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प्रिन्टिंग प्रैस व भारतीय मसीहियत



 



स्वतंत्रता आन्दोलनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई प्रिन्टिंग प्रैस ने

भारत के स्वतंत्रता आन्दोलनों के दौरान प्रिन्टिंग प्रैस द्वारा प्रकाशित होने वाले विभिन्न समाचार पत्रों के द्वारा किए गए राष्ट्रवाद के प्रचार का योगदान सदैव अग्रणी एवं अविस्मरणीय रहा था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने आन्दोलनों में अपने समाचार-पत्र प्रकाशित किए जाने पर ही अधिक बल दिया था। इसी लिए वह सदा ही अपना कोई न कोई अख़बार अवश्य प्रकाशित किया करते थे।


प्रिन्टिंग प्रैस पहली बार विदेशी मसीही मिशनरी लेकर भारत आए थे

ऐसे अख़बारों को छापने वाली प्रिन्टिंग प्रैस भारत में पहली बार विदेशी मसीही मिशनरी ही लेकर आए थे। गोवा, तामिल नाडु से लेकर केरल तथा पंजाब तक सर्वप्रथम प्रिन्टिंग प्रैस मसीही समुदाय के पास ही आई थी। उन्होंने उसका प्रयोग मसीही धार्मिक साहित्य प्रकाशित करने हेतु किया था।


बाईबल थी दुनिया की सर्वप्रथम प्रकाशित पुस्तक (धर्म-ग्रन्थ)

समस्त विश्व में सब से पहले जो पुस्तक (धर्म-ग्रन्थ) प्रकाशित हुई थी, वह बाईबल ही थी। भारत में भी मुद्रित होने वाली सर्वप्रथम पुस्तक बाईबल ही है। आईए प्रैस के इतिहास संबंधी भी कुछ जानें।


आधुनिक प्रिन्टिंग प्रैस का सक्षिप्त इतिहास

1st Printing Press आधुनिक प्रिन्टिंग प्रैस की खोज जर्मर्नी के एक सुनियारे जोहानेस गुटेनबर्ग (जिनका जन्म माइन्ज़ नगर में हुआ था परन्तु प्रिन्टिंग प्रैस की खोज के समय वह स्त्रासबर्ग में रह रहे थे) के हाथों 1439 में हुई थी। परन्तु कुछ विद्वान उससे पहले चीन व कोरिया में प्रैस की खोज की बात तो करते हैं, परन्तु उसके कोई अधिक पक्के प्रमाण नहीं हैं। इसी लिए विश्व में गुटेनबर्ग को ही प्रकाशन का जन्मदाता माना जाता है। तब जर्मन पर रोम के राजा का ही शासन था। गुटेनबर्ग द्वारा बनाई गई प्रैस बाकायदा टाईप के अक्षरों वाली थी। परन्तु एक दिलचस्प बात यह भी है कि सर्वप्रथम प्रकाशित होने वाली पुस्तक तो बाईबल ही थी परन्तु विश्व में सब से पहले छपने वाली चीज़ कोई और ही थी। गुटेनबर्ग ने सब से पहले अपनी आधुनिक प्रैस द्वारा ताश के पत्ते छापे थे। सब से पहले आधुनिक पुस्तक रूप लेने व बड़ी संख्या में छपने वाली बाईबल ही थी। हम यहां पर नीचे यू-ट्यूब का एक विडियो लिंक भी दे रहे हैं, जिससे आप भली-भांति समझ सकते हैं कि वह प्रैस कैसी थी।


चीन व कोरिया में सर्वप्रथम प्रिन्टिंग प्रैस बनने के दावे ग़लत

उधर चीन एवं कोरिया में 751 ई. सन् से ही पुस्तकें प्रकाशित किए जाने के दावे किए जाते हैं। वहां पर लकड़ी के ब्लॉक्स से ये पुस्तकें प्रकाशित की जाती थीं। चीन की पुस्तक ‘डायमण्ड सूत्र’ 868 ई. में प्रकाशित किए होने की बात भी की जाती है। चलने वाला टाईप प्रिन्टर 1040 में बाई शेंग ने तैयार किया कहा जाता है। कोरिया में इसकी शुरूआत च्वे यून आई ने गोरयो राजा के शासनकाल के दौरान की थी। फिर ऐसा भी माना जाता है कि व्यापारी लोग ऐसे छापेखाने की बातें चीन से अरब देशों में होते हुए यूरोप तक ले गए थे, जहां फिर गुटनेबर्ग ने इस प्रैस में बड़े सुधार कर बड़े ही स्तर पर प्रकाशन कार्य प्रारंभ किया था। इसी लिए गुटनेबर्ग को प्रिन्टिंग प्रैस का नहीं, अपितु प्रकाशन का जन्मदाता अधिक माना जाता है। क्योंकि प्रैस की खोज उससे पहले ही हो चुकी थी, परन्तु इतने बड़े स्तर पर तब प्रकाशन-कार्य नहीं हुआ करते थे।


भारत में प्रैस कैसे और कब पहुंची?

सब से पहले पुर्तगाल देश से प्रिन्टिंग प्रैस अन्य देशों में निर्यात की जाने लगी थीं। वहां से सब से पहले 1515 में एक आधुनिक प्रिन्टिंग प्रैस अफ्ऱीका के एबिसिनिया में भेजी गई थी परन्तु वहां की सरकार तब मसीही मिशनरियों के सख़्त विरुद्ध थी, इसी लिए वह प्रैस रविवार 6 सितम्बर, 1556 को गोवा पहुंची थी। बन्दरगाह से उसे पुराने गोवा नगर के सेंट पॉल’ज़ कॉलेज में ले जाया गया था। समुद्री जहाज़ में उसके साथ इथोपिया के पैट्रीआर्क व जैसुइट मसीही समुदाय के बड़े पादरी डी. जोआओ नुनेस बारेटो भी साथ में थे। उनके साथ स्पेनिश मूल के जैसुइट मसीही भाई जुआन बस्टामैंटे भी थे। उसी प्रैस द्वारा सब से पहले कुछ पैम्फ़लैट्स प्रकार की छोटी पुस्तिकाएं प्रकाशित की गईं थीं, जो वास्तव में यीशु मसीह संबंधी एक थीसिस का भाग ही थीं। फिर सब से पहली पुस्तक 1557 में कोंकणी भाषा में ‘‘कैटेसिज़्मो डी डूट्रीना क्रिस्टा’’ (मसीही सिद्वांत की पुस्तक) प्रकाशित की गई थी, जिसे फ्ऱांसिस ज़ेवियर ने कम्पोज़ किया था अर्थात धातु की टाईप सैटिंग की थी। उसके बाद भी काफ़ी समय तक बाईबल व मसीही साहित्य ही दक्षिण भारत की विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित किया जाता रहा था। भारत में प्रकाशन कला के अग्रणी जुआन डी बस्टामैंटे को माना जाता है। बाद में उन्होंने अपना नाम बदल कर जोआओ रौड्रिग्ज़ रख लिया था। उनका देहांत 23 अगस्त, 1588 को हो गया था।


बाईबल ही थी भारत की अधिकतर क्षेत्रीय भाषाओं में भी सर्वप्रथम प्रकाशित पुस्तक

गोवा में रोमन अक्षरों में सबसे पहली पुस्तक ‘डिसकोर्सो सोबरे ए विन्दा डी जीसस क्रिस्टो नोसो साल्वाडोर ओ मण्डो’ (विश्व में हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के आगमन पर विचार-चर्चा) थॉमस स्टीफन्ज़ द्वारा 1616 में प्रकाशित की गई थी। श्री स्टीफ़न्ज़ को ही भारत आने वाला प्रथम ब्रिटिश (इंग्लैण्ड का) नागरिक भी माना जाता है। मराठी भाषा में सर्वप्रथम पुस्तक भी ‘क्रिस्टा पुराण’ है, जो यीशु मसीह के जीवन संबंधी है तथा मराठी साहित्य में इसका नाम अब भी बहुत आदर सहित लिया जाता है।

पश्चिम भारत में प्रकाशन कार्य हेतु सब से पहले प्रयत्न भीमजी पारेख ने किया था परन्तु सफ़ल नहीं हो पाए थे। परन्तु 1780 में इंग्लैण्ड के एक नागरिक जेम्स ऑगस्तुस हिक्की ने कलकत्ता की सब से पहली प्रैस की स्थापना की थी।


कलकत्ता में प्रकाशित हुआ था भारत का सर्वप्रथम समाचार-पत्र ‘बंगाल गज़ट’

भारत में सबसे पहला समाचार-पत्र ‘बंगाल गज़ट’ (जिसे ‘कैलकटा एडवर्टाईज़र’ के नाम से भी जाना जाता है) भी उन्हीं ने 29 जनवरी, 1780 को प्रकाशित करना प्रारंभ किया था। उसी वर्ष ‘दि इण्डियन गज़ट’ भी प्रकाशित होना प्रारंभ हो गया था। 1784 में ‘कैलकटा गज़ट’ नामक समाचार पत्र प्रकाशित हुआ। हिक्की के प्रयत्नों से दो वर्षों के थोड़े से समय में ही बंगाल में पांच पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होनी प्रारंभ हो गई थीं। मद्रास में सबसे पहला समाचार पत्र ‘मद्रास कोरियर’ अक्तूबर 1785 में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद 1791 में ‘मद्रास हराकुरू’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था। ये सभी समाचार पत्र अंग्रेज़ी भाषा में ही थे तथा उनका संचालन मुख्यतः इंग्लैण्ड के ब्रिटिश नागरिकों के हाथों में ही था अर्थात तब प्रैस केवल भारत में रहने वाले अंग्रेज़ों के हितों का ही सब से अधिक ख़्याल रख रही थी।


1846 में प्रारंभ हुई पंजाबी पत्रकारिता

पंजाब में अंग्रेज़ी पत्रकारिता 1846 में ‘लाहौर क्रौनिक्ल’ द्वारा प्रारंभ हुई थी। फिर 1867 में ‘इण्डियन पब्लिक ओपिनियन’ तथा 1877 में ‘सिविल एण्ड मिलिट्र गज़ट’ के प्रकाशन प्रारंभ हुए। 1865 में पंजाबी का प्रकाशन प्रारंभ हुआ तथा बाद में उर्दू का। उसी के साथ पंजाब में ब्रिटिश राज्य में अंग्रेज़ी शिक्षा के कारण पंजाबी साहित्य में भी विक्टोरिया युग के नॉवल, एलिज़ाबैथ के नाटक, मुक्त कविता व आधुनिकतावाद का आगमन हो गया। गुरमुखी फ़ौन्ट का प्रयोग करने वाली प्रथम प्रिन्टिंग प्रैस 1835 में एक मसीही मिशन द्वारा लुधियाना में स्थापित की गई थी, जहां पर सब से पहले पादरी जे. न्यूटन ने 1854 में पंजाबी शब्दकोश प्रकाशित किया था।


प्रैस के योगदान द्वारा अंग्रेज़ शासकों के विरुद्ध अत्यधिक जागृत हुए भारतीय

तो आधुनिक पत्रकारिता के उभार से केरल में राजनीतिक जागृति बढ़ने लगी। प्रैस एक ऐसा महत्त्वपूर्ण माध्यम बन गई कि जिससे स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र के पश्चिमी विचार भारत की मध्य श्रेणी में और फिर धीरे-धीरे जन-समूह तक पहुंचने लगे। केरल में भी 16वीं शताब्दी ईसवी में ही मसीही मिशनरी प्रिन्टिंग प्रैस ले आए थे। बेसल मसीही मिशन द्वारा जून 1847 में प्रकाशित ‘राज्य समाचारम’ नामक अख़बार संभवतः मल्यालम भाषा में प्रकाशित होने वाला पत्रकारिता के क्षेत्र का पहला प्रकाशन था। तब इसके संपादक जर्मनी के महान् विद्वान हर्मन गण्डर्ट थे। उसके बाद अक्तूबर 1847 से तेलिचेरी में बेसल मिशन द्वारा एक मासिक पत्र ‘पश्चिमोद्यम’ का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। श्री हर्मन उसके साथ भी जुड़े रहे थे। उसके बाद 1862-63 में कोचीन से ‘पश्चिम तराका’ छपना प्रारंभ हुआ और बाद में यह त्रिवेन्दरम से भी प्रकाशित होने लगा। ‘सत्यनंद कहलम’ का प्रकाशन पहले कूनमावू तथा बाद में वरापूज़ा एवं एरनाकुलम से भी होने लगा। ये सब ‘सत्यनादम’ नामक उस साप्ताहिक अख़बार शुरू होने से पहले की बातें हैं, श्री सी. वार्के जिसके 47 वर्षों तक संपादक रहे थे। 1887 में ‘नज़रानी दीपिका’ नामक समाचार का प्रकाशन प्रारंभ हुआ तथा फिर समय के साथ यह दैनिक समाचार-पत्र बन गया तथा कोट्टायम से ‘दीपिका’ नाम से प्रकाशित होने लगा। 1888 में श्री वर्गीज़ माप्पिला कान्दाथिल (1858-1904) ने कोट्टायम से ‘मनोरमा’ नामक कंपनी प्रारंभ की। वह साप्ताहिक समाचार-पत्र ‘केरला मित्रम’ के प्रथम संपादक थे तथा फिर उन्होंने ने 1890 से ‘मल्याल्म मनोरमा’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। पत्रकारिता के इन सभी स्तंभों द्वारा लिखित कृतियों ने लोगों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न की तथा आम लोगों को एक विचार के धारणी बनाया तथा उन्होंने ही लोगों को इस बात से अवगत कराया कि उन पर अंग्रेज़ों का राज्य है।


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