Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

पवित्र बाईबल के वैज्ञानिक सत्य (91-103)



91. ‘लैव्य-व्यवस्था’ के 25वें अध्याय की पहली से 24वीं आयत तक किसानों को अपने खेतों में फ़सल बोने एवं उन्हें कीट-नियंत्रित (पैस्ट कन्ट्रोल्ड) रखने के ढंग बताए गए हैं। आज का किसान कीटों एवं अलग-अलग प्रकार की सुण्डियों एवं मक्खियों व कीटों इत्यादि से परेशान है। परन्तु परमेश्वर ने मूसा को सिनॉय पर्वत इन पर नियंत्रण रखने के ढंग बताए थे। यहोवा (परमेश्वर) ने बताया था कि सात वर्षों में एक वर्ष ऐसा रखना कि जब अपने खेत में कोई फ़सल न उगा। पिछले वर्ष (दिसम्बर) की सर्दियों में कीटों के अण्डों में से नए कीट बहार ऋतु (स्प्रिंग अर्थात मार्च-अप्रैल के माह) में निकल आते हैं और वे नई फ़सल को अपनी लपेट में ले लेते हैं। यदि एक वर्ष फ़सल नहीं होगी, तो वे कीट भी भोजन न मिलने से दम तोड़ जाएंगे। ऐसे उन पर नियंत्रण पाया जा सकता है। और सात वर्षों में एक वर्ष फ़सल न उगाने से भूमि का उपजाऊपन बढ़ जाता है, आज हम यह बात भी कृषि-विज्ञान की बदौलत जानते हैं परन्तु यही बातें लगभग 4,500 वर्ष पूर्व परमेश्वर ने बताईं थीं, जो पवित्र बाईबल में दर्ज हैं।


92. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘लैव्य-व्यवस्था’ के 23वें अध्याय की 22वीं आयत में मिट्टी को सुरक्षित रखने का ढंग बताया गया है। परमेश्वर ने केवल प्रत्येक सातवें वर्ष खेत को ख़ाली रखने का ही निर्देश नहीं दिया था, अपितु उन्होंने किसानों को फ़सल काटते समय फ़सल की बालियां खोतों में रहने तथा खेतों के कोनों पर लगे पौधों को न काटने की हदायत भी दी थी। इससे कई लाभ होते हैं, जैसे कि - 1. मिट्टी में विद्यमान महत्त्वपूर्ण खनिज पदार्थ मिट्टी में कायम रहते हैं, 2. किनारों के पौधे न काटने से खेत की बाड़ बन जाती है, जो तेज़ वायु या आंधी से खेत का बचाव करती है, 3. गरीब लोग खेतों में रह गईं बालियों को उठा कर इस्तेमाल कर सकते हैं। आज समस्त विश्व में खरबों टन मिट्टी बर्बाद हो रही है परन्तु यदि परमेश्वर की इन आज्ञाओं का अनुपालन किया जाता, तो उससे बचाव हो सकता था।


93. पवित्र बाईबल की पुस्तक ‘अय्यूब’ के 39वें अध्याय, नीति वचन के 30वें अध्याय की 24 से 28वीं आयत तक तथा यिर्मयाह के 8वें अध्याय की 7वीं आयत में जानवरों की मूल प्रवृत्ति को समझा गया है। अभी जन्म लेने वाली एक मकड़ी को भी स्वयं प्राकृति ढंग से मालूम है कि बढ़िया जाल कैसे बुना जाता है। इसी प्रकार एक छोटी सी तितली को भी मालूम है कि उसने कैसे बिना किसी गाईड के 4,000 किलोमीटर तक की यात्रा करके वापिस आना है। यहां वर्णनीय है कि उत्तरी अमेरिका में ठण्ड बहुत अधिक होती है, इसी लिए सर्दियों के मौसम में मोनारक नामक तितलियां इतने किलोमीटर की यात्रा करके मैक्सिको तक चली जाती हैं, जहां तापमान सारा वर्ष एक जैसा और तापमान 15 से 37 डिग्री सैल्सियस के बीच रहता है। पवित्र बाईबल में बताया गया है कि परमेश्वर ने प्रत्येक जीव को विशेष ज्ञान दिया है। यह बात यह धर्म-ग्रन्थ बताता है, विज्ञान का विकास का सिद्धांत जानवरों की मूल प्रवृत्तियों संबंधी कुछ नहीं बता पाता।


94. पवित्र बाईबल के पुराने नियम की पुस्तक ‘भजन संहिता’ के 32वें अध्याय की 9वीं आयत में लिखा गया है कि जानवरों के पास मनुष्यों जैसी सूझ-बूझ व ज़मीर नहीं होती। तोते को आप बोलना सिखला सकते हैं परन्तु फिर भी उसके पास मानव जितनी समझ नहीं हो सकती, वैसी भावनाएं व अहसास नहीं हो सकते। घोड़ा, कुत्ता, बन्दर, हाथी, ऊँट जैसे कुछ जानवर हैं, जो मनुष्यों के अधिक पास रहते हैं, परन्तु मनुष्य उन सभी से ऊपर है। जैसे बन्दर को प्रायः खाने की कुछ वस्तुएं चुराने की तो आदत होती है परन्तु उसे चोरी करके मनुष्य की तरह यह अहसास कभी नहीं होता कि उसने चोरी करके कोई ग़लती की है। एक जानवर बहुत आसानी से दूसरे जानवर को मार कर खा जाता है परन्तु उसे मानव की तरह कभी अहसास नहीं होता कि उसने कोई ‘हत्या’ की है। जबकि विज्ञान का विकास का सिद्धांत यही बतलाता है कि मानव धीरे-धीरे ऐसे जानवरों से विकसित हुआ है - यदि यह बात सच होती, तो जानवरों (विशेषतया बन्दरों) में भी बिल्कुल मनुष्य जैसी सारी भावनाएं होतीं। परन्तु बाईबल बहुत स्पष्ट रूप से बताती है कि मनुष्य को परमेश्वर ने अपनी शकल के अनुसार ही बनाया था और इस प्रकार जानवर प्राणियों की अन्य प्रजाती है परन्तु मनुष्य प्राणियों में सर्वोपरि है, क्योंकि वह परमेश्वर जैसा ही दिखाई देता है। सभी मनुष्यों के अन्दर परमेश्वर है।


95. कुलुस्सियों के दूसरे अध्याय की तीसरी आयत में जिस ‘बुद्धि एवं ज्ञान के भण्डार छिपे होने’ की बात की गई है, वह वास्तव में विज्ञान ही है। परन्तु तिमोथी की पहली पत्री के छठे अध्याय की 20वीं आयत में यह बात भी कही गई है कि ‘झूठे ज्ञान को ज्ञान कहना भी भूल है।’ इसी लिए आज हमने यही देखना व परखना है कि कौन सी बात सही ज्ञान पर आधारित है और कौन सी नहीं। बहुत से लोग विज्ञान के नाम से जन-साधारण को ग़लत बातें सिखलाते हैं।


96. पवित्र बाईबल के नए नियम की पुस्तक ‘रोमियों’ के दूसरे अध्याय की 14वीं एवं 15वीं आयत में मानवीय ज़मीर (विवेक) को समझा गया है। बाईबल हमें बताती है कि परमेश्वर ने अपना नैतिक कानून प्रत्येक मनुष्य के मन में डाला है। अंग्रेज़ी की बाईबल में विवेक अथवा ज़मीर के लिए शब्द ‘कनसाइंस’ इस्तेमाल हुआ है - वास्तव में ‘कन’ का अर्थ होता है ‘साथ’ और यहां पर ‘साइंस’ का मतलब है ‘ज्ञान’। इसी लिए हम मनुष्यों को यह मालूम है कि किसी की हत्या करना, झूठ बोलना, चोरी करना या अन्य बुरी बातें करना ग़लत है। बाईबल ही हमें बताती है कि प्रत्येक मनुष्य में परमेश्वर ने ऐसा ज्ञान डाला है, जानवरों में नहीं। विज्ञान का विकास का सिद्धांत यह बातें बताने में पूर्णतया असमर्थ है।


97. पवित्र बाईबल के नए नियम की इन्जील ‘मत्ती’ (22ः37-40) तथा यूहन्ना की पहली पत्री के चौथे अध्याय की 7वीं से 12वीं आयत तक प्रेम अर्थात प्यार की व्याख्या की गई है। परन्तु विज्ञान का विकास का सिद्धांत ऐसी बातों की कभी व्याख्या नहीं कर सकता। बाईबल हमें बताती है कि हमारे जीवन का उद्देश्य परमेंश्वर के बारे में जानना व उसे प्यार करना है। परमेश्वर ही प्यार है या इसे उल्टा भी कहा जा सकता है कि प्यार में ही परमेश्वर है। परमेश्वर ने अपना प्यार जताने के लिए मनुष्य की रचना अपनी शकल के अनुसार की थी।


98. पवित्र बाईबल के पुराने नियम में कई स्थानों (जैसे ‘गिनती’ 16ः22, ज़कर्याह 12ः1) पर यह लिखा है कि आप असल में एक आत्मा हैं। एक मनुष्य का व्यक्तित्त्व भौतिक अर्थात शारीरिक नहीं होता। उदाहरणतया यदि डॉक्टर मैडिकल साइंस का प्रयोग करते हुए किसी व्यक्ति का दिल बदल देते हैं, तब भी उसका चरित्र व आदतें परिवर्तित नहीं हो जातीं। यदि किसी व्यक्ति के शरीर का कोई अंग किसी कारणवश कट जाए, तो भी वह एक संपूर्ण आत्मा ही रहता है क्योंकि मनुष्य का संपूर्ण स्वभाव उसकी आत्मा, दिल, दिमाग़ सभी को मिलाकर बनता है। बाईबल की पुस्तक 1 सैमुएल के 16वें अध्याय की 7वीं आयत में भी लिखा है कि मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है परन्तु परमेश्वर (यहोवा) की दृष्टि मन पर रहती है।


99. पवित्र बाईबल हमें दुःख का कारण बताती है (उत्पत्ति 3, यशायाह 24ः5-6)। इस पृथ्वी पर दुःख अधिक हैं। विज्ञान का विकास का सिद्धांत नहीं, अपितु बाईबल हमें बताती है कि दुःख का वास्तविक कारण क्या है। जब मनुष्य ने परमेश्वर के विरुद्ध बग़ावत कर दी, तो उससे दुःख एवं कलेश, दर्द, मृत्यु उत्पन्न हुए।


100. पवित्र बाईबल में बहुत से स्थानों पर मृत्यु की व्याखया की गई है। ‘रोमियों’ 6ः23 में बताया गया है कि पाप की मज़दूरी मौत है। सचमुच अंततः सभी मर जाते हैं। विज्ञान मृत्यु की व्याखया नहीं कर पाता परन्तु बाईबल की पुस्तक ‘यहेजकेल’ के 18वें अध्याय की 20 आयत में लिखा है कि जो आत्मा पाप करती है, वह मर जाती है। परमेश्वर के कानून का उल्लंघन पाप/गुनाह द्वारा होता है। ‘कूच’ के 20ें अध्याय में दर्ज परमेश्वर के 10 आदेशों को ध्यान से पढ़ें। क्या आपने कभी झूठ बोला है, क्या चोरी की है? यीशु मसीही ‘मत्ती’ के पांचवें अध्याय की 28वीं आयत में कहते हैं कि यदि किसी ने किसी स्त्री को बुरी नज़र से भी देख लिया, तो वह उससे व्यभिचार कर चुका। क्या आपने कभी किसी स्त्री को ग़लत नज़रों से देखा है? यदि हां, तो हम सब परमेश्वर की नजर में पापी/गुनाहगार हैं। क्या आपने कभी किसी से घृणा की है या कभी किसी को मूर्ख कहा है? ‘मत्ती’ के 5वें अध्याय की 21वीं एवं 22वीं आयतें तथा ‘यूहन्ना’ के तीसरे अध्याय की 15वीं आयत पढ़ें तो वहां पर स्पष्ट लिखा है कि यदि आपने किसी को मूर्ख कहा, तो आप हत्या के अपराधी हैं। क्या आपने परमेश्वर (ईश्वर, यीशु मसीह) का नाम बेफ़ायदा लिया है, ऐसा करना भी ईश-निंदा के समान माना गया है।


101. पवित्र बाईबल में न्याय को भी पूर्णतया तर्कपूर्ण व वैज्ञानिक परन्तु धार्मिक ढंग से समझा गया है (प्रेरितों के काम 17ः30-31)। परमेश्वर के दिए विवेक अर्थात सूझ-बूझ से हम सभी जानते हैं प्रत्येक प्रकार के पाप का निर्णय होगा। हम यदि कुछ गहराई से देखें, तो जिस परमेश्वर ने आँखों को बनाया है, वह प्रत्येक पाप को देखता भी है (रोमियां 2ः16)। वह यहोवा, जिसने हमारे मस्तिष्क को बनाया है, वह हमारे द्वारा किए प्रत्येक अपराध के बारे पूरी तरह वाकिफ़ हैं। परमेश्वर द्वारा यह घोषणा भी की जा चुकी है कि पाप की मज़दूरी मृत्यु है। शारीरिक मृत्यु तो पहले आती है परन्तु दूसरी मृत्यु जो सदा के लिए है वह है आग की झील में जलना व परमेश्वर से सदा के दूर रहना (प्रकाशित-वाक्य 21ः8)। परमेश्वर ने प्रत्येक पाप का निर्णय करना है। परन्तु परमेश्वर क्षमा करने में भी बहुत आगे है। जो भी उन्हें पुकारता व अपने किए पर पछताता है, उसे वह क्षमा भी करता है। ऐसी बातों की व्याख्या विज्ञान नहीं कर सकता।


102. पवित्र बाईबल में ‘यूहन्ना’ की इंजील के तीसरे अध्याय की 16वीं आयत में अनन्त जीवन के बारे में बताया गया है। वैज्ञानिकों ने बहुत सारे अनुसंधान इस दिशा में किए हैं परन्तु वह बूढ़े होने एवं मृत्यु का कोई वैज्ञानिक ढंग या इलाज नहीं ढूंढ पाए। परन्तु खुशख़बरी यह है कि जीवन के स्रोत परमेश्वर ने हमें क्षमा करने एवं स्वर्ग में अनन्त जीवन पाने का रास्ता बताया है। ‘रोमियों’ 5ः8 में लिखा है कि जब हम पापी ही थे, तो यीशु मसीह ने हमारे लिए जान दे दी। ‘परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना इकलौता पुत्र बख़श दिया, ताकि जो भी उस पर ईमान लाए, व हलाक न हो, बल्कि अनन्त जीवन पाए’ (यूहन्ना 3ः16)। परमेश्वर की यही इच्छा रही कि प्रत्येक व्यक्ति अपने मन में प्रेम की भावना रखे, पाप, भय एवं दर्द से दूर रहे। इसी लिए उन्होंने अपना पुत्र सलीब पर कुर्बान होने के लिए भेजा। ‘पाप की मज़दूरी चाहे मृत्यु है परन्तु परमेश्वर का उपहार हमारे उद्धारकर्ता यीशु में अनन्त जीवन है’ (रोमियों 6ः23)। यीशु मसीह ने क्योंकि कभी कोई पाप नहीं किया था, इसी लिए वही एकमात्र ऐसे थे, जो हम सब के पापों के लिए दण्ड भोग सकते थे। फिर वह कब्र में भी रहे परन्तु उन्होंने मृत्यु पर विजय पाई और जी उठे। जो कोई व्यक्ति अपने पापों से तौबा कर लेगा और यीशु मसीह पर विश्वास करेगा, वह बच जाएगा। अपने पापों का पश्चाताप करते हुए यीशु मसीह पर अपना भरोसा दृढ़ बनाएं तथा ‘भजन संहिता’ के 51वें अध्याय को अपनी प्रार्थना बनाएं और नित्य प्रतिदिन बाईबल पढ़ें। परमेश्वर आपको कभी नीचे नहीं रखेगा।


103. पवित्र बाईबल में सभी प्रकार की पीड़ाओं, शोक, विलाप, दुःख-दर्द का हल दिया गया है (प्रकाशित-वाक्य)। विज्ञान का कोई विकास-सिद्धांत किसी पीड़ा का कोई समाधान नहीं कर सकता परन्तु ‘प्रकाशित-वाक्य’ के 21वें अध्याय की चौथी आयत में लिखा है कि परमेश्वर ‘उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा और इसके बाद मृत्यु न रहेगी और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी, पहली बातें जाती रहीं।’



Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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