बाल यीशु के दर्शनों हेतु जाने वाले तीन मजूसियों में से एक थे भारतीय राजा गोण्डोफ़रेस
सन्त थोमा के भारत में होने के हैं पुख़्ता प्रमाण
हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के प्रिय शिष्य (प्रेरित) सन्त थोमा के भारत आने के कई प्रमाण सीरियन मसीही समुदाय द्वारा चौथी शताब्दी ईसवी के दौरान किए गए कार्य भी देते हैं। इसके अतिरिक्त उसी शताब्दी में ही जीरोम, उसके पश्चात छठी शताब्दी ईसवी में गैलो-रोमन इतिहासकार तथा टूअर्स (फ्ऱांस) के बिशप सन्त ग्रैगरी (जिनका जन्म 30 नवम्बर, 538 ईसवी सन् व निधन 17 नवम्बर, 594 में हुआ था तथा जिन्हें सेन्ट ग्रैगरी ऑफ़ टूअर्स के नाम से भी जाना जाता है) द्वारा किए गए कार्य भी सन्त थोमा की कहानी को सत्य वर्णित करते हैं।
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल के राजा गोण्डोफ़रेस गए थे बैथलहेम
उन तीन मजूसियों की पेंटिंग, जो एक चमकते हुए सितारे को देख कर बाल यीशु मसीह के दर्शनों हेतु पहुंचे थे
हाल ही में पुरातत्त्व वैज्ञानिकों द्वारा की गई खोज के अनुसार यह भी ज्ञात हुआ है कि जिस समय यीशु मसीह (4 वर्ष पूर्व ई. से लेकर 33 ईसवी सन् तक) थे, उस समय वर्तमान भारत के पंजाब, हरियाणा राजस्थान, गुजरात राज्यों अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त पर गोण्डोफ़रेस नामक राजा का राज्य हुआ करता था। उसका राज्य 10 वर्ष पूर्व ईसवी से लेकर 40 ईसवी सन् के मध्य था अर्थात जब यीशु मसीह इस दुनिया में थे, तो उस समय यहां पर उसी का राज्य था। ‘गोण्डोफ़रेस’ नाम को आरमीनिया की भाषा में ‘गस्ताफ़र’ नाम से अनुवाद किया गया है और पश्चिमी देशों की भाषाओं में उसे ‘गैस्पर’ कहा जाता है। यह भी धारणा है कि वह ‘पर्सिया का राजा’ था। पर्सिया राज्य तब ईरान से लेकर भारत तक फैला हुआ था। कुछ खोजी इतिहासकारों की यह धारणा भी है कि बाईबल में जिन तीन मजूसियों (अंग्रेज़ी में ‘मैजी’) का वर्णन है, जो इस्रायल के मुख्य नगर येरुशलेम से 10 किलोमीटर दक्षिण की ओर स्थित कस्बे बैथलेहम में हुए यीशु मसीह को जन्म के समय चरनी में उन्हें देखने के लिए आए थे; उनमें एक राजा गोण्डोफ़रेस भी था। वे तीनों मजूसी वास्तव में राजा ही थे, जो मुर व लोबान लेकर आए थे। वैसे इस धारणा का कोई पक्का प्रमाण तो नहीं है कि गोण्डोफ़रेस भी उन मजूसियों में शामिल था या नहीं परन्तु कई अन्य बातों व प्रमाणों के आधार पर इतिहासकारों ने ऐसी धारणा विकसित की है। उस समय इसी नाम के कुछ अन्य राजा भी रहे हैं। परन्तु सन्त थोमा के बारे में किए गए खोज कार्यों के आधार पर भी कुछ बातें सामने आती हैं।
सन्त थोमा भी आकर मिले थे राजा गोण्डोफ़रेस से
अमेरिकन राज्य मासासूशैस्ट्स नामक महानगर में स्थित हारवर्ड युनिवर्सिटी में ईरानियन अध्ययन के एमिरेट्स प्रोफ़ैसर रिचर्ड एन. फ्ऱाय की खोज अनुसार सन्त थोमा की मसीही परंपरा में राजा गोण्डोफ़रेस को ‘कैस्पर’ कहा गया है। आर.सी. सीनियर ने भी उस समय में प्रचलित सिक्कों व अन्य दस्तावेज़ों के अधार पर अपने खोज-कार्यों से यही धारणा विकसित की है कि जो राजा सबसे अधिक सन्त थोमा के साथ जुड़े घटनाक्रमों में फ़िट बैठता है, वह गोण्डोफ़रेस-सासेज़ है, जो चौथा ऐसा राजा है, जिस के नाम के आगे शब्द ‘गोण्डोफ़रेस’ जुड़ा हुआ था। यीशु मसीह के शिष्य सन्त थोमा राजा गोण्डोफ़रेस के पास तक्षशिला में आए थे और राजा ने यीशु मसीह को ग्रहण कर लिया था।
फिर दूसरी शताब्दी ईसवी. में एक यूनानी दार्शनिक व मिशनरी पैंटेनस ने भारत में मसीही समुदाय के होने की बात की है। 325 ई. सन् में निसिया नामक स्थान (जो एनातोलिया का एक प्राचीन नगर है व इस समय तुर्की में है) पर जौन को ‘पर्सिया व महान् भारत’ का बिश्प नियुक्त किया गया था। सन् 345 ई. में पर्सिया (वर्तमान ईरान) में जब सैपोर-द्वितीय का राज्य था, तब वहां पर मसीही लोगों को मौत के घाट उतारा जाने लगा था, तब बहुत से मसीही लोग पर्सिया व मैसोपोटामिया से भाग कर क्रैगनोर आए थे। क्रैगनोर को आज हम कोडुन्गलूर (केरल) के नाम से जानते हैं, जहां सन् 52 में सन्त थोमा भी पहली बार आए थे। यूनानी व्यापरी कॉसमास इण्डिको प्लूस्टेस द्वारा लिखी पुस्तक से भी दक्षिण भारत में मसीही लोगों के विद्यमान होने के पुख़ता प्रमाण मिलते हैं।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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