प्रैस प्रतिबन्द्ध के बावजूद पत्रकार बैंजामिन गॉए हौर्नीमैन ने ब्रेक की थी जल्लियांवाला बाग़ कत्लेआम की ख़बर
सदा भारत की स्वतंत्रता के पक्षधर रहे हौर्नीमैन
इंग्लैण्ड के पत्रकार बैंजामिन गॉए हौर्नीमैन (1873-1948) अपने जीवन का अधिकतर समय भारत में ही रहे, सदा भारत की स्वतंत्रता के पक्षधर रहे तथा अंतिम श्वास भी उन्होंने भारत में ही लिया था। भारत का मसीही समुदाय ऐसे अनगिनत स्वतंत्रता संग्रामियों का सदैव ऋणी रहेगा। मुंबई में उनकी सम्मानित याद में ‘हौर्नीमैन सर्कल गार्डन्स’ स्थापित है; पहले इस का नाम ‘ऐल्फ़िनस्टोन सर्कल’ था। निधन के समय वह अपनी पत्रकारिता की लम्बे 50 वर्षीय यात्रा के संस्मरण लिख रहे थे। उनकी वह पुस्तक अधूरी ही थी, जब उनका अंतिम बुलावा आ गया था। फिर भी उनकी वह पुस्तक ‘फ़िर्फ्टी ईयर्स ऑफ़ जनर्लिज़्म’ उनके मरणोपरांत प्रकाशित हुई थी।
बैंजामिन गॉए हौर्नीमैन ने किया था जनरल माईकल ओ’डवायर के कत्लेआम का पर्दाफ़ाश
अप्रैल 1919 में घटित जल्लियांवाला बाग़ कत्लेआम की घटना समस्त विश्व के समक्ष पहली बार लाने वाले बैंजामिन गॉए हौर्नीमैन (जो प्रायः बी.जी. हौर्नीमैन के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे) ‘बौम्बे क्रॉनीकल’ के संपादक थे। उनका जन्म इंग्लैण्ड के ससैक्स स्थित डव कोर्ट क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता तब इंग्लैण्ड की रॉयल नेवी के पेमास्टर-इन-चीफ़ थे और उनकी माता का नाम साराह था। हौर्नीमैन ने प्रारंभिक शिक्षा पोर्ट्समाऊथ ग्रामर स्कूल से ग्रहण की तथा उसके पश्चात् की पढ़ाई उन्होंने सैन्य अकादमी से संपंन्न की।
अंग्रेज़ों के बस्तीवादी शासन के विरुद्ध हौर्नीमैन ने उठाई थी ज़ोरदार आवाज़
श्री हौर्नीमैन ने अपना पत्रकारिता का करियर 1894 में ‘पोर्टसमाऊथ ईवनिंग मेल’ नामक समाचार-पत्र से प्रारंभ किया था। फिर उन्होंने ‘मानचैस्टर गार्डियन’ व ‘डेली क्रौनीकल’ जैसे कई समाचार पत्रों के साथ पत्रकार के तौर पर कार्य किया। वह 1906 में भारत में आए थे और यहां पर उन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) से प्रकाशित होने वाले ‘दि स्टेटसमैन’ के समाचार संपादक का पदभार संभाला था। 1913 में वह फ़िरोज़शाह मेहता के दैनिक समाचार-पत्र ‘दि बौम्बे क्रॉनीकल’ के संपादक बने। इस अख़बार ने अंग्रेज़ों के बस्तीवादी शासन के विरुद्ध ज़ोरदार आवाज़ उठाई। श्री हौर्नीमैन के कुशल नेतृत्त्व में यह समाचार-पत्र भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य-पत्र बन गया।
जल्लियांवाला बाग़ कत्लेआम की विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित करने पर हौर्नीमैन को मिला दण्ड
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम हेतु एक अन्य धाकड़ ब्रिटिश महिला ऐनी बेसैंट द्वारा प्रारंभ की गई ‘होम रूल लीग’ लहर में श्री हौर्नीमैन ने उपाध्यक्ष के तौर पर कार्य किया। श्री हौर्नीमैन ने 1919 में अपने समाचार-पत्र ‘दि बौम्बे क्रॉनीकल’ के द्वारा ‘रोल्ट एक्ट’ के विरुद्ध सत्याग्रह अभियान छेड़ा। उन्होंने सार्वजनिक रैलियां भी कीं। वह श्री हौर्नीमैन ही थे, जिन्होंने अंग्रेज़ शासकों द्वारा लगाए गए सरकारी प्रतिबन्द्ध का उल्लंघन करते हुए जल्लियांवाला बाग़ कत्लेआम की हिंसात्मक घटना का संपूर्ण विवरण प्रकाशित किया। उसके परिणामस्वरूप भारत की तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार ने श्री हौर्नीमैन को भारत से डीपोर्ट करके इंग्लैण्ड वापिस भेज दिया। जिस पत्रकार ने वह रिपोर्ट लिखी थी, उसे दो वर्ष सख़्त कारावास का दण्ड मिला था।
श्री हौर्नीमैन का निधन 1948 में हुआ।
हौर्नीमैन संबंधी ‘हिन्दुस्तान टाईम्स’ ने प्रकाशित की अर्शदीप अर्शी की विस्तृत रिपोर्ट
7 अप्रैल, 2019 को अंग्रेज़ी दैनिक ‘हिन्दुस्तान टाईम्स’ ने श्री बी.जी. हौर्नीमैन संबंधी अर्शदीप कौर अर्शी द्वारा लिखित एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उस रिपोर्ट के भी कुछ अंश हम यहां पर साभार प्रकाशित कर रहे हैं।
‘बी.जी. हौर्नीमैन ने प्रैस सैन्सरशिप का उल्लंघन करते हुए जल्लियांवाला बाग़ कत्लेआम की विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी और तभी माईकल ओ’डवायर के घृणित हिंसक कार्य पूरी दुनिया के समक्ष प्रकट हो पाए थे। इतना ही नहीं श्री हौर्नीमैन ने किसी प्रकार चोरी-छिपे जल्लियांवाला बाग़ कत्लेआम के सभी चित्र इंग्लैण्ड भेज दिए थे और उनकी वह सचित्र रिपोर्ट उस समय जब ‘दि डेली हैराल्ड’ में प्रकाशित हुई, तो समस्त विश्व में तहलका मच गया था।’
हौर्नीमैन ने अपनी पुस्तक से भी जनरल डायर के उधेड़े थे बखिए
अर्शदीप कौर अर्शी आगे लिखती हैं कि - ‘श्री हौर्नीमैन ने 1920 में अपनी एक पुस्तक ‘अमृतसर एण्ड अवर ड्यूटी टू इण्डिया’ (अमृतसर व भारत के प्रति हमारा दायित्व) प्रकाशित की थी, जिसमें उन्होंने ओ’डवायर के भारतियों पर ढाए गए अत्याचारों का सारा कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत कर दिया था। उन्होंने इस घटना की तुलना कांगो में पहले घटित हो चुकी हिंसात्मक घटनाओं तथा जर्मनी द्वारा फ्ऱांस व बैल्जियम में किए कत्लेआमों से की थी। उन्होंने इसके लिए ‘डायरआर्की ऑफ़ जनरल डायर इन पंजाब’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया था।’
‘ऐसा मान लेना असंभव है कि इंग्लैण्ड के लोगों ने कभी ब्रिटिश जनरल माईकल ओ’डवायर के कुकृत्यों को सही माना होगा या कभी उसे क्षमा भी किया होगा। ओ’डवायर ने अमृतसर के जल्लियांवाला बाग में इकट्ठी हुई भारी निहत्थी भीड़ पर बिना किसी अग्रिम चेतावनी के गोलियां बरसानी प्रारंभ कर दीं थीं। वह तब तक गोलियों चलाता रहा, जब तक कि उसका असला समाप्त नहीं हो गया और फिर वह सभी घायलों को वैसे ही छोड़ कर चला गया था।’
जनरल डायर का ऊटपटांग ब्यान व उसका बरी होना
‘श्री हौर्नीमैन लिखते हैं कि जनरल डायर ने तब अपने बचाव में दिए अपने ऊटपटांग ब्यान में कहा था कि ‘उसे लगा कि मार्शल-लॉअ (सैन्य कानून) के अंर्तगत सरकारी आदेशों का उल्लंघन हुआ है। जबकि तब ऐसा कोई कानून लागू नहीं था।’ उसने यह भी कहा कि उसने भीड़ को खिंडाने के लिए ताबड़तोड़ गोलियां चलाना ठीक समझा।’
अर्शदीप अर्शी की रिपोर्ट अनुसार श्री हौर्नीमैन अपनी पुस्तक में आगे लिखते हैं - ‘जल्लियांवाला बाग कत्लेआम के पश्चात् भी जनरल ओ’वायर के अत्याचार समाप्त नहीं हो गए थे। उस घृणित घटना के 6 सप्ताह बाद तक भी पंजाब में सैन्य कानून लागू रहा। विभिन्न स्थानों पर लोगों ने बड़ी संख्या में एकत्र हो कर जब रोष प्रदर्शन करने शुरु कर दिए तो भी उनकी मारपीट व खींचातानी की घटनाओं का कोई अंत न हुआ। प्रदर्शनकारियों पर गोलियां भी बरसाईं गईं। ब्रिटिश पुलिस ने भारतीय प्रदर्शनकारियों का चौराहे में नंगा करना प्रारंभ कर दिया। उन्हें टैलीफ़ोन के खंभों से बांध दिया जाता था। परन्तु ब्रिटिश उच्च अधिकारियों ने डायर को साफ़ बरी कर दिया।’
शहीद भगत सिंह के भतीजे व अर्थ-शास्त्र के प्रोफ़ैसर जगमोहन सिंह की हौर्नीमैन को सच्ची श्रद्धांजलि
‘हौर्नीमैन को ‘भारत का मित्र’ कहा जाता है, जो कि सही भी है। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के भतीजे व अर्थ-शास्त्र के प्रोफ़ैसर जगमोहन सिंह का कहना है कि ‘बी.जी. हौर्नीमैन भारत में पत्रकारिता की एक उदाहरण हैं। जब हम जल्लियांवाला बाग़ कत्लेआम को स्मरण करते हैं, तो हमें हौर्नीमैन को भी श्रद्धांजलि अवश्य भेंट करनी चाहिए।’
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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