Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

पवित्र बाईबल के वैज्ञानिक सत्य (61-75)



61. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तकों ‘अय्यूब’ (9ः8), ‘यशायाह’ (42ः5), ‘यिर्मयाह’ (51ः15), ‘ज़कर्याह’ (12ः1) अर्थात कई स्थानों पर यह लिखा है कि ब्रह्माण्ड या आकाश-मण्डल का पासार हो रहा है। बाईबल के अनुसार परमेश्वर ने बार-बार यही कहा कि वह आकाश को फैलाता है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में अधिकतर वैज्ञानिक (आईन्सटाईन सहित) यही मानते थे कि ब्राह्माण्ड स्थिर है। कुछ अन्यों का यह भी मानना था कि ब्राह्माण्ड में विद्यमान सितारों को गुरुत्त्वाकर्षण के कारण नीचे गिर जाना चाहिए। परन्तु 1929 में खगोल-वैज्ञानिक एडविन हब्बल ने अपने अनुसंधानों के आधार पर निष्कर्ष निकाला था कि विभिन्न आकाश-गंगाएं बहुत तेज़ी से पृथ्वी से दूर होती जा रही हैं। इस खोजने खगोल विज्ञान में एक क्रांति ला दी थी। बाद में आईन्सटाईन ने भी अपनी भूल को स्वीकार किया था और आज अधिकतर खगोल-वैज्ञानिक यही बात मानते हैं जो बाईबल में हज़ारों वर्षों से लिखित है कि ब्राह्माण्ड का निरंतर पासार हो रहा है।


62. विज्ञान के ‘लॉअ ऑफ़ बायोजैनेसिस’ (जीव-जनन का सिद्धांत) का वर्णन पवित्र बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ में दर्ज है। वैज्ञानिक यही मानते हैं कि जीवन केवल वर्तमान जीवन से ही आता या आ सकता है। बाईबल हमें यही बताती है कि जीवन, परमेश्वर के जीवन से ही समस्त प्रकार के जीवन का सृजन हुआ।


63. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तकों ‘यिर्मयाह’ (12ः4) तथा ‘होशे’ (4ः3) में जानवरों एवं पेड़-पौधों के नाश/समाप्त होने के बारे में बताया गया है। जबकि विज्ञान का विकास सिद्धांत यह कहता है कि निरंतर विकास के कारण कुछ नए प्रकार के जीव या पेड़-पौधे अवश्य पैदा होने चाहिएं परन्तु असल में ऐसा तो कभी किसी ने नहीं देखा। परन्तु इस वैज्ञानिक सिद्धांत के विपरीत बाईबल में जैसे लिखा है कि परमेश्वर के अभिशाप (पीड़ाएं) इस सृष्टि पर हैं और सभी जीव-जन्तुओं का नाश होना अवश्य है। (रोमियों 8ः20-22)


64. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘अय्यूब’ के 28वें अध्याय की 25वीं आयत में लिखा है कि वायु का भी भार होता है। इस्रायल के नबी अय्यूब ने 4,000 वर्ष पूर्व ही यह ऐलान कर दिया था कि वायु का भी वज़न होता है। वायुमण्डल वैज्ञानिकों ने भी अब अपनी खोजों के आधार पर इस बात को माना है कि एक औसत आंधी या तूफ़ान की वायु/हवा में हज़ारों टन वर्षा होती है। इतना भार उठाने के लिए वायु का अपना पुंज अथवा भार होना अवश्य है।


65. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तकों ‘लैव्यव्यवस्था’ के 13वें अध्याय की 45-46 आयतों तथा ‘गिनती’ नामक पुस्तक के पाचंवें अध्याय की 1 से 4 आयतों तक में ‘मैडिकल क्वारनटीन’ का वर्णन है। बहुत पहले जब क्वारनटीन का मानवता में कोई वजूद भी नहीं था, उससे कहीं पहले अर्थात हज़ारों वर्ष पूर्व परमेश्वर ने इस्रायलियों को निर्देश दिए थे कि जिन लोगों को छूत के रोग हों, वे तब तक आम लोगों से अलग रखे जाएं, जब तक कि वे पूर्णतया ठीक नहीं हो जाते।


66. आकाश में दिखाई देने वाले प्रत्येक सितारे में अंतर है अर्थात सभी सितारे भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं, उनका आकार एवं तीव्रता अलग-अलग होती है। यह बात पवित्र बाईबल के नए नियम में कुरिन्थियों की पहली पत्री के 15वें अध्याय की 41वीं आयत में लिखी गई है। यह बात टैलीस्कोप जैसे यंत्र की खोज होने से हज़ारों वर्ष पूर्व तब लिखी गई थी।


67. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘अय्यूब’ के 38वें अध्याय की 35वीं आयत में लिखा है कि - ‘‘क्या तू बिजली को आज्ञा दे सकता है कि वह जाए और तुझ से कहे कि मैं उपस्थित हूँ’’ - जिसका सीधा अर्थ यही है कि प्रकाश को भेजा जा सकता है तथा उसे आवाज़ या ध्वनि में भी परिवर्तित किया जा सकता है। आज विज्ञान भी यह सिद्ध कर चुका है कि रेडियो तरंगें तथा प्रकाश की लहरें एक ही चीज़ - इलैक्ट्रोमैग्नैटिक वेव्ज़ के दो प्रकार हैं। अतः रेडियो लहरें वास्तव में प्रकाश का ही एक प्रकार हैं। आज हम रेडियो ट्रांसमीटर्स का प्रयोग करते हुए ‘प्रकाश की तरंगों’ को भेज सकते हैं तथा आगे गन्तव्य पर पहुंच कर वह आवाज़ में परिवर्तित हो जाती है।


68. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘नीति-वचन’ के 17वें अध्याय की 22वीं आयत में लिखा है कि ख़ुश (मैरी) रहना शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। हालिया वैज्ञानिक अनुसंधानों ने भी उसी बात को सही सिद्ध किया है, जो 3,000 वर्ष पूर्व बादशाह सुलेमान ने लिख दिया था और जो बाईबल के ‘नीति-वचन’ में दर्ज है। उदाहरणतया हंसने से तनाव उत्पन्न करने वाले कुछ विशेष हार्मोन्स के स्तर कम होने लगते हैं। इससे मनुष्य की रोगों से लड़ने की शक्ति को संतुलित करने में सहायता मिलती है और शरीर से रोग दूर भागने लगता है।


69. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘नीति वचन’ के 18वें अध्याय की 14वीं आयत तथा नए नियम में विद्यमान ‘मरकुस’ की इन्जील के 14वें अध्याय की 34वीं आयत में लिखा है कि अत्यधिक दुःख एवं तनाव मनुष्य के स्वास्थ्य हेतु नुक्सानदेह होते हैं। हज़ारों वर्ष पूर्व बाईबल में लिखे इसी सत्य को अब मैडिकल विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि किसी व्यक्ति को पहले कोई मैडिकल समस्या न हो परन्तु यदि उस में किसी बात को लेकर कोई मानसिक तनाव उत्पन्न हो जाए, तो उसकी छाती में दर्द प्रारंभ हो जाएगा, सांस लेने में तकलीफ़ होगी, ब्लड प्रैशर कम हो जाएगा तथा एक समय में जाकर ऐसे तनाव के कारण ही व्यक्ति का दिल तक फ़ेल हो सकता है।


70. ‘माईक्रोऑर्गेनिज़्म’ (सूक्ष्म-जीव) के बारे में हमें पवित्र बाईबल की पुस्तक ‘निर्गमन’ के 23वें अध्याय की 31वीं आयत तथा ‘लैव्य-व्यवस्था’ के 22वें अध्याय की 8वीं आयत में स्पष्ट बताया गया है। यहां पर कहा गया है कि यदि किसी जानवर की मृत्यू प्राकृतिक कारणों से हुई हो या उसे किसी अन्य जानवर ने फाड़ दिया हो, तो मनुष्य उसे न खाए। आज विज्ञान भी इस बात को मानता है कि किसी भी सड़ चुके मृत शरीर में ऐसे सूक्ष्म-जीव/कीटाणु होते हैं, जो उस स्थिति में घातक सिद्ध हो सकते हैं यदि कोई मनुष्य उन्हें खाये।


71. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ के 7वें अध्याय की 23 आयत में जानवरों की चर्बी खाने से मना किया गया है, जबकि अभी कुछ ही दशक पूर्व मैडिकल वैज्ञानिक यह बात ज्ञात कर पाए हैं कि चर्बी मानवीय शरीर की धमनियों में जम जाती है और उससे दिल के गंभीर रोग हो सकते हैं।


72. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘लैव्यव्यवस्था’ के 17वें अध्याय की 12वीं आयत में मनुष्य को लहू (ख़ून) खाने या पीने से भी वर्जित किया गया गया है। प्राचीन विश्व के बहुत से धर्मों में रक्त पीने की परंपरा काफ़ी रही है। इसी लिए परमेश्वर ने बार-बार (उत्पत्ति 9ः4, लैव्यवस्था 3ः17, प्रेरितों के काम 15ः20 तथा 21ः25 में) अपने लोगों को रक्त पीने/खाने से साफ़ मना किया है। आधुनिक विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि रक्त पीना या खाना मानवीय शरीर के लिए घातक हो सकता है। यह भी सर्वमान्य मैडिकल तथ्य है कि एक मनुष्य को केवल उसके अपने ग्रुप का ही रक्त चढ़ाया जा सकता है। यदि किसी अन्य ग्रुप का ख़ून चढ़ाया जाएगा, तो उसकी तत्काल मृत्यु हो जाएगी।


73. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘भजन संहिता’ में प्रसन्नता की व्याख्या की गई है। जबकि विज्ञान के विकास का सिद्धांत भी इसकी व्याख्या नहीं कर सकता तथा जटिल से जटिल रसायन भी इस प्रसन्नता का वर्णन नहीं कर सकते। परन्तु पवित्र बाईबल में परमेश्वर ने ‘हमें यह सभी वस्तुएं बहुतायत से आनंद लेने हेतु दी हैं’ (1 तिमोथी 6ः17)। प्रसन्नता सचमुच परमेश्वर का उपहार है।


74. विज्ञान के अनुसार तो माद्दा (मैटर) एवं ऊर्जा ही सभी कुछ है परन्तु जीवन इन दोनों से कहीं अधिक आगे तक है (उत्पत्ति 2ः7 तथा अय्यूब 12ः7-10)। हम जानते हैं कि यदि एक जीवित प्राणी को वायु न मिले तो मर जाता है। चाहे शरीर अच्छा भला ही क्यों न हो और यदि फिर उसमें चाहे कितनी भी वायु एवं ऊर्जा संचारित की जाए, वह शरीर मृत ही रहता है। पवित्र बाईबल हमें यह बताती है कि केवल परमेश्वर ही किसी शरीर में प्राण फूंक सकते हैं। अतः जीवन की व्याख्या केवल कच्चे माल, समय एवं किसी अवसर के आधार पर नहीं की जा सकती - जैसे कि विज्ञान का विकास का सिद्धांत बताता है।


75. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘भजन संहिता’ के 40वें अध्याय की तीसरी आयत में बताया गया है कि पृथ्वी पर संगीत कैसे उत्पन्न हुआ। विकास का वैज्ञानिक सिद्धांत कभी संगीत के मूल संबंधी व्याख्या नहीं कर सकता। बाईबल के नए नियम में ‘याकूब’ की पत्री के पहले अध्याय की 17वीं आयत में लिखा है कि हर प्रकार का उपहार परमेश्वर की ओर से आया है। इसी प्रकार ‘उत्पत्ति’ की पुस्तक के चौथे अध्याय की 21वीं आयत तथा ‘यहेजकेल’ के 28वें अध्याय की 13वीं आयत में स्पष्ट किया गया है कि परमेश्वर के इन उपहारों में प्रसन्न-चित्त संगीतमय धुनें भी हैं। परमेश्वर ने मनुष्य एवं फ़रिश्तों दोनों को ही संगीत बनाने का उपहार दिया है। इसी प्रकार ‘अय्यूब’ की पुस्तक के 38वें अध्याय की 7वीं आयत तथा ‘भजन संहिता’ के 95वें अध्याय की 1-2 आयत में भी लिखा गया है कि गाना परमेश्वर की महिमा एवं प्रसन्नता प्रकट करने हेतु होता है।


क्रमशः


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें
-- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]

 
visitor counter
Role of Christians in Indian Freedom Movement


DESIGNED BY: FREE CSS TEMPLATES