तामिल नाडू के दलित मसीही स्वतंत्रता सेनानी
एस.एस. इरुथाया दासन सवेरीयार
- पाण्डीचेरी के एस.एस. इरुथाया दासन सवेरीयार, डिण्डीगुल में जाकर रहने लगे थे। वह एक चमड़ा फ़ैक्टरी में साधारण कर्मचारी थे। वह भी उस समय के राष्ट्रीय स्तर के स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने हेतु प्रेरित हुए थे। एक बार जब गांधी जी डिण्डीगुल आए थे तो वह रेलवे स्टेशन के मुसाफ़री बंगले में ठहरे थे। तब श्री एस.एस. इरुथाया दासन के नेतृत्त्व में ही बहुत से मसीही लोगों के एक शिष्ट-मण्डल ने उसी बंगले में जाकर गांधी जी को विशेष तौर पर सम्मानित किया था। श्री इरुथाया तामिल भाषा में देश-भक्ति गीत भी लिख कर गाया करते थे। उनकी ‘वेल्लाईकोक्कू’ व ‘थेम्स नातीकोक्कू’ नाम कविताएं बहुत प्रसिद्ध रहीं हैं, जो देश-भक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं तथा उनमें ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारों व कांग्रेस पार्टी के उस समय के संघर्षों की दास्तान का पूर्ण विवरण है। उनके लिख बहुत से नुक्कड़ नाटक भी बहुत चर्चित रहे तथा उन्होंने डिण्डीगुल के युवाओं को ऐसे ही अपनी कविताओं व नाटकों द्वारा जागरूक किया था। इसी कारणवश उन्हें बहुत बार पुलिस तंग करती थी तथा उन्हें जेल-यात्रा भी करनी पड़ती थी। कुछ बार तो वह पुलिस के हाथ भी नहीं आए व अपने सहयोगियों के संग फ़रार भी होते रहे थे। परन्तु पुलिस फिर भी उनकी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रियता के कारण उनका पीछा करती रहती थी। वह सवेरीयार-पलायम, डिण्डीगुल के म्युंसपल चेयरमैन भी चुने गए थे।
सन्थियागू
- श्री सन्थियागू व्यवसाय से चरवाहे थे परन्तु स्वतंत्रता संगाम में भाग लिया करते थे। उन्हें भी जेल जाना पड़ा था। उनके भाई एम.पी. अरोकियम पने क्षेत्र के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। देश-भक्ति के जोश में श्री सन्थियागू ने तो अपनी बकरियां तक बेच दी थीं, जबकि उस समय उनकी आय का अन्य कोई भी स्रोत नहीं था। फिर भी उन्होंने अपनी सारी जमा-पूंजी इण्डियन नैश्नल कांग्रेस के फ़ण्ड में दान कर दी थी। इन दोनों भाईयों ने सवेरीयार-पलायम में वनाथामीज़ान के साथ कई आन्दोलनों में भाग लिया था तथा कांग्रेस पार्टी की वित्तीय सहायता हेतु धन एकत्र किया था।
- ऐसे ही डिण्डीगुल के एक अन्य वर्णनीय स्वतंत्रता सेनानी थे चिनप्पन, जो धोबी थे परन्तु उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने का कभी कोई अवसर नहीं छोड़ा था।
- इसी तरह त्रिची के समीप एडामलाईपट्टी स्थित क्राफ़ोर्ड मिल्ट्री ऑफ़िस में कार्य लाज़र नामक मसीही थे तथा सेबासटिन नामक मसीही थे, जो उस समय डाकिया के तौर पर कार्यरत थे; वे भी 1930 में स्वतंत्रता आन्दोलनों में सक्रिय रहे थे। उन्होंने तामिल नाडू के त्रिची से वीडारणयम तक राजाजी के नमक मार्च में भाग लिया था।
- लाज़र नामक एक अन्य मसीही देश-भक्त थे, जो नमक सत्याग्रह के लिए लोगों से चन्दा इकट्ठा करके सत्याग्रहियों की मदद किया करते थे। उन्होंने स्थानीय मसीही समुदाय को कई बार स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने हेतु प्रेरित किया था।
- पाकियानाथन एक पढ़े-लिखे युवा थे। वह पाण्डीचेरी में रहते थे परन्तु बाद में डिण्डीगुल में जाकर बस गए थे। अपनी आयु के प्रारंभिक वर्षों में ही वह कांग्रेस से जुड़ गए थे। परन्तु जब उन्होंने चर्च की क्लीसिया में कुछ जात-पात का भेदभाव देखा, तो उनका झुकाव कम्युनिस्टों की तरफ़ हो गया था। वह दलितों से पक्षपात के सख़्त विरुद्ध थे। वह स्वतंत्रता आन्दोलनों एस.ए. थांगराजन एवं एस.एस. इरुथाया दासन जैसे दलित नेताओं के समर्थक थे, जो उस समय स्वयं चमड़ा फ़ैक्ट्री में कार्यरत थे। उन दिनों फ़ैक्ट्री के मालिक कथित ऊँची जाति से संबंधित हुआ करते थे तथा छुआछूत अपने शिखर पर था।
- एग्नेस मेरी एक मिल वर्कर थीं। एक महिला होने के बावजूद वह सभी तरह के राष्ट्रीय व स्थानीय स्वतंत्रता आन्दोलनों में सक्रिय रही थीं। उन्होंने अपने कई साथियों के साथ ग्रिफ़्तारियां भी दी थीं।
- बालासुब्रामनियन चाहे एक ब्राह्मण वकील थे परन्तु वह डिण्डीगुल के दलित मसीही स्वतंत्रता सेनानियों के साथ सक्रिय रहा करते थे। उन्होंने कई बार दलित मसीही लोगों के साथ मिल कर अपने क्षेत्र में ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध प्रमुख रोष-प्रदर्शनों में भाग लिया था। एक बार जब पुलिस श्री बालासुब्रामनियन का पीछा कर रही थी, तो उन्हें सवेरीयार-पलायम, डिण्डीगुल की दलित बस्तियों में पनाह लेनी पड़ी थी। उन दिनों में यह बहुत बड़ी बात थी कि एक ब्राह्मण ऐसे दलितों के पास जाए और उनके साथ जाकर रहे। तब उन्होंने वहां पर दलित मसीही लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने हेतु प्रेरित किया था।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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