पादरी जेम्स जॉय मोहन निकोलस रॉय
पहाड़ी क्षेत्रों को उनके योग्य अधिकार दिलवाने में बड़ा योगदान रहा पादरी जेम्स जॉय मोहन निकोलस रॉय का
पादरी जेम्स जॉय मोहन निकोलस रॉय अपने समय में शिलौंग (उत्तर-पूर्वी राज्य मनिपुर) की एक प्रसिद्ध शख़्सियत थे और वह एक राजनीतिज्ञ भी थे। पहाड़ी क्षेत्रों को उनके योग्य अधिकार दिलवाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। इसी लिए भारत सरकार ने उनकी याद में एक डाक-टिक्ट भी जारी किया था। श्री निकोलस रॉय का जन्म 12 जून, 1884 को शैला कन्फ़ैड्रेसी के मावसियारवेट के एक संघर्षशील परिवार में हुआ था। उनके दादा यू टिरोट सिंह भी मनिपुर की चर्चित हस्ती थे। उनके पिता यू ख़ान थान रॉय तत्कालीन शिलौंग राज्य के खापमॉअ में दिहाड़ीदार मज़दूर थे। उन्होंने लबा हाई स्कूल में पढ़ाई प्रारंभ ही की थी कि एक बड़े भूचाल ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया था। उस भूचाल में उनका घर बच गया था। फिर वह एक अन्य सुरक्षित स्थान जसिर में जाकर बस गए थे। 1889 में उन्हें शिलौंग के सरकारी हाई स्कूल में प्रवेश मिल गया था। फिर वहह उच्च शिक्षा हेतु कोलकाता गए तथा 1904 में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। PHOTO BY: Khasi Hills Autonomous District Council
पादरी जेजेएम निकोलस रॉय ने एकजुटता लाने के किए अथक प्रयास
उस समय मनीपुर क्षेत्र 16 छोटे-छोटे प्रशासनिक क्षेत्रों (जिन्हें हट्स कहा जाता था) में बंटा हुआ था परन्तु वे सभी एक राजा के अधीन थे। उनमें से 7 हट्स ने स्वतंत्र होने की इच्छा प्रकट की।
पादरी जे.जे.एम. निकोलस रॉय का जीवन-वर्णन करते हुए पादरी डॉ. ओ.एल. स्नेतांग बताते हैं कि 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में इंग्लैण्ड की ईस्ट इण्डिया कंपनी खासी जैंतिया क्षेत्र में दाख़िल हो चुकी थी। उन्होंने तब देखा कि वह क्षेत्र 29 स्वतंत्र राज्यों में बंटा हुआ था। प्रत्येक राज्य का अपना स्वयं का एक मुख्य, मंत्री-मण्डल, दरबार एवं पूर्णतया स्वतंत्र सीमा-क्षेत्र हुआ करता था। ईस्ट इण्डिया कंपनी ने उन सभी छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों को एक ही बड़े बंगाल प्रैज़ीडैंसी के अंतर्गत लाने का निर्णय लिया था। फिर असम राज्य का गठन हुआ और पहाड़ी क्षेत्र उसके साथ जोड़ दिए थे। ईस्ट इण्डिया कंपनी के मुख्य अधिकारियों ने असम एवं खासी मुखियाओं के साथ बातचीत करके ही खासी-जैंतिया क्षेत्र को आपस में जोड़ा था।
खासी जैन्तिया समुदाय पादरी जेजेएम निकोलस रॉय का रहेगा सदैव ऋणी
पहाड़ी क्षेत्र खासी राज्यों की फ़ैड्रेशन एवं ब्रिटिश की पृथक योजना के मध्य पिस कर रह गए थे। ऐसी परिस्थितियों में पादरी निकोलस रॉय ने संघर्ष की बागडोर संभाली थी तथा एक संगठित स्वायतत्त परिषद (काऊँसिल) के गठन का प्रस्ताव रखा था। खासी जैन्तिया समुदाय उनके इस योगदान हेतु सदैव ऋणी रहेगा। भारत के संविधान की छठी अनुसूची में पादरी निकोलस रॉय का प्रस्ताव भी सम्मिलित है। यह अनुसूची एकता एवं समानता पर आधारित है। पादरी निकोलस रॉय ने पारंपरिक प्रणालियों को समाप्त करने के स्थान पर उन्हें लोकतांत्रिक बनाने पर बल दिया था। उनका निधन 1959 में हुआ था। मनिपुर के इतिहास में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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