Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

पवित्र बाईबल के वैज्ञानिक सत्य (46-60)



46. पवित्र बाईबल के नए नियम की पुस्तक ‘प्रेरितों के काम’ के 17वें अध्याय की 26वीं आयत तथा ‘उत्पत्ति’ के पांचवें अध्याय में लिखा है कि परमेश्वर ने पृथ्वी की सभी जातियों के लोगों को एक ही मूल (ख़ून) से बनाया है। अब वैज्ञानिक अनुसंधान भी इस बात को सत्य स्वीकार कर चुके हैं। 1995 में विश्व के अलग-अलग स्थानों पर रहने वाले विभिन्न नसलों के 38 पुरुषों के ‘वाई’ क्रोमोज़ोम्स का अध्ययन किया गया था; जिससे यही निष्कर्ष निकाला गया था कि वे सभी एक ही जीन-पूल से हैं। इससे सिद्ध होता है कि संपूर्ण मानव जाति एक ही व्यक्ति आदम की संतान है, जैसे कि बाईबल में दर्ज है।


47. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के 11वें अध्याय में विश्व की प्रमुख भाषाओं का स्रोत बताया गया है। वहां पर यही लिखा गया है कि एक समय में सारी पृथ्वी पर एक ही भाषा व बोली हुआ करती थी। बेबल (हिन्दी में जिसका अनुवाद ‘बाबुल’ किया गया है और यह शब्द बेबीलोन नगर से निकला है, जो प्राचीन मैसोपोटामिया में टिगरिस एवं यूफ़ारेट्स नदियों के मध्य की उपजाऊ भूमि पर स्थित हुआ करता था। आज कल इसका नाम हिल्लाह है और यह इराक के बाबिल प्रशासनिक क्षेत्र में स्थित है) में जब बग़ावत हो गई थी, तो परमेश्वर ने लोगों को तित्तर-बित्तर कर दिया था और उन्हीं लोगों के गुट बाद में विभिन्न भाषाओं का प्रयोग करने लगे। वे सभी एक ही भाषा बोलते थे। मानवीय विकास का वैज्ञानिक सिद्धांत भी मनुष्यों का मूल स्रोत तो एक ही बतलाता है, परन्तु विज्ञान आज तक यह मालूम नहीं कर पाया कि आख़िर विश्व की हज़ारों भाषाओं का स्रोत क्या है। बाईबल पृथ्वी पर प्रारंभ में एक ही भाषा होने का स्पष्ट दस्तावेज़ी प्रमाण देती है।


48. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के 11वें अध्याय में पूर्णतया वैज्ञानिक ढंग से यह बताया गया है कि पृथ्वी पर विभिन्न नसलें कैसे उत्पन्न हुईं थीं। बेबल के पश्चात् नूह के वंशज समस्त संसार में फैले, उन्होंने अपने इर्द-गिर्द के वातावरण तथा जीनैटिक परिवर्तनों के आधार पर अपने विभिन्न भाषा-समूह एवं अपनी अलग पहचानें विकसित कीं। जैसे समय के साथ जो लोग भू-मध्य रेखा के अधिक समीप अर्थात सूर्य की सीधी किरणों में रहा करते थे, उनका रंग कुछ काला होने लगा और पृथ्वी के ऊपर व नीचे के भागों के लोग गोरे रहे। ऐसा उपयुक्त उत्तर केवल बाईबल की पुस्तक ‘उत्पत्ति’ में ही मिलता है।


49. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘यहेजकेल’ (एजि़्कयल) के 47वें अध्याय की 12वीं आयत तथा नए नियम की अन्तिम पुस्तक ‘प्रकाशित-वाक्य’ (रीवीलेशन) के 22वें अध्याय की दूसरी आयत में लिखा गया है कि परमेश्वर ने वृक्षों के पत्तों को औषधि के रूप में दिया है। प्राचीन सभ्यताओं में बहुत सी जड़ी-बूटियों को औषधियों के रूप में प्रयोग करने का प्रचलन रहा है। आज भी आधुनिक मैडिसन ने यही बात सिद्ध की है, जो बाईबल में हज़ारों वर्ष पूर्व से लिखित व दर्ज है कि पेड़-पौधों में औषधि-गुण पाए जाते हैं।


50. पवित्र बाईबल की तृतीय पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ के 11वें अध्याय की 9वीं से 12वीं आयत तक में मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए खाने-पीने के कुछ नियम दिए गए हैं, जो पूर्णतया वैज्ञानिक हैं। यहां पर लिखा है कि हमें समुद्र के ऐसे जीवों को नहीं खाना चाहिए, जिनके ‘फ़िन्स’ अर्थात छोटे पंख और पपड़ी न हों। आज विज्ञान ने भी इस बात को सिद्ध कर दिया है कि यदि हम समुद्र या नदियों के जल में रहने वाले किन्हीं ऐसे जीवों को खाते हैं कि जिनके छोटे पंख और पपड़ी न हों, तो उनसे विभिन्न प्रकार के रोग लगने का भय रहता है।


51. पवित्र बाईबल की पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ के 11वें अध्याय की 13वीं से 19वीं आयत तक में बहुत स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि जो पक्षी अन्य पक्षियों या जानवरों का शिकार करते हैं उन्हें न खाया जाए। आज विज्ञान द्वारा भी यह सिद्ध हो गया है कि जो पक्षी गला-सड़ा मास खाते हैं, उन्हें खाने से विभिन्न प्रकार के घातक रोग लग सकते हैं।


52. पवित्र बाईबल की पांचवीं पुस्तक ‘व्यवस्था-विवरण’ के 14वें अध्याय की आठवीं आयत में सूअर को खाने से मना किया गया है। अब हम सब जानते हैं कि स्वाईन फ़्लू जैसा रोग एक महामारी बन कर एक साथ अनेकों लोगों की जान ले सकता है। आज विज्ञान के माध्यम से भी हमें यह ज्ञात हो चुका है कि सूअर का मांस खाने से ‘ट्रिचीनोसिस’ नामक परजीवी (पैराज़ाईट) की छूत अर्थात इन्फ़ैक्शन लग सकती है। बाईबल में 3,000 वर्ष पूर्व ही इस सत्य को लिख दिया गया था।


53. पवित्र बाईबल के नए नियम की पुस्तक ‘रोमियो’ के प्रथम अध्याय की 25वीं आयत में दो हज़ार वर्ष पूर्व यह लिख दिया था, जैसे कि आज-कल हो रहा है कि लोग सृष्टिकर्ता को तो भूलते जा रहे हैं परन्तु वे सृष्टि का अधिक सम्मान करने लगे हैं। आज प्रकृति को ‘मां’ (मदर-नेचर) कह कर सम्माान दिया जाता है तथा मानवता को बचाने हेतु उसे संभाल कर रखने की बातें की जाती हैं। अतः पर्यावरण की रक्षा का एक युग आएगा, इसका अनुमान पहले ही लगा लिया गया था, जो कि बाईबल की इस आयत में दर्ज है।


54. आज हम जब ब्रह्माण्ड की बात करते हैं, तो ब्लैक होल्स एवं डार्क मैटर (काला माद्दा या पदार्थ) की बात अवश्य करते हैं। ब्रह्माण्ड-विज्ञानी (कॉस्मौलोजिस्ट) अब कितने ही वैज्ञानिक अनुसंधानों के पश्चात् इसी बात को सत्य मानते हैं कि जिस ब्रह्माण्ड को हम जानते हैं, वह 98 प्रतिशत काले पदार्थ, काली ऊर्जा से ही बना हुआ है तथा उसमें असंख्य ब्लैक होल्स हैं। ब्लैक होल वास्तव में एक ऐसा गुरुत्त्वाकर्षण क्षेत्र होता है कि जिसमें हमारी पृथ्वी जैसे अनगिनत तारे चले जाएं, तो भी कहीं उनका पता न चले। ब्लैक होल में प्रकाश भी काम नहीं करता। जब हम ब्रह्माण्ड में आगे बढ़ते हैं, तो उसमें किसी रैडिएशन को नापा नहीं जा सकता और इस प्रकार वहां पर पूर्णतया अन्धेरा ही है। पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘यशायाह’ के 50वें अध्याय की तीसरी आयत, नए नियम की पुस्तकें ‘मत्ती ’ (25वें अध्याय की 30वीं आयत) तथा ‘यहूदा’ (पहले अध्याय की 13वीं आयत) में ‘बाहरी अन्धेरे’ (आऊटर डार्कनैस) एवं ‘सदा के लिए अन्धेरे’ के वर्णन मौजूद हैं, जो स्पष्ट रूप से ब्रह्माण्ड के ब्लैक होल्स एवं डार्क मैटर की ओर इशारा करते हैं।


55. थर्मोडायनामिक्स (एन्ट्रौपी) का द्वितीय सिद्धांत (सैकण्ड लॉअ ऑफ़ थर्मोडायनामिक्स) भी पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘भजन संहिता के 102वें अध्याय की 25-26’ आयतों में दर्ज है। यह वैज्ञानिक लॉअ यह बताता है कि ब्राह्माण्ड में प्रत्येक वस्तु नीचे जा रही है, ख़राब हो रही है और एक व्यवस्था में धीरे-धीरे निरंतर कम होती जा रही है। एन्ट्रौपी (अव्यवस्था) उस समय आई, जब मनुष्य ने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह (बग़ावत) कर दिया और उसी के कारण लानतें/मुसीबतें भी आईं (उत्पत्ति 3ः17, रोमियों 8ः20-22)। प्राचीन काल में लोग यही मानते रहे थे कि ब्राह्मण्ड अपरिवर्तनीय है परन्तु आधुनिक विज्ञान इस बात की पुष्टि करता है कि ब्राह्मण्ड एक कपड़े की भांति निरंतर पुराना होता रहता है। पवित्र बाईबल के नए नियम में इब्रानियों की पत्री के पहले अध्याय की 11वीं आयत में यही लिखा है कि ‘‘वे तो नाश हो जाएंगे; परन्तु तू बना रहेगाः और वे सब वस्त्र की नाईं पुराने हो जाएंगे।’’ वैसे विकास का वैज्ञानिक सिद्धांत इस बात को नहीं मानता।


56. शंकालू प्रकृति के विद्वान प्रायः पिछली कई शताब्दियों से यह बहस करते रहे हैं कि पृथ्वी पर पैदा हुए आदम और हव्वा के पहले बच्चे कैन की कोई पत्नी थी या नहीं यदि थी, तो वह कहां से आई थी। इन शंकालू लोगों की दलील है कि जब कोई लड़की ही उपलब्ध नहीं थी, तो उसने विवाह किस से किया परन्तु बाईबल हमें स्पष्ट रूप से बताती है कि आदम और हव्वा के और भी पुत्र एवं पुत्रियां पैदा हुए थे (उत्पत्ति 5ः4)। अतः कैन ने अपनी बहन से शादी की थी।


57. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ के 18वें अध्याय की छठी आयत से आगे विस्तृत रूप से यह वर्णन किया गया है कि कभी सगे, पारिवारिक एवं निकटतम रिश्तों या संबंधों में यौन संबंध स्थापित नहीं किए जाने चाहिएं। प्राचीन काल में, विशेषतया यीशु मसीह से 1500 वर्ष पूर्व तक - जब बाईबल लिखी जा रही थी, अपने कुछ सगे या सौतेले भाई-बहनों के विवाह करने की प्रथाएं प्रचलित थीं। इसी लिए बाईबल में ऐसे यौन संबंध स्थापित न करने की बात की गई है आज तो विज्ञान ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि कुछ जीनैटिक कारणों के चलते निकटतम सगे संबंधियों में यौन संबंध कभी स्थापित नहीं होने चाहिएं; क्योंकि इससे जीन की जो भी गड़बड़ियां या अशुद्धियां होती हैं, वे संचित (क्युमूलेटिव) प्रभाव से अगली पीढ़ी या संतान में भी आ जाती हैं। विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि मनुष्य में या किसी परिवार में किसी न किसी प्रकार के नुक्सदार जीन अवश्य होते हैं, यदि उसी परिवार के सगे संबंधी विवाह कर लेते हैं, तो उनके वे नुक्सदार जीन उनकी संतान में अवश्य चले जाएंगे। विज्ञान ने तो यह खोज बहुत बाद में की परन्तु बाईबल में यह बात साढ़े तीन वर्ष पहले स्पष्ट कर दी गई थी। बाईबल में दर्ज कथा के अनुसार पृथ्वी के पहले बच्चे कैन ने जब अपनी सगी बहन से विवाह रचाया था, तो ऐसा कोई नुक्स आगामी पीढ़ी में जाने की कोई संभावना नहीं थी, क्योंकि तब उन दोनों का जीनैटिक पूल पूर्णतया विशुद्ध था।


58. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ के 19वें अध्याय की 19वीं तथा ‘व्यव्था-विवरण’ के 22वें अध्याय की 9वीं आयत में विभिन्न बीजों के जीन्स को मिलाने से मना किया गया है। बाइ्रबल हमें बताती है कि बीजों को कभी मिलाना नहीं चाहिए क्योंकि इससे उत्पन्न होने वाली फ़सल घटिया किस्म की व ख़तरानक हो सकती है। अब विज्ञान ने भी अनेक अनुसंधानों के बाद इस बात को मानना प्रारंभ कर दिया है कि जीनैटिक ढंग से तैयार की गई फसलें नुक्सानदेह हो सकती हैं।


59. पवित्र बाईबल में अनेक स्थानों पर; जैसे कि ‘सभोपदेशक’ के पहले अध्याय की 7वीं आयत, ‘यिर्मयाह’ के 10वें अध्याय की 13वीं आयत, ‘आमोस’ के 9वें अध्याय की छठी आयत में जल-विज्ञान चक्र (हाईड्रौलोजी) का वर्णन बाख़ूबी किया गया है। चार हज़ार वर्ष पूर्व ‘अय्यूब’ के 36वें अध्याय की 27वीं एवं 28वीं आयत में यह लिख दिया गया था कि यहोवा अर्थात परमेश्वर ‘‘...तो जल की बूंदें ऊपर को खींच लेता है, वे कोहरे से मींह बन कर टपकती हैं, वे ऊँचे-ऊँचे बादल उंडेलते हैं और मनुष्यों के ऊपर बहुतायत से बरसाते हैं।’’ प्राचीन युग में लोग समुद्रों को देखकर यह समझ नहीं पाते थे कि आख़िर उनमें अनेक नदियों का जल आकर मिलता है और फिर वर्षा भी होती है, फिर उसका जल-स्तर कभी ऊपर क्यों नहीं उठता। उसके लिए उन्होंने कुछ अस्पष्ट प्रकार के सिद्धांत विकसित कर रखे थे, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। परन्तु अब वैज्ञानिकों ने यह ज्ञात कर लिया है कि जल-विज्ञान के अनुसार वाष्पीकरण होने के कारण बड़ी मात्रा में जल आकाश में बादल बन जाता है, जबकि बाईबल में यह बात पहले से ही दर्ज थी।


60. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘भजन संहिता’ (जिसके भजन यीशु मसीह से लगभग 1100 वर्ष पूर्व से लेकर 400 वर्ष पूर्व के बीच लिखे गए थे) के 19वें अध्याय की छठी आयत में लिखा है कि ‘सूर्य आकाश के एक छोर से निकलता है और वह दूसरे छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सब को पहुंचती है।’ इस आयत को पढ़ने से आम व्यक्ति को यही बात समझ में आती है कि सूर्य चलता है और पृथ्वी खड़ी है। परन्तु जब कुछ सौ वर्ष पूर्व वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि सूर्य तो अपने स्थान पर खड़ा है, तो एक बार तो सभी को यही लगने लगा कि बाईबल में लिखी बात ग़लत है परन्तु अब आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि सूर्य भी ब्राह्मण्ड में 6 लाख मील अर्थात 8 लाख 28 हज़ार किलोमीटर प्रति घन्टा की गति से यात्रा कर रहा है। सूर्य अपने संपूर्ण परिवार अर्थात सौर-मण्डल के साथ आकाश-गंगा (मिल्की वे गैलैक्सी) के चक्र लगा रहा है। पृथ्वी सहित आठ ग्रह (बुध अर्थात मर्करी, शुक्र अर्थात वीनस, मंगल अर्थात मार्स, बृहस्पति अर्थात जुपिटर, शनि अर्थात सैटर्न, युरेनस एवं नैपच्यून) हैं, जो सूर्य के साथ मिल कर एक सौर-मण्डल बनाते हैं। चाहे संपूर्ण सौर-मण्डल इतनी तेज़ गति से यात्रा कर रहा है परन्तु उसे संपूर्ण आकाश-गंगा का एक चक्र लगाने में 23 करोड़ वर्ष लगते हैं। आकाश-गंगा तो ब्रह्माण्ड का केवल एक भाग है। सूर्य स्थिर नहीं है, अपितु अपने पूरे सर्कट के साथ चल रहा है, यह तथ्य बाईबल में 3,000 वर्ष पूर्व दर्ज कर दिया गया था। अतः विज्ञान के अनुसंधान द्वारा बाईबल की बात ही सत्य सिद्ध हुई।


क्रमशः


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें
-- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]

 
visitor counter
Role of Christians in Indian Freedom Movement


DESIGNED BY: FREE CSS TEMPLATES