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भारत के पहले सरकारी वकील वोमेश चन्द्र बैनर्जी (1844-1906)



 




 


अनोखे व्यक्तित्त्व के मालिक थे वोमेश चन्द्र बैनर्जी

अंग्रेज़ों के अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाने के लिए ‘इण्डियन नैश्नल कांग्रेस’ पार्टी की स्थापना 1885 ई. सन् में हुई थी और इसके प्रथम अध्यक्ष डबल्यू.सी. बैनर्जी (वोमेश चन्द्र बैनर्जी; उनका वास्तविक नाम तो उमेश चन्द्र बैनर्जी था परन्तु बंगाली उच्चारण के कारण वोमेश चन्द्र बौनर्जी प्रचलित हो गया था) थे और फिर 1892 में पुनः कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने थे।। वह मसीही थे। उनका जन्म 29 दिसम्बर, 1844 को कलकत्ता (पश्चिमी बंगाल) के एक ‘उच्च कुल’ के एक अमीर व अंग्रेज़ी भाषा द्वारा शिक्षित परिवार में हुआ था। अपने समय के वर्णनीय स्वतंत्रता सेनानियों में से एक श्री बैनर्जी ने अंग्रेज़ शासकों पर अपने जीवन के दौरान सदा यह दबाव बना कर रखा कि उन्हें भारत में वैसी ही स्वतंत्रता की अनुमति देनी चाहिए, जैसे कि उनके अपने देश इंग्लैण्ड तथा अन्य अधीनस्थ देशों में है। श्री वोमेश चन्द्र बैनर्जी अपनी ही प्रकार के अनोखे व्यक्तित्त्व के मालिक थे।


स्वतंत्रता सेनानी सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी का अदालती केस लड़ते समय हुए थे प्रसिद्ध

Womesh Chandra Banerjee श्री वोमेश चन्द्र ने वकालत पास की थी तथा मिडल टैम्पल, लन्दन की बार काऊँसिल हेतु भी योग्य घोषित किए गए थे। वह पहले ऐसे भारतीय थे, जिन्हें सरकार का स्थायी वकील (अधिवक्ता) बनने का गौरव प्राप्त था। भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्री सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी का अदालत की मानहानि के एक मामले में वकील के तौर पर डट कर बचाव करने के मामले से बच्चा-बच्चा उन्हें जानने लगा था।


इंग्लैण्ड का संसदीय चुनाव लड़ने वाले पहले भारतीय भी थे वोमेश चन्द्र बैनर्जी

श्री वोमेश चन्द्र बैनर्जी पहले ऐसे भारतीय भी थे, जिन्होंने इंग्लैण्ड की संसद के निचले सदन हाऊस ऑफ़ कॉमन्ज़ का चुनाव लड़ा था। यह चुनाव उन्होंने दो बार लड़ा था, परन्तु दोनों बार हार गए थे। वह इंग्लैण्ड के क्रॉयडॉन क्षेत्र में रहते थे और वहां उन्होंने अपने गृह का नाम अपने जन्म-स्थान खिदिरपुर के नाम पर रखा था। 1892 में लिबरल पार्टी ने उन्हें बैरो-इन-फ़रनैस से अपना प्रत्याशी बनाया था परन्तु वह एक टोरी प्रत्याशी चार्ल्स केज़र से पराजित हो गए थे। उन्हीं चुनावों में दादा भाई नौरोजी फ़िन्ज़बरी केन्द्रीय निर्वाचन क्षेत्र से जीते थे। वह अपने निकटम प्रतिद्वन्द्वी से केवल पांच मतों से जीते थे। वह 1893 में ब्रिटिश संसद में चुने जाने वाले प्रथम भारतीय बन गए थे।


कभी किसी के आगे झुके नहीं वोमेश चन्द्र बैनर्जी

श्री बैनर्जी ने अपना जीवन अपनी शर्तों से व्यतीत किया और कभी किसी के आगे झुके नहीं। चाहे उन्हें शानो-शौकत वाला जीवन पसन्द था परन्तु उन्होंने सरकार द्वारा न्यायधीश (जज) बनाए जाने की पेशकश ठुकरा दी थी। उन्होंने एक स्वतंत्र वकील के तौर पर ही अपनी प्रैक्टिस जारी रखी। वह 1886 में कलकत्ता युनिवर्सिटी में लॉअ फ़ैकल्टी के अध्यक्ष बने। उन्हें इंग्लैण्ड की न्याय-व्यवस्था बहुत अच्छी लगती थी परन्तु वह भारत में ‘स्वराज’ लागू करवाने के लिए संविधान में संशोधन चाहते थे। उनका मानना था कि सभी प्रशासकीय ज़िम्मेदारियां भारतियों के हाथों में आनी चाहिएं। श्री बैनर्जी का यह भी मानना था कि निजी संबंधों से धर्म एवं नसल की सभी बनावटी रुकावटें दूर हो जाया करती हैं। सामाजिक सुधारों के लिए चाहे उन्होंने कभी सक्रिय भूमिका नहीं निभाई परन्तु ‘इण्डियन नैश्नल कांग्रेस’ पार्टी का वह बहुत सम्मान किया करते थे।


इंग्लैण्ड की सुप्रीम कोर्ट के मुकद्दमे भी लड़े बैनर्जी ने

1902 में श्री बैनर्जी इंग्लैण्ड चले गए थे, जहां उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के उच्चतम न्यायालय ‘प्रिवी काऊँसिल’ में केस लड़ने प्रारंभ किए। इंग्लैण्ड की संसद की भारत के मामलों से संबंधित स्थायी समिति के वह सलाहकार रहे।

श्री वोमेश चन्द्र बैनर्जी ने प्राथमिक शिक्षा औरिएन्टल सैमिनरी एवं हिन्दु स्कूल से प्राप्त की थी। 1859 में उनका विवाह हेमांगिनी मोतीलाल से हुआ था। श्रीमति हेमांगिनी बाद में मसीही बनी थीं। श्री बैनर्जी ने अपना कैरियर 1862 ई. सन् में प्रारंभ किया था, जब उन्होंने कलकत्ता के सर्वोच्च न्यायालय के अटार्नीज़ डबल्यू.पी. गिलान्ड्रस की फ़र्म में कलर्क के तौर पर कार्य करना प्रारंभ किया था। वहां रह कर उन्होंने कानून का काफ़ी ज्ञान प्राप्त किया और यही बात बाद में उनके कैरियर में काम आती रही।


स्कॉलरशिप के सहारे इंग्लैण्ड गए थे बैनर्जी

1864 में वह बम्बई के श्री आर.जे. जीजीभाई द्वारा प्रदान की गई छात्रवृत्ति की सहायता से इंग्लैण्ड गए। वह मिडल टैम्पल में रहने लगे और जून 1867 में उन्हें बार में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया गया। अगले वर्ष 1868 में वह कलकत्ता लौट आए। कलकत्ता हाई कोर्ट के बैरिस्टर-एट-लॉअ सर चार्ल्स पॉल व एक अन्य बैरिस्टर जे.पी. कैनेडी ने एक वकील के तौर पर उन्हें स्थापित होने बहुत सहायता की। शीघ्रतया वह हाई कोर्ट के एक प्रख्यात वकील बन गए। 1901 में वह कलकत्ता बार से सेवा-मुक्त हो गए। उनकी सुपुत्री जानकी बैनर्जी ने कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी के न्यूहैम कॉलेज से प्राकृतिक विज्ञान (नैचुरल साइंसज़), रसायन विज्ञान (कैमिस्ट्री), प्राणी विज्ञान (बायोलोजी) एवं फ़िज़ियोलोजी विषयों में ग्रैजुएशन की थी।

21 जुलाई, 1906 को उनका निधन हो गया था।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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