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आधुनिक शिक्षित व वैज्ञानिक भारत की नींव रखी मसीही समुदाय ने -2



 




 


इतिहासकार नहीं छुपा सकते भारतीय मसीहियत का योगदान

भारतीय मसीहियत चाहे अल्पसंख्यक है परन्तु इसका योगदान अपने देश के समाज में सदैव वर्णनीय रहा है, चाहे वह आर्थिक क्षेत्र हो या शैक्षणिक अथवा स्वास्थ्य, सामाजिक व वैज्ञानिक सेवाओं या अन्य कोई भी क्षेत्र रहा हो; हिन्दुस्तान के मसीही लोगों ने तन, मन और धन से देश की सेवा में स्वयं को अर्पित किया है। भारत के इतिहासहार चाहे मसीही लोगों के योगदान को जानबूझ कर घटा कर प्रस्तुत करने का षड़यंत्र रचते रहे हों, परन्तु ‘शेर’ को आँखें मूंद कर बार-बार ‘बकरी’ कहने से वह सचमुच ‘बकरी’ नहीं बन जाता - शेर तो शेर ही रहेगा, चाहे उसे पिंजरे में रखें या जंगल में छोड़ दें।


आधुनिक भारत की नींव रखी मसीही समुदाय ने

St. George School, Chennai

304 वर्ष पुराना चेन्नई (तामिल नाडू) में स्थित सेंट जॉर्ज’स एंग्लो-इण्डियन हायर सैकण्डरी स्कूल, जिस की स्थापना 1715 ई. में हुई थी। तब इस की शुरुआत ‘मेल ऑर्फ़न असाईलम’ अर्थात ‘मर्दाना यतीमखाना’ के तौर पर हुई थी। यह विश्व के सब से अधिक पुराने आधुनिक स्कूलों में से अधिक है तथा भारत का सब से पुराना स्कूल है, जो अब तक भी चल रहा है। यह ‘एंग्लो-इण्डियन बोर्ड ऑफ़ ऐजूकेशन’ के साथ संबद्ध है।

वह मसीही समुदाय ही था, जिसने सदियों से एक ही पथ पर चल रहे भारतीय समाज को ज़ोर से झकझोरा था। यदि धाकड़ मसीही महिला पण्डिता रमाबाई देश-विदेश में जाकर अपने देश भारत की वास्तविकता का ब्यान न करतीं, उस समय की महिलाओं की दयनीय अवस्था का वर्णन न करतीं, तो शायद दयानन्द सरस्वती (आर्य समाज के सुसंस्थापक) भी हिन्दु धर्म का पक्ष स्पष्ट करने हेतु अमेरिका की विश्व धार्मिक संसद में जाने के लिए न सोचते। आधुनिक भारत की वास्तविक नींव मसीही समुदाय ने ही रखी थी, वे चाहे देशी थे या विदेशी।


मसीही समुदाय ने ही रखी आधुनिक शिक्षा की नींव भी

वह वर्ष 1540 था, जब यूरोप से बाहर पहला मसीही शैक्षणिक संस्थान ‘फ्ऱांसिस्कन’ भारत के गोवा में खोला गया था। जहां से भारतीय जीवन पर पश्चिम के सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक विचारों का प्रभाव पड़ने लगा था। 1542 में इस मसीही स्कूल की बागडोर सेंट फ्ऱांसिस ज़ेवियर ने संभाल ली थी तथा 1548 में इसे कॉलेज का दर्जा मिल गया था और फिर इसे सेंट पॉल’ज़ कॉलेज नाम दे दिया गया था। शीघ्र ही भारत के अन्य भागों में कुछ अन्य मिशनरी स्कूल भी खुलने लगे थे - जैसे कि 1546 में बसीन (जिसे आज वसाई नगर के नाम से जाना जाता है और यह महाराष्ट्र में स्थित है) में मसीही शैक्षणिक संस्थान खोला गया था। फिर इसी प्रकार 1549 में केरल के कोचीन में, 1567 में तामिल नाडू के पुन्नीकलयिल, 1595 में मदुराई में, 1713 में पांडिचेरी, 1731 में तामिल नाडू के एल्लाक्युरिचिन में हाई स्कूल ऑफ़ तामिल तथा 1846 में मन्नानम में मसीही संस्कृत स्कूल की स्थापना की गई थी। अंग्रेज़ शासकों के कार्यकाल के दौरान शिक्षा का कुछ संगठित ढंग से विस्तार होने लगा था।


नए एलीमैन्ट्री स्कूल खोलने पर दिया गया ध्यान

फ़ादर बी.एम. थॉमस के अनुसार 1813 से लेकर 1833 का समय एलीमैन्ट्री स्कूलों के खोलने पर अधिक ध्यान दिया गया था। और इन सभी स्कूलों में पढ़ाई स्थानीय भाषाओं में ही करवाई जाती थी। 1818 तक सीरामपोर मसीही मिशनरी की स्थापना हो गई था तथा 100 अन्य स्कूल भी खुल गए थे, जिनमें 10,000 बच्चे पढ़ने भी लगे थे। फिर 1833 से लेकर 1857 तक का समय सैकण्डरी स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थापना का रहा। उसी समय के दौरान ही भारत में कुछ विलक्ष्ण मसीही कॉलेज भी खुले थे, जो अत्यंत प्रसिद्ध हुए। 1835 में कोलकाता में सेंट ज़ेवियर’ज़ कॉलेज, 1837 में मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज, 1843 में रॉबर्ट टी. नोबल कॉलेज आंध्र प्रदेश के मसूलीपट्टनम (जिसे आज मछलीपट्टनम भी कहा जाता है) में खोला गया था और जिसे बाद में नोबल कॉलेज नाम दिया गया; 1844 में नागपुर का हिसलौप कॉलेज तथा आगरा में 1853 में सेंट जौन’ज़ कॉलेज खोले गए थे। ये सभी कॉलेज आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं, जितने आज से 150 से भी अधिक वर्ष पहले थे। वर्ष 2000 में भारत में कुल 11,089 कॉलेज थे और उनमें से 250 मसीही कॉलेज थे, जो सफ़लतापूर्वक चल रहे थे।


महिलाओं को शिक्षित करने की प्रक्रिया हुई प्रारंभ

भारत में पहले महिलाओं की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। परन्तु जब इस ओर ध्यान दिया जाने लगा, तो सभी धर्मों, जातियों एवं क्षेत्रों की भारतीय महिलाओं में जागरूकता आ गई। इस मामले में भी भारत के मसीही अग्रणी रहे हैं। 1819 में देश का पहला महिला स्कूल कोट्टायम (केरल) में खोला गया था। चर्च मिशन सोसायटी (जो सी.एम.एस. के नाम से अधिक प्रसिद्ध रही है) के मिशनरियों मेरी ऐने कुक तथा श्रीमति विल्सन ने 1820 में कलकत्ता में लड़कियों के लिए शिक्षा पहली बार प्रारंभ की थी। सीरामपोर मसीही मिशन ने भी 1821 में अपने क्षेत्र में महिला स्कूलों की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई थी। मसीही मिशनों ने तब ‘ज़नाना मिशनों’ की विशेष रूप से स्थापना करनी प्रारंभ कर दी थी। 1881 में चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड की ओर से ज़नाना मिशनरी सोसायटी की स्थापना की गई थी।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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