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जोशुआ मार्शमैन ने चीनी व अनेक भारतीय भाषाओं में किए कई अनुवाद



 




 


जोशुआ मार्शमैन ने भारतीय अध्यापकों को स्थानीय भाषाओं में पढ़ाने हेतु किया प्रेरित

श्री जोशुआ मार्शमैन (1768-1837) एक मसीही मिशनरी थे, जो 1799 में भारत के बंगाल क्षेत्र में आए थे। उन्होंने भारत में सामाजिक सुधारों के अभियान में भाग लिया और शिक्षित हिन्दु शख़्सियतों से बौद्धिक स्तर की बहस की, जैसे कि राजा राममोहन रॉय किया करते थे। श्री जोशुआ ने भारतीय समाचार पत्रों को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी नए अभ्यास प्रारंभ किए। उन्होंने स्कूलों में स्थानीय भाषाओं में पढ़ाने हेतु अध्यापकों को उत्साहित किया, जबकि अंग्रेज़ प्रशासक तब शिक्षा का माध्यम केवल अंग्रेज़ी में ही चाहते थे। चीनी भाषा में पवित्र बाईबल के पहले अनुवाद में भी श्री जोशुआ ने मुख्य भूमिका निभाई थी।

श्री जोशुआ का जन्म इंग्लैण्ड के लीअ, विल्टशाइर क्षेत्र के वैस्टबरी में हुआ था। उनके परिवार संबंधी कोई अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। हां, इतना अवश्य है कि उनके पूवर्ज क्रॉमवैल की सेना में एक अधिकारी हुआ करते थे परन्तु बाद में दुनियावी बातों से मन उकताने लगा और वह सेवा-निवृत्त हो कर अपना स्वयं का एक छोटा सा उद्योग चलाने लगे।


जोशुआ मार्शमैन ने जीवन का प्रारंभिक भाग समुद्री यात्राएं करते बिताया

श्री जोशुआ के पिता ने अपने जीवन का प्रारंभिक भाग समुद्री यात्राएं करते हुए बिताया था तथा उन्होंने कैनेडा के राज्य क्यूबेक को जीतने के समय कैप्टन बॉण्ड के नेतृत्त्व में युद्ध में भाग लिया था। फिर 1764 में उन्होंने फ्ऱांसीसी परिवार की मेरी कूज़नर से विवाह रचा। तब तक उनका सैन्य जीवन से मन भर गया था, तो उन्होंने एक स्थान पर बैठकर बुनकर का कार्य प्रारंभ कर दिया।

श्री जोशुआ मार्शमैन का परिवार ग़रीब था और वे अधिक पढ़ न पाए। 1791 में उन्होंने हन्नाह नामक लड़की से विवाह किया और 1794 में वह वैस्टबरी, विल्टशाइर के गांव वैस्टबरी लीअ से अपना सारा सामान लेकर ब्रिस्टल में जाकर रहने लगे। फिर उन्होंने ब्रॉडमीड बैप्टिस्ट चर्च के साथ जुड़ गए तथा उन्होंने चर्च के एक स्थानीय चैरिटी स्कूल में पढ़ाया और साथ ही वह ब्रिस्टल बैप्टिस्ट कॉलेज में स्वयं भी पढ़ते रहे।

29 मई, 1799 को श्री जोशुआ, उनकी पत्नी हन्नाह व अपने दो बच्चों के साथ पोटर््समाऊथ बन्दरगाह से भारत के लिए ‘क्राईटिरियन’ नामक समुद्री जहाज़ से रवाना हुए। उन दिनों में प्रायः फ्ऱांसीसी समुद्री सेनाओं के आक्रमण का भय बना रहता था, परन्तु वह सही-सलामत 13 अक्तूबर, 1799 को कलकत्ता से 30 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में स्थित सीरामपुर नामक नगर पहुंच गए थे। इस जोड़ी के कुल 12 बच्चे हुए और श्री जोशुआ के निधन के समय उनमें से केवल पांच ही जीवित थे। उनकी सब से छोटी बेटी हन्नाह ने हैनरी हेवलुक से विवाह रचाया था, जो बाद में भारत के ब्रिटिश जनरल भी बने थे और उनका बुत आज भी इंग्लैण्ड की राजधानी लण्डन के ट्राफ़्लगर स्कवेयर में स्थापित है।


प्रसिद्ध मसीही मिशनरी विलियम केरी के बच्चों की ज़िम्मेदारी संभाली

उन दिनों में प्रसिद्ध मसीही मिशनरी विलियम केरी (1761-1834) बंगाल में अत्यधिक सक्रिय थे। 1800 में श्री जोशुआ ने श्री केरी के चार पुत्रों से पहली बार मुलाकात की। वह इस बात से अत्यधिक परेशान हुए कि 4, 7, 12 एवं 15 वर्ष आयु के वह बच्चे बिल्कुल अनुशासन में नहीं थे, किसी का कोई कहना नहीं मानते थे और विलियम केरी ने उन्हें पढ़ाया भी नहीं था। तब श्री जोशुआ, उनकी पत्नी हन्ना एवं उनके एक अन्य प्रिन्टर जानकार विलियम वार्ड ने उन बच्चों की ज़िम्म्ेदारी संभाली। उन्होंने उन बच्चों को भी उनके पिता विलियम केरी के जैसा बनाने के प्रयत्न किए। बाद में वह चारों बच्चों ने स्वयं अपना अच्छा कैरियर बनाया परन्तु इसका श्रेय केवल और केवल मार्शमैन परिवार को ही जाता है। दरअसल श्री विलियम केरी का पूर्ण ध्यान केवल और केवल मिशनरी व समाज सुधार के कार्यों पर केन्द्रित था। उन्हें दूर-दूर की यात्राएं करनी पड़ती थीं। उन्हें रोज़ाना सीरामपुर से कलकत्ता तक की यात्रा भी करनी पड़ती थी, क्योंकि वह फ़ोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाते भी थे। इसी लिए वह अपने बच्चों की ओर बिल्कुल भी कोई ध्यान नहीं दे पाते थे।


भारत के उत्कृष्ट साहित्य का अनुवाद अंग्रेज़ी में किया

श्री विलियम केरी की तरह श्री जोशुआ मार्शमैन भी एक प्रतिभाशाली विद्वान थे। उन्होंने श्री केरी के साथ मिल कर पवित्र बाईबल का अनुवाद भारत की बहुत सी भाषाओं में किया था। साथ ही उन्होंने भारत के उत्कृष्ट साहित्य का अनुवाद अंग्रेज़ी में भी किया था। 1806 में श्री जोशुआ अपने दो पुत्रों व श्री केरी के एक पुत्र के साथ मिल कर चीनी भाषा में प्रशिक्षण लेने लगे। वहां प्रोफ़ैसर होवहैन्स ग़ज़ारियन (जिन्हें जोहानेस लस्सार के नाम से भी जाना जाता है) उन्हें चीनी भाषा में प्रशिक्षण दिया करते थे। प्रो. गज़ारियन चीन के मकाओ राज्य (जो 1999 तक पुर्तगाल के कब्ज़े में बना रहा था) में पैदा हुए एक आर्मीनियाई थे और वह चीनी भाषा में पारंगत थे। वह फ़ोर्ट विलियम में श्री विलियम केरी के कहने पर ही आए थे और उन्हें 450 पाऊण्ड सालाना वेतन मिलता था। श्री जोशुआ मार्शमैन ने पांच वर्षों तक प्रो. गज़ारियन से पढ़ते रहे। उन दिनों में प्रो. गज़ारियन ने बाईबल के बहुत से भागों को अनुवाद करके प्रकाशित भी किया था। 1817 में पवित्र बाईबल का अनुवाद पहली बार चीनी भाषा में किया गया था और उसका श्रेय प्रो. गज़ारियन के साथ-साथ श्री जोशुआ मार्शमैन को भी जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए कार्य बेहद महत्त्वपूर्ण हैं।


भारत में मिशनरी कार्यों पर किए स्वयं के 4 लाख पाऊण्ड ख़र्च

5 जुलाई, 1818 को सर्वश्री विलियम केरी, जोशुआ मार्शमैन एवं मिशनरी टीम के एक अन्य सदस्य विलियम वार्ड ने एक प्रॉसपैक्टस जारी किया, जिसे वास्तव में श्री मार्शमैन ने ही लिखा था। उस प्रॉसपैक्टस में एक कॉलेज खोलने का प्रस्ताव रखा गया था, जहां पूर्वी साहित्य के साथ-साथ यूरोपियन विज्ञान की पढ़ाई एशियाई, मसीही एवं अन्य युवा कर सकते थे। वास्तव में वह सीरामपुर कॉलेज की स्थापना की तैयारी थी और वह कॉलेज आज भी सफ़लतापूर्वक चल रहा है।

श्री जोशुआ मार्शमैन एवं श्री विलियम केरी ने अपने जीवन में कभी धन कमाने की लालसा नहीं रखी, उनका एकमात्र ध्येय केवल मिशनरी कार्य ही हुआ करते थे। श्री जोशुआ ने तो भारत में अपने मिशनरी कार्यों के दौरान स्वयं की 4 लाख पाऊण्ड राशि भी ख़र्च कर दी थी।

श्री जोशुआ के पुत्र श्री जॉन क्लार्क मार्शमैन (1794-1877) भी कॉलेज में मिशनरी कार्यों का महत्त्वपूर्ण भाग थे। वह बंगला भाषा के अधिकृत अनुवादक थे तथा उन्होंने ‘गाईड टू दि सिविल लॉअ’ नाम पुस्तक प्रकाशित की थी, जो कि लॉर्ड मैकॉले के कार्य से पहले भारत के नगरों में चलने वाला कानून हुआ करती थी। उन्होंने भारत का इतिहास भी अंग्रेज़ी भाषा में लिखा था।


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