यीशु मसीह ने विश्व को 2000 वर्ष पूर्व ही दे दी थी निशस्त्रीकरण की सीख
आईए जानें कि प्रमाणु ख़तरे के बीच यीशु का सन्देश आज भी कैसे है सशक्त व तर्कपूर्ण
वर्तमान विश्व के लोग निशस्त्रीकरण (हथियारों का प्रयोग न करना) को तरस रहे हैं। भारत और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश आज एक-दूसरे से केवल इस बात से ही डरते रहते हैं कि कहीं दूसरा देश प्रमाणु बम्ब न चला दे। ऐसा इन दोनों देशों में ही नहीं, अपितु समस्त विश्व में ही है। सभी देश अपने पास विद्यमान प्रमाणु शक्तियों के दम पर इतराते हैं। अमेरिका जैसे देश के पास सब से अधिक प्रमाणु शक्ति है परन्तु अब वह अन्य देशों पर धौंस जमाता है कि वे सभी प्रमाणु हथियार न बनाएं। यीशु मसीह ने लगभग 2000 वर्ष पूर्व ही विश्व को निशस्त्रीकरण का महान सन्देश दे दिया था।
चित्र विवरणः यह चित्र विश्व के सब से विशाल (क्लीसिया की संख्या अर्थात अपनी सदस्यता के आधार पर) चर्च के हैं (एक बाहरी दृश्य दिखलाता है तथा दूसरा अन्दर का)। इसका नाम योइडो फ़ुल गॉस्पल चर्च है तथा यह दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल के योई टापू पर स्थित है। यह गिर्जाघर असैम्बलीज़ ऑफ़ गॉड से सम्बद्ध व पैन्तीकॉस्टल मिशन से संबंधित है। इसके इस समय 4 लाख 80 हज़ार सक्रिय सदस्य हैं। इस चर्च की स्थापना 1958 में पादरी डेविड यौंगी चो ने की थी तथा इस समय पादरी यंग हून ली इस चर्च का नेतृत्व कर रहे हैं। इस चर्च भवन में एक साथ 12,000 श्रद्धालू बैठ कर प्रार्थना कर सकते हैं, परन्तु जब कभी श्रद्धालूओं की संख्या इससे भी अधिक हो जाती है, तो उन्हें समीपवर्ती स्थित अनेक भवनों में बिठाया जाता है, जहां पर विशाल टैली-स्क्रीनें व स्पीकर स्थापित लगे होते हैं, जिनके माध्यम से सभी श्रद्धालू एक ही बार में प्रार्थना-सभा में भाग ले सकते हैं।
क्या है मत्ती के 10वें अध्याय की 34वीं आयत का वास्तविक अर्थ
यीशु मसीह ने हथियारों का प्रयोग न करने व अहिंसा पर ही चलने की सीख दी थी। कुछ विरोधी लोग नए नियम की प्रथम इन्जील मत्ती के 10वें अध्याय की 34वीं आयत के हवाला देते हैं, जिसमें लिखा हैः ‘‘यह न समझो कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने को आया हूं; मैं मिलाप कराने नहीं पर तलवार चलवाने आया हूं।’’ वास्तव में यीशु मसीह की अधिकतर बातें दृष्टांतों में हुआ करती थीं, क्योंकि उन्होंने अपने समय के सभी धर्म-ग्रन्थों का गहन गंभीर अध्ययन किया था। उससे अगली आयतों 35-36 में ही यीशु अपनी ‘तलवार’ वाली बात को स्पष्ट भी कर देते हैं। दरअसल, यह बात पारिवारिक विभाजन की है। मानव व परमेश्वर के मध्य युद्ध सदा से चलता रहा है। कोई परमेश्वर को मानता है और कोई नहीं मानता - पिता, बेटी, मां, बहू, पुत्र सभी के विचार इस मामले में अलग-अलग हो सकते हैं। वे कई बार परमेश्वर के अस्तित्त्व पर बहस भी करते हैं। उस बहसनुमा युद्ध के बीच यीशु की संकेतात्मक तलवार का यह ज़िक्र है। 35 व 36 आयतों में लिखा है - 35 ‘‘मैं तो आया हूं कि मनुष्य को उसके पिता से और बेटी को उसकी मां से और बहू को उस की सास से अलग कर दूं’’ - 36 ‘‘मनुष्य के बैरी उसके घर के ही लोग होंगे।’’ जब यीशु मसीह परमेश्वर व मानव के बीच की एक कड़ी बन गए, तो पारिवारिक कलह तो अवश्य होगा। परिवार में एक जन कहेगा कि मैं तो यीशु मसीह के साथ जाना चाहता हूं व दूसरा शायद नहीं मानता होगा। उस समय होने वाले गृह-कलेश को संकेतात्मक तौर पर यीशु मसीह ने ‘तलवार’ कहा है।
यीशु ने ऐसे दी थी हथियारों का प्रयोग न करने की सीख
हमारे कुछ मुस्लिम भाई-बहन पवित्र कुरआन-शरीफ़ में दर्ज अनुसार गुनाहगार (विशेषतया अवैध संबंध बनाने वालों) को पत्थरों से मारने के दण्ड को सही मानते हैं और कुछ मसीही लोग भी बाईबल में दर्ज कुछ आयतों के अनुसार युद्ध तथा मुत्यु दण्ड को सही मानते हैं (यह ठीक है कि बाईबल में बहुत से स्थानों पर युद्ध से न डरने की बात कही गई है परन्तु जब यीशु के अपने एक साथी ने क्रोधित हो कर महायाजक के दास का कान तलवार से उड़ा दिया था तो यीशु ने उसे कहा था कि अपनी तलवार अपनी म्यान में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से ही नाश किए जाएंगे - मत्ती 26ः52. आज का कोई भी मसीही यीशु की इस बात को कभी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता)।
यीशु जैसी अहिंसक पहुंच और कहीं नहीं
वैसे भी तलवार तो बहुत दूर की बात है, यीशु ने तो यह भी कहा है कि यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे, तो अपना दूसरा गाल भी आगे कर दो। ऐसी अहिंसक पहुंच व सिद्धांत और कहां पर मिलेंगे। महात्मा गांधी जी ने इसी सिद्धांत को पकड़ कर भारत में ‘राष्ट्र-पिता’ का दर्जा हासिल कर लिया परन्तु आम लोग कभी खुल कर इस बात को स्वीकार ही नहीं करना चाहते, उल्टा मसीहियत को नीचा दिखलाने के सौ प्रयत्न करते हैं - इधर-उधर से बातें ढूंढ कर शाब्दिक आक्रमणा करते हैं, मसीही लोगों पर अत्याचार ढाते हैं। यीशु मसीह के सच्चे पैरोकार यह सब चुपचाप सहते हैं, कभी शिकायत भी नहीं करते क्योंकि यीशु मसीह स्वयं यही सिखला कर गए हैं कि यदि सत्य पर चलोगे, तो मुसीबतें तो उठानी पड़ेंगी। अपनी सलीब स्वयं उठाने (अपनी कबीलदारी के बोझ स्वयं झेलने) का सिद्धांत भी बड़ा महान है।
सभ्य समाज में हथियारों की कहीं व कभी कोई भूमिका नहीं हो सकती
आज यीशु मसीह के इस सन्देश को घर-घर पहुंचाने की आवश्यकता है। हथियारों से युद्ध अवश्य जीते जा सकते हैं, दिल नहीं। केवल महात्मा बुद्ध व यीशु मसीह ही दो ऐसे धार्मिक नेता हुए हैं, जिनका कोई भी चित्र किसी हथियार के साथ नहीं है क्योंकि इन्हीं दोनों ने ही पूर्णतया अहिंसा की बात की है, बाकी लगभग सभी धर्मों का नाता किसी न किसी तरह हथियारों से अवश्य रहा है। कुछ धर्म तो अब भी डंके की चोट पर हथियार उठाने को सही मानते हैं और इसी हिंसक सिद्धांत पर चल कर लोगों की हत्याएं करते हैं और फिर भी स्वयं को ‘विशुद्ध’ व ‘जेहादी’ कह कर महिमामंडित करने के प्रयत्न करते हैं। किसी सभ्य समाज में हथियारों का कभी कोई काम न हो सकता है, न कभी होना चाहिए। सदियों पुरानी बातों को अब त्यागना होगा। वे बातें उस युग में सही थीं, आज उन्हें सही नहीं माना जा सकता।
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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