कैसे भुलाया जा सकता है भारतीय भाषाओं हेतु इन विदेशी मसीही मिशनरियों का योगदान
मसीही शैक्षणिक संस्थानों की विश्व-स्तरीय गुणवत्ता
1997 में एक प्रतिष्ठित एवं धर्म-निरपेक्ष साप्ताहिक ‘इण्डिया टुडे’ ने भारत के चोटी के 10 महा-विद्यालयों (कॉलेज्स) के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रसारित की थी। उस सूची में पांच ऐसे कॉलेज - सेंट स्टीफ़न्ज़, नई दिल्ली; सेंट ज़ेवियर, मुंबई एवं कोलकाता; लोयोला कॉलेज, मद्रास (चेन्नई) एवं स्टैला मारिज़ कॉलेज फ़ार वोमैन, चेन्नई - सम्मिलित थे, जिनका संचालन मसीही संस्थानों के पास है। ऐसे अन्य बहुत से मसीही स्कूल व कॉलेज (मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज; इसाबेला थॉरबौर्न कॉलेज फ़ार वोमैन, लखनऊ, सारा ट्यूकर कॉलेज, पलायमकोट्टाई; माऊँट कार्मल वोमैन्ज़ कॉलेज, बंगलौर, चण्डीगढ़ बैप्टिस्ट स्कूल, बेयरिंग युनियन क्रिस्चियन कॉलेज, बटाला-पंजाब आदि असंख्य अन्य) भी हैं, जिनमें सभी धर्मों के लोग अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। क्योंकि उन्हें इन शिक्षण संस्थानों की पढ़ाई की विश्व-स्तरीय गुणवत्ता के बारे में ज्ञान है। इन सभी स्कूलों में बाईबल को भी विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है परन्तु तब किसी को भी चाहे वे हिन्दु हों, या मुस्लिम या सिक्ख; किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होती; क्योंकि वे अपने बच्चों का भविष्य सुनहरी बनाना चाहते हैं।
विदेशियों ने किए द्राविड़ भाषाओं के शब्द-कोश व व्याकरण तैयार
मसीही लोगों का भारत के साहित्य, भाषाओं व पत्रकारिता, शिक्षण, अध्यापन, चिकित्सा के क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान रहा है। इटली के जैसुइट पादरी कौनस्टैंज़िो बेसकी (1680-1747) ने तामिल भाषा के व्यंजनों के आकार व प्रकार में सुधार करके उन्हें प्रिन्टिंग प्रैस में प्रकाशित किए जाने योग्य बनाया था। उन्होंने तामिल शब्द-कोश तैयार किया था, जो उस समय के उपलब्ध ऐसे शब्द-कोशों से चार गुना बड़ा था और उसे शब्दों, समानार्थक शब्दों, कक्षाओं एवं अनुप्रास (रह्ाईम) के अनुसार विभाजित किया गया था। बिश्प रॉबर्ट काल्डवैल (1815-1891) ने द्राविड़ भाषाओं का एक तुलनात्मक व्याकरण तैयार किया था। इसी प्रकार जी.यू. पोप (1820-1908) ने उत्कृष्ट तामिल साहित्य को अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था। वेदन्यागम पिल्लै (1824-1889) एवं एच.ए. कृष्ण पिल्लै (1827-1900) जैसे दो मसीही लेखकों ने तामिल भाषा के पहले कुछ नावल प्रकाशित करवाए थे। पंजाब के लुधियाना में पादरी जे. न्यूटन ने 1854 में पंजाबी शब्दकोश प्रकाशित किया था।
विदेशी मसीही मिशनरियों ने किए भारतीय भाषाओं पर बड़े कार्य
फ्ऱैंच पादरी फ्ऱांसिस मेरी ऑफ़ टूयर ने 1680 में हिन्दुस्तानी भाषाओं पर बड़ा कार्य किया था। उन्होंने एक विशाल शब्दकोश ‘थिसार्स लिंगुए इण्डियने’ (ज्ीमेंनतने स्पदहनंम प्दकपंदंम) तैयार किया था। इसी प्रकार हैनरी मार्टिन एवं हिन्दुस्तानी भाषा के प्रोफ़ैसर तथा अमेरिकन प्रैसबाइटिरियन मसीही मिशनरी डॉ. गिलक्रिस्ट तथा पादरी सैमुएल हैनरी केलॉग के योगदान भी वर्णनीय हैं। वह पादरी केलॉग (1839-1899) ही थे, जिन्होंने भारत के विभिन्न भागों की एक दर्जन उप-भाषाओं के आधार पर एक वर्णमाला तैयार की थी, जिसे आज ‘हिन्दी’ कहते हैं। उनके द्वारा लिखी पुस्तक ‘हिन्दी व्याकरण’ आज भी सर्वोच्च पाठ्य-पुस्तकों में से एक मानी जाती है। इसे हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग (इलाइहाबाद, उत्तर प्रदेश) ने प्रकाशित किया है। विलियम केरी तथा उनके बैप्टिस्ट साथी मिशनरियों ने भारत में 1818 से शुरूआत करके भारत के पहले समाचार-पत्र, पत्रिकाएं इत्यादि प्रकाशित करने में योगदान डाला था। उन्होंने ‘फ्ऱैन्ड्स ऑफ़ इण्डिया’ नामक एक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया था, जो आज भी ‘स्टेट्समैन’ के नाम से कोलकाता एवं नई दिल्ली से प्रकाशित होता है। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘डिसकवरी’ में (पृष्ठ 317-318 पर) भी भारत के प्रारंभिक मसीही मिशनरियों द्वारा देश में शिक्षा, पत्रकारिता एवं भाषा-विकास के क्षेत्रों में किए कार्यों की सराहना की है।
इन विदेशी मसीही मिशनरियों के भारतीय भाषाओं में डाले गए योगदान को क्या कभी कोई भुला सकता है?
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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