दृढ़ इरादे वाले स्वतंत्रता सेनानी मसिलामणी
मसिलामणी ने आम लोगों को व्यक्तिगत सत्याग्रह हेतु प्रेरित किया, जेल भी गए 1930 में असहयोग आन्दोलन के दौरान तामिल नाडू के मसीही नेता मसिल्लामणी ने व्यक्तिगत स्तयाग्रह के लिए लोगों को प्रेरित किया था। तब अंग्रेज़ शासकों ने उन्हें ग्रिफ़्तार कर लिया था। उसके पश्चात् 1940 के दौरान जब कांग्रेस पार्टी ने द्वितीय युद्ध के विरुद्ध अभियान छेड़ा था, तो गांधी जी एवं अन्य नेताओं के निर्देशानुसार केवल उस समय के विधायकों को ही उस आन्दोलन में भाग लेने के लिए कहा गया था। परन्तु मसिलामणी क्योंकि देश-भक्ति की भावना से भरपूर थे, इसी लिए उन्होंने उस अभियान में भाग लेने के लिए गांधी जी से विशेष अनुमति मांगी थी। श्री मसिलामणी अपनी पत्नी जेबामणी के साथ पहले टूटीकौर्न के ‘चर्च ऑफ़ अवर लेडी ऑफ़ स्नोज़ गए। वहां प्रार्थना की और वहीं से युद्ध के विरुद्ध अपना रोष मार्च प्रारंभ किया परन्तु पुलिस ने उन्हें तत्काल ग्रिफ़्तार कर लिया व जेल भेज दिया। मसिलामणी तब वेल्लोर जेल में छः माह व जेबामणी नौ माह के लिए जेल में रहीं। चित्रः ठूठूकूड़ी (पुराना नाम टूटीकौर्न) का ‘लेडी ऑफ़ स्नोज़’ चर्च। इसी चर्च में जाया करते थे मसिलामणी। बाद में मसिल्लामणी ने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में बेहद सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें 8 अगस्त, 1942 को ग्रिफ़्तार कर लिया गया और लगभग ढाई वर्ष तक जेल में ही बन्द रखा। उन्हें तिरुनेलवेली, वेल्लोर, सलेम, कन्नानूर एवं तन्जौर की जेलों में रखा गया। उसी दौरान उनकी पत्नी जेबामणी मसिल्लामणी सक्रिय हो उठीं तथा उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न संघर्षों व आन्दोलनों में भाग लिया। उन्होंने अंग्रेज़ शासकों के विरुद्ध लोगों को ख़ूब जागरूक किया, जिसके कारण शासकों ने उन्हें भी छः माह के लिए कारावास भेज दिया।
अत्यंत लोकप्रिय मसीही नेता थे मसिलामणी मसिलामणी अपने समय के प्रख्यात स्थानीय नेता थे और आस-पास के क्षेत्रों में इतने लोकप्रिय थे कि उन्हें तहसील स्तर की बैठकों की अध्यक्षता करने के लिए निमंत्रित किया जाता था। वर्ष 1936 में सिवागंगाई की एक बैठक की अध्यक्षता करने का रेकार्ड अब भी मौजूद है। उस मीटिंग में उन्होंने ब्रिटिश शासकों के शोषण व उसी के कारण देश की बदहाली का ज़िक्र किया था। उनका मानना था कि जब तक विदेशियों की ग़ुलामी से आज़ादी नहीं मिलती, तब तक कुछ भी संभव नहीं होगा।
दुःखी हो गए थे ब्रिटिश अधिकारी कांग्रेसी नेता श्री मसिल्लामणी का 30 मई, 1949 को निधन हो गया था। ब्रिटिश सरकार जब तक भी रही, वह सदा यही चाहती रही कि मसिल्लामणी स्वतंत्रता संग्राम से बाहर हो जाएं परन्तु ऐसा कभी न हो सका। अतः ब्रिटिश अधिकारी उनसे दुःखी हो गए थे परन्तु कोई बड़ा आरोप लगाने हेतु कोई सबूत उनके पास नहीं था। श्री मसिल्लामणी ने सदा तामिल नाडू के कैथोलिक मसीही समुदाय को स्वतंत्रता आन्दोलनों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनका भाषण सुन कर बहुत से कैथोलिक्स इन आन्दोलनों से जुड़ने लगे थे। सेन्थिल नादर कॉलेज के भूतपूर्व ख़ज़ानची थंगय्या ने मसिलामणी के बार में अत्यंत आदर सहित लिखा था,‘‘मैं 1922 से मसिलामणी जी को जानता हूं और मुझे इस बात पर गर्व है। उनमें ग़ज़ब की बौद्धिक शक्ति है, वह प्रत्येक मुद्दे की तह तक शीघ्रतया चले जाते हैं। उनकी याददाश्त तो कमाल की है। उनकी संभाषण कला भी विलक्ष्ण है। उनके क्षेत्र में हर कोई मसिल्लामणी जी की देश-भक्ति के जोश से वाकिफ़ है और ऐसा करते हुए उन्हें बहुत ज़्यादा दुःख भी झेले हैं।’’ मसिलामणी एक समर्पित कैथोलिक थे और चर्च में इशा-ए-रब्बानी लेना कभी नहीं भूलते थे तथा बाईबल की बातें अन्य लोगों से साझी करते रहते थे। वह विशेषतया अलंगारथट्टू गांव के बच्चों को कैथोलिक मसीही शिक्षा दिया करते थे। वह अपने पुत्र व पुत्रियों को पादरी व नन बनने हेतु प्रेरित व उत्साहित किया करते थे। टूटीकौर्न के निवासी श्री मुथय्या दास ने अपनी कुछ यादें साझी करते हुए लिखा था - ‘‘वर्ष 1921 की बात है, जब जवाहरलाल नेहरू ने अलाहाबाद के स्वराज्य भवन में तिरंगा फहराया था और उसके बाद पुलिस ने उन पर हमला बोल दिया था। मसिल्लामणी ने तब उस आक्रमण के विरोध में टूटीकौर्न में युवाओं को एकत्र करके रोष प्रदर्शन किया था। तब ‘गंाधी जी ज़िन्दाबाद’, ‘नेहरू ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाए गए थे। उस रोष प्रदर्शन में स्थानीय वकीलों पी.एस. सुब्बईयाह, गणपति अय्यर, गुरुसामी नायडू, पी. गण्डासामी पिल्लै, सोमय्याजुलू सहित अन्य बहुत से लोग मौजूद थे।’’
जेबामणी मसिल्लामणी बनी थीं विधायका 1934 एवं 1937 में हुए विधान सभा चुनावों में मसीही उम्मीदवार बहुत कम थे। 1937 के चूनावों में श्रीमति जेबामणी मसिल्लामणी एकमात्र एवं प्रथम मसीही महिला उम्मीदवार थीं और वह कांग्रेस पार्टी की टिक्ट पर 3,680 मतों के अन्तर से विजयी रही थीं। फिर 1941 में वह पदमरभापुरम विधान सभा क्षेत्र से 75 प्रतिशत मत प्राप्त करके विजयी रही थीं। वर्ष 1946 में तो वह उसी निर्वाचन क्षेत्र से निर्विरोध चुनी गई थीं। वह केवल मसीही समुदाय के लिए ही नहीं, अपितु तामिल नाडू के समस्त स्वतंत्र सेनानियों के लिए भी एक जीती-जागती मिसाल बनी रही थीं।
-- -- मेहताब-उद-दीन
-- [MEHTAB-UD-DIN]
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें
-- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]