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ब्रिटिश नेवी के उच्च सैन्य अधिकारी की बेटी मैडलीन स्लेड का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय योगदान



 




 


मैडलीन स्लेड ने भारत के लिए अपनी जन्म-भूमि इंग्लैण्ड को छोड़ा

भारत में मीरा बहन (मीराबेन) के नाम से प्रसिद्ध मैडलीन स्लेड (स्लाईड) वास्तव में इंग्लैण्ड की नागरिक थीं और उन्होंने महात्मा गांधी जी के साथ मिल कर भारत के स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने हेतु अपने मूल वतन तक को छोड़ दिया था। वे सारा जीवन गांधी जी के सिद्धांतों पर चलते रहे।

मैडलीन स्लेड (स्लाईड) के पिता ब्रिटिश जल सेना (रॉयल नेवी) के रीयर-अैडमिरल सर ऐडमण्ड स्लेड थे। वह पहले ईस्ट इण्डीज़ स्कुअैडर्न के कमाण्डर-इन-चीफ़ थे और बाद में नेवल इन्टैलीजैंस डिवीज़न के निदेशक बन गए थे। उनके पिता के क्योंकि बार-बार दूर-दराज़ के क्षेत्रों में ट्रांसफ़र होते रहते थे, इसी लिए मैडलीन को अपना अधिकतर बचपन अपने नाना के घर बिताना पड़ा। उन्हें बचपन से ही प्रकृति व जानवरों से बहुत अधिक प्यार था। वह संगीत प्रेमी भी थीं तथा प्यानो बहुत अच्छा बजा लेती थीं। वह संगीतकार लुडविग वैन बीटहोवन की बहुत बड़ी प्रशंसक रहीं थीं। वीअैना (आस्ट्रिया) व जर्मनी में जहां कहीं भी बीटहोवन रहे थे, मैडलीन उन सभी जगह पर जा कर आईं थीं।


रोमां रोलां की पुस्तक को पढ़ कर मैडलीन हुईं गांधी जी से प्रभावित

22 नवम्बर, 1892 को पैदा हुए मैडलीन तब प्रसिद्ध लेखक व चिन्तक रोमां रोलां (जिनके नाम के शब्द-जोड़ अंग्रेज़ी में ‘रोमेन रोलैण्ड’ हैं) को भी मिले थे, जिन्होंने बीटहोवन के बारे में पुस्तक लिखी थी। रोमां रोलां ने उस के पश्चात् एक और पुस्तक भी लिखी थी, जिस में उन्होंने महात्मा गांधी जी को ’एक अन्य जीसस क्राईस्ट’ कहा था। तब मैडलीन ने गांधी जी को एक पत्र लिख कर पूछा था कि क्या वह उनके साथ आ कर साबरमती आश्रम में रह सकती हैं। गांधी जी ने तब उन्हें यह कहा था कि यदि वह आश्रम के सभी नियमों का पूर्णतया अनुपालन करेंगे, तो वह अवश्य आ सकती हैं।

गांधी जी ने दिया नाम मीराबेन

मैडलीन स्लेड 7 नवम्बर, 1925 को अहमदाबाद (गुजरात) पहुंचे थे, तो उन्हें लेने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल, महादेव देसाई व स्वामी आनन्द पहुंचे थे। उसके बाद वह 34 वर्ष भारत में ही रहीं। पहले उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी में जा कर हिन्दी भाषा सीखी। फिर वह स्वामी परमानन्द महाराज द्वारा रेवाड़ी (हरियाणा) में स्थापित भगवत भक्ति आश्रम में गईं। उन्हें मीरा बहन नाम गांधी जी ने ही दिया था।

1931 में जब ब्रिटिश सरकार के साथ गोल-मेज़ कान्फ्ऱेंस हुई थी, तब वह गांधी जी के साथ इंग्लैण्ड भी गईं थीं। तब मीरा बहन व गांधी जी ने लेखक रोमां रोलां के साथ भी मुलाकात की थी।


मीरा बहन व गांधाी जी को आन्दोलन के दौरान अंग्रेज़ सरकार ने पटना जेल भेजा

मीरा बहन ने सेवाग्राम आश्रम की स्थापना में अत्यधिक दिलचस्पी दिखलाई थी और उन्होंने 1942 में जापान के संभावी हिंसक आक्रमण के विरुद्ध उड़ीसा की जनता के साथ मिल कर आन्दोलन भी किया था। तब उन्हें व गांधी जी को अन्य साथियों सहित अगस्त 1942 में पुणे (महाराष्ट्र) के आग़ा ख़ान पैलेस में ग्रिफ़्तार कर लिया गया था। उन्हें मई 1944 तक कारावास में रहना पड़ा था। उसी दौरान गाधी की धर्म-पत्नी कस्तूरबा बाई व महादेव देसाई का निधन हुआ था।

उसके बाद मीरा बहन ने शिमला कान्फ्ऱेंस व कैबिनेट मिशन, अंतरिम सरकार व कॉनस्टीच्यूएंट असैम्बली का गठन व महात्मा गांधी जी की निर्मम हत्या सब कुछ अपनी आंखों से देखा।


गांवों में रहते हुए आम लोगों के साथ मिल कर किए मूलभूत कार्य

पुणे से रिहाई के पश्चात् मीरा बहन ने रुड़की के पास मूलदासपुर माजरा नामक एक गांव में एक किसान आश्रम स्थापित किया। उन्हें स्थानीय गांव वासियों ने इस के लिए भूमि दान में दी। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् उन्होंने ऋषिकेश के पास पशुलोक आश्रम, स्थापित किया। उन्होंने 1952 में भीलांगना में बापू ग्राम व गोपाल आश्रम भी स्थापित किए। वह कुमाऊँ व गढ़वाल में भी रहे।


वृक्षों को बचाने हेतु छेड़ा था अभियान परन्तु किसी ने ध्यान ही नहीं दिया

वनों में वृक्ष काटने पर वह बहुत दुःखी हो जाया करती थीं। तब उन्होंने इसकी शिकायत वन विभाग को की थी परन्तु किसी ने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया। 1980 के दशक में वातावरण को बचाने हेतु एक गांधीवादी सिद्धांत के अनुसार ‘चिपको’ आन्दोलन चला था, जिसमें जब वन विभाग के अधिकारी किसी पेड़ को काटने लगते थे, तो इस आन्दोलन के कार्यकर्ता उस वृक्ष से ऐसे चिपक जाते थे, जैसे किसी को गले मिलते हैं। तब अधिकारी कुछ नहीं कर पाते थे। यह आन्दोलन उन्हीं स्थानों पर अधिक सफ़ल रहा, जहां-जहां मीरा बहन रह चुकी थीं, क्योंकि वहां पर लोगों को गांधीवादी सिद्धांतों की पूर्ण जानकारी थी।


भारत सरकार ने जारी किया था मीरा बहन यादगारी डाक टिक्ट

1959 में मीरा बहन इंग्लैण्ड लौट गईं थीं और फिर आस्ट्रिया में जा कर रहने लगीं थीं। उन्होंने आस्ट्रिया के गांवों में 22 वर्ष बिताए, जहां पर 20 जुलाई, 1982 को उनका निधन हो गया।

भारत सरकार ने 1983 में मीरा बहन की याद में एक डाक-टिक्ट की जारी किया था।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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