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ख़तरों से खेलने के शौकीन थे एस. बैंजामिन



 




स्कूल समय से ही थे कांग्रेसी नेताओं के संपर्क में

एस. बैंजामिन (1918) सुपुत्र सूसाई एस्थावी फ़रनांडो निवासी अमालीपुरम, समीप तिरुचेन्दूर ज़िला तिरुनेलवेली अत्यंत पिछड़े हुए मछुआरा मसीही समुदाय से संबंधित थे। जब वह मिडल स्कूल में ही थे, वह तभी से एम.आर. मेगानाथन, एस.ए. सोमायाजू एवं पसुम्पन मुथ्थुरालिंगा थेवर जैसे कांग्रेसी नेताओं के संपर्क में थे।

वह एक प्रतिभाशाली वक्ता व लेखक भी थे और युवाओं के मन में देश-भक्ति भरने की उनमें क्षमता थी। वह तामिल, हिन्दी, अंग्रेज़ी व मल्यालम भाषाएं आसानी से बोल लेते थे। कांग्रेसी नेताओं की मदद से उन्होंने युवाओं को स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने हेतु आकर्षित करने के लिए गांव अलान्थनलाई में ‘भारत माता नैश्नल यूथ ऐसोसिएशन’ की स्थापना की थी।


गांधी जी से ली थी व्यक्तिगत सत्याग्रह की अनुमति

गांधी जी के व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के आह्वान पर 1939 में श्री बैंजामिन वर्द्धा सेवाग्राम आश्रम गए थे और गांधी जी से अपने स्वयं के गांव में व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने की अनुमति ली थी। फिर 2 मई, 1940 को बैंजामिन ने अपने ही गांव अलान्थलाई में व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत की थी। तिरुचेन्दूर पुलिस ने उन्हें ग्रिफ़्तार कर लिया था और एक माह सख़्त कैद बामुशक्कत की सज़ा दी थी।


टूटीकौर्न से ‘दिल्ली चलो’ व अन्य कई आन्दोलनों में लिया था भाग

उसके पश्चात् उन्होंने टूटीकौर्न में ‘दिल्ली चलो आन्दोलन’ में भाग लिया। बाद में बैंजामिन ने अपने समय के सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी वलिअप्पन ओल्गानाथन चिदम्बरम के सुपुत्र सुब्रामनियम के साथ मिल कर टूटीकौर्न स्टूडैंट्स ऐसोसिएशन की स्थापना करने हेतु अग्रणी भूमिका निभाई थी। उसके कारण उन्हें जेल-यात्रा भी करनी पड़ी थी।

21 जून, 1941 को युद्ध-विरोधी रोष-प्रदर्शन हुए तथा मदुराई के झांसी रानी पार्क में वैथिया नाथअय्यर के नेतृत्त्व में एक ज़बरदस्त रोष प्रदर्शन हुआ था। श्री बैंजामिन ने भी सत्याग्रह में भाग लिया था और इसी लिए उन्हें अलीपुरम कारावास में छः माह बिताने पड़े थे। बाद में 1942 व 1943 में उन पर मुकद्दमे भी चलते रहे। तिरुचेन्दूर में उनका शुमार धाकड़ स्वतंत्रता सेनानियों में होता था।

पुलिस से हथियार लूटने की बनाई थी योजना, पर...

राजागोपाल कासी राजन, ए.एस. बैंजामिन व मंथरा कोनार ने नमक की फ़ैक्ट्रियों में पुलिस कर्मचारियों व अधिकारियों से हथियार लूटने की योजना बनाई, जिन्हें बाद में स्वतंत्रता आन्दोलनों में बरतने का विचार था। गांधी जी उन दिनों भारत-छोड़ो आन्दोलन प्रारंभ कर चुके थे। फिर 11 अगस्त, 1942 की रात्रि को बैंजामिन सहित लगभग 150 व्यक्तियों ने कुलसेखरपटनम नमक फ़ैक्ट्री पर धावा बोल दिया। श्री बैंजामिन उस क्षेत्र के युनियन नेता थे। चाहे वहां तायनात चार पुलिस-कर्मियों से बन्दूकें लूटने की योजना थी परन्तु वहां हालात काबू से बाहर हो गए, जब स्थानीय इन्सपैक्टर लोआने वहां से भागने में सफ़ल हो गया। परन्तु उससे पहले चार जनों ने बन्दूकें लूट ली थीं तथा चार पुलिस कर्मियों तथा एक चपड़ासी को बांध दिया था। परन्तु अन्धेरे में वे आपस में ही लड़ पड़े। कोई उलझन पैदा न हो, इस लिए श्री बैंजामिन ने वहां की इमारत को आग लगा दी। परन्तु उन्होंने बन्धकों को बचाने के लिए उन्हें बाहर खींच लिया। इतने में इन्सपैक्टर लोआने पुनः वहां पर पहुंच गया। उसने राजगोपाल पर गोली चलाई परन्तु वह बाल-बाल बच गए। इन्सपैक्टर ने तब अपनी राईफ़ल की संगीन से मंथरा कोनार को बुरी से घायल कर दिया। तब कासी राजा को गुस्सा आ गया, उन्होंने अपने हाथ में मौजूद दरांती (हंसिया - सिक्कल) से इन्सपैक्टर लोओन का गला रेत दिया और उसकी घटना स्थान पर ही मृत्यु हो गई।

दो अभियुक्तों को मिली सज़ा-ए-मौत, बैंजामिन को सुनाया गया आजीवन कारावास का दण्ड

सभी आन्दोलनकारी वहां से भाग निकले। पुलिस ने उस मामले में वांछित सभी 26 आरोपियों की तलाश प्रारंभ कर दी। वेलू थेवर ने उनसे विश्वासघात किया, जिसके कारण वे सभी पकड़े गए।

6 फ़रवरी, 1943 को न्यायधीश ने अपना निर्णय सुनाया - राजगोपाल व कासी राजन को फांसी की सज़ा दी गई जबकि श्री बैंजामिन सहित छः दोषियों को आजीवन कारावास का दण्ड दिया गया।

इसी मामले में एक अन्य मसीही स्वतंत्रता सेनानी डैनियल थामस भी इन्सपैक्टर की हत्याकाण्ड में स्वतंत्रता सेनानियों के पक्ष में एक गवाह के रूप में अदालत में पेश हुए थे। कारावास में रहने के दौरान श्री थामस को पुलिस ने उन्हें अत्यधिक शारीरिक व मानसिक यातनाएं दीं। वह अपने पिता के जनाज़े में भी भाग नहीं ले सके थे, तब वह तिरुचेन्दूर जेल में थे।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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