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गोवा में 16वीं शताब्दी के दौरान सांप्रदायिक एकता व अखण्डता का संतुलन बनाने वाले थॉमस स्टीफ़न्ज़



 




 


गोवा की पुतर्गाली सरकार के अत्याचारों के विरुद्ध बड़े स्तर पर फैल गया था रोष

इंग्लैण्ड में जन्म लेने वाले पादरी थॉमस स्टीफ़न्ज़ एक जैसुइट पादरी एवं मसीही मिशनरी थे, जो 24 अक्तूबर, 1579 को गोवा पहुंचे थे, जब वहां पर पुर्तगालियों का राज्य था। वह एक लेखक एवं भाषा-विज्ञानी भी थे। 1583 में जब गोवा में कानून एवं व्यवस्था तथा सांप्रदायिक एकता व अखंडता की स्थिति बिगड़ गई थी, तो पादरी स्टीफ़न्ज़ ने हालात को संभालने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी।

25 जुलाई, 1583 को गोवा में जब हिन्दु क्षत्रियों ने पुर्तगाली सरकार के विरुद्ध विद्रोह करते हुए दक्षिण गोवा के ज़िले कन्कोलिम में पांच जैसुइट पादरियों सहित 14 भारतीय मसीही लोगों को मार दिया था, तब स्थानीय परिस्थितियां बहुत अधिक बिगड़ गईं थीं। दरअसल पुर्तगाली शासक बहुत अधिक अत्याचार करते थे तथा बल-प्रयोग द्वारा मसीही धर्म को एकदम प्रत्येक स्थान पर फैला देना चाहते थे। वे चाहते थे कि सीरियन एवं अन्य सभी मसीही भी रोमन कैथोलिक मसीही बन जाएं। उन्होंने तब बहुत से मसीही गिर्जाघर भी तबाह किए थे, तथा हिन्दु मन्दिरों को भी ध्वस्त किया था, जिसके कारण स्थानीय स्तर पर उनके विरुद्ध बहुत अधिक रोष व्याप्त था। 14 मसीही लोगों की ‘शहादत’ के पश्चात् तत्कालीन पुर्तगाली ‘अत्याचारी’ सरकार ने गांवकर समुदाय के बहुत से नेताओं को मौत के घाट उतार दिया था और कन्कोलिम का आर्थिक मूलभूत ढांचा भी तहस-नहस करके रख दिया था। 1510 में गोवा पर पुर्तगालियों के कब्ज़े के 73 वर्षों के पश्चात् स्थानीय लोगों ने पहली बार ऐसा हिंसक विद्रोह किया था।


ऑक्सफ़ोर्ड से शिक्षा प्राप्त पादरी थॉमस स्टीफ़न्ज़ पुर्तगाली सरकार द्वारा भारत में पादरी हुए नियुक्त

पादरी थॉमस स्टीफ़न्ज़ का जन्म इंग्लैण्ड के विल्टशायर क्षेत्र के नगर बुशटन में 1549 ई. में हुआ था। उनके पिता एक व्यापारी थे। कैथोलिक बनने से पूर्व श्री थामस स्टीफ़न्ज़ ने ऑक्सफ़ोर्ड से शिक्षा ग्रहण की थी। फिर वह रोम चले गए और 1575 ई. में ‘सोसायटी ऑफ़ जीसस’ के सदस्य बन गए। पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन से होते हुए गोवा (भारत) जाने से पूर्व उन्होंने कॉलेजियो रोमानो में दार्शनिक अध्ययन भी किया था। गोवा में कुछ माह के धार्मिक अध्ययन के उपरान्त 1580 में विधिवत पादरी नियुक्त कर दिया गया था। उन्होंने कोंकणी एवं मराठी भाषाओं को पढ़ना-लिखना भी सीखा था। वह सालसीट, मरगाव, बेनोलिम, मरमुगाव, नेवलिम एवं अन्य बहुत से स्थानों पर पादरी के तौर पर कार्यरत रहे। पादरी थॉमस स्टीफ़न्ज़ का निधन 1619 में गोवा के सालसीट में हुआ था।


गोवा की कोंकणी भाषा का पहला व्याकरण लिखा पादरी थॉमस स्टीफ़न्ज़ ने

पादरी थॉमस स्टीफ़न्ज़ ने अपने पिता को एक विस्तृत पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने पुर्तगाली भारत एवं यहां की भाषाओं संबंधी विवरण दिए थे। उस पत्र को ‘रिचर्ड हकलुइट’ज़ प्रिंसीपल नेवीगेशन्ज़’ के द्वितीय संस्करण में प्रकाशित किया गया था। पादरी स्टीफ़न्ज़ ने रोमन लिपि में कोंकणी भाषा को लिखा था, जो उनका बहुत बड़ा योगदान था। पुर्तगाली भाषा में उन्होंने ‘आर्ट डा लिंगोआ कनारिम’ नामक एक पुस्तक लिखी थी, जो कोंकणी भाषा की पहली व्याकरण है। यह 1640 ई. में गोवा में प्रकाशित हुई थी। पादरी डीयोगो रिबेअरो, पादरी एस.जे. एवं चार अन्य जैसुइट पादरी साहिबान ने इसे और विस्तृत बनाया था। कोंकणी भाषा में उनकी मसीही प्रार्थनाएं का एक संग्रह भी छपा था और कमाल की बात यह है कि यह कोंकणी भाषा में प्रकाशित होने वाली पहली पुस्तक भी थी।


‘क्राईस्ट पुराण’ भी लिखा पादरी स्टीफ़न्ज़ ने

इसके अतिरिक्त पादरी स्टीफ़न्ज़ ने मराठी एवं कोंकणी मिश्रत भाषाओं में ‘क्राईस्ट पुराण’ भी लिखा था, जो एक महाकाव्य है और उसमें यीशु मसीह के जीवन पर ही आधारित है। इसके 11,000 छन्द है और इसके चार भाग हैं। 1930 के दशकों में यह महाकाव्य इस क्षेत्र के गिर्जाघरों में बहुत अधिक लोकप्रिय था और प्रार्थनाओं के दौरान गाया जाता रहा था। सन् 1616 में प्रकाशित इस महाकाव्य की कोई भी असल प्रति मौजूद नहीं है। यह पुस्तक 1649 एवं 1654 में पुनः प्रकाशित हुई थी। फिर 1907 में इसे जोसेफ़ एल. सल्दानाह ने पुनः प्रकाशित किया था। इसका पांचवां संस्करण अहमदनगर (महाराष्ट्र) के प्रोफ़ैसर शांताराम बंदेलू ने प्रकाशित करवाया था और देवनागरी लिपि में यह पहली बार प्रकाशित हुआ था। फिर 1923, 2009 तथा 2012 में भी यह प्रकाशित हुआ था।

सोसायटी ऑफ़ जीसस ने 1989 में गोवा में ‘थॉमस स्टीफ़न्ज़ कोंकणी केन्द्र’ भी स्थापित किया था। इसके अतिक्त 1995 में वसाई (महाराष्ट्र) तहसील के गांव गिरीज़ में ‘फ़ादर थॉमस स्टीफ़न्ज़ अकैडमी’ की स्थापना भी की गई थी।


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