Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

‘यीशु मसीह से ली थी गांधी जी ने सत्याग्रह की प्रेरणा’ व गांधी जी की अन्य मसीही व्याख्याएं



 




 


यीशु मसीह से अत्यधिक प्रभावित थे गांधी जी

महात्मा गांधी जी ने बाईबल का बहुत सघन अध्ययन किया था, यह उनकी टिप्पणियों से स्वाभाविक रूप से स्पष्ट हो जाता है। श्री टैरेंस जे. राईने (अमेरिका) की पुस्तक ‘गांधी एण्ड जीसस - सेविंग पॉवर ऑफ़ नॉन-वॉयलैंस’ (गांधी एवं यीशु मसीह - बचाने वाली अहिंसा की शक्ति) के अनुसार गांधी जी वास्तव में यीशु मसीह के जीवन से अत्यधिक प्रभावित थे। यीशु मसीह सलीब पर चढ़ने से एक सप्ताह पूर्व जैसे येरूशलेम में आए थे, बिल्कुल वैसे ही गांधी जी ने भी 1930 में नमक सत्याग्रह किया था और अपने साथी सत्याग्रहियों को साथ लेकर समुद्र की ओर चले थे। यीशु मसीह के जीवन ने उन्हें सदा सही पथ दिखलाया। गांधी जी यीशु मसीह के रेगिस्तान में 40 दिन व 40 रातों तक भूखे प्यासे रहने की घटना से भी बहुत प्रभावित थे। इसी बात से प्रभावित हो कर गांधी जी सत्याग्रह (भूख-हड़ताल) पर बैठ जाते थे और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के हाथ-पांव फूलने लगते थे।


लाखों लोगों की तरह यर्दन नदी में बप्तिसमा लेकर यीशु ने विनम्रता व स्व-शुद्धिकरण सिखलायाः गांधी जी

Jesus Cross गांधी जी का मानना था कि यीशु मसीह ने मानवीय जीवन के सभी लालचों व स्वार्थों पर विजय प्राप्त कर ली थी। मनुष्य का सब से पहला लालच तो भूख का ही होता है - जब मनुष्य इस लालच पर नियंत्रण पा लेता है (जैसे यीशु मसीह ने रेगिस्तान में भूख पर विजय प्राप्त की थी), तो उसे अपनी सभी ज्ञान-इन्द्रियों पर अधिकार प्राप्त हो जाता है और इससे मानव को शक्ति प्राप्त होती है और यह शक्ति भी एक प्रकार का दूसरा लालच है। और जब मनुष्य शक्ति पर भी विजय प्राप्त कर लेता है, तो वह ‘सिद्ध’ (विशेषज्ञ या माहिर) बन जाता है और ‘सिद्धियां प्राप्त कर लेता है’, और सिद्धियां तीसरा लालच हैं। गांधी जी के अनुसार यीशु मसीह आध्यात्मिकता की अंतिम सीमा तक चले गए थे। बप्तिसमा लेना, रोज़ा (व्रत) रख कर भूखे रहना और सभी प्रकार के लालचों पर नियंत्रण पा लेना एक प्रकार से मानवता की सेवा के लिए स्व-शुद्धिकरण ही है। बप्तिसमा देने वाले यूहन्ना के हाथों से यीशु मसीह द्वारा बप्तिसमा लिए जाने की घटना संबंधी गांधी जी लिखते हैं कि ‘‘यीशु मसीह आध्यात्मिकता अर्थात रुहानियत की तह तक जाना चाहते थे और वह लोगों की सेवा में ही अपना जीवन व्यतीत करना चाहते थे। उन्होंने यूहन्ना के हाथों से बप्तिसमा लेकर विनम्रता एवं स्व-शुद्धिकरण को सीखा। उन्होंने यर्दन नदी में अन्य लाखों लोगों की तरह ही बप्तिसमा लेना सही समझा।’’


गांधी जी ने यीशु मसीह के सलीब पर चढ़ाए जाने की घटना को भी बारीकी से समझा

गांधी जी ने यीशु मसीह के सलीब पर चढ़ाए जाने की घटना को भी बहुत बारीकी से समझा था। उनका मानना था कि यदि कोई व्यक्ति यीशु मसीह की तरह पूर्णतया अहिंसा के सिद्धांत पर चलेगा, तो उसे अंततः हिंसा के माहौल का सामना करना पड़ेगा। गांधी जी के अनुसार ‘‘यीशु मसीह तो सदा ग़रीबों, दबे-कुचले लोगों एवं समाज से निष्कासित किए लोगों के साथ ही खड़े होते व उनके लिए बुराई के विरुद्ध डटते थे और किसी भी प्रकार की हिंसा के ख़तरे से डरते नहीं थे। यीशु मसीह ने क्रूस पर अपनी जान दी, क्योंकि वह उसी ढंग से जीए थे। यह सलीब हमें जीने का सही राह दिखलाती है।’’ गांधी जी की यह बात बिल्कुल सही है। गांधी जी स्वयं आजीवन अहिंसा के सिद्धांतों पर चलते रहे परन्तु एक कट्टरपंथी ने अहिंसक ढंग से गोली मार कर उनकी जान ले ली।


विदेशी मसीही प्रचारकों ने भी यीशु मसीह संबंधी गांधी जी की व्याख्याओं को महान् माना

यीशु मसीह की सलीब की ऐसी व्याख्या गांधी जी के अतिरिक्त किसी और ने नहीं की। पश्चिमी देशों में भी विगत दो हज़ार वर्षों में ऐसी व्याख्या कोई नहीं कर पाया। इंग्लैण्ड के मसीही प्रचारक स्टैनले जोन्स इस संबंधी बड़ी स्पष्टवादिता से लिखते हैंः ‘‘यीशु मसीह की सलीब पर इतनी सदियों से इतना ज्ञान-भरपूर प्रकाश किसी ने नहीं डाला, जितना इस एक व्यक्ति (गांधी जी) ने डाला, जब कि वह मसीही भी नहीं है। हमारी ईसाईयत तो सदा सार्वजनिक एवं निजी जीवन में ग़ैर-मसीही व्यवहारों से ही घिरी रही, इसी लिए हम उस दृष्टिकोण से सलीब को नहीं देख सके, जहां से गांधी जी ने देख लिया।


दो विश्व युद्धों से आहत गांधी जी ने कहा थाः पश्चिमी व पूर्वी देशों को अपने-अपने धर्म-ग्रन्थों का आदान-प्रदान कर लेना चाहिए

अब तक इस धरती पर दो विश्व-युद्ध हो चुके हैं और वे सभी उन पश्चिमी देशों द्वारा ही छेड़े व लड़े गए थे; जो सभी अहिंसा के सिद्धांत पर चलने वाले यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता मानते हैं, जबकि बाईबल में तो कहीं पर भी युद्ध छेड़ने के बारे में नहीं लिखा अपितु नया नियम तो सदा शांति का ही सन्देश देता है। इसी लिए गांधी जी को दोनों विश्व-युद्धों के संदर्भ में यह बात कहनी पड़ी थी कि ‘‘पूर्व में स्थित भारत एवं पश्चिम के देशों को अपने-अपने पवित्र ग्रन्थ का आदान-प्रदान कर लेना चाहिए। क्योंकि श्रीमद भगवदगीता युद्ध के दार्शनिक कारणों के बारे में बताती है, जबकि बाईबल का नया नियम शांति का सन्देश देता है परन्तु फिर भी हम पूर्व के लोग शांति-प्रिय हैं परन्तु आप युद्ध-प्रिय हो चुके हैं।’’


एक सच्चे मसीही को दुःख तो उठाने ही पड़ेंगेः गांधी जी

गांधी जी यीशु मसीह की सलीब को एक ‘शिष्यत्व की ओर स्पष्ट आह्वान’ मानते हैं। यदि कोई सच्चा मसीही होने का दावा करता है, तो यह स्पष्ट है कि उसे अवश्य ही दुःख उठाने पड़ेंगे क्योंकि वह क्रूरता, दमन, अत्याचार करने वाली शक्तियों के विरुद्ध आवाज़ उठाएगा, तो उसे निश्चित तौर पर कुछ न कुछ दुःख तो उठाने ही होंगे। परन्तु उस दुःख में भी आपको एक असीम शांति का अनुभव प्राप्त होता है परन्तु ऐसा तभी होता है, ... जब आप स्वयं का बलिदान क्रूस पर देते हैं। ... जीवित यीशु मसीह का अर्थ है एक जीवित सलीब और इसके बिना तो जीवन एक जीवित मृत्यु है। गांधी जी ने जिस ढंग से यीशु व उनकी सलीब की व्याख्या की थी, एस.के. जॉर्ज उससे अत्यंत प्रभावित थे। इसी लिए उन्होंने लिखाः ‘‘सत्याग्रह बहुत सोच-समझ कर चुना गया विकल्प है ... यह बुराई का मुकाबला प्रेम से करता है ... यीशु मसीह की सलीब ऐसे हमले और बुराई पर अच्छाई की जीत की सर्वोच्च तथा सभी प्रकार से परिपूर्ण व संपूर्ण उदाहरण है। यदि सुख-शांति एवं सुरक्षा का स्वर्ग चाहिए, तो जीवन में दुःख तो उठाने ही होंगे। इसे ही जीवन का व्यावाहारिक सिद्धांत मान लेना चाहिए।’’


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें
-- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]

 
visitor counter
Role of Christians in Indian Freedom Movement


DESIGNED BY: FREE CSS TEMPLATES