पवित्र बाईबल के वैज्ञानिक सत्य (16-30)
16. बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ (लेविटीकस) के 17वें अध्याय की 11वीं से 14वीं आयत तक ख़ून अर्थात रक्त को जीवन एवं स्वास्थ्य का स्रोत माना गया है, जिसका आज पूर्णतया वैज्ञानिक आधार है। परन्तु लगभग बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक यही माना जाता था कि कोई व्यक्ति यदि बीमार हो जाए, तो उसका ख़ून अशुद्ध हो जाता है और यदि उसके उस अशुद्ध रक्त को निकाल दिया जाए, तो वह ठीक हो जाता है। जबकि बाईबल में दर्ज यह बात 3500 से 4000 वर्ष पूर्व लिखी हुई है कि ख़ून ही जीवन है, तो उसे निकालने की नहीं, अपितु शरीर में रहने की आवश्यकता है। 1789 से लेकर 1797 तक अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति रहे जॉर्ज वाशिंग्टन का देहांत उनके शरीर में से बिना वजह रक्त निकाल लिए जाने के कारण हुआ था। उन्हें ठण्ड लग गई थी, क्योंकि व थोड़ी बीमारी के बावजूद बर्फ़बारी में घोड़े पर यात्रा करते रहे थे। उन्हें बीमारी के समय रक्त निकाल लेने पर आधारित उस समय की प्रचलित मैडिकल प्रणाली पर बहुत अधिक विश्वास था। परन्तु इसी ‘ग़लत’ प्रणाली के कारण ही उनका निधन 14 दिसम्बर, 1799 को 67 वर्ष की आयु में हो गया था।
परन्तु आज हमें मालूम है कि स्वस्थ रक्त शरीर की प्रत्येक कोशिका को शक्ति प्रदान करता है। बाईबल के अनुसार विज्ञान के यह बात समझने से बहुत पहले परमेश्वर ने घोषित किया था कि ‘शरीर का प्राण लोहू में रहता है...’ (‘लैव्यव्यवस्था’ 17ः11)।
17. वैज्ञानिकों ने अभी बीसवीं शताब्दी ईसवी में जाकर यह खोज की थी कि वायु अर्थात हवा की अपनी तरंगों (करेन्ट्स) का एक चक्र होता है, जिसे ‘जैट स्ट्रीम सर्कट’ कहते हैं परन्तु बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘सभोपदेशक’ (एकलीसियास्ट्स - जो तीन हज़ार वर्ष पहले लिखी गई थी) के पहले अध्याय की छठी आयत में येरूशलेम के राजा दाऊद की दूसरी संतान सुलेमान (जो यीशु मसीह से 970 वर्ष पूर्व से लेकर 931 वर्ष पूर्व तक येरूशलेम का बादशाह रहा) कहता है कि ‘‘वायु दक्खिन (दक्षिण) की ओर बहती है और उत्तर की ओर घूमती जाती है; वह घूमती और बहती रहती है और अपने चक्करों में लौट आती है।’’ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वैज्ञानिकों ने पायलटों व अन्य सैनिकों के अनुभवों से ‘जैट स्ट्रीम सर्कट’ संबंधी जानकारी प्राप्त की थी।
18. वैज्ञानिक हमारे ब्राह्माण्ड (युनीवर्स) को पांच मदों‘ - समय, स्थान, पदार्थ, शक्ति एवं गति - में समझते व समझाते हैं। और पवित्र बाईबल की तो शुरुआत ही ‘उत्पत्ति’ नामक पुस्तक (जिसे यीशु मसीह से 1450 वर्ष पूर्व लिखा गया था) से होती है, जिसके पहले अध्याय की प्रथम आयतों में ही इस वैज्ञानिक ब्राह्माण्ड सत्य को वर्णित किया गया है कि प्रारंभ (अर्थात समय) में परमेश्वर ने धरती एवं आकाश को बनाया -यह बात शक्ति को दर्शाती है और हमारी धरती अर्थात पृथ्वी एक पदार्थ (माद्दा अर्थात ‘मैटर’) है। और परमेश्वर की आत्मा जल के ऊपर जुम्बिश करती (मण्डलाती) थी। यह बात गति को दर्शाती है और यही ब्राह्मण्ड है।
19. पवित्र बाईबल के नये नियम की इंजील यूहन्ना के प्रथम अध्याय की तीसरी आयत में लिखा है कि सभी चीज़ें परमेश्वर ने बनाई हैं - डायनोसॉर भी। डायनोसॉर एक विशाल प्राणी था, जिसे वैज्ञानिक यह मानते हैं कि ऐसे प्राणी पृथ्वी पर लाखों वर्ष पूर्व हुआ करते थे परन्तु फिर उनकी नस्ल कुछ प्राकृतिक आपदाओं के कारण समाप्त हो गई थी। आख़िर ये डायनोसॉर नामक विशाल प्राणी लुप्त क्यों हो गया? बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘अय्यूब’ (जॉब) के 40वें अध्याय की 15 से 24 आयत में इसका उत्तर ढूँढा जा सकता है। इन आयतों में यहोवा (परमेश्वर) एक विशाल प्राणी/जानवर के बारे में बात कर रहे हैं। उस प्राणी के लिए अंग्रेज़ी की बाईबल में ‘बीहेमौथ’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ ‘अत्यंत विशाल’ होता है। हिन्दी की बाईबल में इसे ‘जलगज’ कहा गया है। कुछ टिप्पणीकार इसे हिप्पोपोटैमस मानते हैं परन्तु उसकी दुम किसी वृक्ष की तरह नहीं होती, जैसे कि बाईबल की इन आयतों में वर्णित है। हिप्पो की दुम तो बहुत छोटी टहनी जैसी होती है। परमेश्वर ने इस विशाल जीव को अंत समाप्त होने के लिए ही बनाया था, इस बात का संकेत परमेश्वर ने 19वीं आयत में दिया है कि ‘‘जो उसका (विशाल जीव का) सृजनहारा हो, उसके निकट तलवार लेकर आए।’’ जिस परमेश्वर ने उसे बनाया था, उसी ने उसे समाप्त भी कर दिया।
20. पवित्र बाईबल हमें बताती है कि परमेश्वर ने पृथ्वी पर जीवन विभिन्न प्रजातियों के आधार पर बनाया है। ‘उत्पत्ति’ की पुस्तक के प्रथम अध्याय की 24वीं आयत में ‘प्रजाति’ के लिए हिन्दी में ‘जाति’ तथा अंग्रेज़ी में शब्द ‘काईण्ड’ का प्रयोग किया गया है। वैज्ञानिक तौर पर भी यह बात पूर्णतया सत्य है। विज्ञान के अनुसार कुछ ऐसी समानांतर जीनैटिक सीमाएं होती हैं, जिसे जीवन परिवर्तित नहीं कर सकता। जीवन अपनी प्रजाति (स्पीशी) के अंतर्गत ही चलता है - जैसे घोड़ों से आगे घोड़े, हाथियों से हाथी तथा फूलों से आगे फूल ही पैदा होंगे - और कुछ नहीं। हम ऐसा कभी कुछ नहीं देखते कि किसी घोड़ी ने किसी हाथी को जन्म दिया हो। उनकी अपनी जीव-वैज्ञानिक व प्राकृतिक सीमाएं हैं।
21. कुलीन, भद्र व अच्छे व्यवहार को पवित्र बाईबल सदा मान्यता देती है। बाईबल के नए नियम की इंजील ‘यूहन्ना’ के 15वें अध्याय की 13वीं आयत में ‘मित्रों के लिए जान देने वाले को बड़ा’ अर्थात महान् माना गया है। ‘रोमियों’ की पत्री के 5वें अध्याय की 7वीं व 8वीं आयतों में भी भले लोगों के लिए जान तक देने की बात की गई है; जैसे यीशु मसीह ने भी हम जैसे आम लोगों के लिए अपनी जान दी थी। इतिहास भी इस बात का गवाह है और यह तथ्य भी है कि अनगिनत लोगों ने किन्हीं अन्य लोगों के लिए अपनी जानें जोखिम में डाली हैं तथा अपने बलिदान दिए हैं। जबकि यह बात चार्ल्स डारविन के ‘सर्वाईवल ऑफ़ फ़िटैस्ट’ (उपयुक्त व योग्यतम व्यक्ति की जी पाएंगे) के सिद्धांत से विपरीत है।
22. अब तक विश्व का कोई भी वैज्ञानिक एवं दार्शनिक इस प्रश्न का कोई ठोस उत्तर नहीं दे पाया है कि पहले मुर्ग़ी आई कि अण्डा? कई शताब्दियों से यह प्रश्न कभी मज़ाक में तो कभी गंभीरतापूर्वक पूछा जा रहा है। इस दुबिधा का उत्तर पवित्र बाईबल के पहले ही अध्याय की 20वीं से लेकर 22वीं आयत में दिया गया है। बाईबल स्पष्ट बताती है कि परमेश्वर ने पहले पक्षी बनाए और उन्हें प्रजनन की शक्ति भी दी। इस प्रकार पहले मुर्ग़ी आई, फिर उसके बाद अण्डा। परन्तु डारविन एवं अन्य वैज्ञानिकों का विकास का सिद्वांत इस प्रश्न का कोई उत्तर देने में पूर्णतया अक्षम है।
23. ‘‘पहले मुर्ग़ी या अण्डा’’ जैसा ही एक अन्य प्रश्न और भी है कि ‘पहले प्रोटीन आए या डी.एन.ए.’। विकास के वैज्ञानिक सिद्धांत को इसका उत्तर भी आज तक नहीं मिल पाया है। मुर्ग़ी में प्रोटीन होते हैं। प्रत्येक प्रोटीन का कोड डी.एन.ए./आर.एन.ए. सिस्टम में होता है। परन्तु डी.एन.ए. को तैयार करने के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इसी लिए आज तक वैज्ञानिक स्तर पर यह ज्ञात नहीं हो पाया कि आख़िर प्रोटीन पहले आए या डी.एन.ए.? पवित्र बाईबल की अन्तिम पुस्तक ‘प्रकाशित-वाक्य’ (रीवीलेशन) के चौथे अध्याय की 11वीं आयत की यदि विस्तृत व्याख्या की जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि प्रोटीन एवं डी.एन.ए. दोनों एक साथ आए थे।
24. हमारे शरीर पृथ्वी की धूल के कणों (मिट्टी) से बने हैं। बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के दूसरे अध्याय की 7वीं आयत तथा तीसरे अध्याय की 19वीं आयत में स्पष्ट बताया गया है कि परमेश्वर ने मनुष्य को मिट्टी से बनाया और कहा कि वह अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा और अन्त में मिट्टी में मिल जाया करेगा। वैज्ञानिकों ने भी बाईबल में दर्ज इस तथ्य के हज़ारों वर्षों के पश्चात् यह ज्ञात किया कि मानव शरीर 28 बेस एवं ट्रेस तत्वों (एलीमैन्ट्स) से बना हुआ है - और ये सभी तत्त्व मिट्टी में पाए जाते हैं।
25. पवित्र बाईबल के नए नियम की इंजील ‘लूका’ के 17वें अध्याय की 34वीं से लेकर 36वीं आयत तक यीशु मसीह के दूसरी बार आगमन का वर्णन है कि कुछ खाट पर सो रहे होंगे एवं कुछ खेत में कार्यरत होंगे। उन्हें उठा लिया जाएगा। यह लिखित इस बात का एक वैज्ञानिक प्रमाण है कि पृथ्वी क्योंकि अपनी धुरी पर घूमती है इसी लिए आधी पृथ्वी पर सदा दिन रहता है तथा आधी पर रात्रि। इसी लिए बार्इ्रबल में यह बात दर्ज है कि कुछ लोग सो रहे होंगे और काम पर होंगे। पृथ्वी के ऐसे अपनी धुरी पर घूमने व दिन-रात की प्रणाली से संबंधित बातें विज्ञान ने बहुत बाद में ज्ञात की थीं, जबकि बाईबल में यह हज़ारों वर्षों से दर्ज हैं।
26. फ़र्स्ट लॉअ ऑफ़ थर्मोडायनामिक्स (ऊष्मप्रवैगिकी अथवा ऊष्मागतिकी) का सिद्धांत बाईबल की पहली पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के दूसरे अध्याय की प्रथम दो आयतों में मिल जाता है। फ़र्स्ट लॉअ हमें यह बताता है कि ब्राह्माण्ड में ऊर्जा की कुल मात्रा एवं पदार्थ या माद्दा (मैटर) स्थिर है। ऊर्जा अथवा मैटर के एक प्रकार को किसी अन्य रूप में परिवर्तित किया जा सकता है परन्तु उसकी कुल मात्रा एकसमान रहती है। इसी प्रकार सृजन समाप्त होता है। बिल्कुल ऐसे ही परमेश्वर ने भी पृथ्वी के सृजन के समय ऐसे ही कहा था, जैसे कि उत्पत्ति की पुस्तक में दर्ज है।
27. 1346 ई. सन् से लेकर 1353 तक यूरोप एवं एशिया के कुछ देशों मे महामारियों से एक अनुमान के अनुसार 20 करोड़ से भी अधिक लोग मारे गए थे। उसे विश्व-इतिहास में ‘ब्लैक डैथ’ के नाम से आज भी याद किया जाता है। लोग किन बीमारियों से मरते थे, यह तो पक्के तौर पर कभी मालूम नहीं हो पाया परन्तु ऐसी महामारियों को अक्सर ‘प्लेग’ ही कहा जाता था। भारत सहित विश्व के अन्य देशों में भी ऐसी महामारियां फैलती ही रही हैं। लोग तब हैरान हुआ करते थे कि आख़िर रोगी इतनी बड़ी संख्या में सामूहिक रूप से क्यों मरते जा रहे हैं तथा अधिकतर तो ऐसी बातों को ‘परमेश्वर की इच्छा’ कह कर चुप कर जाया करते थे या अन्य ऐसी महामारियों को ‘दुष्ट आत्माओं के कारण हुईं’ बता कर लोगों को गुमराह करके धन ऐंठते रहते थे। परन्तु यदि पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ (लेविटीकस) के 13वें अध्याय में दी गईं परमेश्वर की बातों का ध्यान रखा जाता, जो वास्तव में परमेश्वर के मैडिकल निर्देश ही हैं, तो करोड़ों लोग एक साथ मरने से तो बच ही सकते थे। ‘लैवव्यव्यवस्था’ के इस अध्याय में कुष्ट-रोगी की देखभाल के विस्तृत निर्देश दर्ज हैं। दरअसल उस समय बीमार लोगों को एक साथ एक ही कक्ष अथवा हॉल में पास-पास ही लिटाया जाता था, जिससे एक-दूसरे से संक्रमण फैलता रहता था और लोग बड़ी संख्या में मरते रहते थे। परन्तु यदि बाईबल में दर्ज उन मैडिकल निर्देशों के अनुसार चला जाता, तो ऐसी महामारियां कभी विश्व में फैल ही नहीं सकती थीं। अतः ‘लैव्यव्यवस्था’ के 13वें अध्याय को विश्व में आरोग्यता (सैनिटेशन) के नियमों का पहला मॉडल कहा जा सकता है, जिसका पूर्णतया वैज्ञानिक आधार है। इससे पहले का ऐसा कोई आधुनिक मैडिकल मॉडल कहीं नहीं मिलता। ‘लैव्यव्यवस्था’ पुस्तक यीशु मसीह से 1445 से 1444 वर्ष पूर्व अर्थात आज से 3461 वर्ष पूर्व मूसा द्वारा लिखी गई थी।
28. विज्ञान के अनुसार हमारे ब्रह्माण्ड को समय, आकाश (स्पेस), माद्दे (मैटर) तथा ऊर्जा द्वारा प्रकट किया जाता है। बाईबल के पुराने नियम की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के पहले ही अध्याय की पहली तीन आयतों में सृष्टि के सृजन का वर्णन है। प्रथम अधयाय से हमें मालूम होता है कि प्रारंभ (समय) में परमेश्वर ने आकाश (स्पेस) व पृथ्वी (माद्दा) का सृजन किया। परमेश्वर ने तब कहा कि ‘‘उजियाला (ऊर्जा) हो, तो उजियाला हो गया’’ - इस सबका आधार पूर्णतया वैज्ञानिक है।
29. ब्राह्माण्ड का भी अपना एक प्रारंभ था (उत्पत्ति 1ः1, इब्रानियों 1ः10-12)। अल्बर्ट आईन्सटाईन ने 20वीं शताब्दी के प्रथम दशक से इस संबंधी जो वैज्ञानिक अध्ययन प्रारंभ किया था वह आज भी जारी है। बाईबल की तरह विज्ञान भी यही मानता है कि ब्राह्माण्ड का भी एक प्रारंभ था; जबकि यीशु मसीह से 1,400 वर्ष पूर्व, जिस समय बाईबल का पुराना नियम लिखा गया था, तब विद्वानों में यही मान्यता प्रचलित थी कि ब्राह्माण्ड तो अविनाशी एवं अनादि है अर्थात इसका न तो कोई प्रारंभ है और न ही कोई अन्त। परन्तु विज्ञान ने इस बात को ग़लत सिद्ध किया है और बाईबल में लिखित तथ्य सही सिद्ध हुआ है।
30. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘यशायाह’ के 40वें अध्याय की 22वीं आयत में लिखा गया है कि पृथ्वी का अपना एक आकाशमण्डल (स्फीयर) है। जबकि बहुत समय तक विद्वान पृथ्वी को चपटी मानते रहे थे परन्तु बाईबल ने हज़ारों वर्ष यह बात बता दी थी कि पृथ्वी के घेरे के ऊपर आकाशमण्डल बिराजमान है और विज्ञान ने आज इसी बात को सही सिद्ध कर दिया है।
क्रमशः
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]