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भारतीय मसीही समुदाय (ई. सन् 300 से 1600)



 




 


संगठत नहीं है मसीही समुदाय

वैसे तो मसीही समुदाय भारत के कोने-कोने में फैला हुआ है, फिर भी मसीही लोगों की जन-संख्या दक्षिण भारत, कोंकण के समुद्री तटों तथा उत्तर-पूर्वी भारत में अधिक है। उत्तर भारत में मसीही जन-संख्या तो काफ़ी है, परन्तु लोग संगठित नहीं हैं, इधर-उधर अधिक बिखरे हुए हैं। इसी कारण उन की सही संख्या इस क्षेत्र में कभी मालूम नहीं होती। घरों में चर्च लगाने का रिवाज अधिक है। भारत में सन्त थोमा (सेंट थॉमस) के प्रभाव के कारण मसीहियत को ग्रहण करने वाले प्रारंभिक सीरियन मसीही लोगों के अतिरिक्त यहां पर रोमन कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, बैप्टिस्ट, एंग्लिकन, लूथरन इत्यादि प्रत्येक प्रकार के मसीही विद्यमान हैं।

भारत में प्राचीन काल से केन्द्रीय एशिया, मध्य-पूर्वी भू-मध्य सागर के साथ वाले देशों के साथ व्यापार चलता आ रहा है। यह व्यापारी ज़्यादातर दक्षिणी एवं पश्चिमी समुद्री तटों पर आया करते थे।


विदेशों से भारत आकर बसे बहुत से मसीही

Goa of Portuguese सीरत के क्रॉनीकल में बसरा (अब इराक में) के बिशप डेविड द्वारा 300 ई. सन् के आस-पास भारत में एक मसीही मिशन स्थापित करने का वर्णन मिलता है। अनुमान है कि वह दक्षिण भारत में ही पहुंचे होंगे। फिर चौथी शताब्दी ईसवी में बेबीलोन से कुछ मसीही लोगों के भारत में बसने का ज़िक्र भी मिलता है। केरल के स्थानीय शासकों द्वारा सीरियन मसीही लोगों को विशेष दर्जा देने के तो बहुत से प्रमाण मिलते हैं। केरल के सीरियन गिर्जाघरों में थाज़ेकड़ ससानाम, कुइलोन प्लेट्स (थ्रिसाप्पल्ली चेप्पेड्स), ममपाल्ली ससानाम एवं इरावीकोथन चेपड़ इत्यादि प्रमाण मिलते हैं। ऐसी कुछ प्लेटों पर 774 ईसवी सन् लिखा हुआ है। वेनड़ (त्रावनकोर या आधुनिक केरल) के शासक ने सीरियन मसीहीी लोगों को 72 विशेष अधिकार दिए हुए थे, जो प्रायः उच्च वर्ग को ही नसीब हुआ करते थे। इन अधिकारों में आयात शुल्कों, बिक्री कर एवं दासता कर से छूट सम्मिलित थीं। सन् 1225 की एक ताम्बे की प्लेट पर मसीही लोगों के अधिकारों व रियायतों में और बढ़ोतरी किए जाने का वर्णन मिलता है। उन दिनों में मसीही लोगों को ‘नासरनी’ अर्थात ‘नासरत के यीशु मसीह को मानने वाले’ कहा जाता था। इंग्लैण्ड के अत्यधिक शक्तिशाला राजा एलफ्ऱैड ने 883 ईसवी सन में भारत के सीरियन मसीही समुदाय को विशेष उपहार भेजे थे।


सन् 1500 ई. के बाद यूरोप के कैथोलिक एवं प्रोटैस्टैन्ट मसीही मिशनरी सक्रिय रहे

भारत में 1500 ई. के बाद से यूरोप के कैथोलिक एवं प्रोटैस्टैन्ट मसीही मिशनरी सक्रिय रहे हैं। अठाहरवीं व उन्नीसवी शताब्दी ईसवी में तो अमेरिकन, न्यूज़ीलैण्ड एवं आस्ट्रेलियाई मसीही मिशनरियों ने भी भारत में अपना प्रचार प्रारंभ कर दिया था।

दक्षिण भारत में कन्याकुमारी के क्षेत्र में बड़ी संख्या में मछुआरे रहा करते थे, जिन्हें ‘पारावार’ कहा जाता है। 1527 में जब मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस क्षेत्र में हमला कर दिया तो पारावार मछुआरों ने बचाव के लिए पुर्तगालियों के पास शरण ली, जो तब तक यहां पर आ चुके थे। पुर्तगालियों ने उन्हें इस शर्त पर पनाह दी कि वे तत्काल बप्तिसमे लेकर मसीही बन जाएं, तो वे उन्हें मुस्लिम हमलावरों से बचा लेंगे। तब इस बात पर समझौता हो गया और कुछ ही माह के पश्चात् पारावार समुदाय के 20,000 लोगों ने सामूहिक तौर पर बप्तिसमा लिया। 1537 ईसवी सन् तक दक्षिण के सभी पारावार लोग मसीही बन गए थे। 27 जून, 1538 को वेदालाई में पुर्तगाल की समुद्री सेना ने अरब आक्रमणकारियों का ख़ात्मा कर दिया था।


फ्ऱांसिस ज़ेवियर की अगुवाई में 30,000 पारावार लोगों ने लिया था बप्तिसमा

फिर 1542 में जैसुइट मसीही मिशनरी फ्ऱांसिस ज़ेवियर ने तामिल समाज के निम्न वर्गों हेतु एक मिशन प्रारंभ की। तब 30,000 पारावार लोगों ने बप्तिसमा लिया था। इस प्रकार इन सभी लोगों ने भी धार्मिक गतिविधियों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया। जब वे हिन्दु धर्म को मानते थे, तो उन्हें ‘निम्न एवं नीच’ मान कर धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने की मनाही थी। उन्हें बहु-संख्यक समाज ‘अस्वच्छ’ मानता था। इसी लिए आज भी पारावार मसीही लोगों में हिन्दु संस्कृति की बहुत सी बातें देखी जा सकती हैं।

फ्ऱैंच या कैटालान डॉमिनिकन मिशनरी जॉर्डनस कैटालानी पहले ऐसे यूरोपियन थे, जिनके प्रभाव के कारण बहुत से लोगों ने यीशु मसीह को ग्रहण किया था। कैटालानी 1320 में गुजरात के सूरत में पहुंचे थे। फिर 1323 में वह कुइलोन (आज का कोल्लम-केरल) पहुंचे थे। वहां उनके धार्मिक व्याख्यान सुनकर हज़ारों लोग मसीही समुदाय में सम्मिलित हुए थे। वह पोप का सदभावना संदेश लेकर स्थानीय शासकों के पास पहुंचे थे। श्री जॉर्डनस कैटालानी को भारत का पहला बिशप माना जाता है। कालीकट, मंगलौर, थाने एवं ब्रोच (महाराष्ट्र) में उन्होंने मसीही संदेश प्रचारित व प्रसारित किया।


पुर्तगाली मसीही मिशनरियों के साथ आते रहे आक्रमणकारी भी

1453 में एशिया माईनर में इस्लामिक औट्टोमैन साम्राज्य स्थापित होने के साथ कौनस्टैंटिनोपल मसीही प्रणाली समाप्त हो गई, जिससे पूर्वी रोमन साम्राज्य या बायज़ैंटीन साम्राज्य एवं यूरोपियन देशों का सड़क के रास्ते एशिया के साथ होने वाला व्यापार भी समाप्त हो गया। इस प्रकार विदेशी मसीही लोगों की गतिविधियां कुछ देर के लिए थम कर रह गईं। फिर 15वीं शताब्दी के अन्त में पुर्तगालियों ने यात्राओं के लिए वैकल्पिक समुद्री रास्तों की खोज की और इस प्रकार वे केरल में मालाबार के समुद्री तट पर पहुंचे। उसके बाद फ्ऱांसिस्कन, डॉमिनिकन, जैसुइट, ऑगस्तन मसीही मिशनरी भी विभिन्न आक्रमणकारियों के साथ आते रहे तथा भारत के तटों पर अपने-अपने चर्च स्थापित करते रहे।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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