शिक्षा-शास्त्री, लेखक व जैसुइट फ़ादर जेरोम डी’सूज़ा
फ़ादर डी’सूज़ा भारत, पाकिस्तान व बांगलादेश का संविधान तैयार करने वाली असैम्बली के रहे सदस्य
फ़ादर जेरोम डी’सूज़ा एक जैसुइट पादरी, शिक्षा-शास्त्री, लेखक थे। इसके अतिरिक्त वह भारत का संविधान तैयार करने वाली ‘निर्वाचक सभा’ (कॉनस्टीच्यूएन्ट असैम्बली) के छः मसीही सदस्यों में से एक थे। मद्रास लैजिसलेटिव असैम्बली का सदस्य बनाने के लिए उनके नाम का प्रस्ताव सर सी. राजागोपालाचारी ने रखा था। फिर वह मद्रास के प्रतिनिधि बन कर दिल्ली गए। यह असैम्बली देश का संविधान तैयार करने के लिए 9 दिसम्बर, 1946 में स्थापित हुई थी तथा भारत का संविधान लागू होने से दो दिन पूर्व अर्थात 24 जनवरी, 1950 को भंग की गई थी। इस असैम्बली ने भारत का ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान एवं बांगलादेश का संविधान भी तैयार किया था। इस असैम्बली में फ़ादर डीसूज़ा व अन्य पांच मसीही सदसयों ने यह सुनिश्चित किया कि भारत, पाकिस्तान एवं बांगलादेश में अल्प-संख्यकों के अधिकार बने रहें। उन्हें अपने धर्म को मानने एवं उसका प्रचार करने का पूर्ण अधिकार हो। इसे बुनियादी अधिकारों में सम्मिलित किया गया।
बचपन से ही होनहार थे जेरोम डी’सूज़ा
जेरोम डी’सूज़ा का जन्म 6 अगस्त, 1897 को दक्षिण कन्नड़ ज़िले (जिसे अब कर्नाटक कहा जाता है) के मंगलौर के मूल्की नगर के एक कैथोलिक परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही बेहद होनहार थे तथा उन्हें बचपन से ही विभिन्न भाषाओं में दिलचस्पी थी। उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा मंगलौर के ही सेंट अलॉयसिस कॉलेज तथा उच्च शिक्षा तामिल नाडू के नगर तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ़’ज़ कॉलेज से प्राप्त की थी। फिर युनिवर्सिटी ऑफ़ मद्रास (चेन्नई) से उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य कोर्स उतीर्ण किया था। 29 मई, 1921 को उन्होंने ‘सोसायटी ऑफ़ जीसस’ के साथ जुड़ने से पूर्व त्रिची (तिरुचिरापल्ली) के सेंट जोसेफ़’स कॉलेज में पढ़ाया भी था। इस कॉलेज में भी उनके धार्मिक ज्ञान को देखते हुए उन्हें विद्यार्थियों का चर्च लेने की ज़िम्मेदारी सौंपते हुए उन्हें रैक्टर बना दिया गया था। उनके सख़्त परिश्रम को देखते हुए वह कॉलेज के अध्यक्ष (प्रैसीडैन्ट) भी बन गए थे। फिर उन्होंने बाकायदा जैसुइट मसीही पादरी बनने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। बैल्जियम में जाकर उन्होंने फ्ऱैंच जैसुइट मसीही रीतियों के अनुसार धार्मिक अध्ययन किया। उन्हें 30 अगस्त, 1931 को बैल्जियम के नगर एनीन में उन्हें औपचारिक रूप से पादरी घोषित किया गया।
कमाल के प्रशासक व वक्ता थे फ़ादर जेरोम डी’सूज़ा
फ़ादर जेरोम डी’सूज़ा एक कमाल के प्रशासक एवं वक्ता थे। उनके ऐसे गुणों के कारण सर सी. राजागोपालाचारी (जो बाद में भारत के अन्तिम गवर्नर जनरल भी बने थे) उन्हें बहुत पसन्द करते थे। 1942 में फ़ादरी डीसूज़ा का मद्रास के लोयोला कॉलेज में कर दिया गया। वहां भी वह रैक्टर (पादरी) रहे। वह युनिवर्सिटी ऑफ़ मद्रास की कानूनी स्थापना की प्रक्रिया में भी सम्मिलित रहे।
नेहरू बहुत भरोसा करते थे फ़ादर जेरोम डी’सूज़ा पर
दिल्ली में कॉनस्टीच्यूएन्ट असैम्बली के लिए कार्य करते समय फ़ादर डीसूज़ा पर भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू भी काफ़ी भरोसा करने लगे थे तथा वह उनकी प्रशंसा किया करते थे। नेहरू ने शैक्षणिक मामलों में कई बार फ़ादर डीसूज़ा की सलाह ली थी तथा नेहरू उनकी भाषण कला से बहुत प्रभावित थे।
नेहरू जी के साथ मिल कर पुर्तगाल का भारतीय चर्च में हस्तक्षेप समाप्त करवाया फ़ादर डीसूज़ा ने
वह भी फ़ादर डीसूज़ा ही थे, जिन्होंने स्वतंत्र भारत में पुर्तगाल के साथ बातचीत में नेहरू जी का साथ देकर उस देश का भारतीय चर्च में हस्तक्षेप समाप्त करवाया था। तब तक भारत में पुर्तगाल की सरकार अपने बिश्प नियुक्त किया करती थी। इसके अतिरिक्त फ़ादर डीसूज़ा ने ही फ्ऱांस की सरकार के साथ बातचीत करके चन्दननगर, पांडिचेरी जैसे नगरों पर से फ्रांस का बस्तीवादी अधिकार शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त करवाया था। उन्हें क्योंकि अंग्रेज़ी, फ्ऱैंच, स्पेनिश, इटैलियन एवं जर्मन भाषाओं में सुविज्ञता प्राप्त थी, इसी लिए उन्हें ही ऐसे कार्यों के लिए आगे किया जाता था। भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं राजनीति से संबंधित विषयों पर भाषण देने के लिए भी उन्हें ही निमंत्रित किया जाता था।
1997 में फ़ादर जेरोम डी’सूज़ा पर जारी हुआ यादगारी डाक-टिकट
‘सोसायटी ऑफ़ जीसस’ के सुपिरियर जनरल के निवेदन पर फ़ादर डीसूज़ा ने 1951 में पुणे (महाराष्ट्र) में ‘इण्डियन सोशल इनस्टीच्यूट’ भी स्थापित किया था, जिस ने ‘सोशल एक्शन’ नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया था। यह संस्थान अब नई दिल्ली के 10, इनस्टीच्युशनल एरिया, लोधी रोड पर स्थित है। ‘सोशल एक्शन’ को आज भी सामाजिक एवं अकादमिक क्षेत्रों मे बहुत अधिक पढ़ा जाता है। फ़ादर डीसूज़ा 1951 से लेकर 1956 तक इस संस्थान के प्रथम डायरैक्टर रहे। बाद में उन्हें सुपिरियर जनरल का जैसुइट मसीही समुदाय के भारत एवं एशियाई मामलों हेतु सलाहकार एवं असिसटैंट नियुक्त किया गया था। वह 1968 में भारत लौटे। अपने अंतिम वर्षों में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं जैसे - ‘सरदार पानिकर एण्ड क्रिस्चियन मिशन्ज़’ (1957), ‘दि चर्च एण्ड सिविलाईज़ेशन’ (1967), ‘स्पीचज़ एण्ड राईटिंग्ज़’ (1972)।
उनका निधन 12 अगस्त, 1977 को मद्रास में हो गया था।
1997 में भारत सरकार ने फ़ादर डीसूज़ा की याद में उनकी जन्म शताब्दी के सुअवसर पर एक डाक-टिकट भी जारी किया गया था।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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