भारतीय हाई कोर्ट की प्रथम महिला वकील वॉयलेट हरि अल्वा
सदा राष्ट्र हित में ही सोचा
श्री जोआकिम अल्वा के स्वतंत्रता आन्दोलनों में सक्रियता से भाग लेने संबंधी आप जानते ही होंगे। यदि हम उनकी पत्नी श्रीमति वॉयलेट अल्वा के बिल्कुल ऐसे ही योगदान संबंधी कोई चर्चा न करें, तो न यह न्याय होगा तथा न ही हमारी खोज पूर्ण कहलाएगी। श्रीमति वॉयलेट हरि अल्वा का जन्म 24 अप्रैल 1908 ई. को गुजरात के नगर अहमदाबाद में रहने वाले एक प्रोटैस्टैंट मसीही परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में सदैव भारत के राष्ट्रीय हितों के बारे में सोचा। अपने पति श्री जोआकिम अल्वा के साथ मिल कर श्रीमति वॉयलेट ने देश के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगाया परन्तु अपने उद्देश्य से कभी पीछे नहीं हटे। संसद सदस्य बनने वाली भारत की प्रथम जोड़ी बने जोआकिम अल्वा तथा वॉयलेट अल्वा उसी के परिणामस्वरूप 1952 में श्रीमति वॉयलेट अल्वा राज्य सभा के लिए चुने गए थे तथा उधर श्री जोआकिम अल्वा लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए थे। उन दोनों ने बम्बई राज्य का प्रतिनिधित्व किया था और साथ ही वे दोनों संसद में चयनित होने वाली पहली दंपत्ति जोड़ी भी बन गए। यह भी एक रेकार्ड है। 5 दिसम्बर, 2007 को इस जोड़ी का एक बड़ा चित्र भारतीय संसद में गर्व से लगाया गया था। भारत के समस्त मसीही समुदाय हेतु भी यह अत्यंत गर्व की बात है कि संसद भवन के जिस हॉल में महात्मा गांधी, नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसी महान शख़्सियतों के चित्र लगे हों, वहां पर हमारी मसीही जोड़ी का चित्र भी विद्यमान है। आज भी हम पर आरोप लगाने वालों के मुंह पर अल्वा दंपत्ति का यही चित्र एक करारी चपेड़ है। दंपत्ति की याद में भारतीय डाक विभाग ने जारी किया एक डाक-टिकेट जोआकिम अल्वा व वॉयलेट अल्वा की याद में भारतीय डाक विभाग ने एक डाक-टिकेट भी जारी किया था। यह टिकेट भारत के 12वें राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी पाटिल ने 20 नवम्बर, 2008 को जारी किया था। वास्तव में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मसीही समुदाय के बहुमूल्य योगदान को कभी बच्चों की पाठ्य-पुस्तकों में सम्मिलित ही नहीं किया गया, जिसके कारण उन्हें कभी अपनी महान् विरासत के बारे पूर्णतया मालूम ही नहीं हो पाता। किसी हाई कोर्ट में अपने मुवक्किल का केस लड़ने वाली प्रथम महिला वकील भी ख़ैर, श्रीमति वॉयलेट अल्वा भारत के किसी उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) में अपने मुवक्किल का केस लड़ने वाली प्रथम महिला वकील भी हैं। भारत का यह रेकार्ड भी उनके नाम है। राज्य सभा की अध्यक्षता करने वाली प्रथम महिला भी उनके रेकार्ड यहीं पर समाप्त नहीं हो जाते, राज्य सभा की अध्यक्षता करने वाली प्रथम महिला भी श्रीमति वॉयलेट अल्वा ही हैं। उन का विवाह 1937 में श्री जोआकिम अल्वा से हुआ था। वह सेंट ज़ेवियर’स इण्डियन वोमैन’ज़ युनिविर्सिटी कॉलेज में अंग्रेज़ी विषय की प्राध्यपिका भी रहीं। वह राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहीं। वॉयलेट अल्वा के पिता चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड के पहले भारतीय पादरी साहिबान में से एक थे श्रीमति वॉयलेट अपने नौ भाई-बहनों में आठवीं थीं। उनके पिता पादरी लक्ष्मण हरि तब चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड के पहले भारतीय पादरी साहिबान में से एक थे। वॉयलेट तब केवल 16 वर्ष की थीं, जब उनके माता-पिता दोनों चल बसे थे। फिर उनके बड़े भाई-बहनों ने ही उन्हें बम्बई के क्लेयर मार्ग पर स्थित कॉनवैंट स्कूल में पढ़ाया। उन्होंने बम्बई के सेंट ज़ेवियर’स कॉलेज से ग्रैजुएशन की। तथा इसी महानगर में सरकारी लॉअ कॉलेज से वकालत की डिग्री भी ली। अंग्रेज़ शासकों ने किया था ग्रिफ़्तार अल्वा दंपत्ति ने इकट्ठे ही वकालत की प्रैक्टिस प्रारंभ की थीं। 1943 में इंग्लैण्ड से आकर भारत पर राज्य कर रहे अंग्रेज़ शासकों ने श्रीमति अल्वा को उनके स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने के कारण ग्रिफ़्तार कर लिया था। तब उनका दूसरा पुत्र चितरंजन उनके गर्भ में था। श्रीमति अल्वा को बम्बई की आर्थर मार्ग स्थित कारावास में रखा गया था। 1952 में श्रीमति अल्वा राज्य सभा के लिए चयनित हो गए। भारत के गृह राज्य मंत्री भी बनीं वॉयलेट अल्वा भारत के द्वितीय आम चुनावों अर्थात 1957 में श्रीमति वॉयलेट अल्वा भारत के गृह राज्य मंत्री बने। फिर 1962 में श्रीमति अल्वा राज्य सभा की उपाध्यक्ष बनीं और इस प्रकार वह राज्य सभा की अध्यक्षता करने वाली देश की प्रथम महिला भी बन गईं। भारत के उप-राष्ट्रपति बनने की थी तैयारी परन्तु इन्दिरा गांधी ने किया था इन्कार 1969 में एक बार तो यह घोषणा राजनीतिक गलियारों में लगभग हो ही गई थी कि श्रीमति वॉयलेट अल्वा को भारत की उप-राष्ट्रपति बनाया जा रहा है। परन्तु जब श्रीमति इन्दिरा गांधी ने उन्हें अन्तिम क्षणों में आकर यह पद देने से इन्कार कर दिया, तो श्रीमति वॉयलेट अल्वा ने रोषपूर्वक तत्काल असतीफ़ा दे दिया। ऐसी परिस्थितियों में त्याग-पत्र देने के कारण उनके मन में तनाव इतना अधिक बढ़ गया कि तीसरे दिन अर्थात 20 नवम्बर, 1969 को उनके दिमाग़ की नस फट गई और उनका निधन हो गया। अल्वा दंपत्ति के दो पुत्र निरंजन (अब स्वर्गीय) एवं चितरंजन व एक सुपुत्री माया हैं। -- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN] भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें -- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]