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लाला लाजपत राय के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले अमेरिकन मसीही मिशनरी सैमुएल इवान्स स्टोक्स



 




 


स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जेल जाने वाले एकमात्र अमेरिकन थे सैमुएल इवान्स स्टोक्स

श्री सैमुएल इवान्स स्टोक्स एक अमेरिकन थे, जो भारत में सैटल हुए थे तथा उन्होंने लाला लाजपत राय के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जेल जाने वाले वह एकमात्र अमेरिकन थे। उन्होंने ही हिमाचल प्रदेश में सेबों के उत्पादन का कार्य प्रारंभ किया था और आज सेबों के बग़ीचों से इस भारतीय राज्यों के हज़ारों परिवार गुज़ारा करते हैं। इसी लिए हिमाचल के लोग आज भी श्री सैमुएल स्टोक्स के ऋणी हैं। हिमाचल प्रदेश के अधिकतर सेब विदेशों में निर्यात होते हैं। बाद में श्री स्टोक्स ने अपने नाम का भारतीयकरण करते हुए अपना नाम सत्यानन्द स्टोक्स भी रख लिया था।


सैमुएल इवान्स स्टोक्स ने अमेरिका में पिता के चल रहे बड़े कारोबार नहीं ली दिलचस्पी

श्री सैमुएल स्टोक्स का जन्म 16 अगस्त, 1882 को अमेरिकन राज्य पैनसिल्वेनिया के सबसे बड़े महानगर फ़िलाडेल्फ़िया के जर्मनटाऊन क्षेत्र के एक धार्मिक परिवार में हुआ था। उनके पिता ‘स्टोक्स एण्ड पैरिश मशीन कंपनी’ के मालिक थे और उस समय अमेरिका में एलीवेटर्स (लिफ्ट्स) के मुख्य निर्माताओं में से एक थे। परन्तु श्री सैमुएल स्टोक्स को कभी व्यापार में दिलचस्पी नहीं रही थी, इसी लिए उन्होंने ऐसा कोई संबंधित हुनर सीखने की आवश्यकता ही नहीं समझी थी।


हिमाचल प्रदेश के स्पाटू में की कुष्ट रोगियों की सेवा

1904 में 22 वर्ष की आयु में श्री सैमुएल स्टोक्स भारत पहुंचे। वह हिमाचल प्रदेश के नगर स्पाटू (जो राजधानी शिमला से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है) स्थित कुष्ट रोगियों की एक कॉलोनी में कार्य करने के लिए पहुंचे थे। उनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वह ऐसा कोई कदम उठाएं परन्तु उन्होंने किसी की एक नहीं सुनी। भारत में जब लोग उन्हें कुष्ट रोगियों की सेवा का कार्य करते देखते थे, तो सभी के मन में उनके प्रति एक अजीब सी श्रद्धा व आदर का भाव स्वयं ही भर जाता था क्योंकि उन दिनों कुष्ट रोगियों को प्रायः मरने के लिए ही छोड़ दिया जाता था - जिनका भाग्य अच्छा होता था, वे बच जाते थे और शेष शीघ्र ही ईश्वर के पास चले जाते थे।


अमेरिका से माता-पिता द्वारा भेजी राशि भी हिमाचल प्रदेश के कुष्ट रोगियों पर ख़र्च देते थे सैमुएल स्टोक्स

माता-पिता ने अमेरिका से श्री सैमुएल स्टोक्स के लिए बहुत से सन्देश भेजे क्योंकि उन्हें उस आयु में अपने बेटे की बहुत अधिक आवश्यकता महसूस हो रही थी। एक बार माता-पिता ने उन्हें बहुत सी राशि भेज कर कहा कि वह अब अमेरिका लौट आए परन्तु श्री सैमुएल कहां मानने वाले थे, उन्होंने वह राशि भी उन्होंने कुष्ट रोगियों व उस गांव के कुछ ज़रूरतमन्द निवासियों पर ही ख़र्च कर दी थी, जहां वह रहते थे। श्री सैमुएल स्टोक्स को धन तो कभी चाहिए ही नहीं था, वह एक मसीही सन्यासी की तरह बिल्कुल सादा जीवन व्यतीत करते थे।

कुछ वर्षों के बाद इंग्लैण्ड के नगर कैन्टरबरी के आर्कबिशप शिमला में भारत के वॉयसरॉय से मिलने के लिए पहुंचे। दरअसल, उन दिनों ब्रिटिश राज्य के दौरान ग्रीष्म ऋतु में शिमला ही भारत की राजधानी हुआ करता था, इसी लिए गर्मियों में शिमला में वी.आई.पी. लोगों का तांता लगा ही रहता था। आर्कबिशप ने जब इस ढंग से एक अमेरिकन गोरे को भारत के कुष्ट रोगियों की सेवा करते हुए देखा, तो उन्होंने श्री स्टोक्स को सलाह दी कि वह वहां पर ‘फ्ऱांसिस्कन फ्ऱायर्स’ (मसीही सन्यासियों का जीवन व्यतीत करते हुए दुःखी लोगों व रोगियों की सेवा करना) व्यवस्था लागू करें। इस सलाह को क्रियान्वित रूप देते हुए श्री स्टोक्स ने ऐसी व्यवस्था लागू कर दी परन्तु ऐसा केवल दो वर्ष ही चल पाया।


राजपूत मसीही लड़की से किया विवाह

1912 में श्री सैमुएल स्टोक्स ने एक स्थानीय राजपूत मसीही लड़की एग्नेस (जिसका परिवार कुछ समय पूर्व ही स्वेच्छा से मसीही बना था) से विवाह करके निर्धनता का जीवन त्याग दिया और अपनी पत्नी के गांव के समीप ही कुछ कृषि-योग्य भूमि ख़रीद ली। श्री सैमुएल स्टोक्स व श्रीमति एग्नेस स्टोक्स के घर पांच बच्चों ने जन्म लिया।


1916 में पहली बार अमेरिकन बीजों से हिमाचल में उगाए सेब

श्री सैमुएल ने अमेरिकन राज्य लूसियाना में रहने वाले स्टार्क भाईयों द्वारा विकसित की सेबों की एक नई किस्म की पहचान की। पहाड़ों के ठण्डे मौसम में सेबों की फ़सल बढ़िया होती है। 1916 में उन्होंने पहली बार हिमाचल की धरती पर सेबों की वह किस्म उगाई। दिल्ली में रहने वाले कुछ अन्य गोरे व्यापारियों को जब यह मालूम हुआ, तो वे तुरन्त श्री सैमुएल के गांव में पहुंच कर अन्य लोगों को भी सेबों का कारोबार करने हेतु उत्साहित करने लगे। उस वर्ष श्री सैमुएल के बाग़ों में भरपूर फ़सल हुई। इस बात से प्रोत्साहित हो कर उन्होंने कुछ और ज़मीन ख़रीद ली और अपनी पूरी ताकत हर वर्ष सेबों के उत्पादन पर झोकने लगे। इससे स्थानीय अर्थ-व्यव्सथा निरंतर सशक्त होती चली गई।


अमेरिकन मसीही मिशनरी सैमुएल स्टोक्स चाहते थे कि ब्रिटिश लोग भारत को छोड़ कर शीघ्र आज़ाद कर दें

उन्हीं दिनों में श्री सैमुएल स्टोक्स ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लेना प्रारंभ कर दिया। वह भी चाहते थे कि इंग्लैण्ड के लोग शीघ्रतया भारत को आज़ाद करके अपने देश वापिस लौट जाएं। 1919 में जब जल्लियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड हुआ, तो उनका ध्यान भारत के स्वतंत्रता आन्दोलनों की ओर पहली बार गया था। वह अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य बन गए। उस समय वह कांग्रेस पार्टी में अमेरिकन मूल के एकमात्र सदस्य थे। श्री सैमुएल स्टोक्स ने लाला लाजपत राय के साथ पंजाब में विभिन्न स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लिया। वह मोती लाल नेहरु एवं सी.आर. दास जैसे स्वतंत्रता संग्रामियों के भी बहुत करीब रहे।


अंग्रेज़ शासकों ने सैमुएल स्टोक्स पर दर्ज किया राजद्रोह का मुकद्दमा

1921 में कांग्रेस के मैनीफ़ैस्टो पर हस्ताक्षर करने वाले भी वह एकमात्र ग़ैर-भारतीय थे। उसी वर्ष ब्रिटिश सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकद्दमा दर्ज करते हुए उन्हें जेल भेज दिया। छः माह तक उन्हें ज़मानत की स्वीकृति भी नहीं दी गई। अंग्रेज़ सरकार की सी.आई.डी. ने उनकी गतिविधियों के बारे में एक विशेष फ़ाईल तैयार करके रखी हुई थी।


समाचार पत्र में गांधी जी द्वारा की गई चर्चा से देश भर में प्रसिद्ध हो गए थे सैमुएल स्टोक्स

तब महात्मा गांधी जी ने उनके बारे में अपने समाचार पत्र ‘यंग इण्डिया’ में लिखा था कि ‘उन्हें (सैमुएल स्टोक्स को) एक भारतीय की तरह ही महसूस करना चाहिए और अपने संघर्ष व दुःख साझे करने चाहे हैं। वह इस सरकार की आलोचना करते हैं क्योंकि यह सरकार सचमुच असहनीय है। इसी लिए उनकी गोरी चमड़ी भी उन्हें कोई सुरक्षा प्रदान न कर पाई।’ गांधी जी द्वारा यह टिप्पणी लिखने से श्री सैमुएल स्टोक्स की ओर समस्त भारत का ध्यान पहली बार गया। श्री सैमुएल स्टोक्स ने महात्मा गांधी जी द्वारा प्रारंभ किए असहयोग आन्दोलन में भी भाग लिया। उन्होंने अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों पर बेगार डालने का भी ज़ोरदार विरोध किया।


सदा खादी पहनने वाले सैमुएल स्टोक्स ने सीखी थी संस्कृत भाषा

सैमुएल स्टोक्स सदा खादी पहनते थे। उन्होंने संस्कृत भाषा भी सीखी थी। उनके पुत्र तारा के पेचिश रोग से देहांत के बाद जैसे वह टूट से गए थे और बहुत दुःखी व अपने जीवन से अत्यंत असंतुष्ट रहने लगे थे। अपने पुत्र के नाम से उन्होंने कोटगढ़ में तारा स्कूल भी खोला था। अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने हिन्दु धर्म को ग्रहण कर लिया था। तब उन्होंने अपना नाम सत्यानन्द स्टोक्स रख लिया था। वह चाहते थे कि भारत के लोग अधिक से अधिक हिन्दी पढ़ें, अंग्रेज़ी नहीं। उनके तारा स्कूल में भी बच्चों की पढ़ाई हिन्दी भाषा से ही की जाती थी। अंग्रेज़ी की पढ़ाई केवल चौथी या पांचवीं कक्षा से ही प्रारंभ होती थी।

परन्तु श्री सैमुएल स्टोक्स स्वयं भारत को स्वतंत्र होते हुए न देख पाए और 14 मई, 1946 को उनका निधन हो गया।

उन्होंने चार पुस्तकें भी प्रकाशित की थीं।


पुत्रवधु विद्या स्टोक्स हैं हिमाचल प्रदेश की बहुचर्चित शख़्सियत

सत्यानन्द स्टोक्स की पुत्रवधु विद्या स्टोक्स (जन्म 8 दिसम्बर, 1927) भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश की बहुचर्चित शख़्सियत हैं। वह 2012 से ले कर हिमाचल प्रदेश की सिंचाई व जन-स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुकी हैं। इससे पूर्व 2003 से 2007 तक अपने राज्य की बिजली मंत्री भी रही हैं तथा आठ बार विधायिका भी चुनी जा चुकी हैं।  


 


 


 



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