इंग्लैण्ड की बार का निमंत्रण प्राप्त करने वाले पहले एशियन ज्ञानेन्द्र मोहन टैगोर
बंगाल के मसीही समाज-सुधारक थे ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर
श्री ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर एक अन्य ऐसे मसीही रहे हैं, जो बंगाल में रहते हुए समाज सुधार के कार्यों में सक्रिय रहे थे। उनका जन्म 24 जनवरी, 1826 को हुआ था। वह पहले ऐसे एशियन थे, जिन्हें 1862 में इंग्लैण्ड की बार में निमंत्रित किया गया था। उनके पिता प्रसन्ना कुमार टैगोर तथा दादा गोपी मोहन टैगोर थे। दादा गोपी मोहन टैगोर तो हिन्दु कॉलेज के संस्थापकों में से एक थे। श्री ज्ञानेन्द्र मोहन टैगोर पढ़ने में बहुत होशियार थे तथा उन्होंने एक बार 40 रुपए प्रति माह की छात्रवृत्ति भी जीती थी, जो कि उस समय बड़ी राशि हुआ करती थी। 1842 में उन्होंने कलकत्ता के मैडिकल कॉलेज में दाख़िला लिया था परन्तु वह अपनी मैडिकल शिक्षा परिपूर्ण नहीं कर पाए थे। फिर हिन्दु कॉलेज में पढ़ने लगे, जहां राजनारायण बोस तथा गोबिन्दा चन्द्र दत्त (तोरू दत्त के पिता) जैसे व्यक्ति पढ़ते रहे थे।
राजा राम मोहन रॉय को रखा गया था हिन्दु कॉलेज से दूर
जब हिन्दु कॉलेज की स्थापना हुई थी, तो हिन्दु समाज के कुछ कट्टर किस्म के लोगों ने यही सोचा था कि पश्चिमी शिक्षा का हिन्दु समाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने राजा राम मोहन रॉय जैसी शख़्सियत को भी हिन्दु कॉलेज से दूर रखने के प्रयास किए थे। परन्तु इस कॉलेज का पाठ्यक्रम पूर्णतया धर्म-निरपेक्ष ही रखा गया था। शायद यही कारण था कि हिन्दु कॉलेज के भी बहुत से विद्यार्थी बाद में मसीही बन गए थे।
कृष्ण मोहन बैनर्जी के प्रभाव में आकर यीशु मसीह को ग्रहण किया था ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर ने
श्री ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर ने 1851 में अपने जीवन के पथ-प्रदर्शक श्री कृष्ण मोहन बैनर्जी के प्रभाव में आकर यीशु मसीह को ग्रहण किया था। उनका विवाह श्री बैनर्जी की पुत्री कमलमणी के साथ हुआ था। श्री टैगोर के मसीही बन जाने के कारण उनके परिवार ने उन्हें अपनी सारी पुश्तैनी जायदाद से बेदख़ल कर दिया था। उनके पिता प्रसन्ना कुमार टैगोर ने अपनी बेशुमार संपत्ति अपने भतीजे महाराजा बहादुर सर जतिन्द्रमोहन टैगोर को दे दी थी। परन्तु बाद में ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर ने अपने पिता इस निर्णय के विरुद्ध अदालत में मुकद्दमा ठोक दिया था और उन्हें जीत हासिल हुई थी तथा उन्हें अपनी पुश्तैनी संपत्ति का कुछ हिस्सा मिल गया था।
युनिवर्सिटी ऑफ़ लन्दन में हिन्दु लॉअ एवं बंगला भाषा के प्रोफ़ैसर हुए नियुक्त
1859 में श्री ज्ञानेन्द्र मोहन टैगोर अपनी पत्नी के साथ मैडिकल उपचार हेतु इंग्लैण्ड गए थे। अपने इलाज के दौरान वह युनिवर्सिटी ऑफ़ लन्दन में हिन्दु लॉअ एवं बंगला भाषा के प्रोफ़ैसर नियुक्त हो गए। 1861 में वह केन्सिग्टन पार्क गार्डन्स में रहे थे, जहां चर्चित डायरिस्ट राखल दास हलदर उनके विद्यार्थी थे। वहीं रहते हुए श्री ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर ने वकालत पास की तथा उन्हें 1862 में लिंकन’ज़ इन की बार से निमंत्रण प्राप्त हुआ और इस प्रकार ऐसा निमंत्रण पाने वाले वह प्रथम एशियन बने। वह 1864 में भारत लौट आए तथा 1865 में कलकत्ता हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे।
1869 में पत्नी के देहांत के पश्चात् इंग्लैण्ड लौट गए थे ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर
1869 में अपनी पत्नी श्रीमति कमलमणी के देहांत के पश्चात् श्री ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर एक बार फिर अपनी दो सुपुत्रियों भबेन्द्रबाला तथा सत्येन्द्रबाला के साथ इंग्लैण्ड लौट गए। जब भारत के प्रथम आई.सी.एस. (इण्डियन सिविल सर्विस) तथा लेखक, गीतकार, भाषा-वैज्ञानिक तथा महिलाओं के कल्याण हेतु कार्य करने वाले सत्येन्द्रनाथ टैगोर (नोबल पुरुस्कार विजेता राबिन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई देबेन्द्रनाथ टैगोर के दूसरे बेटे) की पत्नी ज्ञानन्दिनी अपने बच्चों के साथ 1877 में इंग्लैण्ड गईं थीं, तो वह कुछ दिन श्री ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर के घर पर ही ठहरीं थीं।
5 जनवरी, 1890 को श्री ज्ञानेन्द्रमोहन टैगोर का निधन हो गया था।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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