्रपति नहीं चुना गया है क्योंकि वह मसीही है या उसने कुछ माह पूर्व यीशु मसीह को वास्तव में अपना मुक्तिदाता मान लिया है, अपितु इस लिए क्योंकि वह अरबपति है तथा अनगिनत अमेरिकनों या कई छोटे देशों तक को दौलत के दम पर ख़रीद सकता है। ट्रम्प चुना पीछे गया, पर यहां भारत में उसके ईसाई चमचों ने उसके पक्ष में व स्तुति-गीत गाने प्रारंभ कर दिए कि ‘‘जी अब अमेरिका में मसीही धर्म अधिक प्रफ़ुल्लित होगा।’’ अबे अकल के दुश्मनो, अगर कहीं अमेरिका पर भी ‘क्रिस्चियन अमेरिका’ अथवा ‘मसीही अमेरिका’ का ठप्पा लग गया, तो उसी दिन उसका पतन हो गया समझें। जैसे ‘इस्लामिक पाकिस्तान’ या मध्य पूर्व के इराक, सीरिया जैसे अनेक देशों का हो गया है। वैसे भी अपनी पत्नी के अतिरिक्त अनेक महिलाओं से अवैध संबंध रखने वाले व्यक्ति ट्रंप को यह लोग ईसाई धर्म हेतु अच्छा मान रहे हैं, लाहनत है ऐसे लोगों की मानस्किता पर। वह केवल एक प्रशासक के तौर पर कार्यरत रहेगा। वह पहले केवल अपनी अनेकों कंपनियों का साम्राज्य संभालता था, और अब वह 20 जनवरी, 2017 से समस्त अमेरिकन प्रशासन को संभाल लिया है जो उसकी अधिक बड़ी प्राप्ति नहीं है। कट्टरपंथी ईसाईयों व कट्टर बजरंग-दलियों में कोई अंतर नहीं, जानें कैसे व क्यों... अगर मेरे इस वकतव्य पर किसी को कोई संदेह हो, तो वह मेरी इस बात का उत्तर दे। अधिकतर अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, सिक्ख व मसीही भाईयों) को भारतीय जनता पार्टी व उसके सहायक दल जैसे कि ‘बजरंग दल’, ‘विश्व हिन्दु परिषद’ की केवल इसी बात पर आपत्ति/ऐतराज़ होता है कि वे हिन्दुओं के अलावा और जातियों के लोगों को घृणा की दृष्टि से देखते हैं तथा भारत को एक ‘हिन्दु राष्ट्र’ के तौर पर देखना चाहते हैं। भारत में हिन्दुओं की जनसंख्या 80 प्रतिशत से अधिक है तथा अमेरिका में भी ईसाईयों की जनसंख्या 78 प्रतिशत के लगभग है, जबकि 1990 में यह जनसंख्या 86 प्रतिशत, 2001 में 81 प्रतिशत थी। अर्थात अमेरिका में मसीही समुदाय की जनसंख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। कंप्युटर की सूचना तकनालोजी/प्रौद्योगिकी (इन्फ़ार्मेशन टैक्नॉलोजी) वहां के अधिकतर युवा कर नहीं पाते, कर क्या उसकी तकनीकी ‘ए-बी-सी’ तक समझ नहीं पाते, यही कारण है कि बिल गेट्स को अपनी कंपनी ‘माईक्रोसॉफ़्ट’ का ‘मुख्य कार्यकारी अधिकारी’ (सी.ई.ओ.) एक भारतीय हैदराबादी श्री सत्या नाडेला को बनाना पड़ा। और भी बहुत से तथा-कथित ‘छोटे’ कार्य अमेरिकी (या ब्रिटिश व यूरोपियन भी) युवा नहीं करते हैं। ऐसे कार्य भारत जैसे अन्य विकासशील देशों के लोगों को करने पड़ते हैं। जैसे मध्य पूर्व के सऊदी अरब जैसे अनेक देशों में भवन निर्माण का कार्य अधिकतर प्रवासी श्रमिक ही करते हैं, वे शेख़ स्वयं कभी ऐसे ‘नीच’ कार्यों को हाथ नहीं लगाता। जब कभी कोई मज़दूर ऐसे ख़तरनाक कार्यों के दौरान मर जाता है, तो उसकी कतई कोई परवाह नहीं की जाती और तत्काल उसके स्थान पर कोई अन्य प्रवासी (विदेशी) मज़दूर आ कर कार्यरत हो जाता है। तो ऐसी स्थिति में यदि ट्रम्प ने यदि मसीही धर्म को थोड़ी सी भी प्राथमिकता दी, तो उनकी अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी टूटने लग जाएगी, क्योंकि अमेरिका अब तक एक धर्म-निरपेक्ष देश रहा है - भारत की तरह उसके संविधान में भी यह बात स्पष्ट रूप से लिखी गई है। इसी लिए हम अपने भारत देश को प्यार करते हैं। यह है तथाकथित पश्चिमी मसीही देशों की वास्तविकता क्या आप जानते हैं कि इंग्लैण्ड में कोई मसीही सरकारी कर्मचारी सलीब अपने कपड़ों के ऊपर पहन कर ड्यूटी पर नहीं जा सकता, क्योंकि इससे अन्य धर्म के लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है। क्योंकि धर्म केवल आपकी निजी मानसिक आस्था होती है। हम केवल अपने-अपने धर्म की पुस्तक पढ़ते रहें तथा दुनियावी पढ़ाई न करें, तो हमें कौन पूछेगा? अब मुझे बताएं यदि अल्प-संख्यकों को भारत में ‘हिन्दु राष्ट्र’ की बात करने वाले मूलवादी या कट्टरपंथी लोग कुछ अच्छे नहीं लगते, तो ट्रम्प क्योंकर चाहेगा कि वह इतनी छोटी सी बात को लेकर अमेरिका को समस्त विश्व में बदनाम करे। पश्चिमी देशों ने कई शताब्दियों पूर्व धर्म व राजनीति को पृथक (अलग) कर दिया था। आप बताएं कि क्या बाईबल के नए नियम की इन्जील (पुस्तिका) मत्ती 7ः11 में यह नहीं लिखा, ‘‘इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा यही है।’’ तो फिर आप क्यों ऐसा चाहते हैं कि अमेरिका में सरकार केवल मसीही धर्म का प्रचार करती नज़र आए। जब आप भारत में रह कर ऐसा चाह रहे हैं कि बहु-संख्यक हिन्दु अपने धर्म का इस ढंग से प्रचार न करें तो अमेरिका में बहु-संख्यक मसीही क्यों केवल अपने ही धर्म का प्रचार व पासार करके पूरे विश्व में बदनाम हो जाएं। ऐसा करना संपूर्ण मानवता के हित में नहीं है। बाईबल ऐसी बातों से भरी पड़ी है, जहां पर एक-दूसरे से मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने की बात बहुत स्पष्ट रूप से लिखी गई है पर ऐसा कुछ पढ़ते समय यह फूट डालने वाले अज्ञानी पादरी साहिबान शायद अन्धे हो जाते हैं। वे अपनी क्लीसिया (संगति) को यह सदैव यही जंचाते दिखाई देंगे कि हम सर्वोच्च हैं, बाकी धर्म वाले कमतर या घटिया हैं। ऐसी बातें छोटे बच्चों के मन में बैर-भाव उत्पन्न करती हैं तथा ऐसी बेवजह की दुश्मनी कई पीढ़ियों से चली आ रही है। भारत में मसीही समुदाय को इस समय कई मोर्चों पर जंग लड़नी पड़ रही है। उसे चारों ओर से ख़तरा है परन्तु दो प्रकार के ख़तरे प्रमुख हैं: 1. बाहरी ख़तरे 2. अन्दरूनी ख़तरे जहां तक बाहरी ख़तरों का प्रश्न है, वे अधिकतर अन्य कट्टर धार्मिक-ग़ैर-धार्मिक संगठनों से ही हो सकते हैं। उनसे तो कानून निपट लेता है और उनसे इतना ख़तरा नहीं है, क्योंकि उनमें से 95 प्रतिशत केवल ब्यानबाज़ी, आरोप-प्रत्यारोप तक ही सीमित होते हैं। उनको उत्तर हमारा कोई भी मसीही प्रतिनिधि सहज रूप से दे सकता है। क्या समस्त संसार के मसीही कभी एक नहीं हो सकते? परन्तु बात जब अन्दरूनी ख़तरों की आती है, तो चिन्ता कुछ अधिक बढ़ जाती है क्योंकि यह ख़तरा बहुत अधिक है। अन्दरूनी ख़तरों में प्रमुख हैं - विभिन्न मसीही मिशनें, जो मसीहियत को दिन-ब-दिन कमज़ोर करती जा रही हैं। हमारी एकता इन्हीं के कारण ख़तरे में पड़ी हुई है। ऊपर से लेकर नीचे तक, समस्त विश्व में यह आज की सबसे बड़ी समस्या है। क्या मसीही कभी एक नहीं हो सकते? आज यह सब से बड़ा प्रश्न है। शायद नहीं, क्योंकि सरदारी कोई भी नहीं छोड़ना चाहता, अहं आड़े आता है। स्वयंभू धार्मिक रहनुमा हैं मसीहियत को सब से बड़ा ख़तरा दूसरा बड़ा अन्दरूनी ख़तरा है - स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं से, जो स्वयं को यीशु मसीह के बड़े ज्ञाता बताते हैं परन्तु होते नहीं हैं। पादरी साहिबान के नाम को ये लोग बट्टा लगा रहे हैं। पादरी साहिबान ही मसीहियत के मूल स्तंभ होते हैं परन्तु ऐसे पाखण्डी मसीही बाबे उन्हें बदनाम करने पर तुले हुए हैं। ऐसे पाखण्डियों ने अपनी बड़ी-बड़ी दुकाने बना ली हैं। ऐसे लोगों ने मसीही श्रद्धालुओं की जेब से धन निकलवाने के बहुत से ढंग ईजाद कर रखे हैं। हमें ऐसे लोगों की शनाख़्त करके उन्हें खदेड़ना होगा, तभी मसीहियत का भला हो सकता है। मसीही धर्म को खोखला किया विभिन्न मिशनों व वर्गों ने वास्तव में मानवता ही सब से बड़ा धर्म है, हमें हमारे यीशु मसीह ने यही सिखलाया है। उन्होंने तो अपने लिए कोई धर्म नहीं बनाया था, यह धर्म तो उनके बादलों साथ स्वर्गलोक में जाने के पश्चात् हम लोगों ने बना लिया। चलो एक स्थान पर एकत्र रह जाते, और एकता रखते तब भी था परन्तु अब मसीही धर्म को अनगिनत मिशनों व वर्गों में बांट कर इस धर्म को खोखला कर के रख दिया। एक छोटी सी उदाहरण से समझें कि केन्द्र शासित प्रदेश चण्डीगढ़ में 75 विभिन्न मिशनों के चर्च हैं, यही कारण है कि उनमें से कुछेक क्रिसमस के मौके पर एकत्र हो कर जब शोभा-यात्रा निकालते हैं, तो एक भी बड़ा समाचार-पत्र उनका समाचार प्रकाशित नहीं करता। क्यों? क्योंकि हम ईसाईयों/मसीहियों में एकता की कमी है। चमत्कार दिखलाने वाले स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं से बचें भारत में स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं की संख्या बहुत अधिक है जो, अधिकतर कम पढ़े लिखे होते हैं, तथा कोई काम न मिलने अर्थात बेरोज़गारी के कारण अंत में पवित्र बाईबल हाथ में लेकर क्लीसिया को अधिकार से संबोधन करने लगते हैं और कुछ ही दिनों में क्लीसिया के समक्ष ऐसी बातें करके कुछ उच्च बनने का प्रयत्न करने लगते हैं कि यीशु मसीह प्रायः उनसे बात करते हैं तथा पवित्र आत्मा की उन पर विशेष कृपा हुई है। जबकि ऐसा वे केवल अपनी दुकानदारी चलती रखने के लिए ही करते व कहते हैं। झूठे प्रकार के ऐसे तथाकथित धार्मिक रहनुमाओं की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई है और ऐसे पादरी साहिबान की संख्या बहुत कम रह गई, जो वास्तव में आध्यात्मिक हों। इन स्थितियों को दरुस्त करने हेतु हमें अपने मसीही समुदाय में अनेक सुधार करने होंगे। ये कड़वी सच्चाईयां हमें कबूल करनी होंगी। टोना-टोटका करने वाले स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं को करें दूर से सलाम मैं ऐसे बहुतेरे स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं को जानता हूं, जो किसी मिशन वगैरह से भी नहीं जुड़े होते और किसी बड़े संस्थान से पंजीकृत भी नहीं होते परन्तु वे बड़े अधिकार से किसी भी परिवार विशेष में जाकर पहले तो विश्वास जीतते हैं, फिर उस परिवार के किसी ऐसे सदस्य का चयन करते हैं, जो उनकी बात को सुनता व मानता हो। जो वे बहुत आसानी से कर लेते हैं। फिर उसे अपने घर की प्रगति व बेहतरी के लिए कुछ जादू-टोने जैसी कोई वस्तु ; जैसे लाल कपड़ा, नारियल के टुकड़े, डोरी इत्यादि घर में चोरी-छिपे कहीं छिपाने या दबाने के लिए कह देते हैं। फिर किसी दिन स्वयं यह दावा करते हुए पहुंच जाते हैं कि उस परिवार पर किसी दुष्ट आत्मा का साया है, क्योंकि किसी ने उनके घर व परिवार पर कुछ काला जादू या टोना-टोटका करवाया हुआ है और वे इसे यीशु मसीह के नाम से निकालने के लिए आए हैं। यीशु के नाम से बहुतेरे चुप हो जाते हैं तथा उन्हें रोकते नहीं हैं। फिर परिवार का ही वह विश्वसनीय व्यक्ति घर के किसी कोने में कुछ ढूंढने का नाटक करता हुआ जाता है और वह टोना-टोटका निकाल कर ले आता है और उस धार्मिक रहनुमा की जय-जयकार हो जाती है। और तब सब लोग यीशु मसीह को भूल कर उसकी चापलूसी करने लगते हैं, कि भई इस में कोई न कोई ताक्त या शक्ति है। पंजाब में ऐसे कुछ ढंग परिवारों का विश्वास जीतने के लिए कुछेक तथाकथित धार्मिक रहनुमाओं ने अपनाए हैं, जिनकी जितनी निंदा की जाए, वह कम है। दरअसल ऐसे तथाकथित धार्मिक ठेकेदार व रहनुमा स्वयं ही दुष्ट आत्मा होते हैं, उन्हें दूर भगाने की आवश्यकता होती है। बाईबल में जिन दुष्ट आत्माओं का वर्णन है, वह कोई भूत-प्रेत नहीं, अपितु बुरे विचारों की ओर इशारा किया गया है। संपूर्ण पवित्र बाईबल ऐसे संकेतों व दृष्टांतों से भरी पड़ी है। सीधे पढ़ने से उसका मतलब कुछ और दिखाई देता है परन्तु वास्तव में उसका असल मतलब कुछ और होता है। यहां पर हम आपके ऐसे सभी सवालों (प्रश्नों) का उत्तर देंगे। बचें समाज में फूट डालने वाले स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं से फिर ऐसे तथाकथित मसीही धार्मिक रहनुमा कभी नहीं चाहते कि आप किन्हीं ‘ग़ैर-कौमों/जातियों’ के व्यक्तियों से मिलें; इसी लिए वे प्रायः यह कह कर मसीही क्लीसिया व संगति को गुमराह करते हैं कि ‘‘वे तो ग़ैर-कौमें हैं, वे तो जी बुत्त-प्रस्त हैं, उनका प्रसाद नहीं खाना, उनसे यह नहीं लेना व नहीं लेना... इत्यादि-इत्यादि।’’ क्योंकि उन्हें डर होता है कि फिर इन ईसाई लोगों को अक्ल (बुद्धि) आ जाएगी और फिर वे उन्हें और अधिक मूर्ख नहीं बना पाएंगे। जबकि आज के युग में जब तक हम सभी मनुष्य एकजुट होकर व मिलकर आगे नहीं बढ़ते, तब तक हमारी प्रगति असंभव है। वैसे भी गलातियों 5:14 में लिखा है कि ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख’ - ऐसे तो नहीं कहा कि तू केवल अपने मसीही भाई का ध्यान रख। पड़ोसी का धर्म तो कोई भी हो सकता है। बाईबल में वैसे अनेक स्थानों जैसे कि उत्पत्ति 1:28-31, लूका 12:1-7, मरकुस 5:1-13 पर मनुष्यों को ही सर्वोच्च माना गया है, किसी धर्म-विशेष के लोगों या केवल ईसाईयों को नहीं। आख़िर क्या होती है रुहानियत या आध्यात्मिकता? रुहानियत या आध्यात्मिकता एक भाववाचक शब्द है। आपकी रुहानियत कुछ और प्रकार की हो सकती है, मेरी कुछ अन्य किस्म की तथा तीसरे व्यक्ति की किसी और प्रकार की। फिर भी रुहानियत व आध्यात्मिकता की कुछ बातें साझी व आवश्यक भी हुआ करती हैं; जैसे - जिस बात से आपको सचमुच मानसिक संतुष्टि मिले और मन बिल्कुल शांत व हल्का हो जाए और आपको लगे कि आपके जीवन में कोई समस्याएं नहीं रहीं - आपको हमारे मुक्तिदाता यीशु मसीह का नाम लेते ही सुकून मिलने लगे। गर्मी के मौसम में आपको ठंडक महसूस होने लगे तथा सर्दी हो तो आपको अजीब प्रकार की अपनेपन वाली गर्माहट महसूस हो। इस दुनिया में सब कुछ अच्छा लगने लगे, कुछ भी नकारात्मक न लगे। आप किसी के दोष या अवगुण नहीं, अपितु उसके केवल गुण ही गुण दिखाई दें। परस्पर दुश्मनी का कहीं पर नामो-निशान न रहे। आपको प्रत्येक व्यक्ति की संगति में बैठना अच्छा लगे। कांटों में भी पहले फूल दिखाई दें। मन मे किसी के प्रति भी, चाहे किसी ने कभी आपका कोई बुरा ही किया हो, कभी ईर्ष्या अथवा बैर भाव उत्पन्न न हो। आपको अपना मन-मस्तिष्क बिल्कुल फूल जैसा हल्का लगने लगे। आपको लगे कि इस पादरी साहिब की बातें सुन कर मन कुछ हल्का हुआ है, वही आध्यात्मिकता की पहली सीढ़ी होती है। फिर उसके आगे की सीढ़ियां प्रत्येक व्यक्ति अपने हिसाब से बना कर उनके ऊपर चढ़ता जाता है, चढ़ता जाता है और अनन्त तक चढ़ता ही रहता है - इसका कहीं कोई अंत नहीं है। आध्यात्मिकता एक अलग प्रकार का क्षेत्र है, जिसे हम स्वयं अकेले बैठ कर महसूस कर सकते हैं। यह अपने-आप में एक अलग विश्व है। दुनियावी झमेलों से उस आध्यात्मिक विश्व में जाना आज के ज़माने में काफ़ी कठिन तो है परन्तु असंभव नहीं है। कैसे पाएं रुहानियत या आध्यात्मिकता? रुहानी संसार में जाने के लिए आपको किसी बैसाखी के सहारे की आवश्यकता नहीं है - अगर आज आपका उस विशेष विश्व में जाने का मन है, तो आप अभी उस में शीघ्रतया जा सकते हैं परन्तु बात वहीं कि यदि आप मन से इन सभी बातों के लिए तैयार होंगे। यह भी ज़रूरी नहीं कि आपको ऐसी तसल्ली/संतुष्टि केवल किसी चर्च या पादरी साहिब के पास ही मिलेगी, यह आपको अपने माता-पिता, भाई-बहन, अध्यापक या किसी मित्र में भी मिल सकती है। अब क्योंकि आज के युग में किसी के पास भी किसी अन्य के लिए कोई समय नहीं है परन्तु एक चर्च के सच्चे मार्गदर्शक पादरी साहिब के पास आपके लिए समय होता है और उन्हें अपनी क्लीसिया के प्रत्येक सदस्य की पहचान होती है। वह उसके बारे में, उसकी मानसिकता व समस्याओं को समझ सकते हैं। अतः मुसीबत या मानसिक तनाव के समय वह आपको या किसी भी व्यक्ति विशेष को समझ सकते हैं और उसी समस्या या परेशानी से मुक्ति दिलाने हेतु आपको यीशु मसीह व बाईबल का वैसा ही संबंधित वचन आपको सुनाते हैं व यीशु मसीह के नाम से प्रार्थना करते हैं। जिससे आपकी परेशानी तत्काल दूर भाग जाती है।, इसी लिए हम ये सब बातें यीशु मसीह में सहज रूप से ढूंढ सकते हैं, उसे आसानी से पा सकते हैं। यीशु के पास भी आपके लिए समय ही समय है। यीशु ने अन्य महान लोगों की तरह अपने विरोधी को मारने के लिए कभी कोई हथियार नहीं उठाया, अपितु सभी को केवल प्रेम का ही संदेश दिया। कोई भी धर्म नहीं अपितु, केवल मानवता सर्वोच्च है कोई भी धर्म नहीं, अपितु केवल मानवता ही सर्वोच्च है, हमारे यीशु ने हमें सभी से प्रेम करना सिखलाया है, केवल अपने-आप से नहीं। बहुत से स्वयंभू धार्मिक रहनुमा प्रायः कहते हैं कि हिन्दू मूर्ति-पूजक होते हैं, इस लिए वे ठीक नहीं हैं तथा हिन्दु व सिक्ख भाईयों की प्रसाद जैसी पवित्र वस्तु को कभी नहीं खाना। मैं ऐसे अक्ल से पैदल व अज्ञानी तथाकथित व स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं की सख़्त निंदा करता हूँ। ऐसे लोग कतई मसीही नहीं हैं, अपितु वे तो हमारे समुदाय के दुश्मन हैं। ऐसे लोग कभी भी ईसाई या मसीही धर्म का प्रतिनिधित्व करने हेतु योग्य नहीं हैं। यीशु मसीह में सशक्त मसीही भाईयो-बहनो, ऐसे लोगों पर कभी ध्यान न दें। यही लोग आज आपको भारत में बहु-संख्यकों के हाथों पिटवा रहे हैं। केवल ऐसे स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं व मूढ़ कट्टर-पंथियों के कारण चर्च जलाए जा रहे हैं। ऐसे स्वयंभू धार्मिक रहनुमा ही बहुत बार रोमन कैथोलिक मसीही समुदाय पर यीशु मसीह या माँ मरियम के बुत्त बनाने पर भी एतराज़ करते हैं। क्या हममें से ऐसा कोई है जो ब्राज़ील देश की राजधानी रियो डी जनेयरो में एक ऊँची पहाड़ी पर स्थापित यीशु मसीह का विशालकाय बुत्त अपनी आँखों से देखना नहीं चाहेगा। क्या उत्तर प्रदेश में सरधना स्थित पवित्र मसीही तीर्थ-स्थान पर लगे यीशु व माँ मरियम के बुत्त हम सब को अच्छे नहीं लगते? सभी मसीही, चाहे वे किसी भी मिशन से संबंधित क्यों न हों, वे ये सब देखना चाहते हैं। यीशु मसीह के एक सच्चे श्रद्धालु मार्गदर्शक पादरी साहिब मसीही समाज में कभी ऐसा ज़हर नहीं फैलाते। वे सदा समस्त संसार को तोड़ने की नकारात्मक नहीं अपितु आपस में जोड़ने की ही सकारात्मक बात करते हैं। वे ऐसे बुनियादी स्तंभ होते हैं, जिन पर संपूर्ण मसीहियत की नींव टिकी हुई है। अब समय नए ईसाई बनाने का नहीं अपितु वर्तमान ईसाईयों को सही ढंग से संभालने का है अब तक ऐसे अज्ञानी पव स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं ने भारतीय ईसाईयों की बागडोर संभाल कर रखी, जिसके कारण अब तक स्वतंत्र भारत में कोई भी मसीही विश्वासी विगत 69 वर्षों में प्रधान मंत्री व राष्ट्रपति के पदों तक नहीं पहुंच पाया; जबकि मुस्लिम व सिक्ख जैसे समुदायों के प्रतिनिधि अल्प-संख्यक होने के बावजूद इन ऐसे उच्च पदों पर आसीन हो चुके हैं। वास्तव में अपने-अपने पश्चिमी देशों में आम लोगों से लाखों-करोड़ों डॉलर व पाऊण्ड लूटने वाले अंग्रेज़ों से हज़ारों डॉलर व पाऊण्ड की आशा रखते हुए प्रत्येक दूसरे व तीसरे स्वयंभू धार्मिक रहनुमा की यही इच्छा होती है कि वह ऐसा कुछ दिखाए कि उसने आम लोगों का धर्म-परिवर्तन करवाया है, जिससे उसकी बल्ले-बल्ले हो जाएगी और उसे इस बार कुछ बड़ा हिस्सा मिल जाएगा। ऐसे काम बहुत पहले निपट चुके, अब उन ऐसे पुराने स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं की नकल करनी छोड़ कर उन मसीही युवाओं को संभालें, जो अब बेरोज़गार हैं, नशों में लिप्त हो चुके हैं तथा रोज़गार न होने के कारण कुछ ग़लत कार्यों में पड़ चुके हैं। ऐसे मसीही युवाओं का विकास होगा तो भारत में ईसाई धर्म भी स्वयं समृद्ध होगा। भारत में ईसाई समुदाय के पीछे रहने का कारण केवल कुछ अज्ञानी स्वयंभू धार्मिक रहनुमा ऐसे कुछ अज्ञानी स्वयंभू धार्मिक रहनुमाओं के कारण ही हमारी मसीहियत भारत में पीछे है, इसी लिए अब आम मसीही युवाओं को आगे आना होगा तथा इन कथित रहनुमाओं से बागडोर लेकर संभालनी होगी तभी भारत के समस्त मसीही समुदाय का कुछ कल्याण हो पाएगा। जब भी कहीं टी.वी. पर कोई धार्मिक आधार पर बहस होती है, तो मसीही प्रतिनिधि कोई और नहीं कोई ऐसा ही तथाकथित धार्मिक रहनुमा होता है, जो स्वयं को मसीही कहलाता तो है, परन्तु वास्तव में होता नहीं है - बस फ़र्क केवल इतना होता है कि वह पादरी दिल्ली या मुंबई जैसे किसी बड़े नगर से संबंधित होता है परन्तु उसे वास्तविक ज्ञान तो होता ही नहीं है। केवल बाईबल की बातों से आप अन्य विद्वानों से जीत नहीं सकते, जिनका ज्ञान विश्व स्तर का होता है और प्रत्येक क्षेत्र की उन्हें बाख़ूबी जानकारी होती है। तो ऐसे बहस-मुबाहिसों में ऐसे स्वयंभू धार्मिक रहनुमा पिट-पिटाकर और मसीही समुदाय की लुटिया डुबो कर चैन से बैठ जाते हैं; वैसे उनका निजी प्रोफ़ाईल अवश्य कुछ मज़बूत हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में अब अत्यंत आवश्यकता है कि कोई ऐसा मसीही व्यक्ति सामने आए, जो अपने समुदाय की बात को अच्छे ढंग से समय-समय की सरकारों के सामने रख सके और संपूर्ण समुदाय का कल्याण हो पाए। भारतीय मसीही लोगों को परस्पर मेलजोल बढ़ाना आवश्यक, चाहे किसी भी मिशन या वर्ग से संबंधित हों आप चाहें, तो किसी भी प्रतिभाशाली मसीही व्यक्ति (चाहे वह स्त्री हो या पुरुष) संबंधी जानकारी शेयर कर सकते हैं। परन्तु यदि आपको अपने आस-पास कोई ऐसा मसीही दिखाई नहीं देता है, तो आप भारत के किसी भी ऐसे मसीही के बारे में जानकारी शेयर कर सकते हैं, जिसके बारे में हम मसीही भाईयो-बहनों को अवश्य जानना चाहिए। हम चर्च जाते हैं, तो आपस में मेल-जोल बढ़ाते हैं, वैसे ही हमें एक-दूसरे के बारे में जानकारी अवश्य होनी चाहिए। कोई भी ऐसी ग़ैर-मसीही जानकारी भी शेयर कर सकते हैं, जिसके बारे में हम सब को जानना चाहिए। हमें भारत के जागरूक व आदर्श नागरिक बनना है। हम सभी ने मसीही मशाल को लेकर आगे बढ़ना है। हमें अगर रूहानी एवं बाईबल की जानकारी चाहिए, तो हम दुनियावी बातों में पीछे नहीं रहने चाहिएं। हम किसी से कम नहीं। बड़ा सवाल, आज तक भारत में कभी कोई मसीही राष्ट्रपति या प्रधान-मंत्री क्यों नहीं बना? हमें आज यह सोचना है कि आख़िर हमारे मसीही समुदाय में क्या कमी थी कि 1947 से अब तक कोई मसीही व्यक्ति प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति क्यों नहीं बना, जबकि सिक्खों की गिनती ईसाईयों/मसीही समुदाय से कम है, परन्तु वह इन दोनों प्रतिष्ठित पदों पर आसीन रह चुके हैं। आख़िर हमारे-आपके माता-पिता में ऐसी क्या कमी रह गई थी कि उन्हें किसी ने इन पदों के योग्य नहीं समझा। आख़िर हम में से भविष्य में कोई व्यक्ति इन पदों पर क्यों नहीं पहुंच सकता? अब हमें इन बातों पर ग़ौर तो अवश्य करना होगा। क्योंकि आने वाली नई पीढ़ियां यह प्रश्न हम से पूछेंगी कि क्या हम मसीही लोग विगत 70-75 वर्षों में इतने योग्य भी नहीं हो सके। मैंने बहुत से मसीही धार्मिक नेताओं से यह प्रश्न किया परन्तु किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। बड़े दुःख की बात तो यह है कि वे लोग इस प्रश्न का उत्तर ढूंढना भी नहीं चाहते। क्या हमारी प्रार्थनाओं व दुआओं में कोई असर बाकी नहीं रहा? आत्म-मंथन बहुत आवश्यक होता है। ऐसा क्यों नहीं हो सका, इसके अधिकतर हमने ऊपर दे दिए हैं। आशा है कि शायद भारत में मसीहियत को कुछ सच्ची व सही दिशा देने के कुछ प्रयास किए जाएं। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]