भारतीय मसीही समुदाय का सदैव एक प्रमुख सद्गुण रहा ‘देश-भक्ति’
‘भारतीय ईसाई समुदाय राष्ट्रीय स्वतंत्रता की इच्छा रखने वालों में कभी पीछे नहीं रहा’
‘देश-भक्ति’ वास्तव में मसीही समुदाय का एक प्रमुख सद्गुण रहा है। इसी लिए भारत की स्वतंत्रता हेतु सभी राष्ट्रीय आन्दोलनों में उनका योगदान वर्णनीय रहा है तथा उन्होंने किसी भी निश्चित सामूहिक राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए अपनी गंभीर चिंता भी प्रकट की है। यह कहना भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि राष्ट्रीय आन्दोलनों के प्रारंभ में भारतीय राष्ट्रवाद के लक्ष्यों को एक आकार देने में मसीही लोग हमेशा अग्रणी रहे थे। इसी लिए जॉर्ज थॉमस ने बिल्कुल ठीक ही लिखा है कि ‘भारतीय ईसाई समुदाय राष्ट्रीय स्वतंत्रता की इच्छा रखने वालों में कभी पीछे नहीं रहा तथा उस ने इस इच्छा की पूर्ति हेतु कार्य किए और बलिदान भी दिए।’ अन्य धर्म के लोगों की तरह मसीही समुदाय ने कभी किसी एक धर्म या समाज का साम्राज्य नहीं चाहा यह बात बिल्कुल ठीक है कि देश के मसीही समुदाय ने कभी अपने स्वयं के धर्म, समाज या किसी एक धर्म के साम्राज्य की बात नहीं की। उन्होंने सभी लोगों का भला ही चाहा। परन्तु इसके विपरीत भारत के बहुसंख्यक, विशेषतया संकीर्ण सोच वाले कुछेक बहुसंख्यक प्रतिनिधि, उनके प्रमुख संगठन हिन्दु महासभा, आर.एस.एस., बजरंग दल, विश्व हिन्दु परिषद एवं अन्यों ने धर्म-निरपेक्ष भारत के लिए संघर्ष कम, अपितु एक ‘हिन्दु समाज’ अथवा ‘हिन्दु राष्ट्र’ स्थापित करने हेतु कार्य अधिक किए। उनके वास्तविक दुश्मन ब्रिटिश नहीं थे, बल्कि मुस्लिम व ईसाई अधिक थे। ऐसा प्रमुख हिन्दु नेताओं जैसे स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, बाल गंगाधर तिलक, केशव बालीराम हेडगेवार, वी.डी. सावरकर, बी.एस. मूंजे, एम.एस. गोलवाल्कर के संभाषणों से समय-समय पर स्पष्ट होता रहा है। मसीही समुदाय सदा ‘जियो और जीने दो’ के पारंपरिक व मूलभूत भारतीय सिद्धांत पर ही चला परन्तु भारत के मसीही समुदाय के लिए ऐसी कोई समस्या कभी नहीं रही कि ‘भारत वर्ष में हम ही हम हों, और कोई धर्म न हो’, और यदि ऐसा कह लिया जाए कि मसीही लोग सदा ‘जियो और जीने दो’ के पारंपरिक व मूलभूत भारतीय सिद्धांत का सदा ही अनुपालन करते और उसी के अनुसार जीते आए हैं, तो कोई ग़लत बात नहीं है। जैसे कि जावेद अख़तर ने बिल्कुल सही कहा है कि ‘‘हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं, तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो’’ मसीही लोगों ने बाईबल अनुसार अन्य समुदायों की तुलना में कभी स्वयं को सर्वोच्च नहीं माना सचमुच भारत के मसीही समुदाय ने कभी अन्य लोगों/धर्मों से स्वयं को सर्वोच्च नहीं माना। परमेश्वर के राज्य में कोई बड़ा व छोटा न कभी था और न कभी होगा। परमेश्वर की वर्षा, धूप, फल-फूल, अनाज व अन्य ऐसे अन्य आशीर्वाद किसी एक समुदाय के लिए नहीं, अपितु संपूर्ण मानवता के लिए सदा रहा है और सदा रहेगा। शायद यही कारण था कि यीशु मसीह ने कहा था - ‘‘ऐ थके मांदे व बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ मैं तुम्हें आराम दूंगा’’ (मत्ती 11ः28) - उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा कि कोई एक धर्म या समुदाय अथवा जाति या रंग का ही कोई व्यक्ति उनके पास आए - उन्होंने सभी को अपने पास बुलाना चाहा है। मसीही स्वतंत्रता सेनानियों ने लगाए थे जी भर कर ‘भारत माता की जय’ के नारे भारत के बहु-संख्यक ईसाई लोगों को कभी ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे लगाने से कभी परहेज नहीं रहा क्योंकि उनकी मातृ-भूमि सचमुच यही है, तो है - उससे किसी को कोई आपत्ति न कभी हुई है और न कभी होगी। भारत के विभिन्न स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने वाले मसीही स्वतंत्रता सेनानियों ने भी इस नारे का जी भर कर प्रयोग किया था। बाईबल मानती है धरती को माँ, अन्य सभी लोगों व धर्मों का एकसमान सम्मान करती है बाईबल के नए नियम की पुस्तक 'गलातियां' के चौथे अध्याय की 26वीं आयत में येरूशलेम की धरती को ‘मां’ कहा गया है। दुनिया भर के मसीही लोग, चाहे वे गोरे हों या काले, सभी अपने-अपने देश की धरती को उसी आयत के अनुसार तहे-दिल से मातृ-भूमि (मदर-लैण्ड) मानते हैं और उसके लिए आवश्यकता पड़ने पर मर-मिटते हैं। चाहे संपूर्ण पवित्र बाईबल का आधार ‘स्वर्ग में अपना घर’ बनाने व परमेंश्वर के ‘स्वर्गीय राज्य’ की बातों से भरपूर है परन्तु पतरस की पहली पत्री के दूसरे अध्याय की 17वीं आयत में यह भी बड़ा स्पष्ट लिखा गया है कि - ‘‘प्रत्येक व्यक्ति का आदर करो। भाईचारे अथवा समुदाय को प्यार करो। परमेश्वर से डरो तथा राजा को भी सम्मान दो।’’ तो ऐसे धरती से जुड़े रहने की शिक्षा हम मसीही लोगों को बाईबल सदा देती रही है और ऐसे ही आगे भी देती रहेगी। हमें तथाकथित राष्ट्रवादियों की किसी सलाह व उनसे यह जानने की कोई आवश्यकता नहीं है कि देश-भक्ति क्या होती है। बाईबल में अनगिनत स्थानों पर लिखा गया है कि अन्य लोगों व धर्मों का भी एकसमान ढंग से आदर-सत्कार किया जाए। यही कारण है कि भारत के मसीही लोगों ने कभी किसी पर आपत्ति नहीं प्रकट की, अपितु अन्य लोगों को सदा सहयोग ही दिया। इन्हीं सभी कारणों से भारत का मसीही समुदाय धार्मिक व पारस्परिक भाईचारे की सहिष्णुता की एक मिसाल बना रहा है। बहुत से बहुसंख्यक व ग़ैर-मसीही भारतीय करते रहे अंग्रेज़ शासकों की ख़ुशामद भारत में हिन्दु धर्म व समाज की स्थापना के उद्देश्य को लेकर चलने वाले नेताओं स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द एवं गोपाल कृष्ण अगरकर ने ब्रिटिश शासकों को भारत छोड़ कर चले जाने को कहा, जो कि बिल्कुल सही व दरुस्त था। परन्तु ऐसे मूलवादी बहुसंख्यक हिन्दु नेताओं की संख्या कहीं अधिक थी, जो अंग्रेज़ शासकों का पूरा साथ देते थे और पूर्णतया उनकी ख़ुशामद करने में जुटे रहते थे, क्यों? वे ऐसा इस आशा के साथ करते थे कि अंग्रेज़ जब भी कभी भारत देश को छोड़ कर जाएं, तो देश की बागडोर उन्हें सौंप कर जाएं, ताकि वे इस देश में एक ‘हिन्दु राष्ट्र’ की स्थापना कर सकें। परन्तु महात्मा गांधी व जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे असंख्य धर्म-निरपेक्ष नेताओं तथा बाबा-साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर जैसे विद्वान पथ-पर्दशकों के चलते ऐसे मूलवादी लोगों के सपने कभी पूरे नहीं हो पाए। अंग्रेज़ शासक भी अपना राज्य चलाने के लिए बहु-संख्यक हिन्दु व मुस्लिम राजाओं, स्थानीय नवाबों, दीवानों व अन्य स्थानीय प्रशासकों को ही प्रसन्न करने में जुटे रहते थे; क्योंकि समस्त भारत में उन्हीं के दम पर तो उनकी हकूमत चल रही थी। और अधिकतर बहु-संख्यक अमीर व प्रशासकीय लोग भी अंग्रेज़ों को ही ख़ुश करने में जुटे रहते थे, क्योंकि उन्हें अन्दरखाते यही आशा रहती थी कि ये गोरे राजा कभी तो भारत को छोड़ कर जाएंगे और जाने से पहले हमें हकूमत सौंप कर जाएंगे। भारत की शक्ति है इस की धर्म-निरपेक्षता भारत की शक्ति इस की धर्म-निरपेक्षता में ही निहित है और इस शक्ति को और अधिक सशक्त करने में भारत के मसीही समुदाय की भूमिका सदा महत्त्वपूर्ण रही है। नत्थू राम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या केवल इसी रंजिश के चलते की थी कि ऐसी महान् शख़्सियतों के कारण ही भारत एक हिन्दु राष्ट्र नहीं बन पाया था। परन्तु इतिहास गवाह है कि जिन देशों की बुनियाद किसी धर्म पर होती है, वे अधिक सफ़ल नहीं हो पाते हैं; क्योंकि धर्म व्यक्तिगत स्तर पर रहता है और प्रशासकीय प्रबन्ध देखना एक अन्य ही क्षेत्र होता है। क्या अर्जित किया नेपाल व पाकिस्तान ने धार्मिक आधार बना कर नेपाल जैसा देश 17 मई, 2006 तक विश्व का एकमात्र हिन्दु राष्ट्र था, परन्तु 18 मई को उसे भी धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया गया था। पाकिस्तान ने इस्लामिक देश कहलवा कर क्या उपल्बिधयां प्राप्त कर लीं। सऊदी अरब जैसे मध्य-पूर्वी देशों के पास दुनिया को बेचने के लिए यदि तेल न होता, तो उसकी हालत भी आज संभवतः पाकिस्तान की तरह कंगाल ही हो चुकी होती। जब तक उनके देशों में तेल की खोज नहीं हुई थी, तब तक वे केवल भारत जैसे अन्य देशों पर आक्रमण व लूट-खसोट कर के गुज़ारा किया करते थे, क्योंकि वे तब अपने देश में भूखे मर रहे होते थे। ब्रिटिश शासक भी ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाले भारत को केवल लूटने के लिए आए थे। भारत में मसीही धर्म तो उनसे लगभग 1600 वर्ष पूर्व ही आ चुका था। इस लिए यह कहना कि केवल वही मसीही धर्म को भारत लाए, इस बात में कोई दम नहीं है। विश्व के विकसित देश स्वयं को कभी नहीं कहते ‘मसीही देश’ विश्व के इंग्लैण्ड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, जर्मनी, फ्ऱांस, स्विटज़रलैण्ड जैसे अन्य अनेक विकसित देश कभी स्वयं को मसीही या क्रिस्चियन देश नहीं कहते, चाहे वहां पर मसीही जन-संख्या सदा ही सब से अधिक बनी रही है परन्तु उन्हें यह बात मालूम है कि परमेश्वर की आशीषें सभी लोगों के लिए होती है, किसी एक जाति या समुदाय, नस्ल, रंग या एक धर्म तक सीमित नहीं हुआ करतीं। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]