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पुर्तगालियों ने क्यों मिटा दिए प्रारंभिक विशुद्ध भारतीय मसीहियत के नामो-निशान



 




 


अमेरिकन मसीही संस्था ने की दक्षिण भारत के प्राचीन मसीही दस्तावेज़ों की खोज

दक्षिण भारत में लाखों ऐसे मसीही हैं, जिन्हें ‘सेंट थॉमस क्रिस्चियन्ज़’ कहा जाता है। उनके पूर्वजों ने सन्त थोमा के द्वारा यीशु मसीह को सन् 52 ई. सन् एवं 72 ईसवी सन् के मध्य ग्रहण किया था। परन्तु बाद में भारत के उस समय के चर्च के अधिकतर लिखित दस्तावेज़ों को पुर्तगाली मसीही लोगों ने नष्ट कर के उन की जगह अपना साहित्य प्रचारित व प्रसारित कर दिया था। फिर भी अमेरिकन राज्य मिनेसोटा के नगर कॉलेजविले के सेंट जौन’ज़ ऐबे द्वारा दक्षिण भारत में पहली शताब्दी के बाद के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों की खोज हेतु कुछ कार्य भी हाल ही में किए गए हैं।

सेंट जौन’ज़ ऐबे वास्तव में अमेरिकन-कैसिनीज़ मसीही समुदाय द्वारा संचालित एक धार्मिक केन्द्र है। इसकी स्थापना 1856 में पैनसिलवेनिया के लैट्रोब में सेंट विनसैन्ट आर्कऐबे के मसीही प्रचारकों के आगमन के समय हुई थी। यहां पर बाईबल व मसीहियत से संबंधित प्राचीनतम एवं दुलर्भ हस्त-लिखित पाण्डुलिपियां मौजूद हैं। यह केन्द्र ऐसी ही प्राचीन मसीही लिखित दस्तावेज़ों की खोज करता है। इस के विभिन्न अजायबघरों एवं पुस्तकालयों में विश्व के कोने-कोने से लाकर रखे गए ऐसे अहम, बहुमूल्य एवं महान् दस्तावेज़ों की भरमार है। इन सभी दस्तावेज़ों को अब डिजिटल रूप भी दिया जा रहा है। इस धार्मिक केन्द्र की विशेषता यही है कि वे दस्तावेज़ जहां भी पाए जाते हैं, वहीं पर यह केन्द अपना एक पुस्तकालय या अजायबधर स्थापित कर देता है। जिससे वह स्थान मसीही संसार के लिए एक तीर्थ-स्थान के समान बन जाता है। इसी केन्द्र द्वारा लैबनान, तुर्की, इराक एवं केरल (भारत) सहित अन्य असंख्य स्थानों पर ऐसे मसीही दस्तावेज़ों की पहचान व खोज की जा चुकी है।


हंगरी मूल के अमेरिकन प्रोफ़ैसर इस्तवान पर्कज़ेल ने केरल में किए अनुसंधान

सन्त थॉमस ने व्यापारियों के उसी रूट द्वारा मध्य-पूर्व से दक्षिण भारत तक पहुंच बनाई थी, जिस रूट को उससे भी सदियों पूर्व व्यापारी लोग मसाले व अन्य वस्तुओं का कारोबार करने हेतु किया करते थे। दक्षिण भारत खाने में पड़ने वाले मसालों के उत्पादन के लिए प्राचीन समय से ही प्रसिद्ध रहा है। आज भी केरल के मसीही लोग प्रार्थना के समय सीरियक भाषा में गीत गाते है। यह सीरियक भाषा लगभग उस यहूदी आर्माएक भाषा के काफ़ी नज़दीक है, जो यीशु मसीह स्वयं बोला करते थे (बिल्कुल वैसे जैसे हिन्दी एवं भोजपुरी अथवा हिन्दी एवं हरियाणवी भाषाएं एक-दूसरे से बहुत करीब हैं)। मध्य-कालीन मसीहियत के खोजी प्रोफ़ैसर इस्तवान पर्कज़ेल, जो वास्तव में हंगरी मूल के हैं, ने केरल में काफ़ी अनुसंधान किए हैं। उनके ऐसे अनुसंधान कार्य मिनेसेटो स्थित सेंट जौन’ज़ ऐबे में विद्यमान हैं। प्रोफ़ैसर इस्तवान कई महीनों तक स्वयं केरल में रहे थे तथा प्राचीन ग्रन्थों एवं रेकार्डस को उन्होंने खंगाला था।


पुर्तगालियों ने नष्ट कर दिए थे मसीही लिखित दस्तावेज़

15वीं शताब्दी ईसवी में पुर्तगालियों ने केरल में आकर अधिकतर प्राचीन मसीही लिखित दस्तावेज़ों को नष्ट कर दिया था। वे अपने मसीही साहित्य को ही सही मानते थे, अन्य किसी को नहीं। उन लोगों ने बहुत बारीकी से उस सारे पुराने रेकार्ड को नष्ट कर दिया था और उनके स्थान पर अपना साहित्य प्रसारित कर दिया था। इसी लिए केरल में सीरियक भाषा में लिखित 1563 ईसवी सन् से पुराना कोई दस्तावेज़ नहीं मिलता। उस दस्तावेज़ के साथ कार्मेलाईट मसीही समुदाय द्वारा दर्ज एक नोट भी पाया गया है, जो कि लातीनी भाषा में लिखा गया है और उससे उस समय की धार्मिक परिस्थिति संबंधी जानकारी मिलती है।


पुर्तगाली अत्याचारों के बावजूद दक्षिण भारतीय मसीही समुदाय ने नहीं छोड़ीं अपनी रीतियां

सेंट थॉमस क्रिस्चियन्ज़ (सीरियन मसीही लोगों) पर चाहे लैटिन या रोमन कैथोलिक मसीही समुदायों ने अपना कब्ज़ा करना चाहा था परन्तु फिर भी प्रार्थना सभाओं में सीरियक भाषा का प्रयोग होता ही रहता था। पुर्तगालियों एवं रोमन कैथोलिक मसीही लोगों ने चाहे सीरियन मसीही लोगों की बहुत सी परंपराओं पर प्रतिबन्द्ध लगा दिया था परन्तु फिर भी उनमें से कुछ रीतियां बची रह गईं; क्योंकि बहुत से सीरियन मसीही लोग अंतःमन से किसी भी तर पोप को मानने के लिए तैयार नहीं थे। उनकी वफ़ादारी सीरियक पैट्रीआर्क पर ही थी। बाद में केरल से कुछ लोग विशेष तौर पर मध्य पूर्व के क्षेत्रों में पुराना मसीही साहित्य पुनः लाने हेतु गए थे, जो पुर्तगालियों ने नष्ट कर दिया था। मध्य-पूर्व के पुस्तकालयों में पूर्वी सीरियन मसीही कानून के संग्रह अब भी मौजूद हैं। केरल का चर्च भी पश्चिमी एवं पूर्वी शाखाओं में बंटा रहा है परन्तु फिर भी सेंट थॉमस के नाम से जुड़े मसीही विलक्ष्ण रूप से विशुद्ध भारतीय हैं और उनमें यूरोपियन चरित्र बिल्कुल भी नहीं है। उनकी संस्कृति काफ़ी हद तक हिन्दु संस्कृति से मिलती-जुलती है।


फ़ादर इग्नेशियस पय्यापिल्ली ने किया दक्षिण भारत की दुर्लभ वस्तुओं का अध्ययन

फ़ादर इग्नेशियस पय्यापिल्ली ने दक्षिण भारत के पुराने नष्ट हो चुके चर्च के खण्डहरों में से कुछ दुर्लभ वस्तुओं एवं यीशु मसीह की मूर्तियों को एकत्र किया है। उन मूर्तियों को ध्यानपूर्वक देखा जाए, तो यीशु मसीह के सर के पीछे जो प्रभा-मण्डल (हेलो) दिखाया गया है और उनके चिहरे का जो रूप दिखाया गया है, वह काफ़ी हद तक महात्मा बुद्ध की मूर्तियों से मिलता-जुलता बनाया गया है। कुछ अन्य पश्चिमी विद्वानों ने सीरियक हस्तलिखित दस्तावेज़ों की खोज की है। उन्होंने खजूर के पत्तों पर मल्यालम एवं अन्य स्थानीय भाषाओं में लिखे स्थानीय इतिहास ढूंढ निकाले थे। बहुत से पत्तों पर उस समय के चर्च की रोज़मर्रा की गतिविधियों का विवरण भी मिलता है। यहां तक कि उस समय के वित्तीय हिसाब-किताब एवं अन्य रेकार्ड भी उन पत्तों पर लिखे मिलते हैं। चाहे ऐसे बहुत से पत्तों को चूहों एवं दीमक ने नष्ट कर दिया है परन्तु फिर भी बहुत से लकड़ी के बड़े गट्ठों, जल-कुँओं एवं अन्य कूड़ा-करकट से भी ऐसे दस्तावेज़ प्राप्त हुए हैं। ऐसे बहुत से पुराने दस्तावेज़ जला भी दिए गए थे। इन पत्तों पर लिखे इतिहास से यह प्रमाणित होता है कि सीरियन मसीही लोगों के हिन्दु समुदाय एवं हिन्दु राजाओं व अन्य शासकों के साथ अच्छे संबंध हुआ करते थे। मसीही बिशपों का स्थानीय राजाओं के साथ उठना-बैठना हुआ करता था। ऐसा ही एक पुराना दस्तावेज़ मिला है, जो किसी बिशप द्वारा लिखा गया है। उस पर सभी चर्चों को कोचीन राज्य के हिन्दु राजा का 60वां जन्म-दिवस मनाने का आह्वान किया गया है। ऐसे सुअवसरों पर राजा की दीर्घायु के लिए विशेष मसीही प्रार्थना-सभाओं के आयोजन किए जाते थे।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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