मसीही समुदाय ने की थी भारत से अंग्रेज़ शासकों को देश से निकालने की संगठनात्मक शुरुआत
मसीही लोगों ने की यह पहल
यदि आप इतिहास का थोड़ा सा भी ध्यानपूर्वक व गहन अध्ययन करें, तो आपको मालूम होगा कि भारत में अंग्रेज़ों के अत्याचारी शासन के विरुद्ध संगठनात्मक ढंग से सफ़लतापूर्वक आवाज़ उठाने में मसीही समुदाय का सब से अधिक योगदान था। कैसे....? अभी समझाते हैं।
यहां यह स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने अध्ययन में जिस कांग्रेस पार्टी की बात कर रहे हैं, वह वर्तमान कांग्रेस पार्टी नहीं है। सन् 1885 में जिस कांग्रेस पार्टी का पहली बार गठन हुआ था, उसका एकमात्र उद्देश्य ’भारत से अंग्रेज़ों की हकूमत को सदा के लिए ख़त्म करना’ था और उसी कांग्रेस पार्टी के बैनर तले 1947 में भारत ने आज़ादी हासिल की। इस प्रकार हमारा मसीही समुदाय यह दावा करता है कि मसीही लोगों ने ही कांग्रेस पार्टी की स्थापना के रूप में मज़बूत संगठनात्मक रूप से अंग्रेज़ शासकों के विरुद्ध अपना अभियान छेड़ा व सफ़लतापूर्वक संपन्न किया।
कांग्रेस को 62 वर्ष लग गए थे अंग्रेज़ों को भारत से खदेड़ने में
फ़ोटो साभारः मिशन डिप्लोमेसी
इससे पूर्व 1857 के ग़दर में जो भी लोग उस समय एकजुट हुए थे, वे सभी बाद में बिखर कर रह गए थे और बाद में वे कभी दोबारा अपना कोई संगठन नहीं बना पाए थे और केवल अन्दर ही अन्दर सुलगते रहे थे। इसी सुलगती आग का लाभ कांग्रेस को मिला। कांग्रेस पार्टी ने लगभग पौनी शताब्दी तक अंग्रेज़ शासकों के विरुद्ध समस्त भारतियों को एकजुट किए रखा। इस प्रकार यह उस समय का पहला ऐसा संगठनात्मक प्रयास था, जो सफ़ल रहा (1857 के ग़दर के प्रयास तो पहले ही असफ़ल हो चुके थे)।
हम मसीही लोगों के बारे में यह दावा इस लिए करते हैं क्योंकि कांग्रेस पार्टी की स्थापना एक विदेशी मसीही ए.ओ. ह्यूम ने की थी और उसके पहले अध्यक्ष अर्थात प्रैज़ीडैन्ट भी एक मसीही वोमेश चन्द्र बैनर्जी थे। उन्हीं के योग्य मार्ग-दर्शन से समूह भारतीय पार्टी की बैठकों में एकत्र होने लगे वह देश का प्रमुख संगठन बन गया और अंग्रेज़ सरकार उससे डरने लगी। फिर भी कांग्रेस पार्टी को आम जनता के साथ मिल कर अंग्रेज़ों को निकालने में 62 वर्ष लग गए।
देश के दुश्मनों को शीशा
‘क्रिस्चियन फ़ोर्ट’ वास्तव में देश के कुछ ऐसे मुट्ठी भर दुश्मनों को शीशा दिखलाना चाहता है, जो भारत के मसीही समुदाय एवं संपूर्ण मसीहियत के प्रति अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग करते हैं तथा देश के सांप्रदायिक सौहार्द को तार-तार करना चाहते हैं। हमारी मसीही संस्कृति ऐसे गन्दे अण्डों की तरह नहीं है कि हम भी ऐसी शब्दावली का प्रयोग करें। इसी लिए हम उन्हें अब भारत के संपूर्ण मसीही समाज के योगदान को समूह भारत वासियों को पुनः स्मरण करवाना चाहते हैं।
वास्तव में मसीही समुदाय ने भारत में अपने वणर्नीय योगदान का कभी प्रचार नहीं किया। सदा परमेश्वर व अपने मुक्तिदाता पर अपना विश्वास मज़बूत बनाए रखा।
भारत में दंगों के समय मसीही समुदाय निभाता रहा सकारात्मक भूमिका
भारत का इतिहास हिन्दु-मुस्लिम दंगों से भरा पड़ा है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी कभी किसी नगर या गांव में ऐसे दंगे होते थे, तो वहां के स्थानीय मसीही लोग ही सदा हिन्दु व मुस्लिम भाईयों के बीच पुनः सुलह करवाया करते थे। ऐतिहासिक रेकार्ड के अनुसार देश में पहली बार हिन्दु-मुस्लिम दंगा 1671 ई. में औरन्गज़ेब के शासन-काल में हुआ था। उसके बाद से अब तक सैंकड़ों बार देश में दंगे हो चुके हैं और हज़ारों निर्दोष लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ी हैं। अगस्त 2008 में तो उड़ीसा के कुछ बहुसंख्यकों ने बेरहमी से सैंकड़ों मसीही लोगों की जान ले ली थी और सैंकड़ों चर्च व हज़ारों घर जला कर हज़ारों निर्धन मसीही लोगों को बेघर कर दिया था। तब कारगिल का युद्ध लड़ चुके एक मसीही सैनिक को भी नहीं बख़्शा गया था।
भारतीय मसीही समुदाय पर धर्म-परिवर्तन के आरोपों का मुंह-तोड़ जवाब
1999 में आस्ट्रेलियन मिशनरी ग्राहम स्टेन्ज़ व उनके दो पुत्रों की ज़ालिमाना ढंग से हत्या के लिए उस समय कथित तौर पर ‘बजरंग दल को ज़िम्मेदार ठहराया गया था’ और उस समय उड़ीसा बजरंग दल के मुखिया प्रताप चन्द्र सारंगी थे, जो अब इस समय केन्द्रीय मंत्री हैं, जिन्हें पिछले वर्ष पशु-पालन मंत्री नाया गया था। ...तो ऐसी तथाकथित विभिन्नताओं से भी भरपूर है हमारा देश भारत।
भारतीय मसीही समुदाय पर धर्म-परिवर्तन के आरोप भी पूर्णतया बेबुनियाद हैं, जो कि केवल कुछ राजनीतिक स्वार्थों वाले घटिया व नीच प्रकार के तथाकथित नेता लोग ही ऐसे इल्ज़ाम लगाते हैं। ऐसे आरोपों के बारे में हम ने खुल कर विशेष विचार-चर्चा की है।
ऐसे सभी सवालों के जवाब आप को ‘क्रिस्चियन फ़ोर्ट’ पर मिलेंगे।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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