पश्चिम बंगाल के प्रथम राज्यपाल हरेन्द्र कुमार मुकर्जी
बंगाल के अनेक प्रमुख पदों पर रहे मसीही नेता हरेन्द्र कुमार मुकर्जी
श्री हरेन्द्र कुमार मुकर्जी (जिन्हें एच.सी. मुकर्जी अथवा एच.सी. मुखर्जी के नाम से भी जाना जाता था, वह ‘कुमार’ अंग्रेज़ी के अक्षर ‘के’ से नहीं, बल्कि ‘सी’ से लिखा करते थे, जिसके कारण वह एच.सी. मुखर्जी थे) भारत के स्वतंत्र होने से पूर्व देश का संविधान तैयार करने वाली निर्वाचक असैम्बली के उपाध्यक्ष थे। भारत व पाकिस्तान के बंटवारे के बाद वह भारत गण्राज्य के राज्य पश्चिमी बंगाल के प्रथम राज्यपाल (गवर्नर) बने थे। श्री हरेन्द्र कुमार मुकर्जी (1887-1956) एक शिक्षा-शास्त्री, बंगाल में प्रमुख मसीही नेता थे तथा वह अल्प-संख्यकों के अधिकारों संबंधी समिति के चेयरमैन भी रहे थे। वह राज्य विधान सभा की प्रान्तीय संविधान समिति के भी अध्यक्ष रहे थे, और इस प्रकार इस समिति के सदस्यगण अप्रत्यक्ष रूप से भारत का संविधान तैयार करने वाले प्रतिनिधियों में सम्मिलित थे। इसी असैम्बली पर पाकिस्तान व बंगलादेश (उसे तब पूर्वी बंगाल कहते थे) का संविधान भी तैयार करने की बड़ी ज़िम्मेदारी थी। इस असैम्बली ने तब केवल मुसलमानों व सिक्खों को ही धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक माना था और भारत के गणराज्य बनने के पश्चात् वही असैमबली 1947 में भारत की पहली संसद भी बनी थी।
वह ऑल इण्डिया काऊँसिल ऑफ़ इण्डियन क्रिस्चियन्ज़ के अध्यक्ष भी चुने गए थे। वह इण्डियन नैश्नल कांग्रेस के भी सदस्य थे तथा उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलनों में बंगाल के मसीही समुदाय का कई बार प्रतिनिधित्व किया था। उनका मानना था कि चाहे हम एक भिन्न प्रकार के मसीही धर्म को मानने वाले हैं, परन्तु इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं है कि हम कम-भारतीय हो गए हैं। हमने अपने देश के लिए हर प्रकार की ज़िम्मेदारी का बाख़ूबी निभाना है।
पी-एच.डी. तथा डी.लिट. तक की डिग्रियां प्राप्त की थीं एचसी मुकर्जी ने
श्री हरेन्द्र कुमार मुकर्जी का जन्म बंगाल में ही एक बंगाली परिवार में हुआ था। उन्होंने एम,ए, करने बाद युनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता से पी-एच.डी. तथा डी.लिट. तक की डिग्रियां प्राप्त की थीं। वह इस युनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी साहित्य में पी-एच.डी. (डॉक्टर ऑफ़ फ़िलासफ़ी) की डिग्री प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति थे। समाज सेवा में उनका बहुत मन लगता था। इसी युनिवर्सिटी में वह लैक्चरार, काऊँसिल ऑफ़ पोस्ट-ग्रैजुएट टीचिंग इन आर्ट्स के सचिव, कॉलेज्स के इन्सपैक्टर, 1936 से लेकर 1940 तक अंग्रेज़ी के प्रोफ़ैसर तथा अंग्रेज़ी विभाग के मुख्य रहे। बाद में वह बंगाल विधान परिषद में नामांकित हुए तथा बंगाल विधान सभा के लिए चुने गए।
भारत की निर्वाचक असैम्बली के उपाध्यक्ष व अल्पसंख्यकों के अधिकारों की उप-समिति के अध्यक्ष जैसे पदों पर रहते हुए उन्होंने राजनीति सहित सभी क्षेत्रों के अल्पसंख्यकों को ऊँचा उठाने हेतु आरक्षण की सुविधा देने का सुझाव दिया था। वह 1 नवम्बर, 1951 से लेकर 7 अगस्त, 1956 तक पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल रहे। इसी पद पर रहते हुए वह 1953 से लेकर अंत तक ‘देश-बन्धु मैमोरियल सोसायटी’ के अध्यक्ष रहे। कलकत्ता में 7 अगस्त, 1956 को उनका निधन हो गया।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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