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1860 में ब्रिटिश मैडिकल डिग्री प्राप्त करने वाले पहले भारतीय डॉ. सेन्जी पुल्नी ऐण्डी



 




 


पीटर पॉल पिल्लै तथा डॉ. सेन्जी पुल्नी ऐण्डी को देख कर अन्य लोग भी हुए थे प्रेरित

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मसीही समुदाय का योगदान वर्णनीय रहा है। 1885 में इण्डियन नैश्नल कांग्रेस पार्टी की स्थापना इस संग्राम की एक वर्णनीय घटना थी। अधिकतर स्वतंत्रता आन्दोलन इसी पार्टी के झण्डे तले सफ़लतापूर्वक संपन्न हुए थे। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे हज़ारों नेता इसी पार्टी से जुड़े रहे थे। इसी लिए 1947 में देश को स्वतंत्र करते समय अंग्रेज़ इसी धर्म-निरपेक्ष पार्टी को सरकार की बागडोर भी कांग्रेस के हाथ ही सौंप कर गए थे। अधिक चर्चित मसीही नेताओं की बात तो हम कई स्थानों पर कर चुके हैं, परन्तु आज हम ऐसे दो मसीही नेताओं की बात करेंगे, जिन्होंने इण्डियन नैश्नल कांग्रेस पार्टी के पहले सत्र में भाग लिया था और उन्हें देखकर अन्य मसीही लोग भी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनों में कूद पड़े थे।


पीटर पॉल पिल्लै

उनमें से एक थे पीटर पॉल पिल्लै; वह एक स्कूल अध्यापक थे। वैसे वह एक ज़िमींदार, राजनीतिज्ञ एवं समाज-सुधारक भी थे, जिन्होंने इण्डियन नैश्नल कांग्रेस के पहले सत्र में तामिल नाडू के नगर तिरुनेलवेली का प्रतिनिधित्व किया था। वह एक रोमन कैथोलिक परिवार से संबंधित थे। वह 1902 में बैरिस्टर-एट-लॉअ बने थे। उन्होंने 1885 में भारत की स्थिति तथा 1891 के वन कानून की जांच का नेतृत्व भी किया था।


1886 में मद्रास में डॉ. ऐण्डी ने की नैश्नल चर्च ऑफ़ इण्डिया की स्थापना

Associated Press [Photo by: Associated Press]

दूसरे मसीही डॉ. सेन्जी पुल्नी ऐण्डी (1831-सितम्बर 1909) थे, जो इण्डियन नैश्नल कांग्रेस पार्टी के प्रथम सत्र का भाग बने थे। उन्हें तामिल नाडू में आज भी एस. परानी ऐण्डी के नाम से याद किया जाता है। अफ़सोस यह है कि इन दोनों के चित्र आज आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। डॉ. सेन्जी पुल्नी ऐण्डी 1860 में ब्रिटिश मैडिकल डिग्री प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे। 1886 में उन्होंने मद्रास में नैश्नल चर्च ऑफ़ इण्डिया की स्थापना की थी सेंजी पुल्नी ऐण्डी का जन्म तामिल नाडू के नगर तिरुचरापल्ली में हुआ था। उन्होंने 1859 में मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज से ग्रैजुएशन की थी। फिर वह इंग्लैण्ड चले गए थे, जहां उन्होंने युनिवर्सिटी ऑफ़ सेंट एण्ड्रयूज़ से डॉक्टर ऑफ़ मैडिसन की डिग्री प्राप्त की थी।


मैडिकल विषय पर अख़बारों में लिखते भी थे

1862 में डॉ. ऐण्डी रॉयल कॉलेज ऑफ़ सर्जन्स के फ़ैलो बने थे तथा भारत लौट आए थे। मद्रास सरकार ने तब उनकी एक विशेष नियुक्ति करते हुए ‘सुपरइन्टैंडैंट ऑफ़ वैक्सीनेशन’ (टीकाकरण का पर्यवेक्षक) बनाया था। उनकी पहली नियुक्ति मालाबार में हुई थी। मैडिकल विषय संबंधी उनके लेख प्रायः उस समय के बड़े समाचार-पत्रों में प्रकाशित होते रहते थे। नीम के पत्तों से चेचक रोग ठीक करने तथा दक्षिण भारत की खजूरों के औषधि गुणों संबंधी उनके अनुसंधान वर्णनीय हैं।


भारतीय चर्च को विदेशी मिशनरियों के प्रभाव से करवाना चाहते थे पूर्णतया स्वतंत्र

इंग्लैण्ड से लौटने के बाद डॉ. ऐण्डी ने 3 मई, 1863 को कोज़ीकोड (कालीकट) में बप्तिसमा लिया था, परन्तु नौकरी के दौरान उन्हें चर्च जाने का समय नहीं मिला करता था। नौकरी से सेवा-निवृत्त होने के पश्चात् उन्होंने देश में मसीही लहर को मज़बूत करने के कार्य किए। वह चाहते थे कि भारतीय चर्च पश्चिमी चर्च एवं मिशनरियों के प्रभाव से पूर्णतया स्वतंत्र हो। वह चाहते थे कि समस्त भारत की मसीही मिशनें एक स्थान पर एकत्र हो जाएं, इसी लिए उन्होंने 12 सितम्बर, 1886 को मद्रास में नैश्नल चर्च ऑफ़ इण्डिया की स्थापना की थी।


डॉ. ऐण्डी को पश्चिमी मिशनरियों व भारतीय मसीही पादरियों से नहीं मिला कोई सहयोग

डॉ. ऐण्डी चाहते थे कि देश में एक ऐसी मसीहियत हो, जिसकी जड़ें भारतीय संस्कृति में गहरी हों। परन्तु डॉ. ऐण्डी के ऐसे कदमों को पश्चिमी मिशनरियों एवं भारतीय मसीही पादरियों की ओर से कोई सहयोग न मिला। मिशनरियों ने कहा कि इससे भारत में नई मसीही मिशनें विकसित होने लगेंगी और वर्तमान चर्चेज़ को समर्थन नहीं मिलेगा। भारत के पादरी साहिबान भी तब यही चाहते थे कि उन्हें किसी न किसी तरह विदेशी सहयोग अवश्य मिलता रहे। यह आरोप भी लगा था कि नैश्नल चर्च ऑफ़ इण्डिया तो केवल उच्च जातियों से मसीही बने लोगों का संगठन है। इस प्रकार इस लहर को कोई समर्थन न मिला और 1898 में यह लगभग दम तोड़ चुकी थी तथा फिर 1909 में डॉ. ऐण्डी के देहांत के साथ यह लहर पूर्णतया समाप्त हो गई।


चेन्नई एगमोर रेलवे स्टेशन बना है डॉ. ऐण्डी पुल्नी से ख़रीदी भूमि पर

1900 में चेन्नई एगमोर रेलवे स्टेशन जिस स्थान पर स्थापित हुआ था, वह ज़मीन डॉ. ऐण्डी पुल्नी से ही ख़रीदी गई थी। डॉ. ऐण्डी ‘ईस्टर्न स्टार’ नामक एक समाचार-पत्र के संपादक भी रहे थे। प्रैज़ीडैंसी कॉलेज एवं युनिवर्सिटी ऑफ़ मद्रास ने बौटनी विषय में विलक्ष्णता दिखलाने वाले विद्यार्थियों को सम्मनित करने हेतु डॉ. ऐण्डी के नाम से पुरुस्कार एवं पदक देने भी प्रारंभ किए थे।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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