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तामिल नाडू के मसीही स्वतंत्रता सेनानियों की सूची (संक्षिप्त विवरण सहित)



 




ए. गैब्रियल (1915-)

ए. गैब्रियल का जन्म 10 अप्रैल, 1915 को हुआ था। वह अमीर भी थे और बी.ए. पास भी थे। मार्शल नेसामणी, कुन्जन नादर, पोनप्पा नादर के साथ गैब्रियल ने भी स्वतंत्रता संग्राम के सभी आन्दोलनों में भाग लिया था। गैब्रियल ने सरकार के कार्यालय चलाने के लिए भवनों के निर्माण हेतु तीन एकड़ भूमि दान की थी। बटन दानू पिल्लै के शासन के दौरान उन्हें केवल इस लिए अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा था क्योंकि वह राष्ट्रीय स्तर के आन्दोलनों में सक्रिय थे।

1936 में श्री गैब्रियल इण्यिन नैश्नल कांग्रेस में शामिल हो गए थे और उसके सभी अभियानों व आन्दोलनों; जैसे - असहयोग आन्दोलन, 1938 के अगस्त आन्दोलन व 1942 के भारत-छोड़ो - में भाग लिया था। वह त्रिवेन्द्रम (अब तिरुवनंथापुरम) एवं नागरकोयल ज़िला कांग्रेस समिति के सदस्य भी चुने गए थे। वह विलारामकोड तहसील कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी बने।


वादियार सावरीमुथु

तामिल नाडू के मसीही स्वतंत्रता सेनानियों में वादियार सावरीमुथु (1903-1986) का नाम प्रमुख है। वह डिण्डीगुल से थे। कांग्रेस पार्टी व गांधी जी के कहने पर वह सत्याग्रह आन्दोलन में कूद पड़े थे। 27 मार्च, 1941 को वह अंग्रेज़ों के विरुद्ध डिण्डीगुल का पहला संघर्ष था। वह चर्च अवश्य जाया करते थे। बृहस्पतिवार, 27 मार्च को वह पहले होली मास के लिए सेंट जोसेफ़ चर्च गए तथा पैरिश पादरी से आशीर्वाद प्राप्त किया तथा फिर ब्रिटिश शासकों के दमनकारी शासन के विरुद्ध सत्याग्रह पर बैठ गए। गांधी स्टेडियम में एकत्र हुए अनगिनत लोगों को उन्होंने बेहद प्रेरणादायक भाषण दिया। उन्होंने 1930 से केवल खद्दर पहनना प्रारंभ कर दिया था और अन्त तक वही पहना। सभी उन्हें प्यार से ‘प्रियवर’ कह कर बुलाते थे।

श्री वादियार ने भारत छोड़ो आन्दोलन में डट कर भाग लिया। उनकी ऐसी सक्रियता को देखते हुए अंग्रेज़ सरकार ने उन्हेंने 14 जुलाई, 1942 को मदुराई केन्द्रीय जेल में भेज दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व वह डिण्डीगुल के चेयरमैन चुने गए थे और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात वह डिण्डीगुल के वाईस चेयरमैन के पद पर भी रहे। वह मरियान्थापुरम के काऊँसलर भी चुने गए थे। वह के. कामराज एवं भक्तवाचालम जैसे कांग्रेसी नेताओं के बहुत करीबी बने रहे। गांधी जी के भी वह काफ़ी नज़दीक थे।

परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् तामिल नाडू के कांग्रेसी नेताओं के स्वार्थी स्वभाव से दुःखी होकर उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। तब वह सुधान्तिरा पार्टी में चले गए व डिण्डीगुल कार्पोरेशन के नेता के तौर पर जनता की सेवा में लगे रहे।

तामिल नाडू सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों की एक सूची प्रकाशित की गई थी, जिसके हिसाब से तामिल नाडू के इन मसीही नेताओं ने स्वतंत्रता आन्दोलनों में सक्रियता से भाग लिया था।

- एन्टोनी मुत्थु (1916) 1935 में स्वतंत्रता आन्दोलनों से जुड़ गए थे तथा उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था। उन्हें ग्रिफ़्तार कर के डेढ़ वर्ष तक कोयम्बटूर की जेल में कैद रखा गया था।

- अरोकियासामी (1926) कोयम्बटूर ज़िे के नगर पुलियाकुलम के श्री सैंथियागो के पुत्र थे तथा उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में भग लिया था तथा अंग्रेज़ शासकों ने उन्हें एक वर्ष तक कोयम्बटूर केन्द्रीय जेल में कैद रखा था।

- उत्तमापलायम (भूतपूर्व मदुराई) ज़िले के नगर अनाईमलायनपत्ती के निवासी श्री पोन्नप्पा नादर के सुपुत्र डैनियल (1899) 1940 में स्वतंत्रता आन्दोलनों से जुड़े थे तथा उन्होंने 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रहों व 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। उन्हें मद्रास, मदुराई व अलीपुरम नगरों की जेलों में आठ माह बिताने पड़े थे।

- गैब्रियल (1900) कोयम्बटूर से था तथा उन्होंने भी भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था उन्हें कोयम्बटूर की जेल में छः माह तक कैद कर के रखा गया था।

- कोयम्बटूर ज़िले के रामनगर के श्री पी. जोसेफ़ भी भारत छोड़ो आन्दोलन से जुड़़े रहे तथा उन्हें पांच माह के लिए श्रीविल्लीपुतुर जेल में पांच माह तक कैद कर के रखा गया था।

- साईमन पॉल (1917) तिरुपुर के पन्नाकट्टू कॉटन गोडाऊन लेन में उत्थुक्कुली रोड के निवासी श्री जोसेफ़ के सुपुत्र थे। वह 1932 में स्वतंत्रता आन्दोलनों में शामिल होने लगे था। उन्होंने 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह व फिर भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था। ब्रिटिश अदालत ने उन्हें दो वर्ष कारावास की सज़ा सुनाई थी। उन्हें कोयम्बटूर, अलीपुरम व बेलारी की जेलों में रखा गया था। वह 1943 तक टाऊन कांग्रेस समिति के सचिव रहे तथा बाद में कम्युनिस्ट पार्टी में चले गए थे।

- धर्मपुरी ज़िले के कोविलूर, नल्लापल्ली के श्री एन्थोनी क्रूज़ (1919) ने भी भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था। उन्हें बंगलौर व मैसूर की जेलों में साढ़े छः माह तक कैद कर के रखा गया था।

- अरोकियासामी (1918) धर्मपुरी ज़िले की हरूर तहसील के गांव पोमिद्दी के श्री चिनप्पन के पुत्र थे। वह भी अपने समय में भारत छोड़ो आन्दोलन के स्थानीय नायक रहे थे। उन्हें सात माह बंगलौर व मैसूर की जेलों में रखा गया था।

- एम. प्रकासम (1921) तामिल नाडू राज्य के रामनाथपुरम ज़िले के तिरुवदानाई के निवासी श्री माईकल के सुपुत्र थे। वह भी भारत छोड़ो आन्दोलन में ख़ूब सक्रिय रहे थे। उन्हें ग्रिफ़्तार करके दो वर्ष तक मदुराई व अलीपुरम की जेलों में रखा गया था।

- मसिलामणी (1912) भूतपूर्व मदुराई ज़िले की पेरियाकुलम तहसील के गांव कोंबाई के श्री रयप्पन के सुपुत्र थे। वे एसएसएलसी की परीक्षा उतीर्ण कर के 1932 में स्वतंत्रता आन्दोलनों से जुड़ गए थे। उन्हें भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण एक माह तक मदुराई कारावास में रखा गया था।

- एडविन जोसेफ़ साईमन (1908) तामिल नाडू के नीलगिरीज़ ज़िले के गांव सन्धूर के निवासी थे। उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह किया था तथा भारत छोड़ो आन्दोलन में भी भाग लिया था। उन्हें दो माह तक मद्रास केन्द्रीय जेल में कैद रखा गया था।

- आर. चिनप्पन (1910) रामनाथपुरम ज़िले के पाननकुड़ी, नडराजपुरम के श्री रयप्पन के सुपुत्र थे। उन्हें भी 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान नडराजपुरम रेलवे स्टेशन जलाने के आरोप में पांच माह तक जेल में बन्द रखा गया था।

- यीशुदास उर्फ़ पुची (1918) रामनाथपुरम ज़िले के तिरुवदनाई के करकालातूर के श्री करुप्पन के सुपुत्र थे। उन्हें भी भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण डेढ़ वर्ष तक मदुराई जेल में रखा गया था।

- जौन (1919) थन्जावूर ज़िले के नगर तिरुपून्थूरुती के श्री एन. अरुलप्पन सर्वाई के सुपुत्र थे, जिन्हें भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण 10 माह 13 दिनों के लिए अलीपुरम जेल में कैद कर दिया गया था।

- टी. जोसेफ़ (1924) थन्जावूर ज़िले के कीज़ा तिरुपून्थूरुती स्थित माथकोयल स्ट्रीट के निवासी थे। उन्हें भी अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की तरह ही भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण एक वष्र तीन माह तक थन्जावूर व तिरुचिरापल्ली जेलों में कैद कर के रखा गया था।

- जेबमलाई बरनार्ड (1902) तिरुनेलवोली ज़िले के वीरावनाल्लूर के श्री सन्तप्पा के सुपुत्र थे। वह स्वतंत्रता संग्राम से 1936 में जुड़े थे। उन्होंने 1941-42 के युद्ध-विरोधी अभियान में भाग लिया था। उन्हें चार माह तक अलीपुरम जेल में रखा गया था।

- जेबमणी (1919) तिरुनेलवेली ज़िले की तिरुचेन्दूर तहसील के गांव करणबानी के श्री रत्नसामी के सुपुत्र थे। वह स्वतंत्रता संग्राम से 1937 में जुड़े थे। उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था और इसी कारणवश उन्हें 21 माह तक कोयम्बटूर व अलीपुरम की जेलों में बिताने पड़े थे।

- आईसक (1908) तिरुचेन्दूर के समीप मूकूपेरी के श्री सैमुएल के सुपुत्र थे। वह भी भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय रहे थे। इसी लिए उन्हें सात माह तक कोकिराकुलम व टूटीकोरिन की उप-जेलों में कैद करके रखा गया था।

ए.एक्स. अलैग्ज़ैण्डर (ग्लोबल-पारावार डॉट ऑर्ग) ने विनोद नेताजी फरनांडो के हवाले से यह जानकारी दी है कि सरकारी सूची के अतिरिक्त तामिल नाडू के अन्य और भी बहुत से मसीही नेता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलनों में सक्रिय रहे थे। उन्हीं के अनुसार जे.पी. रॉर्डिग्ज़, ए.एस. बैन्जामिन एवं जती तलिवार, जेरमियाह फरनांडेज़ (पुन्नकायल), इरोमियर (पुन्नकायल), चेल्लियाह फ़रनांडेज़ (पुन्नकायल), वलेरियन फरनांडो (पुन्नकायल), टी.ए. फरनांडो (पेरियाथज़ाई), पीटर मौरिस भी तामिल नाडू के कुछ प्रमुख मसीही स्वतंत्रता सेनानियों के नाम हैं।

श्री विनोद नेताजी फरनांडो के अनुसारः

- जेरमियाह फरनांडेज (1896)़ सुपुत्र पिचिया फ़रनांडेज़ का जन्म पुन्नकायल में हुआ था। वह 1930 के नमक सत्याग्रह में सक्रिय रहे थे तथा इसी कारणवश उन्हें अलीगढ़ की जेल में 6 माह बिताने पड़े थे।

- इरोमियर फ़रनांडो सुपुत्र पिचिया फ़रनांडो (1896) का जन्म पुन्नकायल में हुआ था। उन्होंने भी नमक सत्याग्रह में भाग लिया था तथा उन्हें कुड्डालोर, त्रिची एवं बेलारी की जेलों में छः माह बिताने पड़े थे।

- चेलिया फ़रनांडेज़ (1904) का जन्म पुन्नकायल में हुआ था। वह भी नमक सत्याग्रह में अग्रणी रहे थे। इसी कारण अंग्रेज़ शासकों ने उन्हें अलीगढ़ की जेल में छः माह तक कैद कर के रखा था।

- वलेरियन फ़रनांडेज़ (1909) का जन्म वीराण्डियापट्टनम में हुआ था। उन्होंने असहयोग आन्दोलन व युद्ध-विरोधी प्रदर्शनों में भाग लिया था, जिसके कारण उन्हें त्रिची व अलीपुरम की जेलों में कैद करके रखा गया था।

- टी.एं. फरनांडो उर्फ़ थेमाई एन्टोनी फ़रनांडो तामिल नाडू के पेरियाथज़ाई के निवासी थे तथा उन्हें गान्धीयार कहा जाता था। उन्होंने भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था।

- पीटर मोरायस (1918) का जन्म टूटीकॉर्न में हुआ था। वह टौडी शॉप पिकेटिंग व विदेशी वस्तुओं के विरोध से संबंधित आन्दोलनों में सक्रिय रहे थे। वह कुरांगानी से चले एक लम्बे मार्च का भाग थे, जो 10 जून, 1941 को प्रस्थान करके 154 गांवों में से गुज़रता हुआ 520 किलोमीटर की यात्रा करके रामनाथपुरम की त्रिचूर, श्री वायगुण्डम, कोविलपट्टी तहसीलों व मदुराई ज़िले में पहुंचा था। रास्ते में वे सभी गांव वालों से मिल कर उनमें स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने की भावना भरते हुए चले थे। उन्हें थरुप्रांकुन्द्रम व डिण्डीगुल में ग्रिफ़्तार कर लिया गया था तथा अंग्रेज़ शासकों ने उन्हें मदुराई व अलीपुरम की जेलों में रखा गया था।


तामिल नाडू की महिला देश-भक्त, वीरांगनाएं व स्वतंत्रता सेनानी

तामिल नाडू के सरकारी रेकार्ड में कुछ महिला देश-भक्तों, वीरांगनाओं व स्वतंत्रता सेनानियों का भी वर्णन है - जैसेः-

- श्रीमति कज़न्स सुपत्नी डॉ. जेम्स कज़न्स मद्रास की रहने वाली थीं तथा बेहद धार्मिक थीं। वह वोमैन’ज़ इण्डियन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थीं। वह ऐनी बेसैंट के होम-रूल विद्रोह में उनकी सहायका रहीं थीं। वह कुछ समय के लिए सैदापेट में ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट के पद पर भी कार्यरत रहीं थीं। स्वतंत्रता संग्राम के असहयोग आन्दोलन में वह सक्रिय रहीं थीं। उन्हें कथित विद्रोही भाषणों के कारण 1932 में ग्रिफ़्तार कर लिया गया था क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश सरकार के ऑर्डीनैंस बिल की निंदा की थी। उन्हें 10 दिसम्बर 1932 को एक वर्ष तक कैद में रखने की सज़ा दी गई थी।

- एन्टोनी अम्माल (1917) कोयम्बटूर ज़िले के पुलियाकुलम के श्री सेल्वामुतू की सुपुत्री थीं। वह स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलनों से 1937 में जुड़ीं थीं तथा उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था। उन्हें ग्रिफ़्तार करके वेल्लोर स्थित महिला कारावास में एक वर्ष तक बन्द कर के रखा गया था।

- जौन रोज़ एस. (1916) कन्याकुमारी ज़िले के नाडूथेरीविलाई, मारुथुंगोड़ो की निवासी थीं, जिन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था तथा उन्हें इसी लिए कुलीथुराई एवं थकालाई जैसी जेलों में 10 माह बिताने पड़े थे।

- माया जोसेफ़ (1917) स्वतंत्रता संग्राम में अपने पिता जॉर्ज जोसेफ़ की तरही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी रहीं थीं। उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था व उन्हें छः माह वेल्लोर महिला कारावास में बिताने पड़े थे।

- इग्नाशियस अम्माल (1908) भूतपूर्व मदुराई ज़िले के डिण्डीगुल के श्री विसुवासम की सुपुत्री थीं। उन्होंने भी भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था। इसी लिए उन्हें वेल्लोर की महिला जेल में तीन माह बिताने पड़े थे।


तामिल नाडू के व्यक्तिगत मसीही सत्याग्रहियों की सूची

तामिल नाडू राज्य सरकार ने ऐसे कुछ मसीही राष्ट्रवादियों की सूची भी प्रकाशित की है, जिन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया था, जो इस प्रकार हैः

- एस. जोसेफ़ सुपुत्र सैलाम पॉल निवासी वलाजाबाद, ज़िला चेंगलपट्टू ने 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया था और इसी कारण ब्रिटिश शासकों ने उन्हें दो वर्षों तक अलीपुरम व बेलारी की जेलों में रखा था।

- ऐम्ब्रोस (1917) सुपुत्र ऐन्थोनीसामी निवासी ऊटी, ज़िला नीलगिरि वर्ष 1935 में कांग्रेस में सम्मिलित हुए थे। उन्होंने 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा अगले वर्ष भारत-छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था। उन्हें दो बार एक वर्ष छः सप्ताह के लिए मद्रास, बेलारी व अलीपुरम की जेलों में बन्द रखा गया था।

- एस. रिचर्ड मौरिस (1916) निवासी टूटीकौर्न ने 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया था और उन्हें चार माह तक अलीपुरम जेल में रखा गया था।

- पीटर मरायस (1916) सुपुत्र पेडरक्कारा मरायस निवासी श्रीवायकुन्दम, समीप टूटीकौर्न को व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने हेतु 1941 के दौरान 32 माह के लिए बेलारी केन्द्रीय जेल में रखा गया था।

- सैमुएल यीशुदासन (1915) सुपुत्र मलायप्पन निवासी तिरुनेलवेली को साढ़े तीन माह के लिए अलीपुरम जेल में कैद करके रखा गया था।


Mehtab-Ud-Din


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