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लोकमान्य तिलक के प्रसिद्ध कथन के असल रचयिता जोसेफ़ ‘काका’ बैप्टिस्टा



1925 में बंबई के मेयर बने थे जोसेफ़ बैप्टिस्टा

जोसेफ़ ‘काका’ बैप्टिस्टा बंबई (मुंबई) के एक मसीही राजनीतिज्ञ एवं कार्यकर्ता थे, जो लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एवं ‘होम रूल’ आन्दोलन से जुड़े हुए थे। लोकमान्य तिलक का एक कथन प्रसिद्ध है ‘स्वराज मेरा जन्म-सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा।’ वास्तव में यह कथन तिलक जी के लिए जोसेफ़ बैप्टिस्टा ने सृजित किया था। श्री जोसेफ़ बैप्टिस्टा 1925 में बंबई के मेयर के पद के लिए चुने गए थे। लोग उन्हें प्यार से ‘काका’ (चाचा) कहते थे।


17 वर्ष जुड़े रहे बंबई नगर निगम से

Joseph-Baptista-Kaka जोसेफ़ ‘काका’ बैप्टिस्टा का जन्म 17 मार्च, 1864 में बंबई के मैज़ागांव क्षेत्र के मातारपाकाडी में हुआ था। उनके पिता का नाम जौन बैप्टिस्टा था जो बसेईं (अब वसाई) के रहने वाले थे। वह पूर्वी भारत के रोमन कैथोलिक थे तथा उनके पूर्वज 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली शासन के दौरान मसीही बने थे।

श्री जोसेफ़ बैप्टिस्टा को इलैक्ट्रिकल इंजिननियरिंग के क्षेत्र के अग्रणी लोगों में भी माना जाता है। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के सेंट मेरी’ज़ स्कूल से ग्रहण की थी तथा बाद में कैम्ब्रिज के फ़िट्ज़विलियम कॉलेज से राजनीति-विज्ञान में स्नातक (बी.ए.) की डिग्री प्राप्त की थी। तभी वह लोकमान्य तिलक जी से मिले थे।

1901 में श्री जोसेफ़ बैप्टिस्टा बंबई नगर निगम से जुड़ गए थे तथा आगामी 17 वर्षों तक निगम का एक अंश बने रहे। वह आईरिश होम रूल आन्दोलन से प्रभावित थे।


‘सार्वजनिक गणपति’ समारोह का आयोजन करवाया करते थे बैप्टिस्टा

जोसेफ़ ‘काका’ बैप्टिस्टा ने भारतीय परंपरा के अनुसार शासन के कुछ नियमों का प्रस्ताव रखा था। लोकमान्य तिलक तब उनसे अत्यंत प्रभावित हुए थे और तभी उनके करीबी सहायक बन गए थे। वह स्थानीय लोगों में राष्ट्रवादी भावनाएं उत्पन्न करने के लिए विशेष तौर पर ‘सार्वजनिक गणपति’ समारोह का आयोजन करवाया करते थे।


ऐनी बेसैंट ने जोसेफ़ बैप्टिस्टा के साथ मिल कर अंग्रेज़ शासकों के विरुद्ध छेड़ा था ‘होम रूल’ आन्दोलन

1916 में श्रीमति ऐनी बेसैंट ने श्री जोसेफ़ बैप्टिस्टा के साथ मिल कर ही बेलगॉम इकाई के साथ ‘होम रूल’ आन्दोलन छेड़ा था। श्री बैप्टिस्टा वास्तव में लोकमान्य तिलक के कानूनी सलाहकार भी थे। बाद में उन्होंने ‘होम रूल’ संबंधी इंग्लैण्ड के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री डेविड लॉयड जॉर्ज व ब्रिटिश सरकार के विचार जानने के लिए उनका विशेष इन्टरव्यु (साक्षात्कार) लिया था। तब श्री डेविड के उस साक्षात्कार से कुछ ऐसा प्रभाव मिला था कि ‘ब्रिटिश मंत्री-मण्डल ने बिना किसी देरी के भारत को ‘होम रूल’ का अधिकार देने का निर्णय लिया है।’


विनायक दामोदर सावरकर भी रहे बैप्टिस्टा के मुवक्किल

श्री जोसेफ़ बैप्टिस्टा ने बंबई हाई कोर्ट में बैरिस्टर के तौर पर प्रैक्टिस भी की थी। श्री विनायक दामोदर सावरकर भी उनके मुवक्किलों में से एक रहे थे, जहां पर उन्होंने सुनवाई के दौरान मौलिक अधिकारों को सुनिश्चत करने का तर्क दिया था।


ऑल इण्डिया ट्रेड युनियन कांग्रेस (एटक) की थी स्थापना

1920 में ऑल इण्डिया ट्रेड युनियन कांग्रेस (एटक) की स्थापना की थी। श्रमिकों के नेता के तौर पर उन्होंने मिल वर्करों, डाकिया समुदाय तथा ब्लु-कॉलर श्रमिकों के अधिकारों हेतु आन्दोलन छेड़े थे। श्री जोसेफ़ बैप्टिस्टा चाहे यीशु मसीह के भक्त थे, परन्तु उन्होंने राजनीति में धर्म को कभी शामिल नहीं किया। वह मतदाताओं को बांटने के लिए कभी धर्म का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे। 1925 में वह एक वर्ष के लिए बंबई नगर निगम के मेयर रहे थे।


मुंबई के मैज़ागांव गार्डन्स का नाम है बैप्टिस्टा के नाम पर

श्री जोसेफ़ बैप्टिस्टा का निधन 1930 में हो गया था, उन्हें सेवरी कब्रिस्तान में दफ़नाया गया था। डॉकयार्ड रोड स्टेशन के समीप जहां पर मैज़ागॉन किला ढहा दिया गया है, उसके पास स्थित मैज़ागांव गार्डन्स का नाम श्री बैप्टिस्टा के नाम पर ही रखा गया है। 12 अक्तूबर, 2008 को स्थानीय नगर पार्षद श्री कपिल पाटिल ने अपने स्वयं के फ़ण्ड से श्री बैप्टिस्टा की कब्र पर एक विशेष स्मारक बनवाया था। तब उस समारोह में मुंबई की कैथोलिक सभा तथा एक अध्यापक संगठन ‘शिक्षक भारती’ के सदस्य भी उपस्थित थे।

1999 में श्री जोसेफ़ बैप्टिस्टा पर एक पुस्तक ‘जोसेफ़ बैप्टिस्टाः दि फ़ादर ऑफ़ होम रूल’ (जोसेफ़ बैप्टिस्टा: होम रूल के पितामह) भी लिखी गई थी, जिसे मुंबई के लालबाग़ क्षेत्र में श्री के.आर. शिरस्त ने जारी किया था। सचमुच इस पुस्तक में लिखित अनुसार श्री जोसेफ़ बैप्टिस्टा आधुनिक युवाओं हेतु एक आदर्श बने रहेंगे।

Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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