Tuesday, 25th December, 2018 -- A CHRISTIAN FORT PRESENTATION

Jesus Cross

सम्राट अकबर, पुर्तगाली शासकों व अंग्रेज़ों के आगमन समय भारतीय मसीहियत



 




 


इटली के मसीही मिशनरी ने ऐसे किया तमिल समुदाय में प्रचार

इटली के एक जैसुईट मसीही मिशनरी रॉबर्टो डी नोबिली ने अपने प्रचार-कार्यों के लिए एक विशिष्ट प्रकार की पहुंच को अपनाया। उन्होंने ‘उच्च जाति’ के बहु-संख्यकों अर्थात हिन्दुओं में जाकर यीशु मसीह का सुसमाचार सुनाना प्रारंभ कर दिया। उनके साथ फ़ादर रीको भी हुआ करते थे। उन्होंने संस्कृत एवं तामिल भाषाएं सीखीं। यहां तक कि उन्होंने जनेऊ भी धारण किए, सन्यासियों वाले बड़े-बड़े चोगे पहने, सख़्ती से शाकाहारी भोजन का सेवन करना प्रारंभ किया और बहुत शुद्धता से धार्मिक रीतियों को अंजाम देने लगे। वे ‘निम्न वर्ग’ के हिन्दुओं के पास प्रचार करने कभी नहीं गए।

रॉबर्टो डी नोबिली एवं उनके साथियों ने अपने प्रचार के दौरान बाईबल एवं मसीही विश्वासों को पांचवां वेद बताया। दक्षिण भारत के नगर मदुराई (तामिल नाडू) में लोग उन्हें सुनने लगे। उनके ऐसे प्रचार से कुछ ब्राह्मण परिवारों ने स्वेच्छा से मसीही धर्म ग्रहण कर लिया। परन्तु अन्य मसीही समुदायों ने रॉबर्टो डी नोबिली एवं उनके साथियों की ऐसी गतिविधियों को ज़ोरदार विरोध किया; अंततः उनकी मिशन बन्द हो गई।


पुर्तगालियों द्वारा दक्षिण भारत के सीरियन मसीही समुदाय पर अत्याचार

Vasco Da Gama

1498 ई. में वास्को-डा-गामा के भारत आने के पश्चात् ही हुआ था पुर्तगाली शासकों का भारत आगमन। चित्रः इण्डिया-ऑन-लाईन.इन

इस दौरान सीरियन मसीही समुदायों ने यूरोपियन एवं नये मसीही लोगों दोनों से ही एक दूरी बना कर रखी। उस समय यहां पर पुर्तगालियों का कब्ज़ा था, उन्होंने सीरियन क्रिस्चियनों की इस दूरी का विरोध किया। पाड्रोआडो (इटली के राजा को कहा जाता था। 1514 ई. सन् में पोप लियो-10वें ने पहली बार पुर्तगाल के राजा अर्थात पाड्रोआडो की नियुक्ति की थी। उसके बाद प्रत्येक राजा की नियुक्ति पोप के द्वारा ही की जाने लगी थी। यह प्रथा 1911 तक चली, जब धर्म एवं राजनीति को अलग कर दिया गया) के अंतर्गत सीरियन मसीही लोगों पर अत्यधिक अत्याचार ढाहे जाने लगे और उन्हें कैथोलिक मसीही रीतियों के अनुसार चलने के लिए कहा। पुर्तगालियों ने सीरियन मसीही लोगों को जेलों में बन्द कर उन्हें कई-कई दिन भूखे रखा तथा उन्हें अपनी बात मनवाने के लिए मारा-पीटा भी जाता था। इस प्रकार उन मसीही शासकों ने मसीही लोगों पर ही अत्याचार ढाने के लिए यीशु मसीह की शिक्षाओं के विरुद्ध अनेक कार्य किए। इस प्रकार कुछ पुर्तगाली शासकों ने मसीहियत का नाम बदनाम करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।


पुर्तगाली गुण्डों ने सीरियन बिशप को ज़िन्दा जलाया

16वीं शताब्दी में एक बार तो पुर्तगाली शासकों के गुण्डों ने एक सीरियन बिशप को अग़वा कर लिया तथा उन्हें जीवित जला दिया। इस प्रकार वह दौर काफ़ी ख़ून-ख़राबे वाला बना रहा। 1599 ई. सन् में जब गोवा के आर्कबिशप अलैक्सियो डी मेनेज़ीस ने सीरियन मसीहीयों को ज़बरदस्ती कैथोलिक रीतियां अपनाने के लिए कहा, तो उन्होंने विद्रोह कर दिया।


सीरियन मसीही समुदाय ने किया रोमन कैथोलिक चर्च का ज़ोरदार विरोध-प्रदर्शन

3 जनवरी, 1653 को सन्त थॉमस के ज़रिए यीशु मसीह को मानने वाले सीरियन मसीही समुदाय के लोगों ने भारी संख्या में मट्टनचेरी (केरल में कोची के पास) नामक स्थान पर एकत्र हो कर यह सामूहिक संकल्प लिया कि वे अब कभी पोप के अधिकार को स्वीकार नहीं करेंगे, जिसे ‘‘कूनान क्रूस सत्यम’’ (झुकी हुई सलीब के साथ संकल्प अर्थात ‘बैन्ट क्रॉस वॉओ’) के नाम से जाना जाता है। अनेक सीरियन मसीही परिवारों ने एक झुके हुए क्रूस के साथ बंधी रस्सी को पकड़ कर यह सौगन्ध ली की कि वे अब कभी कैथोलिकवाद को नहीं अपनाएंगे।


मसीही मिशनरियों के प्रति दोस्ताना रहा मुग़ल सम्राट अकबर का रवैया

जैसुईट मसीही मिशनरियों ने तब उत्तरी भारत में मुग़ल सम्राट अकबर के कार्यकाल (1556-1605) के दौरान प्रचार करने के असफल प्रयत्न किए। कुछ मिशनरियों ने तो अकबर बादशाह तक को मसीही सुसमाचार सुनाया परन्तु उसके दरबार में बहुत से मुस्लििम एवं हिन्दु धर्म-शास्त्री मौजूद हुआ करते थे, जिनके आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर वे मसीही मिशनरी न दे सके। दूसरी बार ऐसे प्रयत्न किए गए। तब कुछ विद्वान किस्म के मसीही मिशनरी उत्तर भारत में पहुंचे। महाराजा अकबर का व्यक्तिगत रवैया अपनी सूझबूझ भरी कूटनीति के कारण चाहे उन मिशनरियों के प्रति दोस्ताना ही बना रहा परन्तु वह इस्लाम को छोड़ कर मसीही बनने के लिए कतई राज़ी न हुआ। दूसरी बार के ऐसे प्रयत्न तीन वर्षों तक चले।


अकबर ने की थी एक मसीही महिला से भी शादी

वैसे अकबर ने उन मिशनरियों के कहने पर एक मसीही महिला को अपनी रानी बना कर अपने हर्म अर्थात महल में रख लिया; जहां पहले से ही अन्य कई धर्मों की रानियां मौजूद थीं। उसके बाद जहांगीर (1605-1627) मुग़ल सम्राट बना। वह मसीही मिशनरियों के प्रति बहुत अधिक विनम्र बना रहा। परन्तु वह भी अपने पिता की तरह ही मसीही नहीं बना। परन्तु मिशनरियों के प्रचार बादस्तूर जारी रहे। फिर शाह जहां (1627-1658) तथा औरंगज़ेब (1658-1707) के कार्यकाल के दौरान तो मसीही लोगों पर अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गए। उन्होंने जैसुइट मसीही पादरियों की कभी कोई बात न सुनी। फिर भी 18वीं शताब्दी ईसवी तक जैसुइट पादरी साहिबान उत्तर भारत में पांच (मारवाड़ (जिसे अब जोधपुर के नाम से जाना जाता है), जैपुर, आगरा में एक-एक तथा दिल्ली में दो) चर्च स्थापित करने में सफ़ल हो गए थे।


अंग्रेज़ों का भारत आगमन

इसी बीच इंग्लैण्ड की ईस्ट इण्डिया कंपनी ने जैसुइट मसीही पादरियों के मुकाबले पुर्तगाल, हॉलैण्ड एवं फ्ऱांस से अपने विशेष मसीही मिशनरियों को बुलवाया और उत्तर भारत के इस क्षेत्र पर अपनी सरदारी कायम की। वैसे इस कंपनी का कभी धर्म या मसीही प्रचारसे कोई लेना-देना नहीं रहा। वे तो केवल व्यापारी थे और उनकी नज़र सदा भारत में पैदा होने वाले कच्चे माल पर लगी रही। उनका ऐसा मानना था कि यदि पुर्तगाली शासक भारत में धर्म के आधार पर अत्याचार न करते, तो शायद भारत में उनका राज्य कभी समाप्त न हुआ होता।


जानबूझ कर धर्म पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया ईस्ट इण्डिया कंपनी ने

इसी लिए ईस्ट इण्डिया कंपनी के संचालकों ने सोचा कि वे यदि धर्म की बात न करें तो बेहतर रहेगा। उन्होने वैसे कभी मसीही मिशनरियों को अपना प्रचार करने से मना भी नहीं किया परन्तु निजी तौर पर वे ऐसे प्रचार के सख़्त विरुद्ध बने रहे। उन्होंने तो बहुत बार मसीही मिशनरियों को ज़बरदस्ती भारत से बाहर भी निकाला (डीपोर्ट किया)। ऐसी परिस्थितियों में बहुत से प्रोटैस्टैन्ट मसीही मिशनरियों ने त्रानकुबार (वर्तमान तिरुचिरापल्ली - तामिल नाडू) तथा सीरामपोर (बंगाल) जैसे स्थानों पर शरण ली, जहां डैनिश मसीही लोगों की बड़ी बस्तियां थीं।


इंग्लैण्ड की संसद ने किया मसीही प्रचारकों को उत्साहित

1793 में विलियम केरी भारत आए परन्तु उन्हें ईस्ट इण्डिया कंपनी के अधिकारियों की ओर से कभी कोई सहयोग नहीं मिल पाया। उन्होंने बाईबल का अनुवाद भारत की 36 भाषाओं में करवाया, जो बहुत बड़ी साहित्यिक उपलब्धि भी मानी जाती है।

ईस्ट इण्डिया कंपनी द्वारा मसीही प्रचार के ज़ोरदार विरोध की बात इंग्लैण्ड तक भी पहुंच गई। कंपनी का जब नया चार्टर बनाय गया, तो इंग्लैण्ड की संसद ने यह सुनिश्चित किया कि भारत में मसीही प्रचार का इस प्रकार विरोध न किया जाए। तब तो भारत में मसीही मिशनरियों की जैसे एक बाढ़ सी आ गई। अकेले इंग्लैण्ड से ही नहीं, बल्कि अमेरिका, आस्ट्रेलिया एवं न्यू ज़ीलैण्ड जैसे देशों से भी पादरी साहिबान आने लगे।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मसीही समुदाय का योगदान की श्रृंख्ला पर वापिस जाने हेतु यहां क्लिक करें
-- [TO KNOW MORE ABOUT - THE ROLE OF CHRISTIANS IN THE FREEDOM OF INDIA -, CLICK HERE]

 
visitor counter
Role of Christians in Indian Freedom Movement


DESIGNED BY: FREE CSS TEMPLATES