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देश में मसीही योगदान को 21वीं शताब्दी में समझने वाले भारत के पहले पास्टर आकाशदीप शर्मा, जयपुर
कई ज्वलंत प्रश्नों के क्या हों एक मसीही विश्वासी, प्रचारक व पादरी साहिबान के उत्तर?
वर्ष 2015 से लेकर 2019 तक जब मैं ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मसीही समुदाय का योगदान’ विषय पर अनुसंधान कर रहा था, तब यही दृढ़ निश्चय मन में था कि कि 2014 में देश की केन्द्रीय सत्ता पर जो लोग आसीन हो गए हैं, उन सभी को यह बताना है कि हम मसीही लोगों का योगदान भी भारत की अन्य जातियों, वर्गों व समुदायों में से किसी से कम नहीं है - क्योंकि सत्ताधारी लोगों के चमचे प्रकार के नेताओं ने तुरंत ही मसीही लोगों पर निशाने साधना प्रारंभ कर दिया था। परंतु अफ़सोस की बात यह है कि विगत 11 वर्षों में किसी भी बिशप तथा पादरी साहिबान व हमारे अन्य मसीही रहनुमाओं ने कभी ऐसे लोगों को मुंह-तोड़ जवाब देने का प्रयास ही नहीं किया। आख़िर जब संपूर्ण मसीही कौम उनका अनुसरण (फ़ॉलो) करती है, तो क्या इन तथाकथित रहनुमाओं का आम मसीही विश्वासियों के प्रति कोई दायित्व नहीं बनता? यह बड़ा प्रश्न है - जो आज हमारे सामने है।
हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या छोड़ कर जाएंगे - अनपढ़ किस्म के लोगों की प्रताड़नाएं, यातनाएं, आधारहीन ताने व उपहास? क्या निकट भविष्य या उसके बाद की पीढ़ियां हमें कभी क्षमा कर पाएंगी - यह ठीक है कि हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह ने हम सभी को क्षमा करना सिखलाया है परंतु अब पानी सर से गुज़र चुका है। वर्ष 2014 के पश्चात् पूरा एक दशक बीत चुका है, ऐसे लोगों को माफ़ करते-करते। ये सत्तासीन लोग मसीही समुदाय पर येन-केन प्रकारेण अत्याचार ढाने से बाज़ नहीं आ रहे। अब लोहे को लोहे से ही काटने का वक़्त आ गया है। जैसे अंग्रेज़ी की कहावत है - डायमंड कट्स डायमंड - अर्थात एक हीरे को केवल एक हीरा ही काट सकता है। ख़ैर हम इन मूर्खों की तरह कभी हिंसक नहीं हो सकते क्योंकि यह यीशु मसीह की प्राथमिक शिक्षाओं की अवमानना होगी। परंतु हम मूर्ख लोगों के आधारहीन आरोपों के तर्कपूर्ण उत्तर अर्थात बादलील जवाब तो दे ही सकते
हैं।
बाल यीशु ने भी की थी अपने समय के धर्म-गुरुओं से तार्किक बहस
जब येरुशलेम में 12 वर्षीय बाल यीशु वहां विद्यमान इज़रायली धार्मिक नेताओं व धर्म-गुरुओं से प्रश्न भी पूछ रहे थे तथा उन्हें तार्किक उत्तर भी दे रहे थे और वहां पर मौजूद धर्म-गुरु उस बाल यीशु के समक्ष निरुत्तर हो रहे थे। क्या आज हमारे किसी भी धार्मिक नेता में इतनी शक्ति नहीं है कि वे उठ कर ऐसे मूर्ख लोगों के साथ ऐसी कोई बहस कर सकें। आज यह ज़िम्मेदारी जयपुर (राजस्थान) के विज़नरी चर्च के माननीय पास्टर आकाशदीप शर्मा ने उठाई है। इससे पूर्व कि मैं माननीय आकाशदीप जी के बारे में कुछ और बात करुं, थोड़ा आज की स्थिति को समझ लेते हैं कि आख़िर आज हमारे अपने देश भारत में हो क्या रहा हैः
गोदी मीडिया ऐसे करता है हमारे भोले-भाले पादरी साहिबान को अपमानित
सत्तासीन लोगों, समुदायों, वर्गों के मूर्ख व भक्त किस्म के अनुयायी, विशेषतया तलवे चाटने वाले मीडिया-कर्मी एक पादरी साहिब (जिन्हें दुनियावी, ऐतिहासिक व तार्किक ज्ञान लेशमात्र भी नहीं होता) को अपने टीवी चैनल पर दिखावे के सम्मानीय ढंग से आमंत्रित करते हैं तथा उनके सामने घाघ प्रकार के पढ़े-लिखे व मसीहियत का उपहास उड़ाने में विशेषज्ञ नेताओं को भी बिठा लेते हैं। अब जैसे दुनियावी प्रश्न कैमरे के सामने उन पादरी साहिब से पूछे जाते हैं, वह उनका उत्तर बहुत अनाड़ी ढंग से पवित्र बाईबल से देने का असफ़ल प्रयत्न करते हैं, जो सामने बैठे किसी भी व्यक्ति को मान्य नहीं होता। वास्तव में ऐसे बहस-मुबाहिसे में थोड़ा दुनियावी ज्ञान चाहिए होता है, जिसके आधार पर ऐसे लोगों को मुंह-तोड़ जवाब दिया जा सके। ऐसी टीवी बहस में हमारे पास्टर साहिबान पराजित हो जाते हैं और वे मूर्ख तलवे-चाट लोग उस वर्ग को महान घोषित कर देते हैं, जो विगत एक दशक से उन्हें करोड़ों रुपए के विज्ञापनों के रूप में घूस देता आया है तथा भारत की केंद्रीय सत्ता पर आसीन है। यदि आज सोशल मीडिया न हो, तो आज लोगों तक वास्तविकता कभी पहुंच ही न पाए। लेकिन अब तो कहा यह भी जा रहा है कि देश की सरकार सोशल मीडिया की लगाम भी कसने की तैयारी में है, ताकि कहीं किसी प्रकार से सरकार का कहीं कोई विरोध हो ही न पाए।
वर्तमान सताधारी लोग मसीही पास्टर साहिबान पर आज यही बेबुनियाद आरोप लगाते हैं कि वे आर्थिक लालच व अन्य कई प्रकार के प्रलोभन दे कर ग़रीब लोगों को धर्म-परिवर्तन करवा रहे हैं। ऐसे आरोपों का कोई तार्किक उत्तर अभी तक हमारे मसीही धार्मिक नेता सफ़लतापूर्वक नहीं दे पाए हैं। इसका उत्तर देने के साथ-साथ हम पास्टर आकाशदीप शर्मा की भी बात करेंगे।
देश में मसीही योगदान को समझने वाले आकाशदीप शर्मा पहले पास्टर
उपर्युक्त परिस्थितियों में पास्टर आकाशदीप शर्मा ने अपने यू-ट्यूब व सोशल मीडिया के अपने कुछ अन्य अकाऊंट्स के द्वारा सत्तासीन लोगों के आरोपों को मुंह-तोड़ जवाब देने का बीड़ा उठाया है। वह ‘विज़नरी रेडियो एण्ड टीवी’ नाम से अपना एक यू-ट्यूब चैनल चलाते हैं, जिसके आज बुधवार - 5 फ़रवरी, 2025 को 2.11 लाख से अधिक सब्सक्राईबर्स हैं और उनमें दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। परमेश्वर उन्हें अपनी आशीषों से समृद्ध करें !!! आकाशदीप शर्मा हमारे भारत के पहले ऐसे पास्टर हैं, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान डालने वाले मसीही व्यक्तित्वों को समझने का सफ़ल प्रयास किया।
मसीही समुदाय के समक्ष कुछ ज्वलंत प्रश्न
यह बात निश्चित है कि इन सत्तासीन लोगों का तो एकमात्र यही ‘आरएसएस एजेंडा’ है कि आज ‘एक देश एक चुनाव’ या ‘एक देश एक राशन कार्ड’ की आड़ में किसी भी प्रकार से अंततः ‘एक राष्ट्र एक धर्म’ के तथाकथित लक्ष्य तक पहुंचा जाए। इसी लिए ये लोग अन्दर ही अन्दर मसीही समुदायों, मुस्लिम भाईयों-बहनों, पारसियों, जैन लोगों, दलित समुदायों व अन्य अल्प-संख्यकों को दबा कर उनके धर्म-परिवर्तन करवाने के कार्य में व्यस्त हैं। अपने इस मिशन को यह ‘घर वापसी’ का नाम देते हैं, जबकि यह सरासर व सीधे तौर पर धर्म-परिवर्तन की गतिविधि ही है। वास्तविक लोकतांत्रिक व धर्म-निरपेक्ष शक्तियों को ऐसी गतिविधियों का तत्काल रुकवाने व समाप्त करवाने के कार्यों में संलग्न होना होगा।
यही सत्तासीन भाजपाई, आरएसएस, विश्व हिन्दु परिषद व बजरंग दल के लोग जब मसीही पादरी (पास्टर) साहिबान व मसीही प्रचारकों पर धर्म-परिवर्तन के आरोप लगाते हैं, तो वास्तव में इन्हें सदैव इसी बात का भय रहता है कि यदि ‘मसीही धर्म के स्व-चालित पासार’ (जो स्वयं अपनी धार्मिक सद्भावना व द्वेष से ऊपर उठ कर, अहिंसा के सिद्धांत व सशस्त्रहीन (बिना किसी हथियार के) प्रचार किये जाने के कारण बढ़ता ही जा रहा है) को रोका न गया, तो समाज में इनका आधिपत्य तो समाप्त हो जाएगा। वास्तव में इनका एकमात्र एजेंडा भारत को एक ‘हिन्दु राष्ट्र’ घोषित करना है। इसी लिए ऐसे सत्तासीन लोग मसीही समुदाय के भारत व इसके स्वतंत्रता संग्राम में वर्णनीय योगदान को जानबूझ कर नज़रअंदाज़ करते रहेंगे। ऐसे लोगों के सक्रिय रहते ही हमारे मसीही समुदाय को एक विलक्षण मिसाल बन कर जीना है।
इस तथ्य से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि यदि आरएसएस की मानसिकता वाले लोग भारत की केंद्रीय सत्ता पर आसीन नहीं हुए होते, तो शायद मैं ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मसीही समुदाय का योगदान’ विषय पर कभी अनुसंधान करने हेतु सोचता भी नहीं। इस लिए अंग्रेज़ी की कहावत ‘ए ब्लैसिंग इन डिस्गाईज़’ के अनुसार यह अच्छा ही हुआ कि ये लोग सत्तासीन हुए और बहुत से अपने लगने वाले लोगों की वास्तविकता सामने आ गई। जब मुग़ल व अंग्रेज़ों का राज्य नहीं रहा - इन बरसाती मेंढकों व कायर किस्म के लोगों की तो औकात ही क्या है।
कैसा अंत होता हैं अहंकारी व अत्याचारी शासकों का !
जिस तीव्र गति से ये सांप्रदायिक लोग अपनी मनमानियां कर रहे हैं, उसे देख कर तो यही लगता है कि इनका अंत अब अत्यधिक समीप है। इन्हें लगता है कि वे देश की सांप्रदायिक एकता को समाप्त करने में सफ़ल हो गए हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है - चुनावों में कथित धांधलियां करके ये लोग सत्ता को तो हथिया लेते है परंतु आम लोगों के दिलों पर कभी राज्य नहीं कर सकते। इनका हश्र बिल्कुल वैसा ही होगा, जो जुलाई 2022 में श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षा का हुआ था। जन-साधारण के आक्रमण के डर से उसे अपना देश छोड़ कर भागना पड़ा था। तभी आम लोगों ने उसके बिस्तर पर लेट कर व उसके सोफ़ा-सैट पर बैठ कर देखा था। उसके तरण-ताल (स्विमिंग पूल) में तैर व नहा कर आनंद उठाया था। जो आज पूर्णतया मसीही समुदाय के निर्दोष लोगों पर अत्याचार ढाह रहे हैं, उनके लिए मेरी यह भविष्यवाणी समझ लीजिए या ‘एक आह’ अथवा ‘एक बद्दुआ’ ही समझ लें कि इन लोगों का हश्र बिल्कुल इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन व लिबिया के शासक रहे मुअम्मार गदाफ़ी जैसा ही होने वाला है - ऐसी बात मैं तथ्यों के आधार पर ही कह नहीं अपितु लिख रहा हूं क्योंकि जब किसी बात की अति हो जाती है, तो उसका अंत निश्चित होता है। ये लोग जितना ही मसीही समुदाय को दबाने का प्रयास करेंगे, इन लोगों का अंत उतना ही समीप आता जाएगा और मसीही समुदाय नित्य नये शिख़रों पर विजय पाता चला जाएगा।
अफ़सोस तो इस बात का भी है कि हमारे मसीही समुदाय में ही एकता नहीं है - कहीं पर कोई मिशन आड़े आ जाती है, तो कहीं मसीही-प्रार्थना करने का ढंग तथा कहीं पर स्थानीय मानसिकता वाली राजनीति बड़ी अड़चन बन जाती है। इस विषय पर हम पृथक रूप से बड़ी बहस करते हुए अपना दृष्टिकोण रख चुके हैं।
हमारे पादरी/मसीही प्रचारक साहिबान व आम मसीही-जन ऐसे दें मुंह-तोड़ जवाब धर्म-परिवर्तन के आरोपों का
अब करें बात मसीही समुदाय पर लगने वाले धर्म-परिवर्तन के बेबुनियाद (आधारहीन) आरोपों की। इसका सीधा व दो टूक उत्तर इस प्रकार दिया जा सकता है। ऐसे उत्तर देने का कार्य मुख्यतः हमारे धार्मिक रहनुमाओं को ही देना चाहिए - परंतु क्योंकि वह इस मामले में कोई पहलकदमी नहीं कर रहे हैं तथा इस बारे में शायद कुछ सोचना भी नहीं चाहते हैं तथा पंजाब में तो बड़े-बड़े झुण्ड प्रत्येक रविवार की प्रार्थना सभाओं में एकत्र करके अपना शक्ति-प्रदर्शन करना चाहते हैं तथा वहां पर आने वाले श्रद्धालुओं के चन्दे से अपनी गुल्लकें अधिक से अधिक भर लेना चाहते हैं। दरअसल, हमारे हिन्दु व सिख धार्मिक लीडर लोगों को भी शायद धर्म-परिवर्तन की इतनी चिंता नहीं है, जितनी उन्हें अपनी गुल्लकों (सिख समुदाय इसे ‘गोलक’ कहता है) में श्रद्धालुओं द्वारा डाली जाने वाली राशि में नित्य प्रतिदिन होती जा रही कमी की है। पंजाब व पंजाबियों में तो ‘गोलक की लड़ाई’ काफ़ी मशहूर है - देश में ही नहीं विदेशों में स्थित गुरुद्वारा साहिबान में भी। गुरुद्वारा साहिबान में स्थानीय समितियों के चुनावों में हमने दस्तारें (पगड़ियां) उछलती हमने शायद दर्जनों नहीं, अपितु सैंकड़ों बार देखी हैं। उन हिन्दु व सिख धार्मिक नेताओं को लगता है कि यदि यह मसीही धर्म न हो और यह डेरा सिरसा, डेरा ब्यास जैसे संस्थान न होतीं, तो उनकी गुल्लकें तो अब के मुकाबले दुगनी-तिगुनी हो जातीं। ख़ैर इस लम्बी बहस को छोड़ कर अपने मुख्य मुद्दे पर आते हैं। ये रहे आपके वे जवाब, जिनके आधार पर सत्तासीनों के तलवे चाटने वाले मीडिया व अन्य तथाकथित धार्मिक नेताओं को आप मुंह-तोड़ जवाब दे सकते हैंः
एक मसीही विश्वासी का ऐसा हो जवाब
- यदि मसीही लोग धर्म परिवर्तन करते हैं, तो आप लोग अपने बच्चों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतु अमेरिका, कैनेडा, इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंण्ड व यूरोप के उन देशों में क्यों भेजते हैं - जहां पर मसीही जनसंख्या अधिक है।
- क्या कभी अमेरिका व इंग्लैण्ड में पढ़ने वाले किसी भारतीय छात्र या छात्रा ने कभी ऐसा कोई आरोप लगाया है कि उन्हें धर्म-परिवर्तन करने पर विवश किया जा रहा है, जबकि अपने देशों में तो वे लोग किसी भी अप्रवासी पर मसीही/ईसाई बनने का दबाव डाल सकते हैं परंतु ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा।
- भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी व उस समय के ब्रिटिश लोगों का एकमात्र यही ध्येय रहा था कि वे किसी न किसी प्रकार से ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाले भारत के प्राकृतिक स्रोत व संसाधन तथा कोहिनूर हीरे जैसी अपार धन-दौलत अपने देश में ले जाएं। यदि वे लोग अपनी सत्ता व तलवार के ज़ोर पर चाहते, तो कभी भी यह सब कर सकते थे। यदि वे ऐसा करते, तो आज मसीही लोगों की जनसंख्या 140 करोड़ के मुकाबले केवल तीन करोड़ ही न होती, बल्कि चालीस-पचास करोड़ से भी अधिक होती।
- इंग्लैण्ड की महारानी एलिज़ाबैथ-प्रथम (1533-1603) ने 16वीं शताब्दी अर्थात 1550 के पश्चात् के किसी दशक में ही चर्च पर सरकारी काम-काज में हस्तक्षेप करने पर पूर्णतया प्रतिबंद्ध लगा दिया था। अतः चर्च का सरकार से नाता सदा के लिए टूट गया था, जबकि तब तक चर्च का सरकारी कामों में पूर्णतया दख़ल रहता था। इसी लिए जब अंग्रेज़ लोग भारत की सत्ता पर आसीन हुए, तो उन्होंने कभी अपने धर्म की कोई बात नहीं की।
- भारत में मसीही धर्म केवल इस लिए तीव्रता से फल-फूल रहा है क्योंकि हमारे देश के समाज में जाति, वर्ग, नस्ल, ऊँच-नीच व व्यवसाय के आधार पर अत्यधिक भेदभाव है। बहुत से लोग उन बहुसंख्यकों के भेदभाव, अत्याचार व उपहास को सहन नहीं कर पाते; उनके पूर्वज चाहे विगत कई शताब्दियों से यह सब झेलते आए हैं, वे टूट कर स्वेच्छा से अपने समक्ष मौजूद एक विशाल विकल्प मसीही धर्म को अपना लेते हैं।
- दलितों को कभी ब्राह्मण के धार्मिक प्रवचन सुनने की अनुमति नहीं हुआ करती थी। आज भी गुजरात, राजस्थान, हरियाणा अन्य कुछ राज्यों में दलितों के साथ अत्याचार की घटनाएं सामने आ ही जाती हैं। अभी 10 दिसम्बर, 2024 को मध्य प्रदेश के दमोह ज़िले में सेहरा बांधे एक दलित दूल्हे के साथ केवल इस लिए मार-पीट की गई कि वह एक तो घोड़ी पर चढ़ गया था (वहां पर कोई भी दलित घोड़ी पर नहीं बैठ सकता, ऐसा केवल तथाकथित स्वर्ण जाति के लोग ही कर सकते हैं)। वहां पर कुछ ठाकुर लोगों के एक गुट द्वारा घोड़ी को भी बुरी तरह से पीटा गया। विगत वर्ष फ़रवरी माह के दौरान गुजरात में भी ऐसी कई घटनाएं घटित हो चुकी हैं। ऐसे समाचारों को आप किसी भी समय इंटरनैट पर सर्च कर सकते हैं। क्या ऐसे प्रताड़ित लोग अन्य धर्मों की शरण में नहीं जाएंगे?
- पंजाब, जो मेरी जन्म व कर्म-भूमि है, में दलित लोगों के साथ बड़े स्तर पर भेदभाव होता आया है। जट्ट (जाट समुदाय) लोगों के गुरुद्वारे अलग हैं, जबकि रविदास व वाल्मिकि समुदाय के गुरुद्वारे अलग हैं। रविदास व वाल्मिकि समुदायों के बहुत से गुरुद्वारा साहिबान में तो सिखों के श्री गुरु ग्रंथ साहिब को हटा कर ‘श्री गुरु रविदास अमृत बाणी’ नामक अपना एक अलग ग्रंथ रखवा दिया गया है। इसी लिए दलित लोगों ने अलग-अलग हज़ारों डेरों, जैसे कि डेरा ब्यास, डेरा सिरसा, नामधारियों के मुख्यालय भैणी साहिब (लुधियाना), कुछ प्रमुख नाम हैं, में जाना प्रारंभ कर दिया है। उन्हें क्यो नहीं रोका जाता? क्यों मसीही धर्म को बदनाम किया जाता है? इसका भी उत्तर जान लीजिए...
- मसीही पादरी व प्रचारक साहिबान पर बहुसंख्यकों के पुजारी वर्ग ने ही सर्वप्रथम धर्म-परिवर्तन के आरोप लगाने प्रारंभ किए थे। दरअसल, उन्हें अपनी दुकानदारी बंद होने की आशंका हो गई थी। कुछ विदेशी मसीही लोगों ने भारत में आ कर महिलाओं व दलित लोगों को शिक्षित करना प्रारंभ कर दिया था। इस बात से पुजारी वर्ग को दिक्कत थी - क्योंकि तब तक केवल ब्राह्मण व क्षत्रिय वर्गों को ही शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार था। अंग्रेज़ वायसरायों व मसीही प्रचारकों ने मिल कर भारत में सती प्रथा (इस प्रथा में जब किसी व्यक्ति का निधन हो जाता था, तो उसकी पत्नी को भी उसकी चिता में जीवित जला दिया जाता था) बंद करवाई, देवदासी प्रथा (इस प्रथा के अंतर्गत ब्राह्मण लोग कथित तौर पर ‘निम्न’ जातियों या कुछ निर्धन परिवारों की युवतियों को मन्दिरों की सेवा करने के नाम पर मन्दिर में ही रख लिया करते थे परंतु अन्दरखाते वे उनका योन शोषण भी किया करते थे) समाप्त करवाई। देश के कुछ क्षेत्रों में नर-बलि व पशु-बलि देने की प्रथा भी थी - ऐसे कुकृत्यों को बंद करवाया। बिना मतलब के वहम-भ्रमों को वैज्ञानिक शिक्षा के पासार द्वारा दूर करवाने के अथक प्रयास किए। ऐसी परिस्थितियों में पुजारी वर्ग का आतंकित व आहत होना स्वाभाविक था। इन लोगों ने तो जन-साधारण को आधारहीन रीति-रिवाजों व भ्रमों में फंसा कर लोगों को मूर्ख बनाने का धंधा कई सदियों से अपना रखा था - वह सब खेल मसीही लोगों के आते ही समाप्त होने लगे। तब इन लोगों ने मसीही धर्म-प्रचारकों पर धर्म-परिवर्तन के झूठे आरोप लगाने प्रारंभ कर दिए - कि यह लोग तो आप सभी को ईसाई/मसीही बना लेंगे। जबकि सत्य यह है कि...
- मसीही लोगों ने अधिकतर अस्पताल व शिक्षण संस्थान ही खोले। वहां पर अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से वैज्ञानिक शिक्षा का प्रचार व पासार किया जाने लगा। अच्छी बात किस को अच्छी नहीं लगेगी। उन्होंने चिकित्सालय खोले व अपनी अंग्रेज़ी दवायों से सस्ता उपचार उपलब्ध करवाया। यहां मैं अपने स्वयं के परिवार की उदाहरण देकर समझाना चाहता हूं कि हमारे दादा कर्म मोहम्मद 1930 के दशक में कैसे एक मुस्लिम से मसीही कर्म मसीह बन गए थे। वह महल कलां (ज़िला बरनाला, पंजाब) में रहते हुए एक बार कुछ अधिक बीमार हो गए, तो उन्हें उस समय 58.6 किलोमीटर दूर कभी किसी बैलगाड़ी में तथा कभी कई किलोमीटर दूर पैदल चल कर लुधियाना के क्रिस्चियन मैडिकल कॉलेज व अस्पताल (सीएमसी) में दाख़िल होना पड़ा। वहां पर वह मसीही पादरी साहिबान की प्रार्थनाओं व मसीही नर्सों की सेवा से शीघ्रतया ठीक हो गए। तब तक दूर व समीप की रिश्तेदारी में किसी ने भी उनकी बात तक नहीं पूछी थी। उन्होंने तभी ऐसी सच्ची मसीही जन-कल्याणकारी शिक्षाओं व सेवाओं से प्रभावित हो कर एक सच्चा मसीही बनने का दृढ़ संकल्प ले लिया था। भारत में अधिकतर लोगों ने ऐसे ही यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता माना है। किसी ने वैज्ञानिक शिक्षा व अपने मसीही स्कूल के ईसाई अध्यापक से प्रभावित हो कर मसीही धर्म को अपनाया तो किसी ने चिकित्सा संस्थानों में होने वाली सेवाओं के कारण ऐसा किया। 1800-1900 के दौरान ऐसा तीव्रता से हुआ। तभी देश के बहुसंख्यकों के पुजारी वर्ग ने मसीही पादरी साहिबान व प्रचारकों पर धर्म-परिवर्तन के आरोप लगाने प्रारंभ किए थे।
- आरएसएस, बजरंग दल व विश्व हिन्दु परिषद के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने यह धर्म-परिवर्तन के आरोप वाली बात पकड़ ली। अफ़सोस तो तब हुआ, जब यह झूठी बात पंजाब के सिख रहनुमाओं को भी जंच गई। उन्होंने भी अब मसीही समुदाय पर ऐसे भद्दे आरोप लगाने प्रारंभ कर दिए हैं। परिणामस्वरूप पंजाब की बहुत सी ग्राम-पंचायतों ने मसीही लोगों पर कई प्रकार के प्रतिबंद्ध लगाने प्रारंभ कर दिए हैं। दुबई से आए अमृतपाल सिंह (अब एमपी) ने सरेआम यीशु मसीह को बुरा-भला कहा, परंतु किसी सिख नेता या बुद्धिजीवी के मुंह से निंदा का एक शब्द भी नहीं निकला। परंतु जब उसी व्यक्ति ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब से सुसज्जित पालकी को अजनाला पुलिस थाने में जाकर खड़ा कर दिया, तब जाकर सिख समुदाय की आंख खुली और उस पर केस दर्ज हुए। दुबई में वह व्यक्ति बिल्कुल भी केशधारी नहीं था और एक ड्राईवर था। परंतु यहां पर आकर उसने संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले का वेश धारण कर लिया - तो लोगों का नायक बन गया। वास्तव में ऐसी स्थिति के लिए केवल और केवल शिरोमणि अकाली दल की कई ग़लतियां ज़िम्मेदार हैं। इसी लिए अब ऐसे ही तत्व स्वयं को ‘पंजाब के वारिस’ बताने लगे हैं। कितने अफ़सोस की बात है...। पंजाब क्या केवल किसी एक समुदाय का है? हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, जैन, बौद्ध इत्यादि सभी का है।
- जब दलित लोगों ने देखा कि स्वयं को ‘स्वर्ण’ जाति होने का दावा करने वाले जट्ट (जाट) लोग तो उन्हें अपने गुरुद्वारा साहिबान में ठीक ढंग से घुसने भी नहीं देते हैं और यदि कोई गुरुद्वारा साहिब में कभीा कोई दलित चला भी गया, तो उनसे ठीक व्यवहार नहीं किया जाता। कभी कोई जाट परिवार अपने लड़के या लड़की का विवाह किसी दलित लड़की या लड़के के साथ करने को बर्दाश्त नहीं कर सकता। ऐसे दिखावे वाले पारिवारिक सम्मान की ख़ातिर पंजाब में अब तक शायद हज़ारों नहीं बल्कि लाखों बच्चों-बच्चियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। इसी लिए पंजाब में ‘ऑनर किलिंग’ का मुद्दा बड़ा ही गंभीर है - और इसके मुकाबले मसीही चर्च में सभी एकसमान सीटों पर बैठते हैं और कहीं कोई भेदभाव नहीं है। किसी मसीही परिवार को किसी दलित लड़के या लड़की से अपनी लड़की अथवा लड़के से करने में कभी कोई आपत्ति नहीं होती - न कभी हुई और न कभी भविष्य में होगी। ‘ऑनर किलिंग’ की समस्या केवल व केवल हिन्दुओं व सिखों की तथाकथित उच्च जातियों व वर्गों में ही है। ऐसी परिस्थितियों में दलित लोग क्यों नहीं मसीही बनेंगे। कौन रोकेगा उन्हें? कब तक उन्हें रोक कर रखा जा सकेगा? जैसे-जैसे शिक्षा व ज्ञान का पासार हो रहा है, और अधिक लोग मसीही धर्म की ओर आकर्षित होंगे। यह अपने तथाकथित पारिवारिक सम्मान रखने वाले कथित उच्च वर्ग स्वयं का अस्तित्व भी अधिक समय तक कायम नहीं रख पाएंगे - क्योंकि नई पीढ़ियां अब ऐसी बातों को मानने वाली नहीं हैं।
- अब हरियाणा की उदाहरण ले लें। आरएसएस, विश्व हिन्दु परिषद व बजरंग दलियों जैसे हिन्दु नेताओं के भेदभाव व ऐसे अन्य कथित अत्याचारों से दुःखी हरियाणा का जाट समुदाय (जिनकी जनसंख्या हरियाणा की कुल अनुमानित ढाई करोड़ की आबादी का एक-चौथाई भाग है अर्थात 50-60 लाख के करीब है) अब बड़ी संख्या में हिन्दु धर्म का त्याग करके सिख बनने को तैयार बैठा है। जब भी कभी यह मुद्दा अब दोबारा गर्माएगा, तो वे ऐसा कर लेंगे। हवा सिंह सांगवान जैसी बहुचर्चित जाट शख़्सियत वाले व्यक्ति तो सिख धर्म को अपना भी चुके हैं। और अब उनके जैसे एक-दो नहीं बल्कि लाखों लोग सिख बनने को सहमत हो चुके हैं। लेकिन उन्हें तथाकथित उच्च वर्ग के सिखों की स्वयं को महान समझने व बताने की मानसिकता का जब पता चलेगा, तो वे कितने दिन उनके साथ काट पाएंगे। डॉ. भीम राव अंबेडकर ने 14 अक्तूबर, 1956 को जब बौद्ध धर्म को अपनाया था, तो पहले उन्होंने अपने कुछ सिख जानकारों व सलाहकारों से पूछा था कि क्या उन्हें व उनके परिवार को सिख धर्म में समान दर्जा मिल पाएगा, तो उन्हें आगे से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया था। इसी लिए तब उन्होंने सिख धर्म को अपनाने का विचार त्याग दिया था। उन्होंने तब यही सोचा होगा कि वह तो पहले ही हिन्दु धर्म की तथाकथित उच्च जातियों, वर्णों व वर्गों की व्यवस्था से दुःखी हैं, तो अब और दुःखी नहीं होंगे। पंजाब में आज भी वही स्थिति है, बल्कि कहा जाए तो शायद यदि डॉ. अंबेडकर के ज़माने में वह स्थिति ‘बद’ थी, तो अब और भी अधिक ख़राब अर्थात ‘बदतर’ हो चुकी है। अब मान लें कि हरियाणा के सभी लाखों जाट लोगों ने सिख धर्म को अपना लिया परंतु जब उन्हें अन्दर की बातों का पता चलेगा, तो उनमें से बहुत सारे मसीही धर्म की ओर ही आएंगे - उस प्रक्रिया को कभी कोई रोक ही नहीं सकता। यह सभी बातें आप अभी से नोट करके रख लें। यह सब हो कर रहेगा -हां यह हो सकता है कि इस प्रक्रिया को निष्पन्न होने में 50 वर्ष लग जाएं क्योंकि ऐसे बड़े परिवर्तन एक-दो दिनों में कभी नहीं हुआ करते हैं। लोगों का मन बदलने की प्रक्रिया बहुत धीमी हुआ करती है। लोग कई वर्षों तक ऐसा आत्म-मंथन किया करते हैं, तब जाकर कहीं ऐसा कोई धर्म परिवर्तन करने का निर्णय लेते हैं।
- यह भी एक सार्वजनिक तथ्य है कि हमारे संविधान में यह दर्ज है कि यदि कोई दलित व्यक्ति या परिवार मसीही धर्म को अपना लेता है, तो उसे दलित होते हुए मिलने वाले सभी आरक्षण जैसे अन्य कई लाभ मिलने स्वतः बन्द हो जाते हैं। फिर भी अधिकतर दलित लोग ही मसीही धर्म को दिल से व स्वेच्छा से अपनाते चले आ रहे हैं। यह भी सत्य है कि कभी किसी सिख गुरु साहिबान ने ऐसे जातिगत व वर्गीय भेदभाव करने की शिक्षा नहीं दी, सभी को एकसमान नज़र से देखने का ही उपदेश दिया परंतु फिर भी सिख समाज में ऐसी जातिगत कुरीतियां बड़े स्तर पर विद्यमान हैं। क्यों...? इसका उत्तर तो धार्मिक नेता ही दे सकते हैं।
- पहली बात, वर्तमान दौर में कोई भी पैसे या धन-दौलत के लालच से या निःशुल्क इलाज करवाने के नाम पर या विदेश भेजने के लोभ दे कर किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करवा सकता। आप किसी भिखारी को 50 हज़ार या एक लाख रुपए देकर उसे धर्म-परिवर्तन करने का लालच देने का तजुर्बा करके देख लें, वह शायद आपके मुंह पर वही पैसे दे मारेगा। मेरे पिता श्री जॉर्ज सैमुएल विगत 60 वर्षों से भी अधिक समय से पास्टर के तौर पर सेवकाई कर रहे हैं, वह अभी तक अपना स्वयं का घर नहीं बना पाए। यदि मसीही मिशनों व प्रचारकों में धन के या अन्य कोई प्रलोभन दे कर लोगों के धर्म-परिवर्तन करवाने की शक्ति होती, तो अब तक आधा भारत मसीही बन चुका होता।
- यह एक सर्वविदित तथ्य है कि मसीही धर्म जितना उदार है और कोई अन्य धर्म उतना नहीं हो सकता। यहां इस मामले में मैं अपनी स्वयं की उदाहरण देना चाहूंगा। मैं जन्म से एक मसीही हूं और मुझे एक मसीही होने पर गर्व है कि हमारे पूर्वजों ने ऐसे अच्छे धर्म को सही समय पर अपना लिया। यीशु मसीह एक एशियन थे क्योंकि यदि हम दक्षिण एशिया से यूरोप की ओर जाएं, तो इज़रायल एशिया का अंतिम देश है। विश्व में अब तक जितने भी धर्म हुए हैं, वे सभी एशिया में ही उत्पन्न हुए हैं। वास्तव में यह क्षेत्र आध्यात्मिक सोच व समझ में सर्वोपरि है।
मैं विगत 46 से भी अधिक वर्षों से लेखन (पंजाबी भाषा में मेरी 11 तथा हिन्दी में 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं) व 36 वर्षों से पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़ा हुआ हूं तथा हिन्दुस्तान टाईम्स (एचटी पंजाबी टीम के हैड व असिसटैंट एडिटर के तौर पर), पंजाबी ट्रिब्यून (सब-एडिटर), देश सेवक (पहले सब-एडिटर व फिर न्यूज़ एडिटर), पंजाबी जागरण (असिसटैंट एडिटर), हमदर्द - कैनेडा व अमेरिका (मैनेजिंग एडिटर) जैसे दैनिक समाचार-पत्रों व प्रीत लड़ी जैसे 92 वर्षों सेे प्रकाशित होते आ रहे मासिक पत्र में कार्यरत रह चुका हूं।
‘पंजाबी जागरण’ के संपादक श्री वरिन्दर सिंह वालिया जी ने दिए अनेक सुअवसर
वैसे तो मैं सभी अख़बारों व मीडिया हाऊसेज़ में न्यूज़ डैसक पर ही रहा हूं परंतु ‘पंजाबी जागरण’ के संपादक श्री वरिन्दर सिंह वालिया जी ने मुझे फ़ील्ड की पत्रकारिता करने के अनेक सुअवसर प्रदान किए। कार्यालय में जब भी कोई उच्च गणमान्य शख़्सियत आया करती थी, तो वह मुझे ही उससे बातचीत करने या उसका साक्षात्कार लेने को ही प्राथमिकता दिया करते थे, जबकि कार्यालय व संस्थान में ऐसे कार्य हेतु एक नहीं दर्जनों अन्य विकल्प मौजूद हुआ करते थे।
उन्होंने मुझे 2018 में पंजाब विधान सभा के शाहकोट निर्वाचन-क्षेत्र के उप-चुनाव को कवर करने हेतु सुश्री तेजिन्दर कौर थिंद के साथ भेजा। लगभग 25 दिनों तक चला वह अभियान अत्यधिक सफल रहा। तब संपादक जी के हमें निर्देश थे कि हम किसी राजनीतिक नेता से कोई बात नहीं करेंगे, जो भी फ़ीडबैक लेंगे वह केवल आम लोगों से ही लेंगे व केवल उन्हीं से बात करके कोई तथ्य निकालेंगे। उन दिनों में मैंने श्री वालिया जी के निर्देशन में बहुत कुछ सीखा। ख़ैर सीख तो अब भी रहा हूं। फिर उन्होंने मुझे श्री गुरु नानक देव जी के विवाह पर्व को कवर करने हेतु पंजाब के सुल्तानपुर लोधी भेजा, मैंने वहां की रिपोर्टिंग की, जिसकी ख़ूब सराहना हुई। फिर उन्होंने मुझे 2022 में करतारपुर साहिब कौरिडोर व उसके आस-पास के पाकिस्तान की सीमा से सटे हुए पंजाब के गांवों के जीवनयापन व जन-साधारण के चुनावी मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने हेतु भेजा, वह तजुर्बा भी ख़ूब सफ़ल रहा। ‘हिन्दुस्तान टाईम्स’ को ज्वाईन करने हेतु जब मैं पहली बार 2018 में ‘पंजाबी जागरण’ को छोड़ कर जाने लगा, तो वहां के 50 से अधिक स्टाफ़ के मेरे कुलीग्स ने मुझे यीशु मसीह का एक बड़ा चित्र उपहार स्वरूप भेंट किया, जो आज भी मेरे घर की शोभा बढ़ा रहा है। फिर दूसरी बार मैंने 2022-2023 में दो वर्ष के लिए पुनः ‘पंजाबी जागरण’ के लिए काम किया।
- मेरे बचपन के मित्र पवन वर्मा, जो पंजाब के मालेरकोटला के समीपवर्ती गांव तक्खर के सीनियर सैकण्डरी स्कूल से हैडमास्टर के पद से सेवा-निवृत्त हुए हैं। मैं उन्हें उपहार स्वरूप कुछ देना चाहता था परंतु मेरी कभी आर्थिक हैसियत इतनी नहीं रही कि मैं कभी अपने किसी समीपवर्ती मित्रजन या पारिवारिकजन कोई कभी कोई कीमती व यादगारी उपहार दे सकूं। इसी लिए मैंने एक योजना बनाई। मैं 29 अक्तूबर, 2022 को अपने मित्र पवन वर्मा को खरड़ (ज़िला मोहाली, पंजाब) से लेकर
उसे स्वयं हिमाचल प्रदेश में स्थित हिन्दु धर्म के पवित्र तीर्थ-स्थलों चिंतपूर्णी (ज़िला ऊना) व ज्वाला जी (ज़िला कांगड़ा) के दर्शनों हेतु लेकर गया। तो इससे क्या मेरा धर्म भ्रष्ट हो गया? यदि हमारे कुछ मसीही-जन ऐसा सोचते हैं, तो उन्हीं अपनी ऐसी संकीर्ण सोच मुबारक। ऐसे ही लोग कभी मसीही समुदाय का भला नहीं होने देना चाहते। यदि आप किसी को प्रसन्न करते हैं, तो क्या वह आपके अच्छे कार्यों की श्रेणी में नहीं आता? क्या यीशु मसीह ने काना में एक विवाह समारोह में जल से दाखरस (अंगूरों का ग़ैर-अल्कोहलिक रस) बनाने का चमत्कार करके नहीं दिखलाया था। क्या उन्होंने व जूस अपने स्वयं के लिए तैयार किया था? क्या उन्होंने बड़ी संख्या में अपने पैरोकारों को केवल पांच मछलियों से भर पेट खाना खिलाने का कार्य नहीं किया था? क्या वह यह सब स्वयं के लिए करना चाहते थे? जी नहीं, वह केवल और केवल अन्य लोगों को प्रसन्न-चित्त करने व उन्हें ऐसा देखने के लिए करते रहे थे।
हमारे अपने ही कुछ रहनुमा डुबो रहे मसीही समुदाय का जहाज़
मुझे यह सब करते हुए कभी कोई धार्मिक दिक्कत नहीं हुई। शायद मेरे कुछ मसीही भाईयों को होती। परंतु ऐसा नहीं होना चाहिए। हम मसीही लोगों को सभी के साथ एकसमान ढंग से रहना सीखना चाहिए। उन्हें अन्य जाति के लोगों से अलग-अलग से रहने की आवश्यकता नहीं है। मुझे अपने हिन्दु व सिख भाई-बहनों से कभी प्रसाद के रूप में कुछ लेकर खाने में कभी कोई आपत्ति नहीं हुई। क्योंकि मैं जानता हूं कि मेरा विश्वास हमारे यीशु मसीह में अडिग, अडोल व दृढ़ है और दुनिया की कोई भी शक्ति मुझे मेरे विश्वास से गिरा नहीं सकती। मेरा मसीही धर्म इतना कमज़ोर नहीं है कि इतनी सी बात से कहीं से निम्न हो जाएगा। यदि अन्य धर्मों के लोग मसीही धर्म को अपना रहे हैं तो उन अन्य धर्मों के नेताओं व धार्मिक अगुवाओं को अपने समाज के गिरेबान में झाक कर देखना चाहिए न कि मसीही धर्म पर बेबुनियाद आरोप लगाने चाहिएं। मैं तो अपने हिन्दु, मुस्लिम व सिख सभी भाईयों के धार्मिक आयोजनों में अक्सर जाता रहता हूं, तो उससे क्या मेरा विश्वास व मेरा धर्म भ्रष्ट हो गया, कदापि नहीं - ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता। यदि मेरे कुछ मसीही भाई ऐसा सोचते भी हैं, तो वे ग़लत हैं। उनकी इन्हीं ग़लतियों के कारण ही आज भारत में मसीही धर्म को हाशिये पर धकेल दिया गया है। हमें अवश्य ही अपने आस-पास के अन्य नागरिकों के साथ पूर्णतया घुल-मिल कर रहना होगा।
क्या अन्य धर्मों का प्रसाद लेने से हमारा मसीही धर्म भ्रष्ट होता है?
जब हमारे आम मसीहीजन अपने हिन्दु व सिख भाईयों द्वारा दिए जाने वाले प्रसाद को लेने से इन्कार कर देते हैं, तो उन्हें गुस्सा आना स्वाभाविक है। हमारे कुछ धार्मिक नेता भी अन्य धर्मों में तैयार किए जाने वाले प्रसाद को लेने से इन्कार कर देने की बात अपनी क्लीसिया को सिखलाते हैं, उनकी यह बात किसी पिछड़ी सोच व मानसिकता की ही द्योतक है। इसी लिए अन्य जातियों, वर्गों व धर्मों के लोग मसीही धर्म को विदेशी धर्म होने का आरोप लगाते हैं। जबकि ऐसा कुछ नहीं है। अच्छी बात तो कहीं से भी मिलती हो, ले लेनी चाहिए। यीशु मसीह ने कहा था ...सब थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा (मत्ती 11ः28-30)। तो क्या ऐसा उन्होंने अकेले मसीही समुदाय के लिए कहा था, तब उन्होंने पृथ्वी पर उस समय बसने वाले एक-एक प्राणी हेतु कहा था।
मसीही धर्म को भारत में आए आज 1973 वर्ष बीत चुके हैं (क्योंकि यीशु मसीह के 12 शिष्यों में से एक थोमा हमारे भारत में मसीही शिक्षाओं को सर्वप्रथम सन 52 ईसवी में लेकर आए थे) परंतु हम मसीही लोग भारत में अपने अन्य साथी नागरिकों को यह नहीं समझा पाए हैं कि यह अब विदेशी धर्म नहीं है। इसका कारण यही है कि हमारे अधिकतर धार्मिक नेता न तो कोई पहलकदमी करना चाहते हैं, जैसे कि पास्टर आकाशदीप शर्मा ने की है और न ही वे स्वयं कुछ सीखना चाहते हैं व न ही अपनी कौम को कुछ नया सिखलाना चाहते हैं।
इस तथ्य को मैं अपने ही साथ घटित हुई एक घटना से स्पष्ट करना चाहता हूं। पहले तो मैं यहां यह बतलाना चाहता हूं कि मैंने ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मसीही समुदाय का योगदान’ विषय पर अनुसंधान कार्य कयों किया। पहले बहुत कुछ लिखा गया था परंतु वह सब इधर-उधर बिखरा पड़ा था और अधिकतर ऐसी सामग्री केवल अंग्रेज़ी भाषा में थी। वह जानकारी भी केवल तथ्यात्मक ही थी, उसमें कहीं पर भी मसीही दृष्टिकोण व भारत में मसीही समुदाय की वर्तमान स्थिति का कहीं कोई वर्णन नहीं था। मैंने इसका संकलन किया अर्थात उसे एक स्थान पर एकत्र करके उसका हिन्दी में अनुवाद व उसे संपादित किया। जगह-जगह पर उसे मसीही समुदाय के दृष्टिकोण में ढाला और फिर उसे प्रस्तुत किया। इसका क्या लाभ? इसे भी एक अन्य उदाहरण से समझें। यदि आप विस्फ़ोटक पदार्थ आरडीएक्स का केवल एक कण लें, तो उससे क्या कहीं कभी कोई धमाका हो सकता है या किसी को कोई क्षति पहुंच सकती है। परंतु यदि हम उन्हीं कणों को एक साथ बड़ी मात्रा में एकत्र कर लें, उसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। उसका धमाका या विस्फ़ोट बहुत अधिक क्षति पहुंचा सकता है। इसी प्रकार मैंने अपने मसीही समुदाय के लिए ऐसे कुछ तथ्य एक स्थान पर एकत्र कर दिए हैं, जिनकी सहायता से आप अपने ऊपर लगने वाले प्रत्येक प्रकार के आरोप का उत्तर देने में सक्षम हो सकते हैं।
मैंने अपने इस अनुसंधान कार्य के बारे में अनगिनत पादरी साहिबान व मसीही राजनीतिक नेताओं को बताया परंतु उनमें से किसी को भी इसका महत्व ही समझ में नहीं आया। विगत सात-आठ वर्षों से मैं ऐसे प्रयास करता आ रहा हूं परंतु आज तक सफ़ल नहीं हो पाया। इसी लिए मैं अपनी वैबसाईट ‘क्रिस्चियन फ़ोर्ट’ को वर्ष 2008 से चला रहा हूं परंतु मेरे किसी मसीही भाई-बहन या अपने किसी नज़दीकी रिश्तेदार पर लेशमात्र भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे लोग इस कार्य को नगण्य मानते हैं। उन्हें लगता है कि हमें यह सब जानने की क्या आवश्यकता है। भई, भारत के बहु-संख्यक आप मसीही लोगों का पूर्णतया सफ़ाया करने की योजनाएं बना कर बैठे हुए हैं, परंतु आप हैं कि आप अपनी नींद से जागने को ही तैयार नहीं हैं।
बात एक मसीही व्हट्सएप ग्रुप की
बैडफ़ोर्डशायर (इंग्लैण्ड अथवा यूके) के श्री एरिक मसीह, जो वैसे तो मूलतः पंजाब के जालंधर-होशियारपुर क्षेत्र से संबंधित हैं परंतु अब विगत लम्बे समय से इंग्लैण्ड में ही रहते हैं। वहां वह ‘हाई शैरिफ़’ जैसे प्रतिष्ठित पद पर भी आसीन रह चुके हैं। उन्होंने तीन वर्ष पूर्व 22 दिसम्बर, 2022 को एक व्हट्सएप ग्रुप बनाया और जालंधर के आम आदमी पार्टी के मसीही नेता व इसी पार्टी के अल्पसंख्यक (माईनौरिटी) विंग के अध्यक्ष श्री जॉर्ज सोनी की सिफ़ारिश से श्री एरिक मसीह ने मुझे भी उस ग्रुप में सम्मिलित कर लिया और मेरे ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मसीही समुदाय का योगदान’ संबंधी उस ‘आईसीडी पंजाब’ नामक ग्रुप में कुछ जानकारी शेयर कर दी। मैं भी कुछ उत्साहित हो कर उस ग्रुप में अपने इस अनुसंधान से संबंधित आर्टीकल शेयर करने लगा। पर इस बात से कुछ मसीही लोगों को मिर्चें लगनी शुरु हो गईं। वास्तव में उन्हें इस बात का मलाल था कि ‘‘हाय, हाय! एरिक मसीह जी ने इस की तारीफ़ कैसे इस ग्रुप में कर दी।’’ इसी लिए मैं जब भी कभी अपने आर्टीकल का कोई विडियो या कोई पोस्ट शेयर करता, तो वह विकीपीडिया या किसी अन्य वैबसाईट से उसी मसीही व्यक्तित्व के बारे में शेयर करके यह सिद्ध करना चाहते कि यह आर्टीकल इसका अपना तो है ही नहीं, इसने तो वहां से उठाया है। जबकि मेरी वैबसाईट के प्रत्येक पृष्ठ पर लिखा है ‘लेखन, संकलन व संपादन’। परंतु शायद उन अनपढ़ लोगों को ऐसे शब्दों की कोई जानकारी ही नहीं थी। वे शायद इस तथ्य से भी अनजान थे कि ऐतिहासिक तथ्य तो कभी बदले ही नहीं जा सकते वे तो पुस्तकों, विकीपीडिया व अन्य वैबसाईटों जैसे सभी स्थानों पर एकसमान ही रहेंगे। फिर मैंने यह सभी सामग्री स्वयं अनुवाद करके स्वयं टाईप-सैटिंग भी की है। परंतु आम लोगों को तो क्योंकि गूगल से ही ट्रांसलेट करने व व्हट्सएप यूनीवर्सिटी की पोस्टों को ही शेयर करते रहने की आदत पड़ी होती है, इसी लिए उन्हें भी यही लगता है कि यह सब मशीनी अनुवाद है। मेरी सभी को यह चुनौती है यदि कोई यह सिद्ध कर दे कि ‘क्रिस्चियन फ़ोर्ट’ को कोई कंटैंट गूगल या अन्य किसी ऐप से अनुवादित है, तो मैं किसी भी तरह का दण्ड भुगतने के लिए तैयार हूं। मैंने तब उस व्हट्सएप मसीही ग्रुप में अपनी पोस्ट शेयर करना ही बन्द कर दिया। मैंने देखा कि हमारे मसीही लोग अपनी-अपनी तंग कोठरियों में ही बन्द रहना चाहते हैं, बाहर आ कर परमेश्वर के इस सुन्दर संसार रूपी गुलदस्ते का कोई आनंद उठाना नहीं चाहते। उन्हें ऐसा जीवन मुबारक!
सचमुच दूरदर्शी रहनुमा हैं पास्टर आकाशदीप शर्मा
ऐसी विकट परिस्थितियों में जयपुर के पास्टर व ‘विज़नरी रेडियो व टीवी’ के मुख्य श्री आकाशदीप शर्मा ने जब ‘क्रिस्चियन फ़ोर्ट’ पर मेरे अनुसंधान कार्य ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मसीही समुदाय का योगदान’ को पढ़ कर मुझ से संपर्क किया, तो मैंने उन्हें पाया कि वह सचमुच एक विज़नरी अर्थात दूरदर्शी मसीही रहनुमा हैं, जिनमें ऐसी दूर-दृष्टि विद्यमान है, जो इस समय भारत के संपूर्ण मसीही समुदाय के समक्ष मौजूद चुनौतियों को समझते हैं तथा उनका कोई उपयुक्त समाधान निकालना चाहते हैं। उन्होंने मुझसे मेरी मसीही मिशन नहीं पूछी तथा न ही मेरे चर्च के बारे में पूछा। उन्होंने केवल यही कहा कि मैं उन्हें अनुमति दूं कि वह ‘क्रिस्चियन फ़ोर्ट’ के कंटैंट को किसी तरह अपने चैनल पर प्रस्तुत कर सकें।
मुझे उनकी यह बात भी बढ़िया लगी कि उन्होंने हमारे अन्य मसीही भाईयों की तरह अपने नाम के साथ शब्द ‘मसीह’ अथवा कोई अंग्रेज़ी नाम नहीं लगाया। मैंने भी नहीं लगाया। प्रत्येक व्यक्ति की पहचान उसके कामों से हुआ करती है, उसके नाम से नहीं। उसके कामों से ही उसका नाम बनता है। मेरा नाम मेहताब-उद-दीन है, जो कि पहली नज़र में एक मुस्लिम नाम लगता है। फ़ारसी शब्द ‘मेहताब’ का अर्थ ‘चांद’ होता है, जबकि अरबी शब्द ‘दीन’ का अर्थ होता है ‘धर्म’। यदि मेरे नाम का हिन्दी या पंजाबी में अनुवाद किया जाए तो वह सीधे-सीधे ‘धर्म चन्द’ बनेगा। ख़ैर, मैं जब जून 2018 में ‘पंजाबी जागरण’ को अलविदा कह कर ‘हिन्दुस्तान टाईम्स’ में जाने लगा, तो वहां पर मौजूद 50 के करीब साथी कर्मचारियों, विशेषतया संपादक श्री वरिन्दर सिंह वालिया ने मुझे यीशु मसीह का एक फ्ऱेमयुक्त ख़ूबसूरत चित्र, पैन व डायरी जैसी अविस्मरणीय स्मृति-चिह्न भेंट किए, जिन्हें मैं कभी जीवन में भुला नहीं सकता। इसी लिए मेरा मानना है कि नाम-वाम में कुछ नहीं रखा है, आपको अपने कर्म अच्छे रखने होंगे, तभी आप समाज में थोड़ मान्य हो पाएंगे।
बात पास्टर आकाशदीप शर्मा जी की हो रही है। आज जो भी कार्य वह मसीही समुदाय हेतु कर रहे हैं, वह अवर्णनीय, अत्यंत सराहनीय, विलक्षण व अद्वितीय है। परमेश्वर उन्हें अवश्य अपनी आशीषों से परिपूर्ण करेंगे। कोई भी पास्टर साहिब के नाम पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कर सकता। उनके कार्य मसीही समुदाय के लिए अविस्मरणीय हैं तथा सदैव रहेंगे।
अब पास्टर आकाशदीप शर्मा प्रत्येक रविवार को भारत के किसी एक मसीही स्वतंत्रता सेनानी का एक एपिसोड अपने यू-ट्यूब चैनल ‘विज़नरी रेडियो एण्ड टीवी’ पर साभारः क्रिस्चियन फ़ोर्ट डॉट कॉम देते हैं। जिस भी स्वतंत्रा सेनानी के बारे में वह अपना प्रतिष्ठित कार्यक्रम प्रस्तुत करते जा रहे हैं, हम उसका लिंक उसी संबंधित स्वतंत्रता सेनानी के हमारे प्रोफ़ाईल में जोड़ते जा रहे हैं। उन्होंने एक वर्ष तक इसे निरंतर जारी रखने की भी घोषणा की है। परमेश्वर उन्हें उनके आध्यात्मिक लक्ष्य के साथ-साथ जीवन में भी भरपूर रूप से समृद्ध करें। आज 11 फ़रवरी, 2025 तक इस क्रम में उनके तीन एपिसोड प्रसारित हुए हैं, हमने उनके लिंक संबंधित पेज पर डाल दिए हैं। भविष्य में, जब भी पास्टर आकाशदीप शर्मा कोई नया संबंधित प्रसारण करेंगे, तो हम उसे अपने पाठकों / दर्शकों के साथ शेयर करते रहेंगे।
साभार: विज़नरी रेडियो एण्ड टीवी
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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