पवित्र बाईबल के वैज्ञानिक सत्य (31-45)
31. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘अय्यूब’ (जॉब) के 38वें अध्याय की 24वीं आयत में लिखा है कि प्रकाश अर्थात रौशनी को फैलाया जो पृथक भागों में बांटा जा सकता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर आईसक न्यूटन ने प्रकाश का अध्ययन करके यह ज्ञात किया था कि श्वेत प्रकाश सात रंगों का बना होता है, जिसे पृथक भागों में बांटा जा सकता है और फिर एकजुट किया जा सकता है। विज्ञान यह बात केवल चार शताबदी पूर्व ज्ञात कर पाया, जबकि बाईबल में यही बात 4,000 वर्ष पूर्व से दर्ज है; क्योंकि बाईबल का पुराना नियम इतने वर्ष पूर्व ही लिखा गया था।
32. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘भजन संहिता’ (साम) के आठवें अध्याय की 8वीं आयत में महासागरों के पथों का सुस्पष्ट वर्णन है। उसमें ‘पाथ्स ऑफ़ दि सीज़’ अर्थात ‘समुद्रों के रास्ते’ शब्द का प्रयोग करते हुए लिखा गया है कि समुद्र की मछलियां समुद्र के रास्तों पर से होते हुए चलती हैं। 19वीं शताब्दी ई. में समुद्र-विज्ञान (ओशनोग्राफ़ी) के पितामह मैथ्यू मौरी ने पवित्र बाईबल की इसी आयत को पढ़ कर महासागरों का अध्ययन किया था तथा ऐसे जलीय-पथों की खोज की थी, जो पानी के नीचे से ही निकलते हैं। उन्हीं रास्तों की सहायता से ही आज के आधुनिक नाविक अपनी समुद्री यात्राओं को पहले के मुकाबले में कहीं अधिक जल्दी संपन्न करने में सक्षम हो पाए हैं।
33. आज बच्चे-बच्चे को मालूम है कि असुरक्षित एवं अप्राकृतिक संभोग मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकर है। इससे एडज़ ही नहीं, बल्कि अन्य और भी बहुत से रोग हो जाते हैं। वर्तमान मैडिकल विज्ञान ऐसे संभोग (सैक्सुअल रिलेशन्ज़) को पूर्णतया नकारता है, चाहे अमेरिका एवं कैनेडा सहित बहुत से पश्चिमी देशों ने बेशर्मी से और केवल राजनीतिक मतों के चक्रों में समलैंगिकों के विवाहों की भी अनुमति दे रखी है। ऐसे बहुत से निर्लज्ज पादरी हैं, जो ऐसे विवाह बाईबल लेकर शरेआम पढ़ते हैं। परन्तु बाईबल के नये नियम में ‘कुरिन्थियों’ की पहली पत्री के छठे अध्याय की 18वीं आयत तथा ‘रोमियों’ के प्रथम अध्याय की 27वीं आयत में ऐसे लैंगिक व्यभिचार के विरुद्ध सुस्पष्ट चेतावनी दी गई है। आधुनिक विज्ञान भी यही कहता है कि पवित्र विवाह के बाहर किसी भी प्रकार के यौन संबंध असुरक्षित हैं, जो बाईबल की बातें ही पूर्णतया सत्य एवं वैज्ञानिक प्रमाणित होती हैं।
34. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के पहले अध्याय की 27वीं-28वीं आयत तथा नए नियम की इंजील ‘मरकुस’ के 10वें अध्याय की 6वीं से लेकर 8वीं आयत तक नर एवं नारी की प्रजनन प्रक्रिया का वर्णन पूर्णतया वैज्ञानिक ढंग से किया गया है। जबकि विज्ञान के विकास-सिद्धांत में इस बात का कहीं कोई वर्णन नहीं है कि नर एवं मादा के प्रजनन अंग एक ही समय में कैसे विकसित हुए थे। परन्तु बाईबल यह बात स्पष्ट रूप से बताती है कि प्रारंभ में परमेश्वर ने नर एवं नारी को मानवीय नसलों तथा नर एवं मादा को पशु-पक्षियों की नसलें आगे बढ़ाने के लिए बनाया था।
35. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘यिर्मयाह’ (जेरेमियाह) के 33वें अध्याय की 22वीं आयत में लिखा गया है कि आकाश में सितारों की संख्या इतनी है कि गिनी नहीं जा सकती अर्थात असंख्य है। जबकि एक आंख एक समय में केवल पांच हज़ार से कम सितारे ही देख सकती है। परन्तु परमेश्वर ने हज़ारों वर्ष पूर्व यह बता दिया था कि आकाश में असंख्य सितारे हैं। यह बात वैज्ञानिक तौर पर 17वीं शताब्दी ईसवी में जाकर गैलिलियो ने अपने टैलीस्कोप की सहायता से ज्ञात की थी। आज खगोल-शास्त्रियों के अनुमान अनुसार आकाश में 10 हज़ार अरब खरब सितारे हैं अर्थात 1 के आगे आप 25 शून्य लगा दें। कहने का भाव यही है कि सितारों की संख्या का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
36. सितारों की संख्या चाहे अनगिनत है, उन्हें आज तक कोई वैज्ञानिक गिन नहीं पाया परन्तु पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘यशायाह’ के 40वें अध्याय की 26वीं आयत में लिखा है कि मनुष्य चाहे सितारों की गिनती करने में अक्षम है परन्तु परमेश्वर को इन अरबों-खरबों सितारों की सही संख्या मालूम है तथा उसने इन सभी सितारों के अलग-अलग नाम भी रखे हुए हैं। ‘भजन संहिता’ के 147वें अध्याय की चौथी आयत में भी इसी ‘तथ्य’ का वर्णन किया गया है।
इसके अतिरिक्त बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के 22वें अध्याय की 17वीं आयत तथा ‘इब्रानियों’ की पुस्तक के 11वें अध्याय की 12वीं आयत में सितारों की संख्या की तुलना समुद्र के किनारों पर पड़ी रेत के कणों से की गई है।
37. जो लोग परमेश्वर को जानते हुए भी उसकी बड़ाई व महिमा नहीं करते, तो नैतिकता समाप्त हो जाती है, लोग भ्रष्ट व नीच तरीके अपनाने लगते हैं और हर तरफ़ अराजकता जैसे माहौल बन जाता है। यह सभी बातें पवित्र बाईबल के नए नियम की पुस्तक ‘रोमियो’ के पहले अध्याय की 20वीं आयत से अन्त अर्थात 32वीं आयत तक वर्णित की गईं हैं। आज विश्व में वैसे ही सब हो रहा है, जैसे कि बाईबल में दर्ज है। आज के विश्व में हर तरफ़ अधर्म, घृणा, नसलकुशी, भ्रष्टाचार, अशलील फ़िल्मों, नैतिकता से गिरी हुई बातों, दुष्टता, लोभ व झूठ का ही बोलबाला है।
38. नूह के समय जब परमेश्वर ने जानबूझ कर पृथ्वी के बड़े भाग पर बाढ़ का प्रकोप भेजा था, तब सभी प्राणी अर्थात मनुष्य, पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधे ख़त्म हो गए थे अर्थात उनका सर्वनाश हो गया था। इस आपदा का वर्णन पवित्र बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के छठे से नौंवें अध्याय में किया गया है। परन्तु इस तथ्य को विज्ञान नहीं मानता, जबकि बड़ी संख्या में पाए जाने वाले जीवाश्म (अंग्रेज़ी में ‘फ़ौसिल्ज़’ तथा पंजाबी में ‘पथराट’) इस बात का प्रमाण हैं परन्तु फिर भी इस तथ्य को वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त नहीं है। इस बात का वर्णन बाईबल के नए नियम में पतरस की दूसरी पत्री के तीसरे अध्याय की पांचवीं व छठी आयत में पहले ही बहुत स्पष्ट दे दिया गया था कि इस तथ्य को माना नहीं जाएगा - ‘‘वे तो जान-बूझ कर यह भूल गए कि परमेश्वर के वचन के द्वारा से आकाश प्राचीन काल से वर्तमान है और पृथ्वी भी जल में से बनी है और जल में स्थिर है। इन्हीं के द्वारा उस युग का जगत जल में डूब कर नाश हो गया।’’
39. विज्ञान इस बात को मानता है कि जब पौधे, मनुष्य एवं अन्य जीव-जन्तु जब मर जाएं और वे (उनके शरीर) कुछ जल्दी सड़ जाएं, वे तभी हज़ारों-लाखों वर्षों के बाद जीवाश्म (फ़ौसिल) का रूप ग्रहण करते हैं। पवित्र बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के सातवें अध्याय में बड़े विस्तारपूर्वक ढंग से यह बताया गया है कि कैसे पृथ्वी पर बाढ़ की आपदा आई थी और नूह एवं उसकी किश्ती में मौजूद प्राणियों के अतिरिक्त सभी मारे गए थे। पानी में मृत शरीर अधिक शीध्र सड़ने व फटने लगते हैं, वही जीवाश्म बने होंगे, जिन्हें आज पुरातत्त्व वैज्ञानिक विभिन्न स्थानों पर खुदाई के दौरान निकाल कर ऐतिहासिक तथ्यों को ज्ञात करते हैं।
40. इस समय हमारी पृथ्वी पर सात महाद्वीप - उत्तरी अमरीका, दक्षिण अमरीका, यूरोप, अफ्ऱीका, एशिया, आस्ट्रेलिया एवं अंटार्कटिक (दक्षिण ध्रुव) हैं। वैसे यूरोप के कुछ भागों में विद्यार्थियों को छः महाद्वीप का पाठ पढ़ाया जाता है क्योंकि वे उत्तरी अमेरिका एवं दक्षिण अमेरिका को एक ही महाद्वीप मानते हैं। परन्तु पवित्र बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के पहले अध्याय की 9वीं एवं 10वीं आयत में लिखा है कि प्रारंभ में पृथ्वी पर केवल एक की विशाल महाद्वीप था। अब बहुत से भू-वैज्ञानिक भी इसी बात से सहमत हैं और इस बात के बाकायदा प्रमाण भी मिले हैं कि प्रारंभ में हमारी धरती पर केवल एक ही ‘सुपर कॉन्टीनैंट’ हुआ करता था। इस प्रकार बाईबल की यह बात भी वैज्ञानिक सत्य पर परिपूर्ण उतरती है।
41. ‘उत्पत्ति’ की पुस्तक के 7वें अध्याय की 11वीं आयत में लिखा है कि महासागर में सभी सोते फूट निकले। आज का महासागरों का (ओशनिक) वैज्ञानिक अध्ययन भी इसी बात की ओर इशारा करता है कि पृथ्वी पर सात महाद्वीप, समुद्र में सोते फूटने के कारण ही बने। उस समय ऐसी उथल-पुथल हुए कि एक विशाल महाद्वीप की प्लेट्स तक टूट गईं और सात विभिन्न टुकड़ों में बंट गईं, जिन्हें आज हम सात महाद्वीप कहते हैं।
42. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘अय्यूब’ के 38वें अध्याय की 29वीं एवं 30 आयतों में पृथ्वी पर बर्फ़ युग होने संबंधी संकेत दिए गए हैं। विश्व में बाढ़ आने से पूर्व पृथ्वी का तापमान सब-ट्रॉपिकल (उपोषणकटिबंधीय) था। ‘अय्यूब’ के ही 37वें अध्याय की 10वीं आयत में लिखा गया है कि ‘ईश्वर के श्वास की फूंक से बर्फ़ पड़ती है, तब जलाशयों का पाट जम जाता है।’ विज्ञान भी इस बात को मानता है कि पृथ्वी पर एक समय बर्फ़ युग भी था, जब चारों ओर केवल बर्फ़ ही बर्फ़ थी। बाईबल भी बताती है कि नूह के समय पृथ्वी पर आई बाढ़ के पश्चात् बर्फ़ युग भी आया था।
43. आज का विज्ञान मां के गर्भ में मौजूद भ्रूण को भी पूर्ण मनुष्य मानता है। यदि किसी गर्भवती का किसी कारणवश देहांत हो जाता है, तो कानून भी उस घटना को दो लोगों की मृत्यु मानता है। बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘यिर्मयाह’ के प्रथम अध्याय की पांचवीं आयत में यह बात बड़े स्पष्ट रूप से समझाई गई है, जहां लिखा है - ‘‘गर्भ में रचने से पहले ही मैंने तुझ पर चित्त लगाया और उतपन्न होने से पहले ही मैंने तुझे अभिषेक किया; मैंने तुझे जातियों का भविष्यद्वक्ता ठहराया।’’ आज लोग गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या पर उतारू हो रहे हैं। इसके लिए भारतीय संविधान में दण्ड का प्रावधान भी अब कर दिया गया है। परन्तु बहुत से देशों में कन्या भ्रूण हत्या पर अब भी कोई प्रतिबन्ध नहीं है। पवित्र बाईबल के पुराने नियम की दूसरी पुस्तक ‘निर्गमन’ (अंग्रेज़ी में ‘एक्सोडस’ तथा उर्दू में ‘कूच’) के 21वें अध्याय की 22वीं तथा 23वीं आयत में लिखा गया है कि यदि कोई अजन्मे बच्चे की हत्या करता है अर्थात भ्रूण हत्या करता है, तो उसे मृत्यु दण्ड दिया जाना चाहिए।
44. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘अय्यूब’ (जॉब) के 10वें अध्याय की 8वीं से 12वीं आयत तथा इसी पुस्तक के 31वें अध्याय की 15वीं आयत में स्पष्ट लिखा है कि परमेश्वर मां की कोख में एक बच्चे को वैसे ही गूंथते व सृजित करते हैं, जैसे कोई स्वैटर बुना जाता है या कोई दर्ज़ी नया कपड़ा सिलता है। विज्ञान को यह बात बहुत देर के बाद जाकर मालूम हुई कि मां की कोख की दीवार के साथ भ्रूण कैसे जुड़ जाता है परन्तु बाईबल ने यही बात मानवता को हज़ारों वर्ष पूर्व बता दी थी।
45. फ्ऱैड्रिक मीशर ने पहली बार 1869 में डी.एन.ए. को पहचाना था परन्तु 1953 में जेम्स वाटसन एवं फ्ऱांसिस क्रिक जैसे वैज्ञानिकों ने प्राणियों के जीवन के जीनैटिक ब्लु-प्रिंट अर्थात डी.एन.ए. की सही अर्थों में खोज की थी। डी.एन.ए. वास्तव में सभी प्राणियों के शरीर में पाए जाने वाले डीऑक्सीरिबोन्युक्लीयक एसिड को कहते हैं। एक प्राणी/व्यक्ति के लगभग प्रत्येक सैल में एक जैसा ही डी.एन.ए. होता है। पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘भजन संहिता’ के 139वें अध्याय की 13वीं से 16वीं आयतों को यदि थोड़ा सा ध्यानपूर्वक पढ़ा जाए, तो यह डी.एन.ए. की ओर ही एक संकेत जान पड़ता है, जहां लिखा है - ‘‘13 मेरे मन का स्वामी तो तू है; तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा।
14 मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इस लिए कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं ओर मैं इसे भलीभांति जानता हूं।
15 जब मैं गुप्त में बनाया जाता और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था, तब मेरी हड्डियां तुझ से छिपी न थीं।
16 तेरी आंखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन-दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।’’
क्रमशः
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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