Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

गांधी जी ने यीशु मसीह को ‘मानवता का महान अध्यापक’ भी माना व ‘राजनीतिज्ञों का शहज़ादा’ भी



 




 


यीशु मसीह के बारे में बहुत कुछ लिखा गांधी जी ने

महात्मा गांधी जी ने यीशु मसीह और मसीही धर्म के बारे में अनेकों बार, अपनी स्व-जीवनी सहित, अन्य बहुत से अख़बारों व पत्रिकाओं में बहुत कुछ लिखा था व अपने संभाषणों में भी बहुत बार यीशु मसीह के बारे में टिप्पणियां की थीं। यह इतनी सामग्री थी कि उसको एक पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जा सकता था। इसी लिए नवजीवन ट्रस्ट (इस ट्रस्ट को स्वयं गांधी जी ने 1929 में अहमदाबाद, गुजरात में स्थापित किया था और इससे पूर्व वह इसी ‘नवजीवन’ नाम से अपना गुजराती भाषा का एक समाचार-पत्र भी 1919 से लेकर 7 सितम्बर, 1931 तक प्रकाशित करते रहे थे। इसके अतिरिक्त वह इसी कार्यकाल के दौरान अपना एक अंग्रेज़ी समाचार-पत्र ‘यंग इण्डिया’ भी प्रकाशित करते रहे। गांधी जी अंग्रेज़ी भाषा में एक साप्ताहिक अख़बार ‘हरिजन’ भी प्रकाशित किया करते थे, जो 1933 से लेकर 1948 तक प्रकाशित होता रहा)


गांधी जी की शहादत के 11 वर्ष बाद प्रकाशित हुई उनकी पुस्तक ‘वट जीसस मीन्ज़ टू मी’

What Jesus Means to Me - MK GANDHI गांधी जी द्वारा स्थापित नवजीवन ट्रस्ट ने सितम्बर 1959 में ‘वट जीसस मीन्ज़ टू मी’ (यीशु मसीह के मेरे लिए क्या अर्थ हैं) के शीर्षक व एम.के. गांधी के नाम से एक पुस्तक भी प्रकाशित की थी। उस पुस्तक में श्री आर.के. प्रभु ने गांधी जी द्वारा यीशु मसीह व मसीही समुदाय संबंधी की गईं टिप्पणियों का संकलन किया था।

उसी पुस्तक में गांधी जी कहते हैं ‘‘यदि आप सच्चाई पर डटते हैं, तो आप में सुन्दरता व चंगाई स्वयं ही आ जाती है और यीशु मसीह इस बात पर परिपूर्ण उतरते हैं। मेरे मन में यीशु एक ऐसे सर्वोच्च कलाकार थे, जिन्होंने सच को ही देखा तथा वही कहा।’’ यह बात उन्होंने 1919 से 1931 तक प्रकाशित स्वयं के अंग्रेज़ी समाचार-पत्र ‘यंग इण्डिया’ में 20 नवम्बर, 1924 को लिखी थी।


यीशु मसीह के उपदेश पढ़ कर अहिंसा में अपना विश्वास और मज़बूत करते थे गांधी जी

इसी प्रकार साप्तहिक ‘हरिजन’ के 7 जनवरी, 1939 के अंक में गांधी जी ने लिखा था,‘‘चाहे मैं एक मसीही होने का दावा नहीं कर सकता हूँ, परन्तु यीशु मसीह ने सलीब पर जो दुःख उठाए, उन्हीं को देख कर अहिंसा में मेरा विश्वास और भी अधिक सशक्त होता रहा है और यह बात आप मेरे सभी दुनियावी कार्यों में देख सकते हैं।’ गांधी जी यीशु मसीह को ‘मानवता का एक महान् अध्यापक’ मानते थे। ‘हरिजन’ के 12 जून, 1937 के अंक में गांधी जी ने लिखा था,‘‘यीशु मसीह ने किसी धर्म का नहीं, अपितु एक नए जीवन का प्रचार किया था। उन्होंने मनुष्यों को पश्चाताप करने के लिए कहा। उन्होंने कहा था,‘‘ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो ‘परमेश्वर, परमेश्वर’ करता रहता है, वह स्वर्ग में नहीं जाएगा, बल्कि जो स्वर्ग में रहने वाले मेरे पिता की ईच्छा को पूर्ण करेगा, वह स्वर्ग जा पाएगा।’’


पहाड़ पर दिए उपदेश को जान कर मैं यीशु की ओर खिंचा चला गयाः गांधी जी

‘यीशु मसीह ने जैसा प्रेम सिखाया और दिखाया, वह कोई निजी सद्गुण नहीं, बल्कि एक सामाजिक एवं सामूहिक नैतिक सद्गुण था’ (‘हरिजन’ 4 मार्च, 1939)। इसी प्रकार ‘हरिजन’ के 31 दिसम्बर, 1931 के अंक में गांधी जी ने लिखाः ‘‘जो व्यक्ति मसीही जीवन जीना चाहता है, उसके लिए वह बातें संपूर्ण मसीहियत हैं, जो यीशु मसीह ने पहाड़ पर कही थीं (जो मत्ती की इंजील के 5, 6 एवं 7 अध्यायों में दर्ज हैं)। उसी उपदेश के कारण मैं यीशु मसीह की ओर खिंचा चला गया था, जब मैंने पहली बार इसे पढ़ा था। ...उन बातों को देख कर तो मुझे लगता है कि अभी विश्व की ईसाईयत उस हद तक पहुंची है, जहां यीशु मसीह स्वयं थे - असीम प्रेम जो यीशु दर्शाते थे और मसीहियत में कहीं पर बदले की कार्यवाही के बारे में तो कभी सोचा भी नहीं जा सकता। ...परन्तु ऐसा लगता है कि यीशु मसीह की शिक्षाओं पर पूर्णतया चला नहीं जा रहा है। विश्व में यीशु द्वारा दर्शायी गई शांति कहां है? हमें केवल दिखावे नहीं करने चाहिएं, बल्कि विश्व में शांति की स्थापना हेतु यीशु की प्रत्येक शिक्षा का अनुसरण करना होगा। ...यदि हम जीवित यीशु मसीह को मानते हैं, तो हमें उन्हीं की तरह सलीबी जीवन भी जीना होगा।’’


गांधी जी को सदा शिकवा रहा कि विश्व का मसीही समुदाय यीशु मसीह की शिक्षाओं पर पूर्णतया चल नहीं रहा

‘ऐसोसिएट्ड प्रैस ऑफ़ अमेरिका’ के श्री मिल्स ने 1931 में गांधी जी को कहा कि वह अमेरिका को क्रिस्मस की शुभ-कामनाएं दें, तो गांधी जी ने उसी दिन क्रिस्मस के सुअवसर पर यह सन्देश अमेरिका के लिए जारी किया, जो 31 दिसम्बर, 1931 के ‘यंग इण्डिया’ में भी प्रकाशित हुआ - ‘‘मैं क्रिस्मस के सीज़न में मनाए जाने वाले जश्नों के कभी अनुरूप नहीं हो पाया क्योंकि वे सभी ख़ुशियां यीशु मसीह के जीवन व उनकी शिक्षाओं से कहीं पर भी मेल खाती दिखाई नहीं देतीं। मैं तो अमेरिका को यही शुभ-कामना दे सकता हूँ कि वह वैसा ही नैतिक जीवन जी कर दिखलाए, जैसा कि यीशु मसीह ने संपूर्ण मानवता की सेवा हेतु जिया था तथा फिर सलीब पर अपनी जान दे दी थी।’’

यीशु को ‘राजनीतिज्ञों का शहज़ादा’ भी माना गांधी जी ने

गणेश एण्ड कंपनी, मद्रास ने 1921 में एक पुस्तक ‘फ्ऱीडम’ज़ बैटल’ (स्वतंत्रता की जंग) प्रकाशित की थी, उसके पृष्ठ 195 पर महात्मा गांधी जी द्वारा यीशु मसीह संबंधी की एक बड़ी दिलचस्प टिप्पणी दर्ज की गई है, जो कुछ इस प्रकार हैः ‘‘मेरे विनम्र विचार में यीशु राजनीतिज्ञों के भी शहज़ादे थे। उन्होंने कहा कि जो कैसर (वास्तव में यह नाम गायस जूलियस सीज़र के नाम से अधिक प्रसिद्ध है, जो रोम का शासक था और 13 जुलाई से 100 वर्ष ईसा पूर्व से लेकर 44 वर्ष ई, पूर्व तक जीवित रहा) का है, वह कैसर को दो। उन्होंने शैतान को भी उसका सही स्थान दिखाया। यीशु मसीह के समय की राजनीति में आम लोगों के कल्याण का विशेष ख़्याल रखा जाता था तथा लोगों को सदा यही सिखलाया जाता था कि वे पुजारियों व फ़रीसियों की तुच्छ बातों के लालच में न फंसें; क्योंकि तब आम लोगों पर इन्हीं लोगों ने अपना नियंत्रण कर रखा था।’’


धर्म-परिवर्तन हो परन्तु वह व्यापार न बनाया जाएः गांधी जी

‘यंग इण्डिया’ के 23 अप्रैल, 1931 के अंक में गांधी जी ने धर्म-परिवर्तन संबंधी टिप्पणी कुछ ऐसे की थीः ‘‘मैं धर्म-परिवर्तन किए जाने के विरुद्ध नहीं हूँ परन्तु मैं इस मामले में अपनाई जाने वाली कुछ आधुनिक विधियों के विरुद्ध हूँ। धर्म-परिवर्तन करवाना आज कल एक व्यापार बन गया है। मुझे याद है कि एक मिशनरी ने अपनी रिपोर्ट में यह वर्णन किया था कि एक व्यक्ति का धर्म-परिवर्तन करवाने पर क्या ख़र्च आता है और इस प्रकार आगामी वर्ष के लिए बजट तैयार किया जाता था।’’


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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