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Jesus Cross

पवित्र बाईबल के वैज्ञानिक सत्य (76-90)



76. हमारे पूर्वज केवल कोई प्राचीन नहीं थे। (उत्पत्ति 4ः20-22, अय्यूब 8ः8-10; 12ः12)। पुरातत्त्व विज्ञानियों के अनुसंधानों अनुसार वह धरती में खानें खोद कर खनिज पदार्थ निकालते थे, उनके पास धातुओं का विज्ञान एवं टैक्नॉलोजी (प्रौद्योगिकी) थी, उन्होंने एयर-कण्डीशन्ड भवनों का निर्माण किया हुआ था, संगीत के विभिन्न वाद्य यंत्रों की ईजाद उन्होंने की हुई थी, सितारों का अध्ययन भी वह करते थे। यह बात भी विज्ञान के विकास के सिद्धांत के साथ तो मेल नहीं खाती, परन्तु परमेश्वर के वचन के अनुसार यह सभी सत्य है।


77. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘अय्यूब’ के 30वें अध्याय की 1 से 8 आयतों तक में गुफ़ाओं में रहने वाले आदि-मानव का वर्णन है। विज्ञान के विकास के सिद्धांतानुसार वे मनुष्य के प्राचीन पूर्वज थे, परन्तु बाईबल के अनुसार वास्तव में वे कुछ ऐसे लोग हुआ करते थे, जिन्हें समाज से बहिष्कृत किया गया होता था या वे वैसे ही इधर-उधर घूमते रहने वाले लोग होते थे। बाईबल में लिखा है कि ऐसे लोगों को झाड़ियों में छिप कर रहना पड़ता था तथा वे संकरी पहाड़ी वादियों में भी रहा करते थे। वे गुफ़ाओं एवं चट्टानों में रहा करते थे।


78. बाईबल की अन्तिम पुस्तक ‘प्रकाशित-वाक्य’ के 11वें अध्याय की 18वीं आयत में पर्यावरण (वातावरण) को क्षति पहुंचने की भविष्यवाणी की गई है कि कुछ लोग पृथ्वी को बिगाड़ेंगे, तो उनका नाश किया जाएगा। विज्ञान के विकास के सिद्धांत के अनुसार तो जैसे-जैसे विकास होता जाता है, तो वैसे-वैसे सभी वस्तुएं बेहतर होती चली जातीं हैं परन्तु बाईबल में यह बात पहले ही बता दी गई थी कि कुछ लोग पृथ्वी को बिगाड़ेंगे; जैसे कि आज प्रदूषण, पृथ्वी के साथ अनेक प्रकार की छेड़खानियों से किया जा रहा है।


79. पवित्र बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के प्रथम अध्याय की 11वीं आयत में लिखा है कि किसी पौधे के बीज में ही उसका जीवन होता है। आज विज्ञान भी इस बात को मानता है कि एक छोटे से बीज में जीवन होता है। उस बीज के भीतर छोटी सी परन्तु अदभुत एवं जटिल फ़ैक्ट्री होती है। कोई वैज्ञानिक आज तक कोई सिन्थैटिक बीज तैयार नहीं कर पाया और कोई बीज साधारण नहीं होता।


80. पवित्र बाईबल के नए नियम में ‘कुरिन्थियों’ की पहली पत्री के 15वें अध्याय की 36वीं से 38वीं आयत में लिखा है कि एक नया जीवन उत्पन्न करने के लिए एक बीज को अवश्य ही मरना पड़ता है। यीशु मसीह ने भी (यूहन्ना 12ः24) कहा था कि ‘‘मैं तुम से सच-सच कहता हूं कि जब तक गेहूं का दाना भूमि में पड़ कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है। परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है।’’ यहां यीशु मसीह इशारा कर रहे हैं कि जब वे सलीब पर चढ़ कर मृत्यु को प्राप्त होंगे, तभी उनके सिद्धांत के अनुयायी अनाज के दानों की तरह धरती पर बढ़ेंगे। सचमुच यीशु मसीह के सलीब पर चढ़ने के बाद ही हम सब को आशीष मिली और हम फलीभूत हो पाए। परन्तु इस आयत में बायोलोजी की दो बुनियादी धारणाएं भी दर्ज हैं। 1) नए सैल केवल वर्तमान सैलों से ही उत्पन्न होते हैं। 2) अनाज का एक दाना जब मर जाता है, तो उससे बहुत सारा अनाज उत्पन्न होता है। उस मृत बीज के इर्द-गिर्द काफ़ी सैल जमा हो जाते हैं। वही सैल आगे नया जीवन उत्पन्न करते हैं और उसकी गुठली या गिरी (कर्नल) को आगे बढ़ने की ताकत मिलती है। एक बार बीज बोने के बाद वही गुठली या गिरी बहुत सा अनाज उत्पन्न करती है।


81. पवित्र बाईबल की प्रथम पुस्तक ‘उत्पत्ति’ के पहले ही अध्याय में जिस प्रकार व क्रम से सृष्टि की रचना करने का वर्णन किया गया है वह विज्ञान के सिद्धांतों पर भी पूर्णतया सही उतरता है। सजीव प्राणियों एवं पेड़-पौधों को जीवन के लिए सब से पहले सूर्य का प्रकाश, जल एवं खनिज पदार्थ चाहिए होते हैं। इस अध्याय में यही बताया या है कि पहले परमेश्वर ने प्रकाश सृजित किया (आयत 3), फिर जल (आयत 6), फिर भूमि (आयत 9) तथा उसके बाद पेड़-पौधों की रचना (आयत 11) की।


82. परमेश्वर ने आकाश में ज्योतियां (प्रकाश-स्रोत) बनाईं, जिनसे अलग-अलग, दिन एवं वर्ष बनने संभव हुए। यह बात भी ‘उत्पत्ति’ के पहले अध्याय की 14वीं से 16वीं आयत तक लिखी हुई है। अब विज्ञान की खोजों के आधार पर भी यह जानते हैं कि पृथ्वी पर विभिन्न मौसम उसकी एक वर्ष के दौरान सूर्य के समक्ष स्थितियों के कारण बनते हैं।


83. पवित्र बाईबल की पुस्तक ‘व्यवस्था-विवरण’ के 10वें अध्याय की 14वीं आयत में आकाश एवं उससे भी अधिक ऊँचे एक आकाश का वर्णन है। हब्बल स्पेस टैलीस्कोप से भी कहीं पहले बाईबल में ‘स्वर्ग से भी ऊँचे स्वर्ग’ का ज़िक्र (1 राजा 8ः27 तथा 2 कुरिन्थियों 12ः2) मिलता है। अब विज्ञान भी हमें यही बता रहा है कि जो वायुमण्डल अर्थात आकाश हमें दिखाई देता है, उससे कहीं आगे तक अंतरिक्ष है।


84. पवित्र बाईबल के नए नियम की इन्जील लूका के 10वें अध्याय की 34वीं आयत में बताया गया है कि ज़ैतून का तेल एवं दाखरस (शराब) ज़ख़्मों पर लगाए जाएं, तो लाभदायक रहते हैं। (वैसे कुछ बाईबल के अनुवादों में ज़ैतून का वर्णन नहीं है, इस आयत में केवल तेल लिखा गया है)। यीशु मसीह ने अपने एक दृष्टांत में बताया था कि एक सामरी व्यक्ति ने एक घायल व्यक्ति के घावों पर ज़ैतून का तेल एवं दाखरस लगाया था। आज विज्ञान के माध्य से भी हम यह जानते हैं कि ये दोनों ही छूत को पास नहीं आने देते और कीटाणुओं को नष्ट कर देते हैं। आज हम सभी को यह बात मालूम है। परन्तु 20वीं शताब्दी के प्रारंभ तक भी विश्व के बहुत से लोग खुले घावों का उपचार करना नहीं जानते थे, इसी लिए वे बेमौत मारे गए।


85. पवित्र बाईबल की पुस्तक ‘भजन संहिता’ के 139वें अध्याय की 14वीं आयत में लिखा है कि मनुष्य को आश्चर्यजनक ढंग से बनाया गया है। यह बात हज़ारों वर्ष पूर्व लिखी गई थी, जबकि विज्ञान अभी तक मनुष्य के विभिन्न अंगों की कोई संपूर्ण खोज नहीं कर पाया है। जैसे कि मानवीय डी.एन.ए. मौलिक्यूल, आँख, मस्तिष्क अर्थात दिमाग़ एवं अन्य बहुत से अंग इतने जटिल हैं कि उनके बारे में तो अनुसंधान एक प्रकार से प्रारंभ ही हुए हैं। मानव द्वारा की गई कोई भी खोज परमेश्वर की सृष्टि के अदभुत चमत्कारों के समक्ष अभी तुच्छ ही है।


86. पवित्र बाईबल की बहुत सी पुस्तकों जैसे ‘उत्पत्ति’ 1ः31, 2ः9, अय्यूब 40ः10, सभोपदेशक 3ः11, मत्ती 6ः28-30 में पृथ्वी पर विद्यमान सुन्दरता का वर्णन करते हुए उसे समझाया गया है। हमारे चारों ओर सुन्दरता है, जैसेः प्रातःकाल एवं सायंकाल को अद्भुत ढंग से दीप्तिमान होने वाला सूर्य, विशाल पर्वत, चमकदार एवं रंगदार फूल, चमकदार हीरे, मन को शांति देने वाले पेड़-पौधे, सुन्दर पक्षी इत्यादि। जबकि विज्ञान के विकास के सिद्धांत के लिए सुन्दरता केवल एक भेद है। परन्तु पवित्र बाईबल में यह स्पष्ट बताया गया है कि परमेश्वर ने ये सभी सुन्दर वस्तुएं हमारे भले के लिए रची हैं, ताकि उसकी महिमा हो।


87. पवित्र बाईबल में मज़बूत एवं कमज़ोर प्रमाणु (न्यूक्लीयर) शक्ति की व्याख्या की गई है (नया नियम - कुलुस्सियों 1ः17, इब्रानियों 1ः3)। वैज्ञानिक आज तक यह ज्ञात नहीं कर पाए कि एक परमाणु (एटम) के न्यूक्लीयस अर्थात केन्द्र को कौन सी चीज़ बांध कर रखती है। परन्तु बाईबल में यह स्पष्ट किया गया है कि ‘सभी वस्तुओं को एक क्रम में सृष्टिकर्ता -यीशु मसीह’ ने बांध कर रखा हुआ है।


88. पवित्र बाईबल के नए नियम में पतरस की दूसरी पत्री के तीसरे अध्याय की 10वीं से 12ं आयत में प्रमाणु विखण्डन (एटौमिक फिशन - एक न्यूक्लीयर प्रतिक्रम होता है, जिसमें विश्व न्यूक्लीयस फट कर छोटे न्यूक्ली में परिवर्तित हो जाता है और उसमें बहुत सी ऊर्जा निकलती है) की संभावना का वर्णन मिलता है। इन आयतों में यह भविष्यवाणी की गई है कि बहुत अधिक ताप अर्थात गर्मी से पृथ्वी एवं पर सभी कुछ पिघल जाएगा आज विज्ञान भी इस बात को समझता एवं स्पष्ट करता है कि यदि एटम ढीला हो जाए या अलग अर्थात विखण्डित हो जाए, तो इतनी अधिक गर्मी एवं ऊर्जा निकलेगी कि जिससे सब कुछ पिघल जाएगा।


89. पवित्र बाईबल की पुस्तक ‘अय्यूब’ के 38वें अध्याय की 31वीं आयत के प्लीडीज़ एवं ओरियन तारा समूह का वर्णन है। हिन्दी में प्लीडीज़ को ‘कचपचिया’ तथा ओरियन को ‘मृगशिरा’ कहा गया है। इस आयत में लिखा गया है - ‘‘क्या तू कचपचिया का गुच्छा गूंथ सकता एवं मृगशिरा के बन्धन खोल सकता है?’’ अंग्रेज़ी बाईबल में लिखा है - ‘‘कैन यू बाईन्ड दि स्वीट इनफ़्लुएंसज़ ऑफ़ प्लीडीज़ और लूज़ दि बैण्ड्स ऑफ़ ओरियन?’’ आज विज्ञान के माध्यम से हमें मालूम हो चुका है कि प्लीडीज़ तारा समूह (स्टार क्लस्टर) एक प्राकृतिक गुरुत्वाकर्षण से बन्धा हुआ है तथा ओरियन तारा समूह में पृथ्वी जैसा गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटी) नहीं है और वह तारा समूह विखण्डित हो रहा है और ओरियन समूह के तारे अलग-अलग उड़ रहे हैं। परन्तु बाईबल में दर्ज यह सत्य 4,000 वर्ष पूर्व लिख दिया गया था।


90. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘लैव्य-व्यवस्था’ के 11वें अध्याय की 33वीं से 36वीं आयत में पीने वाले सुरक्षित पानी (पेय-जल) का वर्णन किया गया है। परमेश्वर ने अपने लोगों को खड़े जल एवं दूषित बर्तनों (विशेषतया जिनका संपर्क जानवरों से रहा हो) में कभी पानी न पीने की सलाह दी है। जबकि मैडिकल विज्ञान ने तो लगभग केवल 100 वर्ष पूर्व ही यह ज्ञात किया है कि दूषित जल पीने से टॉयफ़ायड, हैज़ा, आंत्रशोथ एवं अन्य बहुत से रोग हो सकते हैं।


क्रमशः


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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