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आसाम की भाषा का व्याकरण व लिपि तैयार करने वाले अमेरिकन बैप्टिस्ट पादरी नाथन ब्राऊन



 




 


पादरी नाथन ब्राऊन ने किए समाज सुधार के अनेक कार्य

श्री नाथन ब्राऊन एक अमेरिकन बैप्टिस्ट मसीही मिशनरी थे, जिन्होंने भारत एवं जापान में न केवल धार्मिक कार्य किए, अपितु उन्होंने पवित्र बाईबल का भी अनुवाद किया तथा समाज-सुधार, विशेषतया दासता समाप्त करने हेतु भी अनेकों कार्य किए। उन्होंने असमिया (आसाम की) भाषा के विकास, उसका व्याकरण व लिपि तैयार करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। वह 1843 में जब वह असम के शहर शिवसागर में थे, तो एक स्थानीय निवासी आत्माराम शर्मा श्री नाथन ब्राऊन एवं असम के एक स्थानीय पादरी से प्रेरित होकर स्वेच्छा से मसीही बने और उन्होंने 1848 में पवित्र बाईबल के नए नियम का असमी अनुवाद करने में प्रमुख भूमिका निभाई। ‘नया नियम’ असमी भाषा में 1850 में प्रकाशित हुआ। उसका नाम रखा गया ‘आमार तारणकोर्ता जीसू क्रिस्टोर नातून नियोम’। 1854 में श्री नाथन ब्राऊन ने एक अन्य पुस्तक भी असमी भाषा में प्रकाशित की, जिसके शीर्षक का अर्थ था ‘यीशु मसीह एवं उनके पवित्र संदेश’। उन्होंने असमी भाषा में कुछ प्रार्थनाएं अपने कुछ सहयोगियों की सहायता से अनुवाद कीं।


पादरी नाथन ब्राऊन ने असमी भाषा की पहली पत्रिका की थी प्रकाशित

Rev. Nathan Brown पादरी नाथन ब्राऊन द्वारा 1848 में लिखित पुस्तक ‘असमीज़ लैंगुएज, ‘ग्रामैटिकल नोट्स ऑफ़ असमीज़ लैंगुएज’ अमेरिकन बैप्टिस्ट मिशनरी प्रैस ने प्रकाशित की थी। इससे भी पूर्व उन्होंने अपने सहयोगी कटर की सहायता से असमी भाषा की पहली पत्रिका ‘अरुणदोई’ भी प्रकाशित की थी। उन्होंने अक्सम बुरांजी, काशीनाथ फुकन, बोकुल कायस्थ जैसे कुछ अन्य लेखकों की पुस्तकें भी प्रकाशित करवाने में सहायता की। असम के लोग उन्हें अपनी असमी भाषा एवं उसके साहित्य का अग्रदूत मानते हैं।


बर्मा में भी रहे पादरी नाथन ब्राऊन

श्री नाथन ब्राऊन का जन्म 22 जून, 1807 ई. को अमेरिकन राज्य न्यू हैम्पशायर के नगर न्यू इप्सविच में हुआ था। अपनी उच्च शिक्षा उन्होंने विलियम्ज़ कॉलेज से ग्रहण की थी और वह ग्रैजुएशन के अंतिम वर्ष में प्रथम आए थे। फिर 1830 में वह विवाह के तुरन्त पश्चात् अपनी पत्नी के साथ मिशनरी के तौर पर बर्मा चले गए। उन्होंने अभी बर्मीज़ भाषा में बाईबल का अनुवाद-कार्य प्रारंभ किया ही था कि वह ओलीवर कटर एवं माईल्ज़ ब्रौन्सन के प्रभाव तले भारत के असम क्षेत्र में चले आए।


ऐसे बचाया असमी भाषा को पादरी नाथन ब्राऊन ने

ब्रिटिश राज्य के दौरान असम में असमी भाषा नहीं बल्कि बंगला भाषा थोप दी गई और उसे असम में एक ‘काला दौर’ माना जाता है। उन्हीं दिनों श्री नाथन ब्राऊन ने असमी भाषा के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए, इसी लिए उन्हें असम के लोग बंगला भाषा से असमी भाषा को बचाने वाला भी मानते हैं।

1850 में श्री नाथन ब्राऊन अमेरिका लौट गए और वहां पर अपने भाई विलियम के साथ मिल कर दासता (ग़ुलामी) की प्रथा को समाप्त करने के आन्दोलन में भाग लिया। उसी दौरान उन्होंने दासता के विरुद्ध ‘मैग्नस महारबा’ एवं ‘ड्रैगन’ जैसे कुछ व्यंग्य-साहित्यक रचनाएं भी सृजित कीं। वह साहित्यक रचना लिखते समय अपना नाम नाथन ब्राऊन नहीं बल्कि अपना एक अलग कलमी नाम ‘क्रिस्टोफ़र कैडमस’ लिखा करते थे। उन्हें यात्राएं करने का बहुत अधिक शौक था और उन में संस्कृति एवं विचारों को संभाल कर रखने की रुचि बहुत अधिक थी। उन्होंने यूनानी भाषा की वर्णमाला भी तैयार की थी। वह ऐसे कार्य केवल बाईबल का अनुवाद करने हेतु किया करते थे।


जापान में भी की थी सेवा पादरी नाथन ब्राऊन ने

1868 में अमेरिका के युद्ध की समाप्ति के पश्चात् श्री नाथन ब्राऊन जापान चले गए। 1871 में श्री नाथन ब्राऊन की पहली पत्नी का देहांत हो गया और 1872 में उन्होंने दूसरा विवाह रचाया और विदेशों में अपना मिशनरी कार्य जारी रखा। जापान के नगर योकोहामा में 1873 में उन्होंने ‘फ़स्ट बैप्टिस्ट चर्च’ स्थापित किए जाने में प्रमुख भूमिका निभाई। योकोहामा में ही उनका 1 जनवरी, 1886 को निधन हो गया।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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