मसीही समुदाय को करना होगा आत्म-मंथन - 2
उत्तर-पूर्वी भारत का मसीही समुदाय
दक्षिण भारत के मुकाबले उत्तर-पूर्व में कहीं अधिक मसीही समुदाय का वास है। एशिया में यह ऐसा दूसरा क्षेत्र है जहां इतनी बड़ी संख्या में मसीही आबादी है। इस मामले में एशिया का प्रथम स्थान फ़िलीपीन्ज़ को प्राप्त है, जहां इससे भी अधिक प्रतिशत जनसंख्या मसीही है। 1991 की भारतीय जनगणना के अनुसार म्यांमार (1989 तक इसका नाम बर्मा था) की सीमा के साथ सटे छोटे से राज्य नागालैण्ड के 90 प्रतिशत लोग मसीही थे। 2011 की जनगणना के अनुसार इस राज्य की जनसंख्या 19 लाख 78 हज़ार थी तथा उसमें से 88 प्रतिशत आबादी (ताज़ा सही मसीही जनसंख्या 17 लाख 39 हज़ार 651) मसीही थी। इसके अतिरिक्त मेघालय व मिज़ोरम में भी मसीही समुदाय की संख्या काफ़ी अधिक है। इन तीनों भारतीय राज्यों के शहरी व ग्रामीण दोनों ही जगह के चर्चों में भी बहुत अधिक संख्या में लोग आकर प्रार्थना करते हैं। नागालैण्ड के तीन प्रमुख नगरों कोहिमा, दीमापुर एवं मोकोकचुंग के चर्चों में बहुत अधिक श्रद्धालुओं की उपस्थिति होती है। नागालैण्ड में सब से अधिक बैप्टिस्ट मसीही चित्र विवरणः उत्तर-पूर्वी भारत के राज्य नागालैण्ड के नगर ज़ुन्हेबोटो का यह चर्च एशिया का सबसे बड़ा चर्च है। इस का निर्माण कार्य 5 मई, 2007 को प्रारंभ हुआ था, जो वर्ष 2017 में संपन्न हुआ। इस का मुख्य हॉल अण्डाकार है और इसका गुंबद नीले रंग का है व इसके गिर्द मीनार भी निर्मित किए गए हैं। इसका नाम सुमी बैप्टिस्ट चर्च है। सुमी यहां की स्थानीय भाषा है। इस चर्च में एक बार में 8,000 से अधिक मसीही श्रद्धालु प्रार्थना-सभा में भाग ले सकते हैं। इस नगर के पुराने चर्च में एक साथ 3,000 श्रद्धालुओं के बैठने की क्षमता थी, परन्तु अब मसीही जनसंख्या बढ़ने के कारण ऐसे विशाल चर्च की आवश्यकता महसूस हुई। मसीही समुदाय के लिए यह बात भी अत्यंत दिलचस्प हो सकती है कि समस्त विश्व में नागालैण्ड ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां इतनी बड़ी संख्या में बैप्टिस्ट मसीही रहते हैं। नागालैण्ड में 75 प्रतिशत मसीही लोग बैप्टिस्ट मिशन से जुड़े हुए हैं। उसके बाद विश्व में अमेरिकन राज्य मिसीसिप्पी का स्थान है, जहां की 55 प्रतिशत जनसंख्या बैप्टिस्ट है, जबकि टैक्सास में 51 प्रतिशत लोग बैप्टिस्ट हैं। उत्तर-पूर्व में जितने भी लोग अब यीशु मसीह के अनुयायी हैं, वे कभी भारत की हिन्दु मुख्य-धारा में नहीं रहे क्योंकि वे सभी कबाईली हैं। इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि मसीही धर्म व समुदाय का प्रभाव भारत पर बड़े स्तर पर बना रहा है। स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों एवं प्रिन्टिंग प्रैसों के मामले में मसीही समुदाय रहा सदैव अग्रणी स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों एवं प्रिन्टिंग प्रैसों के मामले में मसीही समुदाय सदैव अग्रणी रहा है। हमारे राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी ने भी एक मिशन स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी, इसी लिए वह यीशु मसीह के जीवन से बहुत प्रभावित थे; चाहे गांधी जी अपने जीवन के अन्तिम समय में मसीही मिशनरियों के विरुद्ध भी हो गए थे। स्वामी विवेकानन्द शिकागो धर्म-संसद को संबोधन करने के बाद ही हुए थे अधिक लोकप्रिय स्वामी विवेकानन्द को 1893 के दौरान शिकागो में आयोजित ‘धर्म-संसद’ को संबोधन करने के बाद ही समस्त विश्व में प्रसिद्धि मिली थी। वास्तव में उन दिनों की प्रमुख मसीही महिला पण्डिता रमाबाई तब अमेरिका व कैनेडा में जाकर भारत की महिलाओं की असल दशा (वह बातें जो कटु तो लगती थीं परन्तु सत्य भी थीं) का वर्णन करके आईं थीं। स्वामी विवेकानन्द ऐसा नहीं चाहते थे कि भारत की छवि विश्व में इस प्रकार से बिगड़े। पण्डिता रमाबाई ने बताई थी पहली बार विश्व को भारत के तथाकथित धार्मिक लोगों की असलियत पण्डिता रमाबाई ने तब 1886 से लेकर 1888 के दौरान अमेरिका, कैनेडा व इंग्लैण्ड में बड़े स्तर पर अनेक स्थानों पर अंग्रेज़ी भाषा में अपने धुंआधार भाषणों के द्वारा बताया था कि ‘‘यह पश्चिमी विश्व व पश्चिमी बहनें भारत के किन्हीं विशाल दर्शन-शास्त्रों से इतना प्रभावित न हों, क्योंकि भारत में धार्मिक लोग ही स्त्रियों व बच्चों को कुछ नहीं समझते। विधवाओं का शोषण किया जाता है, महिलाओं को पढ़ने नहीं दिया जाता, वे अपने घर से पांव तक बाहर नहीं रख सकतीं, कथित निम्न वर्गों को अपने पांव की जूती बना कर रखा जाता है। बच्चों की बलि दी जाती है। अन्ध-विश्वासों का तो कोई अन्त ही नहीं।’’ हिन्दु समाज का बड़प्पन, किए अनेक सुधार ख़ैर हिन्दु समुदाय/समाज का यह बड़प्पन है कि उसने आधुनिक समाज में अपने अन्दर की ऐसी सभी प्राचीन कमियों को इतनी तेज़ी से दूर किया कि अन्य सभी वर्गों को पछाड़ कर रख दिया। उन्होंने सती प्रथा को पूर्णतया समाप्त कर दिया, विधवाओं के पुनः विवाह होने लगे, लड़कियों को उच्च शिक्षा दी जाती है, वे अब दिन व रात किसी भी समय आसानी से घर से बाहर कदम रख सकती हैं व अब दीपावली के अवसर पर पटाखे चलाने का प्रचलन धीरे-धीरे कम होने लगा है। मसीही समुदाय को भी लाने होंगे सुधार सुधार की ऐसी गुंजायश सभी धर्मों व समुदायों में होनी चाहिए। हमें अवश्य ही आत्म-मंथन करना होगा, तभी हम 21वीं व अगली शताब्दियों में आगे बढ़ते रह सकेंगे। यदि भारत के मसीही लोग कहें कि हम पूर्णतया परिपूर्ण हैं, तो यह बात ग़लत होगी। आज भारतीय मसीही समुदाय में बहुत अधिक सुधारों की आवश्यकता है, परन्तु इस मामले में हो कुछ भी नहीं रहा है। मसीही समुदाय, विशेषतया युवाओं को ये सब बातें सोचनी चाहिएं कि आख़िर क्या कारण है कि इतने अधिक योगदान के बावजूद तथा स्वतंत्रता-प्राप्ति के 70 वर्षों के पश्चात् आज तक कोई मसीही शख़्सियत भाारत के राष्ट्रपति व प्रधान मंत्री जैसे प्रमुख पदों तक क्यों नहीं पहुंच पाई? भारत में अनेक स्थानों पर बहु-संख्यक लोग किन-किन कारणों से व किन भ्रमों के चलते आज भी मसीही लोगों पर सांप्रदायिक हमले करने हेतु क्यों विवश होते हैं? हमें अंग्रेज़ों या पश्चिमी सभ्यता के पिच्छलग्गू क्यों माना जाता है - जब कि वास्तव में ऐसी कोई बात नहीं हैं हम कहां पर अपनी बात को सही ढंग से भारत के जन-साधारण तक पहुंचाने से रह जाते हैं? मसीही युवाओं को अपने सामाजिक कर्तव्य को पहचानते व समझते हुए आगे आना चाहिए तथा इस दिशा में कार्यरत होना चाहिए। भारत का मसीही समुदाय पूर्णतया व विशुद्ध भारतीय है - इस धरती से अटूट ढंग से जुड़ा है और अपनी मातृ-भूमि को दिलो जान से प्यार करता है; इसमें किसी को भी किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं होना चाहिए। यह हमारी मसीही समुदाय की ही ग़लतियां रही होंगी कि जिनके कारण हम आज तक अपनी सही स्थिति व स्टैण्ड ही समूह भारतियों के नागरिकों के समक्ष स्पष्ट नहीं कर पाए। हमें आत्म-मंथन अवश्य करना होगा। हमारे रहनुमाओं को आगे आना होगा - परन्तु अभी तक कोई भी ऐसी विशुद्ध भारतीय मसीही शख़्सियत सामने नहीं आ पाई है, जो खुल कर अपने साथी भारतीयों को अपने बारे में सब कुछ स्पष्ट कर सके। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]