भारत में कोई नहीं लगा सकता मसीही समुदाय पर बेबुनियाद आरोप, संवैधानिक व्यवस्था मौजूद
भाजपा के राज्य में बढ़े भारतीय मसीही समुदाय बेबुनियाद दोषारोपण
आज कल भारतीय मसीही संगठनों व गिर्जाघरों को विदेशों से आने वाली आर्थिक सहायता पर नज़र रखने के दावे भारतीय जनता पार्टी तथा उसकी ‘घोषित सांप्रदायिक’ पथ-प्रदर्शक आर.एस.एस. द्वारा जन-सभाओं के मंचों पर से प्रायः किए जाते हैं। परन्तु यह जानकारी तो बच्चे-बच्चे को भी है कि विदेश से एक भी पैसा यदि आता है, तो उसका हिसाब-किताब प्रारंभ से ही केन्द्र सरकार के पास होता है। भारत का एक अधिनियम ‘फ़ॉरेन कन्ट्रीब्यूशन रैगूलेशन एक्ट’ (एफ़.सी.आर.ए. - विदेशी अंशदान नियंत्रण अधिनियम) है, जिसके अंतर्गत बाहर से आने वाली आर्थिक सहायता का संपूर्ण रेकार्ड रखा जाता है। इस लिए कोई यदि ऐसे दावे करे कि विदेश से ‘भारतीय चर्च को चोरी-छिपे कोई वित्तीय सहायता’ आती है, तो यह सरासर बेबुनियाद आरोप है। इस लिए सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी केवल आम लोगों को गुमराह करने हेतु ही ऐसे आरोप लगाती है, जब केन्द्र में सरकार उसी की है, तो चर्च को कितनी आर्थिक सहायता आई, उसे कैसे ज्ञात नहीं है।
बरसाती मेंढकों की टर्र-टर्र
यह तथाकथित कुछ बरसाती मेंढक व चूहों जैसे (जो केवल भाजपा सरकार के समय ही दिखाई देते हैं, उसके आगे-पीछे नहीं) देश-भक्त आख़िर किस आधार पर किसी पर बिना वजह दूषणबाज़ी कर सकते हैं। क्या भारतीय संविधान की किसी धारा में कोई ऐसी धारा नहीं कि जिससे ऐसे लोगों को कोई दण्ड मिल सके? संविधान में ऐसी सभी व्यवस्थायें मौजूद हैं कि जिनके आधार पर ऐसे लोगों को सज़ा दिलाई जा सकती है, जो किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं। परन्तु अल्प-संख्यक होने के कारण तथा विभिन्न मिशनों में बंटे होने व एकता की कमी होने के कारण किसी मसीही व्यक्ति विशेष की तो कोई शिकायत करने की भी कभी हिम्मत नहीं पड़ती और यदि कोई मसीही संगठन शिकायत कर भी देता है, तो उसकी कोई सुनवाई नहीं होती।
संविधान की धारा 25(1) देती है धर्म की आज़ादी
भारतीय संविधान के अनुसार भारत का कोई सरकारी धर्म नहीं है। धारा 25(1) में लिखा है कि ‘‘सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य एवं इस भाग की अन्य व्यवस्थाओं के मामले में सभी व्यक्तियों को अपनी ज़मीर (अंतरात्मा की आवाज़) की आज़ादी है तथा अपने-अपने धर्म की आस्था को प्रकट करने, उसके अनुसार कार्य या गतिविधियां करने तथा उसका प्रचार व पासार करने का अधिकार है।’’ धारा 19 सभी नागरिकों को बोलने एवं अपने विचार प्रकट करने का अधिकार तो देती है परन्तु इस शर्त पर किसी के बोलने से कोई सार्वजनिक कानून-व्यवस्था का किसी भी प्रकार का कोई नुक्सान न हो, शिष्टता तथा नैतिकता में कोई कमी न आए। इसी प्रकार धारा 28 के अनुसार कोई भी शैक्षणिक संस्थान यदि पूर्णतया सरकारी वित्तीय सहायता से चल रहा है, तो उस में किसी धर्म विशेष के अनुसार कोई कार्य नहीं किया जा सकता। भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी. - इण्डियन पीनल कोड), फ़ौजदारी कार्य-विधि (सी.सी.पी. - कोड ऑफ़ क्रिमीनल प्रोसीज़र) तथा अन्य कानूनों की व्यवस्थायें भी बोलने की स्वतंत्रता को सीमित करती हैं। जैसे कि सी.सी.पी. की धारा 95 के अनुसार सरकार किसी भी ऐसे प्रकाशनों को ज़ब्त कर सकती है, जिनमें कोई ऐसी बात लिखी गई हो, जो धारा 124ए या धारा 153ए या 153बी अथवा धारा 292 अथवा धारा 293 या आईपीसी की धारा 295ए के अंतर्गत दण्डनीय हो।
घृणा की मन्द भावनाएं फैलाने वालों को हो सकती है सज़ा
भारतीय संविधान की धारा (अनुभाग) 153ए के अनुसार ‘‘यदि कोई व्यक्ति (क) अपने शब्दों/वाणी या किसी लिखित रचना से अथवा अपनी किन्हीं दृष्टमान बातों या गतिविधियों द्वारा धर्म, नसल, जन्म-स्थल, निवास, भाषा, जाति या समुदाय या अन्य किसी आधार पर एकता अर्थात मेल-मिलाप को भंग करता है या विभिन्न धार्मिक समूहों या जातियों अथवा संप्रदायों के बीच बैर अथवा द्वेष, घृणा की मन्द भावनाएं फैलाता है अथवा (ख) कोई व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करता है या कोई ऐसी गतिविधि में सम्मिलित होता है कि जिससे विभिन्न धर्मों, नसलों, भाषा या धार्मिक समूहों, जातियों या समुदायों/संप्रदायों के बीच की एकता व अखण्डता भंग होती है तथा ऐसी कार्य/गतिविधि से सार्वजनिक शांति भंग होती हो या ऐसा कुछ होने की संभावना हो... तो अदालत ऐसे व्यक्ति को अधिक से अधिक तीन वर्ष तक कैद की सज़ा या जुर्माना या दोनों का दण्ड दे सकती है।’’
1927 में लागू हुई भारतीय दण्ड संहिता की धारा 295(ए) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मन्द भावना से कुछ बोलकर या लिख कर या अपने किन्हीं भी दृष्टमान कारणों या गतिविधियों द्वारा भारतीय नागरिकों के किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, उस/किसी वर्ग के धर्म या उसके धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है अथवा ऐसा करने का प्रयत्न करता है, तो न्यायालय द्वारा उसे अधिक से अधिक तीन वर्ष तक कैद की सज़ा या जुर्माना या दोनों का दण्ड दिया जा सकता है।’’
आरोपी के विरुद्ध शिकायत अवश्य दर्ज करवाएं
तो यदि कोई व्यक्ति या संगठन भारतीय मसीही समुदाय पर बिना वजह आधारहीन आरोप लगाता है, तो उससे समस्त मसीही लोगों की भावनाओं की ठेस पहुंचती है (यह अलग बात है कि कोई भी मसीही दरअसल यीशु मसीह के क्षमा करने के सिद्धांत पर चलता हुआ शीघ्रतया शिकायत नहीं करता), तो ऐसे व्यक्ति अथवा संगठन के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। यदि आपके पास पक्के प्रमाण हैं, तो दण्ड अवश्य मिलेगा चाहे वह संगठन या व्यक्ति कोई भी क्यों न हो।
धर्म-परिवर्तन नहीं, अपितु समाज-सेवा पर ख़र्च होती है विदेशी आर्थिक सहायता
अंग्रेज़ी पत्रिका ‘आऊटलुक’ की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006-07 से विदेशों से भारत में आने वाली राशि के आंकड़े कुछ थोड़े-बहुत अंतर के साथ स्थिर ही चल रहे हैं। इन आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रत्येक वर्ष 13,193 संगठनों द्वारा विदेश से आने वाले 11,000 करोड़ रुपए प्राप्त किए जाते हैं। इसमें ‘बिलीवर्स चर्च इण्डिया’ जैसे मसीही संगठनों को 190 करोड़ रुपए सालाना प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार माता अमृतनन्दमाई मठ जैसे हिन्दु संगठनों को 98 करोड़ रुपए, आग़ा ख़ान फ़ाऊण्डेशन जैसे इस्लामिक संगठनों को 110 करोड़ रुपए तथा ‘पब्लिक हैलथ फ़ाऊण्डेशन ऑफ़ इण्डिया’ व ‘ग्रीनपीस’ जैसे धर्म-निरपेक्ष संगठनों को 130 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता हर वर्ष आती है। वर्ष 2010-11 में 1 करोड़ रुपए से अधिक की विदेशी राशि प्राप्त करने वाले मसीही संगठनों की संख्या 30 प्रतिशत थी। इनमें ‘वर्ल्ड विज़न’, ‘गॉस्पल फ़ार इण्डिया’ जैसे दर्जनों मसीही संगठन हैं, जो अपने करोड़ों रुपए किसी धार्मिक प्रचार-पासार (धर्म-परिवर्तन के लिए तो बिल्कुल भी नहीं, जैसे कि आरोप लगाए जाते हैं) के लिए नहीं, बल्कि भारत में समाज-सेवा हेतु ख़र्च करते हैं।
विदेशी सहायता प्राप्त करने वाले भारतीय चर्चों की संख्या 1 प्रतिशत भी नहीं है। 99 प्रतिशत चर्च स्थानीय क्लीसिया (संगति) की आर्थिक मदद से ही चलते हैं।
भाजपा सरकार ने बन्द करवा दी चर्च से कुछ ग़रीबों को मिलने वाली वित्तीय सहायता
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने विदेशी मसीही चैरिटी संगठनों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। उदाहरणतया अमेरिकन मसीही संगठन ‘कम्पैशन इन्टरनैशनल’ द्वारा भारत में कुछ मसीही संगठनों को प्रत्येक वर्ष 5 करोड़ डॉलर अर्थात 325 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता भेजी जाती थी परन्तु वह मार्च 2017 से बन्द कर दी गई है। यह राशि भारत के 1,50,000 ग़रीब, विशेषतया यतीम बच्चों की पढ़ाई तथा उनके कुछ अन्य ख़र्च चलाने पर ख़र्च की जाती थी। अब ये बच्चे एक प्रकार से अपनी पढ़ाई व अन्य ख़र्च के लिए राशि कहां से लाएंगे?
ख़ैर यदि 11 हज़ार करोड़ विदेशी रुपए में से अनुमानितः 4,400 करोड़ रुपए भारतीय मसीही संगठनों को जाते हैं, तो अब तक किसी ने यह रेकार्ड चैक करने का कष्ट क्यों नहीं किया कि शेष विदेशी राशि में से हिन्दु धार्मिक संगठनों को कुल कितनी राशि मिलती है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार तक तो ऐसा होना शायद कभी संभव नहीं होगा।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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