मसीही इतिहास में सुस्वागतम !!!
25th December, 2018जै मसीह की !
सलाम-ए-मसीह ! PRAISE THE LORD !!! आभार कट्टरपंथी लोगों का, जिनके तानों के कारण यह खोज-अध्ययन संभव हो पाया मैं यहां पर भारत के कुछ उन बहुसंख्यक कट्टरपंथी लोगों का आभार प्रकट करना चाहता हूं, जिनके तानों व व्यंग्य-बाणों के कारण मैं ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मसीही समुदाय का योगदान’ संबंधी अध्ययन करने हेतु विवश हुआ। हिन्दी में ऐसा कार्य इतने बड़े स्तर पर पहले कभी नहीं हुआ, यदि हुआ भी है, तो हमारे कुछ मसीही पादरी साहिबान व मसीही चिंतकों व मसीही इतिहासकारों ने ऐसे खोज-अध्ययनों को अपने पास दबा कर रख छोड़ा है। आईना दिखलाने की आवश्यकता अब जबकि बहुसंख्यक कट्टरपंथी लोग मसीहियत पर हावी होने के प्रयत्न करने लगे हैं, क्या तब हमें उन्हें आईना नहीं दिखलाना चाहिए। बस इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु मैंने अपनी यह पुस्तक लिखी है। भारतीय मसीही समुदाय के गौरवमय इतिहास को जानबूझ कर भुला दिया गया है। इन बातों का ज़िक्र अर्थात वर्णन अब कहीं किया भी नहीं जाता। मसीही समुदाय की बात प्रारंभ होते ही जानबूझ कर ‘धर्म-परिवर्तन’ के बेबुनियाद आरोप बिना वजह लगने लगते हैं ताकि लोग इस समुदाय की वीर-गाथा को कभी छेड़ें ही नहीं। हम किसी पर आरोप नहीं लगा रहे, केवल अपने ऊपर लगे आरोपों का उत्तर ही दे रहे हैं। किसी मसीही मिशन या चर्च से नहीं जुड़ा है यह खोज-अध्ययन हमें किसी भी मसीही मिशन या चर्च से जोड़ कर न देखा जाए क्योंकि स्वतंत्रता सेनानी कभी किसी एक मिशन या चर्च अथवा आंचलिक समुदाय से जुड़े हुए नहीं होते। वे सर्वसाझे हुआ करते हैं। यह पुस्तक किसी आर्थिक या वित्तीय लाभ के लिए प्रकाशित नहीं की जा रही। इसे छपवाने में आने वाले बड़े ख़र्च से बचने के लिए ही इसे अब ऑनलाईन किया जा रहा है, ताकि सभी मसीही समुदाय के महत्त्वपूर्ण इतिहास को जान व समझ सकें। अवश्य दें रैफ़रैंस इन्टरनैट पर यह पूर्णतया मुफ़्त अर्थात निःशुल्क है। परन्तु जहां पर भी इसके किसी निबंध या विषय का वर्णन करें, इस पुस्तक का हवाला (रैफ़रैंस) अवश्य दें। इससे अधिक हमें और कुछ नहीं चाहिए। हम ने भी यह सामग्री इधर-उधर से एकत्र की है और जहां से भी उसे लिया है, उसका रैफ़रैंस अवश्य दिया गया है। -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]