Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

पवित्र बाईबल के वैज्ञानिक सत्य (1-15)



1. आधुनिक विज्ञान के आगमन से पूर्व भारत सहित विश्व के विभिन्न भागों में यही विश्वास किया जाता था कि हमारी पृथ्वी एक बैल के सींग (देश के हिसाब से यह जानवर बदल जाता था, लेकिन भारत में बैल की कथा प्रचलित थी) पर टिकी हुई है और वह बैल जब पृथ्वी को अपने एक सींग से दूसरे सींग पर टिकाता है, तो भूचाल आ जाता है। परन्तु बाईबल में आज से 3,500 वर्ष पूर्व ‘अय्यूब’ (अंग्रेज़ी में जिसे ‘जॉब’ कहते हैं) नामक पुस्तक के 26वें अध्याय की 7वीं आयत में लिख दिया गया था कि ‘‘वह...बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है’’ - अर्थात ‘पृथ्वी ब्रह्माण्ड में तैर रही है।’ और आज वैज्ञानिक तौर पर भी यही सत्य है।


2. विज्ञान ने बहुत बाद में आधुनिक युग में आकर यह ज्ञात किया कि जो भी हम देखते हैं कि वह अदृश्य अणुओं अथवा परमाणुओं से बना हुआ है। परन्तु बाईबल के नए नियम में दर्ज ‘इब्रानियों’ की पत्री के 13वें अध्याय की तीसरी आयत में 2,000 वर्ष पूर्व ही यह बहुत स्पष्ट लिख दिया गया था कि ‘‘...जो वस्तुएं हम देखते हैं, वे उनसे नहीं बनी हुईं, जैसे वे दिखाई देती हैं।’’


3. मैडिकल साइंस ने 1905 में पॉल मोराविट्ज़ (चाहे उनसे पहले भी कुछ वैज्ञानिकों ने जैसे कि 1627 में मरक्युरियालिस तथा 1770 में विलियम ह्यूसन ने कुछ प्रयत्न किए थे) द्वारा यह खोज की गई थी कि नवजात शिशु के शरीर में आठवें दिन ‘रक्त के जमने’ (ब्लड-क्लॉटिंग) की प्रक्रिया अपने शिख़र पर होती है और फिर वह कम हो जाती है। बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ के 12वें अध्याय की तीसरी आयत में लिखा गया है कि लड़के का ख़तना अवश्य ही उसके जन्म के आठवें दिन किया जाए (ताकि उसका रक्त कम मात्रा में बहे)। बाईबल की यह पुस्तक यीशु मसीह से भी लगभग 1200 से 1500 वर्ष पूर्व लिखी गई थी।


4. बाईबल की पुस्तक यशायाह के 40वें अध्याय की 22वीं आयत में स्पष्ट लिखा है कि ‘...वह धरती के घेरे (सर्कल -गोलाकार) पर बैठता है।’ बाईबल में कहीं पर ऐसे नहीं लिखा कि हमारी पृथ्वी चपटी है, जैसा कि आधुनिक विज्ञान के विकसित होने के पूर्व तक संपूर्ण विश्व में माना व समझा जाता रहा था। क्रिस्टोफ़र कोलम्बस (1451-20 मई, 1506) ने बाईबल की इसी आयत को पढ़ कर तथा बाईबल की ही एक अन्य पुस्तक ‘नीति वचन’ के तीसरे अध्याय की छठी आयत (जिस में लिखा है कि - उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा) से प्रेरणा लेकर विश्व की समुद्री यात्राएं प्रारंभ की थीं तथा 1492 में अमेरिकी उप-महाद्वीप की खोज कर डाली थी। वास्तव में वह ढूंढ तो भारत को रहा था, परन्तु उसे मिल गया आज का अमेरिका, जो उस समय पूर्णतया सुनसान व वीरान पड़ा था। यहां पर केवल कबाईली रहते थे, उन्हें देखकर कोलम्बस ने सोचा कि शायद वह ‘इण्डिया के इण्डियन्ज़’ अर्थात ‘भारत के भारतियों’ में पहुंच गया था, इसी लिए उसने उन्हें ‘इण्डियन्ज़’ कहा था।‘’ परन्तु बाद में सच्चाई ज्ञात होने पर अमेरिकी उप-महाद्वीप के उन कबाईली लोगों को ‘रैड इण्डियन्ज़’ कहा जाने लगा। भारतियों को वे ‘ईस्ट इण्डियन्ज़’ या ‘साऊथ एशियन्ज़’ कहते हैं।


5. बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘अय्यूब’ (जिसे यीशु मसीह के आगमन से भी 1,500 वर्ष पूर्व लिखी माना जाता है) के 38वें अध्याय की 35वीं आयत में लिखा है कि ‘‘क्या तुम बिजली (प्रकाश तरंगों या प्रकाश की लहरों) को भेज कर उन्हें यह कह सकते हो कि वे जाएं और तुम से कहें कि हम यहां पर हैं?’’ देखने में शायद इस आयत का कोई अधिक मतलब स्पष्ट नहीं जान पड़ता परन्तु क्या आप जानते हैं कि रेडियो तरंगें भी प्रकाश की गति से यात्रा करती हैं। उन्हीं के कारण तो आज हम संचार के वायरलैस संसाधनों (मोबाईल फ़ोन्ज़) का प्रयोग करके पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने तक आसानी से बात कर सकते हैं। विज्ञान को यह बात 1864 तक मालूम नहीं थी, जब इंग्लैण्ड के एक विज्ञानी जेम्स क्लर्क मैक्सवैल ने यह पता लगाया था कि बिजली (विद्युत्त) एवं प्रकाश की लहरें एक ही चीज़ के दो प्रकार हैं। यह बात ‘मॉडर्न सैन्चुरी इलस्ट्रेट्ड इनसाईक्लोपीडिया’ से ली गई है।


6. बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘अय्यूब’ (जिसे यीशु मसीह के आगमन से भी 1,500 वर्ष पूर्व लिखी माना जाता है) के 38वें अध्याय की 19वीं आयत में लिखा है कि ‘‘वह मार्ग कहां है, जहां प्रकाश/रोशनी रहती है।’’ विज्ञान बहुत बाद में जाकर यह मालूम कर पाया कि प्रकाश का अपना बाकायदा एक मार्ग होता है, जिस पर से इलैक्ट्रोमैग्नैटिक रेडियशन अर्थात ‘प्रकाश की किरणें’ 1,86,282 (एक लाख छियासी हज़ार दो सौ बियासी) मील प्रति सैकण्ड की गति से यात्रा करती हैं। प्रकाश की इस गति को यदि किलोमीटरों में परिवर्तित किया जाए तो यह गति 2 लाख 99 हज़ार 791 किलोमीटर प्रति सैकण्ड बनती है।


7. 1930 के दशक में अमेरिकन वैज्ञानिक कार्ल गुथे जैन्सकी ने पहली बार यह खोज की थी कि आकाश-गंगा में से कुछ रेडियो लहरें निकलती हैं। परन्तु ‘अय्यूब’ की पुस्तक के 38वें अध्याय की 7वीं आयत में यह लिखा गया है कि ‘जब सुबह (भोर) के तारे गाते हैं...’ अर्थात आज से लगभग 3,500 वर्ष उन्हें इस बात का ज्ञान था कि वे अपनी रेडियो लहरों के द्वारा आपस में कोई सन्देश प्रसारित करते हैं, जो शायद आज तक पढ़ा नहीं जा सका है।


8. विश्व प्रसिद्ध साप्ताहिक ‘टाईम’ मैगज़ीन (जो 1923 से अमेरिका के महानगर न्यू-यार्क से प्रकाशित होता आ रहा है) के दिसम्बर 1976 के अंक में यह बात लिखी गई थी कि सभी ब्रह्मांड-वैज्ञानिक (कॉसमौलोजिस्ट्स - अर्थात वे वैज्ञानिक जो ब्रह्मांड की संरचना व उसके विकास का अध्ययन करते हैं) इस बात से सहमत हैं और इसे पूर्णतया सत्य मानते हैं कि बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ की दूसरी आयत में जो लिखा है कि प्रारंभ में सभी कुछ शून्य (वुआएड) था।


9. लगभग 3,000 वर्ष पूर्व हुए यशायाह नबी ने लिखा था, जो बाईबल में भी दर्ज है कि ‘यह परमेश्वर ही है, जिस ने .... आकाश-मण्डल को एक पर्दे की तरह खींचा है तथा उसे रहने के लिए एक तम्बू की तरह फैलाया है।’ (यशायाह 40ः22)। बाईबल में कम से कम सात स्थानों पर ऐसे लिखा है कि यहोवा अर्थात परमेश्वर ने आकाश-मण्डल को एक पर्दे की तरह फैलाया है। और आज हमारी पृथ्वी के वायुमण्डल की ‘ओज़ोन पर्त’ (ओज़ोन लेयर) का नाम बच्चा-बच्चा जानता है। यह वही पर्दा है, जिसका विवरण पवित्र बाईबल में किया गया है। यह पर्दा आज नित्य-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे प्रदूषण के कारण ख़तरे में है और उसी के कारण ‘सांसारिक तपिश’ (ग्लोबल वार्मिंग) बढ़ती जा रही है। अब संपूर्ण विश्व के देश इसी पर्दे को बचाने के लिए प्रदूषण, विशेषतया कार्बन गैसों की निकासी कम करने संबंधी विचार-विमर्श करने में जुटे हुए हैं।


10. बाईबल में यह बताया गया है कि एक स्थिर, मज़बूत किश्ती या बड़े समुद्री जहाज़ को तैयार करने के लिए आदर्श परिमाप (मईयरमैन्ट्स) क्या होने चाहिएं। बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के छठे अध्याय की 15वीं आयत में दिए गए ये परिमाप पूर्णतया वैज्ञानिक हैं। आज के समुद्री जहाज़ों के निर्माताओं को यह बात अब भलीभांति मालूम है कि यदि किसी किश्ती को जल में स्थिर रखना है, तो उसकी लम्बाई उसकी चौड़ाई से छः गुना अधिक होनी चाहिए। परमेश्वर ने आज से लगभ 4,500 वर्ष पूर्व नूह को बाढ़ से पूर्व अपनी किश्ती तैयार करने के लिए यही परिमाप बताए थे जो उपर्युक्त आयत में दर्ज हैं,‘‘जहाज़ की लम्बाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ और उंचाई तीस हाथ की हो।’’


11. बाईबल की तृतीय पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ के 15वें अध्याय की 13वीं आयत में लिखा है कि किसी रोगी के वस्त्र व शरीर को चलते पानी (अर्थात ताज़ा जल) में ही धोना चाहिए। जबकि आम लोग आज भी खड़े पानी में ही कपड़े इत्यादि धोते हैं। परन्तु जो लोग वैज्ञानिक सच्चाईयों पर चलते हुए समझदार डॉक्टरों की बात मानते हैं, उन्हें यह बात मालूम है कि रोगों के कीटाणु केवल ताज़ा जल से ही धुलते व दूर भागते हैं।


12. आज तक विश्व के बहुत से भागों के लोगों को यह बात समझ में नहीं आई है कि खुले में कभी शौच नहीं करना चाहिए। आज भारत के प्रधान मंत्री को भी यह बात बच्चों की तरह लोगों को समझानी पड़ रही है। परन्तु पवित्र धर्म-शास्त्र बाईबल के पुराने नियम में यह बात अत्यंत स्पष्ट रूप से दर्ज है, जो 3,500 वर्ष पूर्व ‘व्यवस्था-विवरण’ (ड्यूट्रोनॉमी) के 23वें अध्याय की 12वीं तथा 13वीं आयत में दर्ज है। वहां पर लिखा है कि परमेश्वर ने अपने लोगों को हिदायत दी थी कि वे अपने शिविर अर्थात ठिकाने से थोड़ा दूर एक बेलचा लेकर धरती में थोड़ा बड़ा खड्डा खोदें और उसमें अपना मल-मूत्र मिट्टी से ढांप कर रखें। यह बात वर्तमान स्वास्थ्य व आरोग्य विज्ञान के हिसाब से पूर्णतया सत्य है। यह भी एक सत्य है कि प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में इतने सैनिक शायद युद्ध में नहीं मरे होंगे, जितने कि छूत (इन्फ़ैक्शन या संक्रमण फैलने) के रोगों से मारे गए थे। दरअसल वे सैनिक अपना मल-मूत्र खुले में छोड़ आते थे और उनके पास ही उनके सैन्य कैम्प अर्थात शिविर (छावनी) लगी होती थी। इसके कारण रोग का फैलना स्वाभाविक था।


13. बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक अय्यूब के 38वें अध्याय की 16वीं आयत में महासागरों (समुद्रों) के सोतों का वर्णन है। सोता एक चश्मे या फ़व्वारे की तरह होता है, जिसमें अपने आप ताज़ा जल निकलता रहता है। समुद्र बहुत अधिक गहरा होता है। मनुष्य अब तक समुद्र की केवल 10,994 मीटर (लगभग 11 किलोमीटर) गहराई नाप सका है। इतनी गहराई में पूर्णतया अंधेरा होता है। बाईबल की पुस्तक लिखने वाले अय्यूब स्वयं के लिए यह असंभव था कि वह समुद्र में जाकर वे सोते फूटते देख सकते। 1970 के दश्क तक सभी यही समझते थे कि समुद्र में जल केवल नदियों व वर्षा से ही भरता है। परन्तु उस दश्क में महासागर-वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी पनडुब्बियां तैयार की थीं, जो समुद्र की गहराई में जाकर 6,000 पाऊण्ड प्रति वर्ग इन्च का दबाव झेल सकें। उन्हीं की सहायता से यह मालूम हो पाया था कि बाईबल में हज़ारों वर्ष पूर्व लिखी बात पूर्णतया सत्य है कि समुद्र में सचमुच सोते फूटते हैं।


14. बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘योना’ (अंग्रेज़ी में जोनाह) के दूसरे अध्याय की पांचवीं व छठी आयत में महासागरों के तल में पर्वतों के होने का वर्णन है। यह बात पिछली अर्थात 20वीं शताब्दी में जाकर वैज्ञानिकों ने ज्ञात की है कि गहरे समुद्र में भी बहुत बड़े-बड़े पहाड़ व गहरी खाईयां मौजूद हैं।


15. बाईबल के नए नियम के ‘प्रेरितों के काम’ (14ः17) में प्रसन्नता अर्थात ख़ुशी का वर्णन है। विज्ञान का विकास का सिद्धांत भावनाओं का वर्णन नहीं कर सकता। माद्दा अर्थात पदार्थ (मैटर) तथा ऊर्जा किसी प्रकार की भावनाओं को महसूस नहीं कर सकते। परन्तु बाईबल हमें बताती है कि वह परमेश्वर ही हैं, जो हमारे दिलों में प्रसन्नता को भरते हैं (भजन संहिता 4ः7) तथा अनंत ख़ुशी तो हमें हमारे सृष्टिकर्ता परमेश्वर की मौजूदगी में ही मिल सकती है - ‘‘...तेरे (परमेश्वर) निकट आनन्द की भरपूरी है।’’


क्रमशः


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें
-- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]

 
visitor counter
Role of Christians in Indian Freedom Movement


DESIGNED BY: FREE CSS TEMPLATES