Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

यीशु मसीह के तीसरे दिन पुनः जी उठने (ईस्टर) संबंधी 16 महत्त्वपूर्ण प्रमाण



क्या हमारे उद्धारकर्ता सचमुच तीसरे दिन मुर्दों में से पुनःजीवित हो उठे थे? यह प्रश्न आम व्यक्ति (विशेषतया ग़ैर-मसीही) के मन में अवश्य कौंधता है। आज हम उसी प्रश्न से संबंधित कुछ महत्तवपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करने जा रहे हैं:


  1. यीशु मसीह के 10 शिष्यों की शहादत

यीशु मसीह के 12 शिष्य थे। उनमें से यूहन्ना व यहूदा इस्करोयिति को छोड़ कर सभी 10 शिष्य शहीद हुए थे। यूहन्ना को देश-निकाला दे कर पैटमोस टापू पर भेज दिया गया था, जबकि यहूदा ने क्योंकि यीशु मसीह को पकड़वाने हेतु विश्वासघात किया था, इसी लिए उसने आत्म-ग्लानि में ही स्वयं को फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी। यह सोचने की बात है कि यदि यीशु मसीह तीसरे दिन पुनः जीवित न हुए होते, तो क्या 10 शिष्य समस्त विश्व के अनेक देशों में जा कर यीशु का प्रचार करते? उन सभी ने अपनी जानें कुर्बान कर दीं परन्तु यीशु के बारे में कभी सच बोलना नहीं छोड़ा।


2. यीशु के सभी शिष्यों के एक जैसे वकतव्य

यहां यह भी वर्णनीय है कि ये सभी शिष्य यीशु को सलीब दिए जाने के बाद इकठ्ठे नहीं रहते थे परन्तु उन सभी ने प्रत्येक स्थान पर जाकर यीशु मसीह संबंधी एक जैसा ही प्रचार किया - किसी के वकतव्य में कोई अन्तर दिखाई नहीं दिया। यीशु मसीह को पकड़ लिया गया था, तब पतरस ने तो यीशु मसीह का साथी होने से तीन बार इन्कार तक कर दिया था। उन सभी को तो ऐसी परिस्थितियों में यीशु मसीह के विरुद्ध बोलना चाहिए था, क्योंकि तब रोम के शासक यीशु मसीह का नाम लेने वालों को तुरन्त मार दिया करते थे।


3. सन्त थोमा ने भारत में आकर भी दी बड़ी गवाही

यीशु मसीह के 12 शिष्यों में से एक थोमा (जिन्हें अब हम सन्त थोमा या सेंट थॉमस कहते हैं) ने पुनःजीवित हुए यीशु के पसली के घाव में उंगली डाल कर निश्चित किया था कि वह यीशु मसीह ही हैं। इस तथ्य का प्रचार उन्होंने दक्षिण भारत में भी आकर किया था। परन्तु अफ़सोस कुछ लोगों ने उन्हें यहीं पर शहीद कर दिया था। सन्त थोमा की भारत में वह यीशु मसीह के बारे में एक बड़ी गवाही थी।


4. नासरत का संगमरमर का शिलालेख (इनस्क्रिप्शन)

यीशु मसीह के जी उठने के पश्चात् पहली शताब्दी ईसवी में इस्रायल व रोम के शासकों व आम जनता में एक बड़ी उथल-पुथल मच गई थी। उसका वर्णन नासरत के एक शिलालेख में मिलता है। यह शिलालेख भी पहली शताब्दी से ही संबंधित है। यह शिलालेख 1878 में पहली बार किसी व्यक्ति के अपने निजी संग्रह में से प्राप्त हुआ था और अब 1925 से उसे पैरिस (फ्ऱांस) के राष्ट्रीय पुस्तकालय ‘बिब्लियोथैक नैश्नेल डी फ्ऱांस’ में रखा गया है। फ्ऱांस के संग्रहकर्ता के किसी पूर्वज ने पहली शताब्दी ईसवी में उसे नासरत से प्राप्त किया था।


5. यीशु के पुनः जीवित हो उठने की पहली गवाह थीं महिलाएं

यीशु मसीह के जी उठने की ख़बर सब से पहले भोर के समय महिलाओं को मिली थी। यदि कोई यीशु मसीह के मुर्दों में से जीवित संबंधी झूठ फैलाना भी चाहता, तो वह इस बात के लिए कभी महिलाओं का सहारा तो नहीं लेता क्योंकि उन दिनों आम लोगों व राजाओं के दरबार में उनकी बात को उतनी प्रमुखता से न सुने जाने की बात महसूस की जाती। क्योंकि हो सकता है, लोग उस सत्य को भी झूठ मान लेते। उन दिनों महिलाओं को समस्त विश्व में ही उतने अधिकार नहीं थे, जितने कि आज हैं।


6. लिखित प्रमाण भी मौजूद

कुछ ऐसे लिखित प्रमाण हैं, जो यीशु मसीह के जी उठने के लगभग 20 वर्षों के भीतर लिखे गए थे। कुरिन्थियों की पत्री में पौलूस रसूल ने जो कुछ भी लिखा, उसके ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं। ‘ब्यूटीफुल क्रिस्चियन लाईफ़’ डॉट कॉम के अनुसार पवित्र बाईबल का अध्ययन करने वाले विद्वानों डी.ए. कार्सन एवं डगलस मू द्वारा लिखित पुस्तक ‘ऐन इन्ट्रोडक्शन टू दि न्यू टैस्टामैन्ट’ मुताबिक ऐसे प्रमाण विद्यमान हैं। पौलूस रसूल ने वह पत्री सन 50 के आस-पास लिखी थी। लगभग 500 से भी अधिक लोगों ने भी यीशु को पुनः जीवित अवस्था में देखा था, जो यीशु की कब्र के आस-पास रहते थे। सभी इन्जीलों के कर्ताओं ने भी एक ही बात लिखी है, जबकि वे सब अलग-अलग लिखी गईं थीं। उन लिखित रचनाओं का वहां के किसी भी व्यक्ति ने कभी कोई विरोध नहीं किया। पौलूस का विरोध तो कोई अवश्य कर सकता था।


7. रोमन शासकों के रक्षक (गार्ड) कभी सो नहीं सकते थे

तब कब्र के सामने ड्यूटी पर तायनात रक्षक रात को कभी सो नहीं सकते थे क्योंकि तब ऐसा करने पर रोमन शासक उन्हें मृत्यु दण्ड ही देते। तब रात्रि के समय यीशु कैसे इतना भारी पत्थर कब्र के मुख पर से हटा कर वहां से निकल गए? इस प्रश्न का उत्तर मसीही विरोधियों को अभी तक नहीं मिल पाया।


8. कब्र का स्थान

जिस कब्र में यीशु मसीह के मृत शरीर को लिटाया गया था, उस स्थान को सभी जानते थे। इस लिए कोई ऐसा झूठ वहां पर मौजूद कोई और खाली पड़ी कब्र दिखला कर कभी नहीं फैला सकता था कि यीशु ज़िन्दा हो गए हैं।


9. यहूदी इतिहासकार की गवाही

यहूदी इतिसकार जोसेफ़स ने सन 93-94 में यहूदियों के बारे में कुछ विशेष बातें लिखीं थीं। तब उसने दो पैराग्राफ़ यीशु मसीह के बारे में भी लिखे थे। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि यीशु मसीह को तब पिन्तुस पिलातूस ने मुत्यु दण्ड सुनाया था परन्तु वह सलीब दिए जाने के तीसरे दिन मुर्दों से में पुनः जीवित हो उठे थे और उनके बारे में ऐसी भविष्वाणियां पहले के भविष्यवक्ता कर चुके थे।


10. मसीहियत का पहले 300 वर्षों में तेज़ी से बढ़ना

यीशु मसीह के चमत्कारों व उनके मुर्दों में से जी उठने के बाद पहले 300 वर्षों में मसीहियत बहुत तेज़ी से बढ़ी। जो मसीहियत व उसके चर्च इस्रायल के यहूदियों में कभी अल्प-संख्यक थे, वह तब प्रत्येक दश्क में 40 प्रतिशत की तीव्रता से बढ़े थे। झूठ कभी इतनी तीव्रता से नहीं फैला करता।


11. यदि यीशु मुर्दों में से पुनः जीवित नहीं हुए, तो मसीहियत भी सत्य नहीं

पौलूस रसूल ने कुरिन्थियों की पहली पत्री के 15वें अध्याय की 14-15वीं आयत में लिखा है कि और यदि मसीह भी नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्थ है; और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्थ है। वरन हम परमेश्वर के झूठे गवाह ठहरे; क्योंकि हम ने परमेश्वर के विषय में यह गवाही दी कि उस ने मसीह को जिला दिया यद्यपि नहीं जिलाया, यदि मरे हुए नहीं जी उठते। अतः यदि यीशु मसीह का मुर्दों में से पुनः जीवित हो उठना सत्य नहीं, तो मसीहियत भी सत्य नहीं हो सकती।


12. यूहन्ना की लिखित गवाही

यूहन्ना ने अपनी इन्जील के 20वें अध्याय की 1 से 7 आयतों में लिखा है कि तीसरे दिन यीशु की कब्र खाली नहीं थी, अपितु वह कफ़न का सफ़ेद वस्त्र वहां पर पड़ा था, जिस में यीशु के मृत शरीर को लपेटा गया था। यदि कोई यीशु के शरीर को चुराने आया था, तो वह कफ़न सहित ही लेकर जाता, उसे वहां न छोड़ता। और फिर यीशु के चेहरे पर लपेटा गया कपड़ा कब्र में एक ओर तह करके रखा गया था। चोर यदि यीशु के शरीर को ले गए होते, तो जाते समय उन्हें कपड़ा तह करने की आवश्यकता नहीं थी।


13. समस्त विश्व के लिए एक नई शुरुआत

यीशु मसीह का जी उठना वास्तव में समस्त विश्व के लिए एक नई शुरुआत थीा। उनका जी उठना वास्तव में परमपिता परमेश्वर की पहले से सोची-समझी योजना थी। यह बात पवित्र बाईबल में कई जगह पर दर्ज है।


14. यीशु की जगह कोई और नहीं ले सकता था

वास्तव में यीशु मसीह उन दिनों इस्रायल में एक बहुत प्रसिद्ध हस्ती थे। उनकी जगह कोई भी और व्यक्ति नहीं ले सकता था। यदि कोई विरोधी या आलोचक ऐसी दलील देनी चाहे कि यीशु के जी उठने की बात को सच दर्शाने हेतु किसी ने कोई डुप्लीकेट व्यक्ति यीशु बना कर प्रस्तुत कर दिया गया था, तो तब ऐसा संभव ही नहीं था। किसी एकाध व्यक्ति को तो गुमराह किया जा सकता है परन्तु सैंकड़ों लोगों को नहीं। यीशु मसीह को पुनः जी उठने के पश्चात् कम से कम 500 व्यक्तियों ने तो अवश्य देखा था।


15. यीशु मसीह को ही सलीब दी गई थी, किसी अन्य को नहीं

एक ऐसा भ्रम भी कुछ लोग फैलाते हैं कि यीशु मसीह को वास्तव में सलीब दी ही नहीं गई थी। उनके स्थान पर किसी अन्य को सलीब पर टांगा गया था और तीसरे दिन यीशु स्वयं सबके सामने प्रकट हो गए थे। यह बातें पूर्णतया झूठ हैं क्योंकि जैसे कि पहले भी बताया जा चुका हैं कि यीशु को इस्रायल में सभी पहचानते व जानते थे। इसी लिए सैंकड़ों लोगों के सामने यीशु को सलीब दी गई थी। शासकों के विशेष जल्लाद तब पूर्णतया यह सुनिश्चित करते थे कि सलीब पर टंगा व्यक्ति मर गया है या नहीं। इसी लिए उन्होंने यीशु की पसली में भी भाला/नेज़ा मारा था। तब उसमें से लहू व जल अलग-अलग निकले थे। इससे मालूम पड़ता है कि लहू की कोशिकाओं अर्थात सैल्स से प्लाज़मा अलग हो गया था। ऐसा तभी होता है, जब लहू का धमनियों में बहना बन्द हो जाए।

इसके अतिरिक्त यीशु के मृत शरीर पर 80 पाऊण्ड वज़न के मसाले लगाए गए थे। फिर तीन दिन बन्द कब्र के भीतर घायल अवस्था में भूखा-प्यासा क्या कोई जीवित रह सकता था?


16. यीशु का शरीर कब्र में से चुराया भी नहीं गया था

एक ऐसी दलील भी दी जाती है कि यहूदी व रोमन शासकों ने कब्र में से यीशु मसीह के मृत शरीर को चुरा लिया होगा। बी-थिंकिंग डॉट आर्ग पर पैट्रिक ज़करन के एक आलेख अनुसार यदि यीशु का शरीर चुराया गया होता, तो शासक यीशु के शिष्यों पर उनका मृत शरीर चोरी करने का आरोप नहीं लगाते। यहूदी शासकों ने हर प्रकार के भरसक प्रयास किए कि किसी भी तरह मसीहियत दुनिया में फैल न पाए। परन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।

Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें
-- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]

 
visitor counter
Role of Christians in Indian Freedom Movement


DESIGNED BY: FREE CSS TEMPLATES