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अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे पादरी एफ्ऱेम डी नैवर्स



 




 


पादरी एफ्ऱेम डी नैवर्स ने की थी 8 जून, 1642 को मद्रास में पहली मसीही मिशन की स्थापना

कैपुचिन फ्ऱांसिस्कन पादरी एफ्ऱेम डी नैवर्स फ्ऱांस के नगर नैवर्स में पैदा हुए थे और उन्हें भारत के वर्तमान राज्य तामिल नाडू के नगर मद्रास (अब चेन्नई) में पहुचंने वाले पहले मसीही मिशनरी भी माना जाता है। उन्होंने 8 जून, 1642 को मद्रास में पहली मसीही मिशन की स्थापना की थी। वह मद्रास कैपुचिन मिशन के प्रथम प्रीफ़ैक्ट एपौस्टॉलिक नियुक्त किया गया था। उन्होंने एक मिशनरी के तौर पर 53 वर्षों तक कार्य किया और उनका निधन 13 अक्तूबर, 1695 को मद्रास में हुआ था।


कई देशों में से गुज़रते हुए 1640 में पहुंचे थे गुजरात के नगर सूरत

फ़ादर एफ्ऱेम का जन्म 1607 से लेकर 1610 के बीच किसी समय फ्ऱांस के बरगण्डी क्षेत्र के ऑक्सेरे में हुआ था। उन्हें ऐटिने (स्टीफ़न) के तौर बप्तिस्मा दिया गया था। वह टूरेन राज्य के कैपुचिन में मसीही फ्ऱायर माईनर कैपुचिन (भिक्षु) बन गए थे। विज्ञान एवं गणित जैसे विषयों में वह विशेष तौर पर सुविज्ञ थे। उन्हें पहले 1636 ई. में मध्य पूर्वी देशों लैबनान, सीरिया एवं पर्सिया भेजा गया था। उन्होंने उस दौरान साइडॉन, बेर्यूथ, डामस, एलेप, दियारबेकिर, मोसुल, बग़दाद, इस्पाहन एवं बसरा जैसे प्रमुख नगरों की यात्राएं की थीं। फ़ादर एफ्ऱेम भारत में पहली बार 1640 ई. में गुजरात के नगर सूरत में पहली भारतीय कैपुचिन मसीही मिशन की स्थापना संबंधी रिपोर्ट करने हेतु पहुंचे थे। क्योंकि 1639 में जब फ्ऱांसीसी कैपुचिन पादरी ज़ैनो डी बीग ने सूरत में पहली मिशन की स्थापना की थी तो पैड्रोआडो पादरी साहिबान ने उनका ज़ोरदार विरोध किया था। उन्होंने बर्मा के पेगू में भी नई मिशन की स्थापना की थी।


मद्रास में किए काफ़ी मसीही मिशनरी कार्य

फिर फ़ादर एफ्ऱेम 1642 में मद्रास पहुंचे। जिन अंग्रेज़ों ने 1639 ई. में मद्रास नगर की स्थापना की थी, उन्होंने फ़ादर एफ्ऱेम से निवेदन किया था कि वे पुर्तगाली कैथोलिक मसीही लोगों के आध्यात्मिक लाभ हेतु वहीं पर रहें। उस समय माइलापेर का पैड्राआडो डायोसीज़ अंग्रेज़ों के अधिक करीब हुआ करता था, इसी लिए फ़ादर एफ्ऱेम ने उनकी अपील मानने से इन्कार कर दिया परन्तु जब उन्होंने देखा कि स्थानीय मसीही लोग सच्ची मसीहियत से दूर होते जा रहे हैं, इसी लिए उन्होंने मद्रास में पहली मसीही मिशन की स्थापना करने का प्रस्तव मान लिया। उनके द्वारा स्थापित मद्रास की उस कैपुचिन मिशन को 1886 में मद्रास के आरर्कडायोसीज़ का दर्जा मिला था और 1952 में मद्रास एवं माइलापोर रोमन कैथोलिक आर्कडायोसीज़ को मिला कर एक माइलापोर डायोसीज़ बना दिया गया था। उन्होंने 1642 में पहले चर्च की स्थापना की, जो उन्होंने सेंट एण्ड्रयू (फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज के प्रेरित/रसूल) को समर्पित किया। उसी वर्ष पोप अर्बन-आठवें ने कैपुचिन मिशन को तरक्की देकर प्रीफ़ैक्चर एपौस्टॉलिक बना दिया और फ़ादर एफ्ऱेम मद्रास के पहले प्रीफ़ैक्ट एपौस्टॉलिक नियुक्त हुए।


घर में ही खोला ‘भारत का पहला अंग्रेज़ी स्कूल’

फ़ादर एफ्ऱेम एक महान् बुद्धिजीवी तथा भाषा-विज्ञानी थे; जो फ्ऱैन्च, अंग्रेज़ी, पुर्तगाली, अरबी, फ़ारसी एवं तामिल भाषाएं एकसमान सुविज्ञता से बोल सकते थे। उन्होंने अपने घर में ही एक स्कूल खोला था, जो भारत का पहला अंग्रेज़ी स्कूल भी माना जाता है।

पैड्रोआडो पुर्तगाली प्रणाली क्योंकि भारत में विद्यमान अन्य किन्हीं भी मसीही मिशनरियों व अन्य मिशनों के मसीही लोगों से भी बहुत चिढ़ती थी, इसी लिए 1649 में पुर्तगाली शासकों ने फ़ादर एफ्ऱेम को दो वर्षों तक गोवा की जेल में भी डाल दिया था। फिर बीजापुर के सुल्तान की कृपा से फ़ादर एफ्ऱेम को 1652 में पुर्तगाली जेल से रिहा किया गया। तब वह मद्रास लौट आए और पहले से भी अधिक मसीही मिशनरी भावना से सेवा करने लगे और उनके प्रभाव से बहुत से लोग स्वेच्छापूर्वक मसीही बने और उन्होंने प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता माना। 1658 में उन्होंने मद्रास के आर्मीनियन मार्ग पर नए स्थानीय मसीही लोगों के लिए एक चर्च की स्थापना की, जो उन्होंने ‘लेडी ऑफ़ एन्जल्स’ को समर्पित किया। आज वही चर्च सेंट मेरी’ज़ के नाम से जाना जाता है। जब वह पहली बार मद्रास पहुंचे थे, तो केवल 40 मसीही लोग वहां पर रहा करते थे परन्तु उन्होंने अपने निधन तक वहां पर मसीही क्लीसिया की संख्या 8,000 से भी अधिक कर ली थी।

फ़ादर एफ्ऱेम का निधन 13 अक्तूबर, 1695 ई. में हुआ और उन्हें फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज में सेंट एण्ड्रयू चर्च में दफ़नाया गया था। फिर 1752 में जब अंग्रेज़ों ने मद्रास का पहला चर्च ध्वस्त कर दिया था, तो मद्रास की धरती से उसके पहले मसीही मिशनरी की कब्र का नामो निशान भी सदा के लिए मिट गया था।


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