भारत में मसीहियत ने दिया आधुनिक शिक्षा, महिलाओं की शिक्षा, कबाईलियों व दलितों पर ध्यान -1
पश्चिमी माहिरों के आगमन के बाद भारत में हुआ पुस्तकों व शब्दकोश प्रकाशन प्रारंभ
हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के दो शिष्य (प्रेरित) सेंट थॉमस व सेंट नथानिएल चाहे पहली शताब्दी के मध्य में भारत आ चुके थे, परन्तु देश में मसीही समुदाय पश्चिमी देशों के गोरे मिशनरियों व पादरी साहिबान के आगमन से ही समृद्ध हो पाया। 1498 में पुर्तगाली लोग भारत में आने प्रारंभ हो गए थे। 1542 में जैसुइट मसीही फ्ऱांसिस ज़ेवियर, जो उस समय के पोप पॉल-तृतीय के राजदूत थे, जब भारत पहुंचे; तब यहां पर रोमन कैथोलिक मसीही लोगों की गतिविधियां प्रारंभ हुईं। प्रोटैस्टैन्ट मसीहियत की शुरूआत देश में दो जर्मन पादरी साहिबान बार्थलम्यू ज़ीजेनबाल्ग तथा हैनरी प्लूटशाउ के तामिलनाडू के नागापट्टिनम ज़िले के नगर तरंगमबाड़ी (जिसे तब त्रानक्यूबार के नाम से जाना जाता था) में आने से हुई थी। पश्चिमी देशों से ऐसे लोगों के आने से भारत में पुस्तकों, विशेषतया आधुनिक शब्दकोशों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। बहुत देर तो देश में अंग्रेज़ी भाषा का विरोध ही होता रहा था। परन्तु फिर भी भारत में आने वाले विदेशी मिशनरियों ने पाठ-पुस्तकों, व्याकरणों, मसीही तथा अन्य धर्मों की पुस्तकों के प्रकाशन में अत्यंत दिलचस्पी दिखाई।
भारत में विलियम केरी व ब्रिटिश बैप्टिस्ट मसीही मिशनरियों ने प्रारंभ की आधुनिक शिक्षा
PHOTO: CHRISTIANITY TODAY INTERNATIONAL
भारत के बहुत से दलित लोगों का जीवन इन मिशनरियों के आगमन से पूर्णतया परिवर्तित हो गया। 16वीं शताब्दी ईसवी में जैसुइट मसीही लोगों ने शिक्षा के मसीही संस्थान खोलने प्रारंभ कर दिए थे। उसके बाद जर्मनी मिशनरियों ने भी ऐसे ही किया। जर्मनी मसीही मिशनरी फ्ऱैडरिक शवार्टज़ ने भी स्थानीय भाषाओं व अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खोले। विलियम केरी तथा ब्रिटिश बैप्टिस्ट मसीही मिशनरियों ने कलकत्ता में 18वीं शताब्दी के अन्त में उत्तर भारत में आधुनिक शिक्षा की नींव रखी। 1818 तक कलकत्ता, शिमला, दिल्ली सहित दक्षिण में राजपुताना में मिशनरियों ने 111 स्कूल खोल दिए थे।
उसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के चार्टर को 1813 में नया रूप मिला और उसके बाद तो इंग्लैण्ड की अनेक मिशन सोसायटीज़ भारत में आ गईं। उन्हीं के साथ प्रिन्टिंग प्रैस भी देश में आ गईं। अमेरिकन मिशन ने 1815 व 1829 में बम्बई में स्कूल खोले। जॉन विल्सन ने लड़कियों के लिए एक विशेष स्कूल भी बम्बई में ही खोला।
1830 में चर्च ऑफ़ स्कॉटलैण्ड के विदेश जा कर प्रचार करने वाले पहले मसीही मिशनरी अलैगज़ैण्डर डफ़ ने कलकत्ता में पढ़ाई-लिखाई की एक नई पहुंच प्रारंभ की। उन्होंने ने उन दिनों में भविष्यवाणी कर दी थी कि एक दिन अंग्रेज़ी ही भारत में कुछ नया सीखने की सब से बड़ी भाषा सिद्ध होगी। पहले तो उनका अंग्रेज़ी भाषा के प्रचार व पासार के कारण बहुत अधिक विरोध हुआ था। परन्तु धीरे-धीरे सभी को एक नई भाषा सीखने का महत्त्व समझ आने लगा।
भारत में सर्वप्रथम मसीहियत ने ही ध्यान दिया महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान
भारत में महिलाओं की शिक्षा की ओर ध्यान देने में भी मसीही लोगों ने ही पहल की। विदेशी मसीही मिशनरियों की पत्नियों ने स्वयं आगे बढ़ कर भारतीय बच्चों में दाख़िल किया। उस समय महिला पादरी साहिबान ने भी इस दिशा में उत्कृष्ट कार्य किए। 19वीं शताब्दल के भारत में महिलाओं को प्रायः औपचारिक रूप से शिक्षा नहीं दी जाती थी। केवल कुछ बड़े घरानों की लड़कियां ही पढ़ पाती थीं। 1834 के आंकड़ों के अनुसार केवल 1 प्रतिशत भारतीय महिलाएं ही पढ़ लिख पाती थीं। परन्तु 1900 तक बहुत से प्रमुख नगरों, कसबों व कुछ गांवों में भी स्कूल व कॉलेज खुल चुके थे।
मसीही लोगों ने कबाईलियों एवं दलितों के बीच किए बड़े कल्याण कार्य
मसीही लोग कबाईलियों एवं दलितों के बीच बड़े सामाजिक कल्याण कार्य कर रहे थे। अधिकतर कबाईली लोगों ने हिन्दु धर्म को नहीं अपनाया था, वे आत्माओं को माना करते थे। मसीही मिशनरियों ने उनकी आवश्यकताओं को बहुत अधिक पास जाकर देखा व समझा (उस समय भारत के बहुसंख्यक व तथाकथित उच्च जाति के लोग इन दलितों व कबाईलियों को नीच मान कर उनकी ओर देखना भी पसन्द नहीं करते थे। यदि कोई दलित भूल से कभी रामायण या श्रीमद भगवदगीता का पाठ सुन भी लेता था, ब्राह्मण लोग उनके कानों में सीसा (सिक्का) पिघला कर उनके कानों में डाल दिया करते थे, जिससे व सदा के लिए बहरे हो जाते थे। ऐसा रिवाज कई शताब्दियों तक भारत में चलता रहा है), इसी लिए ऐसे दुःखी लोगों ने बड़ी संख्या में मसीही धर्म को अपनाना प्रारंभ कर दिया। उत्तर-पूर्वी भारत तथा आंध्र प्रदेश व तामिल नाडू में बड़ी संख्या में लोगों ने यीशु मसीह को ग्रहण किया।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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