Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

2000 वर्ष पुराना मज़बूत पर्वत है मसीहियत, विशुद्ध भारतीय भी, कैसे? यहां जानें...



 




 


मसीही धर्म को विदेशी कहना ग़लत, आर्य लोग क्यों नहीं विदेशी?

कोई मंदबुद्धि ही कहेगा मसीही धर्म को विदेशी! क्यों? इस बात को कुछ उदाहरणों से समझते हैं।

हम यहां यह सिद्ध करने वाले हैं कि भारतीय मसीहियत वास्तव में 2000 वर्ष पुराना एक मज़बूत पर्वत है।

भारतीय संविधान की व्यवस्था है कि यदि कोई किसान किसी खेत को लगातार 12 वर्षों तक जोत लेता है और बिना किसी रुकावट के उस भूमि विशेष पर कार्य करता रहता है, तो उसका उस भूमि पर स्व-चालित रूप से अधिकार हो जाता है। वह दस्तावेज़ों में भी उसका स्वामी बन जाता है। यह बात अनपढ़ लोगों को भी मालूम है। परन्तु 1966 वर्ष पूर्व (यदि 2018 को आधार वर्ष मानें) भारत आए एक एशियाई धर्म को आज भी कुछ अज्ञानी प्रकार के लोग ‘विदेशी’ कहते हैं। हमें यह तो ज्ञात है कि वे ऐसा केवल राजनीतिक कारणों से करते हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी राजनीति की दुकान चलती रखनी होती है। और कुछ वे कर नहीं सकते - इतना दम ही नहीं होता - वे ऐसी बातें करके केवल सियासी रोटियां सेंकते हैं। परन्तु ऐसा करते हुए मूर्ख अज्ञानी लोग सांप्रदायिकता का विष भी समाज में घोल देते हैं। Christianity in India


आर्य लोग क्यों विदेशी नहीं?

आर्य लोग केन्द्रीय एशिया से लगभग 3,500 वर्ष पूर्व वर्तमान भारत में आए थे - इसके हिसाब से तो वे भी विदेशी हुए। परन्तु उन्हें कभी विदेशी नहीं कहा जाता, क्यों?

यीशु के 12 शिष्यों में से एक सन्त थोमा सन् 52 में पहली बार मसीही सुसमाचार भारत में लाए थे तथा फिर उनके कुछ समय के पश्चात् यीशु मसीह के एक अन्य शिष्य नथानिएल भी भारत आए थे। और यदि मसीही धर्म को कोई अज्ञानी किस्म के लोग व तथाकथित बुद्धिजीवी भारत में लगभग 2,000 वर्ष के बाद भी विदेशी कहते हैं, तो हम ऐसे अल्प-बुद्धि व्यक्तियों के दिमाग़ की उड़ान पर दया करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते। यीशु मसीह के शिष्य स्वयं इस धर्म को भारत में लाए थे, तो आज उसे 2,000 वर्ष पश्चात् विदेशी कैसे कहा जा सकता है।


भारतीय मसीहियत है विशुद्ध भारतीय

यहां के भारतीय लोगों ने इस धर्म को अपनाया, सीने से लगाया, भारतीय संस्कृति में उसे विकसित किया। आज भारतीय मसीहियत का अपना एक स्वतंत्र असित्त्तव है। यह पूर्णतया भारतीय रंग में रंगी मसीहियत है, इसमें लेशमात्र भी विदेशी कण नहीं। यदि इस में ऐसा कुछ होता, तो यीशु मसीह के अहिंसा के सिद्धांत को अपनाने वाले गांधी जी आज राष्ट्र-पिता न कहलाते। यीशु मसीह के सिद्धांतों से महात्मा गांधी जी का कितना नाता रहा, यह आप इसी वैबसाईट/पुस्तक के गांधी जी के भाग में देख व पढ़ सकते हैं।

यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि इस समय उत्तर व मध्य भारत में रहने वाले अधिकतर लोग आर्य जातियों से हैं और आर्य लोग 4,500 वर्ष से लेकर 3,500 पूर्व ईरान व मध्य एशिया के देशों में यहां भारत की वर्तमान धरती पर आकर बसे थे, और वे क्योंकि योद्धा थे, इसी लिए उन्होंने यहां के स्थानीय द्राविड़ निवासियों को दक्षिण की ओर खदेड़ दिया था। इसी लिए दक्षिण भारत के निवासियों व वहां की भाषाओं को द्राविड़ कहा जाता है; तो इस लिहाज़ से तो आर्य लोग भी ‘विदेशी’ ही हुए।


यदि आर्य विदेशी नहीं, तो मसीही धर्म भी विदेशी नहीं

आर्य लोगों ने भारतीय उप-महाद्वीप की धरती व यहां की संस्कृति को पूर्णतया अपना लिया और वे सब यहीं के हो कर रह गए। इसी लिए वे सब विशुद्ध भारतीय कहलाते हैं। लेकिन मसीही धर्म को तो यहीं भारत में पहले से रहने वाले लोगों ने ही अपनाया थां, तो उनके द्वारा विकसित संस्कृति को विदेशी कैसे माना व समझा जा सकता है।


Shiny Wilson चित्र विवरणः यह चित्र शाईनी विल्सन (विवाह से पूर्व वह शाईनी अब्राहम थीं) ने 1984 व उसके बाद तीन अन्य बार ओलिम्पक खेलों में भाग लिया था। वह एक दौड़ाक थीं। उन्होंने 1980 व 1996 के मध्य अनेक बार पदक जीते (इस चित्र में उनके अनेक पदक आप देख भी सकते हैं) तथा भारत का नाम रौशन किया। 1992 की बार्सीलोना ओलिम्पक खेलों में उन्हें चोट लग गई थी, जिसके कारण वह वहां पदक जीतने से रह गई थीं। भारत के मसीही समुदाय को शाईनी विल्सन पर गर्व है।


विशुद्ध जल की भांति है मसीही धर्म

जल वास्तव में धरती का अर्क होता है। उसमें पृथ्वी के सभी प्रकार के खनिज पदार्थों, धातुओं इत्यादि के गुण मिश्रित रहते हैं। इन्सान चाहे तो केवल जल से ही जीवित रह सकता है। सर्व-गुण संपन्न होने के कारण ही जल को जिस भी बर्तन में डाला जाता है, वह उसी का आकार व प्रकार धारण कर लेता है परन्तु उसके अपने गुण कभी कम नहीं होते। इसी प्रकार मसीही धर्म भी विशुद्ध जल की ही भांति है, जो जिस भी देश में गया, उसे वहां के लोगों ने अपने हिसाब से सदा के लिए ग्रहण कर लिया। कहीं कोई कट्टरता नहीं। कलीसिया में से किसी ने कहा कि ऐसा होना चाहिए, तो वैसा ही हो गया। यही कारण है कि भारत में कुछ मसीही लोग बाकायदा ‘मसीही आरती’ भी उतारते हैं, प्रसाद व गंगाजल की तरह कुछ समुदाय मसीही-प्रसाद व मसीही-जल भी देते हैं। कभी कोई एतराज़ नहीं करता कि ऐसा क्यों किया। मसीही धर्म सदा स्थानीय लोगों जैसा ही हो गया। इसके दुनिया में तेज़ी से बढ़ने व प्रफुल्लत होने का एक यह भी बड़ा कारण है। यह नहीं कि अपनी धार्मिक पुस्तक पढ़ने के लिए कोई विशेष भाषा सीखनी पड़ेगी, जिस देश में जैसे लोग व जैसी उनकी भाषा है, उन्हीं की भाषा में बाईबल मौजूद है तथा चर्च में अपने सिद्धांत लागू करने की क्लीसिया को पूर्णतया आज़ादी है। कभी किसी प्रकार की कोई बंदिश नहीं।

हमारे मसीही स्वतंत्रता सेनानी सदा गोरे अंग्रेज़ प्रचारकों का विरोध किया करते थे क्योंकि वह चर्च को विशुद्ध भारतीय बनाना चाहते थे, विदेशी नहीं। केवल किसी एक मंदबुद्धि नेता व तथाकथित राष्ट्रवादी के कह देने भर से सच्चाईयां बदल नहीं जातीं। ऐसी टिप्पणियां केवल देश को तोड़ने वाले लोग ही कर सकते हैं और जो भारतीय सिद्धांत ‘जियो और जीने दो’ को न तो कभी समझ सकते हैं और न ही शायद समझना चाहते हैं।


मसीही लोगों व आर्य लोगों को विदेशी कहने वाले लोगों पर हो कानूनी कार्यवाही

परन्तु यदि हम किसी समुदाय को किसी देश में हज़ारों वर्ष रहने के बाद भी विदेशी कहें, तो यह पूर्णतया मूर्खता ही होगी और ऐसे लोगों को वर्तमान भारतीय समाज में सांप्रदायिकता फैलाने व आपसी एकता को भंग करने वाले करार दिया जा सकता है और भारत के संविधान के अनुसार ऐसे सांप्रदायिक लोगों के विरुद्ध सख़्त कार्यवाही हो सकती है और अब होनी भी चाहिए। भारत का मसीही समुदाय देश के संविधान में परिपूर्ण विश्वास रखता है व उसका अनुपालन करता है। यहां पर हम ने आर्य लोगों को ‘विदेशी’ केवल समझाने के लिए कहा है, क्योंकि यदि हम मसीही लोग भारत में रह कर स्वयं को विदेशी धर्म को मानने वाले नहीं कहलाना चाहते, तो हम अन्य किसी को भी ऐसा नहीं कहेंगे। हमें स्व-अनुशासन की धारणा ज्ञात है।


मसीहियत ने विरोधी विचारों पर कभी बवाल नहीं मचाया

वैसे भी यीशु मसीह के विरुद्ध पिछले 2,000 वर्षों से ही बातें होती रही हैं, परन्तु उनका स्थान संपूर्ण विश्व में दिन-ब-दिन और भी मज़बूत होता जा रहा है और जिन लोगों ने उनका विरोध किया, उनके बारे में आज उनका पड़ोसी भी बात नहीं करना चाहता अर्थात उनका कहीं कोई नाम-पता मौजूद नहीं रहा। बहुत से लोगों ने धन कमाने व हमारे यीशु मसीह के नाम का फ़ायदा लेने के लिए उनके विरुद्ध जानबूझ कर विवादग्रस्त फ़िल्मों का निर्माण किया। उनका थोड़ा-बहुत तो शोर मचा परन्तु वैसा बवाल कभी नहीं मचा, जैसे कुछ लोग अपने किसी धार्मिक अगुवा के प्रति किसी छोटी सी बात को लेकर मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। वह कैसे धर्म या धार्मिक अगुवे होते हैं, जिन्होंने अपने अनुयायियों को ऐसी हिंसा व मारपीट की शिक्षा दी होती है। जिस धार्मिक अगुवा में दो या अधिक विभिन्न धर्मों के लोगों को जोड़ने की शक्ति नहीं है, तो वह अगुवा कहला ही नहीं सकता। परन्तु यीशु मसीह ने तो हमें तत्काल प्रतिक्रिया प्रकट करना ही नहीं सिखलाया, अपितु उन्होंने सदा संयम से आगे बढ़ने और सामने वाले आरोपी व अत्याचारी को दृढ़तापूर्वक (डर कर नहीं) क्षमा करने की ही शिक्षा दी है। इतनी बातें यदि किसी अन्य धर्म के रहनुमाओं के लिए हुई होतीं, तो अब तक आधी दुनिया समाप्त हो गई होती। क्षमा करने व सद्गुणों की मिसाल बन कर जीना ही तो मसीहियत है, इस बात को समझने के लिए भी दिल, जिगर और गुर्दा चाहिए। इसी लिए तो प्रायः कहा जाता है कि मारने वाले से बचाने व क्षमा करने वाला बड़ा होता है। जो व्यक्ति यीशु मसीह को बुरा-भला कहता है, वक्त के साथ परमेश्वर स्वयं उसे अपना सबक सिखला ही देते हैं - हमें स्वयं कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती - वह भी कुछ इस तरह से कि उसकी एक नई मिसाल कायम हो जाती है।


यीशु मसीह विशुद्ध हीरा, जिनकी चमक नित्य प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है

हीरे की चमक सदियों के बाद भी कभी फीकी नहीं पड़ती तथा न ही वह कभी टूटता है परन्तु कांच के झूठे हीरे बाज़ार में बहुत बिकते हैं परन्तु समय के साथ वे स्वयं ही फीके पड़ जाते हैं और टूट जाते हैं। पर सच्चे हीरे की सच्चाई सदैव बनी रहती है और सर चढ़ कर बोलती है। फिर यीशु मसीह तो स्वयं परमेश्वर के पुत्र व उन्हीं की पवित्र आत्मा हैं, जो हम सब मसीही विश्वासियों के मन-मन्दिर में बसी हुई है और सदा दूर से हीरे की तरह नहीं बल्कि सूर्य की तरह दूर से चमकती है और हम में नित्य एक नए जीवन का संचार करती है। एक सच्चे मसीही के अच्छे कार्य व सद्गुण ही उसकी वास्तविक पहचान होते हैं और हम भारतीय मसीहियों ने अपने इन्हीं गुणों की बदौलत विलक्ष्णतापूर्वक चमकते रहना है। हमारी सच्चाई ही हमारी शक्ति है और हमने उस पर डटे रहना है। हम अन्य धार्मिक नेताओं की तरह यह नहीं कहते कि ‘इस धरती पर बस हम ही हम हों’ बल्कि हमारा आदर्श वाक्य तो है ‘इस पृथ्वी पर सभी जन मिलजुल कर रहें’ क्योंकि हमारे यीशु ने ‘बोझ से दबे व थके मांदे सभी लोगों को अपने पास बुलाया था’, केवल मसीहियों को ही नहीं। उन्होंने सलीब पर हाथ फैला कर यही सन्देश दिया था कि वह सभी को अपने सीने से लगाने को तैयार हैं, एक बार उनके पास आकर उन्हें समझ कर तो देखो।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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