भारतीय मसीहियत सन् 1600 से 1947 तक (संक्षिप्त)
ईस्ट इण्डिया कंपनी का उत्थान व पतन
इंग्लैण्ड की महारानी एलिज़ाबैथ-प्रथम ने 31 दिसम्बर, 1600 ईसवी को ईस्ट इण्डिया कंपनी (जो कि वास्तव में एक साझी स्टॉक कंपनी थी) को ‘रॉयल चार्टर’ सौंपा था। इस कंपनी के अधिकतर शेयर अमीर व्यापारियों व उस समय के बेहद धनी लोगों के पास थे। इस कंपनी की अपनी सेनाएं थीं और अन्य कर्मचारियों की संख्या भी बहुत अधिक थी। इस कंपनी ने भारत पर सही अर्थों में प्रभावशाली ढंग से 1757 में प्लासी के युद्ध के पश्चात् राज्य करना प्रारंभ किया था। उसका यह राज्य 1858 तक चला। भारत में 1857 के दौरान उठे विद्रोह के दौरान इस कंपनी के बहुत से अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। उसके बाद बागडोर सीधे इंग्लैण्ड की सरकार के हाथों में आ गई। इसके लिए यू.के. की सरकार ने भारत सरकार अधिनियम 1858 पारित किया था और तब भारत पर महारानी का सीधा राज्य कायम हो गया था। बहुत अधिक दख़ल के बावजूद ईसट इण्डिया कंपनी के वित्तीय मामलों बहुत समस्याएं आने लगीं। अंततः 1874 में यह कंपनी भंग कर दी गई और इसके लिए ‘ईस्ट इण्डिया स्टॉक डिवीडैण्ड रीडैम्पशन’ अधिनियम पारित किया गया था।
1812 में अमेरिका के पहले प्रोटैस्टैंट बैप्टिस्ट मिशनरी/पादरी आए भारत
इस सब के बीच मसीही मिशनरियों ने अपने प्रचार के कार्य निरंतर जारी रखे परन्तु उन्हें भारत में कोई अधिक सफ़लता हाथ नहीं लगी; क्योंकि ‘उच्च जाति’ के बहु-संख्यकों ने उनकी कोई अधिक बात नहीं सुनी। और उधर नए मसीही बने परिवारों को भारतीय समाज में कोई अधिक मान्यता नहीं मिल पाई। कुछ ऐसे आरोप भी लगते रहे कि ‘इन परिवारों ने केवल आर्थिक लाभ हेतु मसीहियत को अपनाया है।’ कुछ स्वार्थी प्रकार के नेताओं ने यह बात पकड़ कर उसका प्रचार करना प्रारंभ कर दिया।
चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड का प्रभाव भारत में कुछ अधिक देखा गया। 18वीं शताब्दी के अंतक तक प्रोटैस्टैंट मसीही मिशनें, जिनका इंग्लैण्ड में कोई अधिक आधार नहीं था, जैसे कि लूथरन मसीही मिशनरी भारत आने लगे। 1812 में अमेरिका के पहले प्रोटैस्टैंट बैप्टिस्ट मिशनरी/पादरी भारत आए।
भारतीय भाषाओं को विकसित करने में मसीही मिशनरियों व पादरी साहिबान का बड़ा योगदान
भारतीय भाषाओं में मसीहियत का बड़ा योगदान रहा है। बाईबल को भारत की स्थानीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिए मिशनरियों व पादरी साहिबान ने बहुत परिश्रम किए। भारतीय भाषाओं के क्षेत्र में उनके उस योगदान को आज भी वर्णनीय माना जाता है। मल्यालम व्याकरण संबंधी डॉ. हर्मन गुण्डार्ट की पुस्तक, तामिल भाषा हेतु फ़ादर बेसकी की पुस्तक, करनाटका-इंग्लिश डिक्शनरी, फ़ादर किट्टल द्वारा रचित कन्नड़ व्याकरण के नाम वर्णनीय हैं। उन्होंने भारत में अंग्रेज़ी भाषा की शिक्षा को लोकप्रिय बनाया। उन्होंने भारत तथा पश्चिमी देशों के साथ सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए।
सीरियन मसीही समुदाय व यूरोप के मसीही मिशनरियों की पहुंच रही अलग-अलग
जैसे कि पहले बताया जा चुका है कि सीरियन मसीही लोगों (जो यीशु मसीह के शिष्य सन्त थोमा द्वारा मसीही बनाए गए थे) का हिन्दुओं के साथ पूर्ण सामंजस्य था। उन्होंने कभी स्थानीय लोगों के धर्म परिवर्तित करवाने के प्रयत्न नहीं किए और न ही कभी हिन्दु विश्वासों व अभ्यासों पर कभी कोई नकारात्मक टिप्पणी की। हां, उन्होंने हिन्दु समुदाय की कुछ रीतियों को अपना अवश्य लिया। उन्होंने जाति-प्रथा को भी अपनाया परन्तु यूरोप के मसीही मिशनरियों ने कुछ अलग प्रकार की पहुंच को अपनाया। उन्होंने भारत में जाति प्रथा का विरोध किया तथा सभी सामाजिक वर्गों के लोगों को मसीही बनाने का प्रयत्न किया। परन्तु वे प्राचीन हिन्दु दर्शन-शास्त्र से पूर्णतया अनजान थे।
भारत में ऐशप्रस्ती का जीवन व्यतीत करते रहे ब्रिटिश बिशप व पादरी
इंग्लैण्ड के मसीही मिशनरी व बड़े पादरी साहिबान वास्तव में काफ़ी सुख-सुविधाओं का इस्तेमाल किया करते थे। ऐशप्रस्ती व सुख-सुविधाओं का प्रयोग करने वाले लोग यीशु मसीह के मुक्ति के मार्ग के बारे में कैसे सहीं ढंग से बता सकते थे। अंग्रेज़ मसीही बिशप एवं पादरी साहिबान तब गाड़ियों में यात्राएं किया करते थे। इसी लिए भारतीयों ने एक बढ़ई के घर में जन्म लेने वाले यीशु मसीह को तो यथा-योग्य आदर-सत्कार दिया परन्तु मसीही रहनुमाओं से किसी भी तरह से प्रभावित न हो सके।
निर्धन भारतियों की सचमुच सहायता करने वाले भी बहुत थे प्रचारक व पादरी साहिबान
परन्तु उनके विपरीत बहुत से मिशनरी सचमुच बहुत बड़े दिल वाले भी थे और वे भारत के निर्धन लोगों की दिल से सहायता करना चाहते थे। ऐसे पादरी साहिबान की जीवन-शैलियां स्व-बलिदान वाली व पूर्णतया सादगी से भरपूर रहीं थीं। ऐसे पादरी साहिबान ने किसी भारतीय को यीशु मसीह का सुसमाचार सुनाने के मामले में कभी कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की। उन्होंने पहले अपने जीवनों को एक मिसाल बनाया, जिनको देख कर सामने वाले स्वयं की प्रभावित हो जाते थे और उनमें से काफ़ी लोग उनके कारण यीशु मसीह के अनुयायी बन जाते थे। मदर टैरेसा ऐसे ही जीवन की जीती-जागती मिसाल बनी रहीं। परन्तु आज की गन्दी व स्वार्थी राजनीति ने धर्म-परिवर्तन को एक और ही रंगत दे दी। यही कारण है कि हिन्दु-पक्षीय राजनीतिक दल आज खुल कर मसीहियत व मसीही समुदाय के विरुद्ध ब्यानबाज़ी करते हैं। समस्त भारत में मसीही लोगों, विशेषतया पादरी साहिबान पर सांप्रदायिक आक्रमण होते रहते हैं और नगर प्रशासन व पुलिस प्रशासन कुछ नहीं करते।
तामिल नाडू भारत का एकमात्र राज्य, जहां मसीही समुदाय को धर्म के आधार पर आरक्षण मिला था
सैवियो एब्रयू के अनुसार अंग्रेज़ शासकों ने 1909 में इण्डियन काऊँसिल्ज़ एक्ट के अंतर्गत मुस्लिम समुदाय को अलग निर्वाचन क्षेत्र व प्रतिनिधित्व प्रदान किए। परन्तु मसीही समुदाय को यह सुविधा 1920 में जाकर दी गई। उसके कारण मद्रास विधान परिषद में दो कैथोलिक्स एवं तीन प्रोटैस्टैंट मसीही प्रतिनिध सदस्य चुने गए। तामिल नाडू ही भारत का एक ऐसा राज्य है, जहां मसीही समुदाय को धर्म के आधार पर ऐसा आरक्षण मिल पाया था। तत्कालीन वॉयसरॉय लॉर्ड हार्डिंग ने प्रोटैस्टैन्ट मसीही संगठन ‘इण्डियन क्रिस्चियन ऐसोसिएशन’ तथा दक्षिण भारत की ‘कैथोलिक इण्डियन ऐसोसिएशन’ केवल एक इकाई मानते हुए उन्हें भारतीय मसीही समुदाय के प्रतिनिधि माना।
भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् अंग्रेज़ मसीही मिशनरियों द्वारा संचालित सभी संस्थान भारतीय मसीही मसीही समुदायों को सौंप दिए गए।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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