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भारत में दलितों व महिलाओं को सबसे पहले शिक्षित करने वाले मसीही समुदाय के दुश्मन इस लिए हो गए थे कुछ शरारती अनसर?
केवल अंग्रेज़ी में बात कह देने से भारतीय मसीही समुदाय का कोई भला नहीं होने वाला
जालन्धर स्थित ‘इन्द्र कुमार गुजराल पंजाब टैक्निकल युनिवर्सिटी’ के कार्यकारी वाईस चांसलर (उप-कुलपति) श्री के.एस. पन्नू, आई.ए.एस. ने 18 मई, 2017 के ‘दि ट्रिब्यून’ में पंजाब तथा हरियाणा के जल-विवाद संबंधी अपने एक विस्तृत लेख ‘‘इल्यूज़न ऑफ सरप्लस रावी-ब्यास वाटर्स’’ (रावी-ब्यास के अतिरिक्त जल का भ्रम) के बीच एक बहुत बढ़िया तथ्य को उजागर किया है, जो भारत के मसीही समुदाय के संदर्भ में पूर्णतया फ़िट बैठता है। वह लिखते हैं कि - ‘‘जब इतिहास की व्याख्या सही परिप्रेक्ष्य में एवं तथ्यागत रूप से नहीं की जाती, तो इतिहास को लोग तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने लगते हैं।’’ यह बात बिल्कुल सही है। इतिहासकारों ने न तो कभी भारतीय मसीही समुदाय संबंधी तथ्यों में जाकर कोई विश्लेषण-विवेचन करने का प्रयत्न किया और न ही शायद उन्हें इसकी कोई आवश्यकता ही लगी। क्योंकि जब मसीही समुदाय स्वयं ही अपनी व्याख्या नहीं चाहता और केवल अंग्रेज़ी में अपनी बात कह कर संतुष्ट हो जाता है तो ऐसे परिणामों का सामना करना स्वाभाविक ही है, जो आज हमारे समूह मसीही भाईयों-बहनों व बच्चों तथा बज़ुर्गों को करना पड़ रहा है।
देश को कमज़ोर कर रहे तथाकथित राष्ट्रवादी संगठन
क्रिस्चियन मैडिकल कॉलेज व अस्पताल, लुधियाना
आज किसी भी स्थान पर कोई मसीही क्लीसिया यदि किसी प्रार्थना-सभा का आयोजन करने का कार्यक्रम रखती है, तो कुछ बरसाती मेंढक प्रकार के कुछ नेता (जो बेचारे केवल एक राजनीतिक दल की सरकार बनने पर ही कहीं दिखाई देते हैं तथा समाज में अपनी चौधराहट चलाने के अतिरिक्त उनका अन्य कोई सामाजिक कार्य कहीं किसी को दिखाई नहीं देता) उठ कर धमकियां देने लगते हैं कि वे इस मसीही प्रार्थना-सभा का आयोजन नहीं होने देंगे और प्रार्थना सभा के स्थल पर हंगामा खड़ा करते हैं। दरअसल, ऐसी हरकतें करके वे ग़रीब मसीही लोगों पर दबाव डालना चाहते हैं और उन पर अपनी ‘घर-वापसी’ जैसी संविधान-विरोधी नीतियां ज़बरदस्ती लागू करना चाहते हैं। जैसे कथित राष्ट्रवादी संगठन द्वारा इस प्रकार अन्दरखाते देश को कमज़ोर करने वाली गतिविधियां पूरे ज़ोर-शोर से चलाई जा रही हैं। देश की सरकार यह सब देख कर भी पूरी तरह चुप्पी साधे बैठी है और बरसाती मेंढक देश के इतिहास में अपने हिसाब से परिवर्तन अर्थात तोड़-मरोड़ करते हुए भारत के मसीही समुदाय के प्रति ज़हर उगल रहे हैं।
ग़रीब लोगों पर शताब्दियों तक अत्याचार ढाहने वाले लोगों को है मसीहियत से दिक्कत
जिन लोगों ने सदियों और कई युगों से ग़रीब लोगो पर अत्याचार ढाए थे, तकलीफ़ केवल उन्हीं लोगों को है कि मसीहियत के आने से उनकी चौधराहट चली गई और वे शून्य बन कर रह गए। क्योंकि भारत के दलितों व महिलाओं को शिक्षित करने का काम सब से पहले मसीही समुदाय ने ही किया था, वर्ना ये बरसाती मेंढक तो उन्हें अनपढ़ रख कर उन पर अपना शासन सदा के लिए चलाना चाहते थे।
भारत में मसीहियत के पछड़ने का मुख्य कारण मसीही रहनुमा
ऐसी परिस्थिति के लिए हम मसीही स्वयं ज़िम्मेदार हैं। हम अभी तक अपने साथी भारतियों को अपने बारे में स्पष्ट नहीं कर पाए। हमारे कुछ (जिनकी संख्या बहुत कम है) पादरी साहिबान अन्य धर्मों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियां करते हैं, छोटे-छोटे से मुद्दों पर भी कुछ विदेशी लोगों से सहायता मांगते हैं तथा वे बिना मतलब किसी के भी आगे जाकर अपने मोती सूअरों के आगे डालना प्रारंभ कर देते हैं (मत्ती 7ः6) अर्थात हर बात में पवित्र बाईबल को आगे ला कर परमेश्वर का नाम बेफ़ायदा अर्थात व्यर्थ लेते हैं (दस हुकमों में से एक - निर्गमन 20ः7)। जब पवित्र बाईबल में पहले ही सही पथ पर चलने के बारे में अत्यंत स्पष्ट रूप से हज़ारों वर्ष पहले ही लिख दिया गया है, तो आप बिना मतलब अपनी ऐसी गतिविधियों से क्यों अपनी मसीही कौम को परेशानी में डाल रहे हैं। पवित्र बाईबल के नए नियम में ‘रोमियों’ की पत्री के 14वें अध्याय की पहली आयत में ही स्पष्ट लिखा है कि - ‘‘परमेश्वर को मानने वाले प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत करो, चाहे उसका विश्वास कमज़ोर ही क्यों न हो। उनकी आलोचना कभी मत करो, चाहे उनका विश्वास आपसे भिन्न ही क्यों न हो।’’
मसीहियत का सत्य बतलाने हेतु लिखी गई है यह पुस्तक
यह पुस्तक हिन्दी में लिखी ही इस लिए गई है कि समूह भारत वासी देश के मसीही समुदाय का सच जान सकें। जो देश विरोधी तत्त्व इस समय ‘राष्ट्रवाद’ के नाम पर देश को कमज़ोर करने पर तुले हुए हैं, हमने उन लोगों से कोई बदला नहीं लेना अपितु उन्हें तथा जन-साधारण को सत्य बतलाना है। सत्यमेव जयते - सदा सत्य की ही जीत होती है। हमारे प्रभु यीशु मसीह ने बदला लेना नहीं, बल्कि दुनिया से प्यार करना सिखलाया है। उन्होंने तो उनकी जान लेने वालों को भी यह कह कर क्षमा कर दिया था क्योंकि ‘वे नहीं जानते वे क्या करते हैं।’ अब हम सभी ने अपने भारत के मसीही समुदाय, कौम संबंधी वही बातें समूह भारत वासियों को बतानी व विस्तारपूर्वक समझानी हैं, जो आज तक आम व्यक्ति की भाषा में पहले कोई नहीं समझा पाया। आज के दौर में आध्यात्मिक (रूहानी) के साथ-साथ दुनियावी बातें आवश्यक हैं। हम वर्तमान परिस्थितियों से स्वयं को अलग नहीं रख सकते और न ही रखना चाहिए।
भारत व भारतियों पर दो सौ से भी अधिक वर्षों तक अत्याचार ढाने वाले अंग्रेज़ मसीहियत के कुछ नहीं लगते
यदि हम समय के साथ-साथ अपनी कौम को चलाएंगे, तो कोई कारण नहीं होगा कि कोई हमारी ओर इस प्रकार से देख पाएगा, जैसा आज ये बरसाती मेंढक देखने की जुर्रअत करते हैं। हमे लोगों को यह समझाना होगा कि भारत व भारतियों पर दो सौ से भी अधिक वर्षों तक अत्याचार ढाने वाले अंग्रेज़ मसीहियत के कुछ नहीं लगते। वे मसीहियत से हैं न कि मसीहियत उनके लिए है। यीशु मसीह हम भारतियों की तरह दुनियावी तौर पर एशिया में पैदा हुए थे, तो वह हमारे पहले हैं। 99 प्रतिशत् पश्चिमी देशों से पहले मसीहियत हमारे देश भारत में आई। यदि कहीं देश कभी ब्रिटिश हकूमत के पराधीन न रहा होता, तो शायद हमारे मसीही समुदाय की संख्या भारत में कहीं अधिक होती। हमारे उद्धारकर्ता व मुक्तिदाता प्रभु यीशु मसीह के वसीले से आप सभी पर हर प्रकार की बरकतें सदा बनी रहें। आमीन!!!
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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